लद्दाख़ की माँगों की सूची हो रही लम्बी

Jammu: Residents of Kargil district raise slogans during a protest against Leh being made the permanent headquarters of the newly created Ladakh division, in Jammu, Monday, Feb. 11, 2019. (PTI Photo)(PTI2_11_2019_000112B)

केंद्र शासित प्रदेश और संवैधानिक सुरक्षा कवच के बाद अब राज्य के दर्जे की माँग

नब्बे के दशक में जब लद्दाख़ जम्मू-कश्मीर राज्य का एक हिस्सा था, तब अपने लिए केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा माँगा था। उस समय एक अकल्पनीय माने जाने वाली यह माँग 5 अगस्त, 2019 को अचानक तब पूरी हो गयी, जब भारत के संविधान के तहत जम्मू-कश्मीर को स्वायत्त दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 को वापस ले लिया गया। इसके बाद लद्दाख़ ने छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा उपायों की माँग की। इसके वैध कारण थे। बौद्ध बहुल लेह और मुस्लिम बहुल कारगिल वाले लद्दाख़ क्षेत्र ने महसूस किया कि अनुच्छेद-370 द्वारा प्रदत्त संवैधानिक सुरक्षा उपायों के अभाव में क्षेत्र की जनसांख्यिकी ख़तरे में थी।

इस साल सितंबर में केंद्र सरकार ने अपनी जनसांख्यिकी में किसी भी सम्भावित बदलाव के बारे में क्षेत्र की चिन्ता को दूर करने के लिए इसे अनुच्छेद-370 जैसे सुरक्षा उपाय देकर क़दम उठाये। इसके बाद 4 सितंबर को केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख़ के प्रशासन ने घोषणा की कि वह केवल स्थायी निवासी प्रमाण-पत्र धारकों को निवासी प्रमाण-पत्र जारी करेगा, जैसा कि जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता को वापस लेने से पहले होता था; जब लद्दाख़ जम्मू और कश्मीर का हिस्सा था। यह जम्मू और कश्मीर के विपरीत है, जहाँ प्रशासन ने बाहरी लोगों को स्थायी निवास अधिकारों के लिए आवेदन करने और ज़मीन ख़रीदने के लिए एक विशेष अवधि के लिए क्षेत्र में रहने की अनुमति दी है।

अनुच्छेद-370 पूर्व शासन ने लद्दाख़ के राजनीतिक सशक्तिकरण को भी कमज़ोर कर दिया। चीज़ें की नयी योजना में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गयी लद्दाख़ हिल डेवलपमेंट काउंसिल (लेह और कारगिल दोनों के लिए), जो अविभाजित जम्मू-कश्मीर में स्वायत्तता से काम करती थी; बेमानी हो गयी। इस क्षेत्र पर अब सीधे केंद्र सरकार द्वारा उप राज्यपाल के माध्यम से शासन किया जाता है। इसलिए एलएएचडीसी का क्षेत्रीय सशक्तिकरण के लिए प्रभावी रूप से कोई मतलब नहीं है। लद्दाख़ रेजिडेंट सर्टिफिकेट ऑर्डर-2021 के अनुसार, ‘कोई भी व्यक्ति, जिसके पास लेह और कारगिल ज़िलों में सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किया गया, स्थायी निवासी प्रमाण-पत्र (पीआरसी) है। या वह ऐसे व्यक्तियों की श्रेणी से सम्बन्धित है, जो पीआरसी जारी करने के लिए पात्र होंगे, तो वह निवासी प्रमाण-पत्र प्राप्त करने का पात्र होगा।‘

लेकिन अब एक और माँग पूरी होने के साथ ही लद्दाख़ इस क्षेत्र को अलग राज्य का दर्जा देने की ज़ोरदार पैरवी कर रहा है। 14 दिसंबर को दोनों ज़िलों ने माँग के समर्थन में पूर्ण हड़ताल की। हड़ताल का आह्वान दो ज़िलों की माँग पूरी करने के लिए लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस ने किया था, जो दोनों ज़िलों के अधिकारों के लिए लडऩे वाले कई संगठनों, धार्मिक और राजनीतिक समूहों का एक संगठन है। हड़ताल सफल रही। सभी दुकानें और व्यापारिक प्रतिष्ठान बन्द रहे और सड़कों से परिवहन नदारद रहा। अधिकांश लोगों के अपने घरों तक ही सीमित रहने के कारण सड़कें सुनसान थीं।इस समूह के एक नेता सज्जाद हुसैन कारगिली ने कारगिल में पूर्ण बन्द की तस्वीरें पोस्ट करते हुए ट्वीट किया- ‘यहाँ के लोग आज लद्दाख़ के लिए स्टेटहुड की माँग के समर्थन में पूर्ण बन्द का पालन कर रहे हैं। हमारी माँग संवैधानिक सुरक्षा उपाय, जल्दी भर्ती और लेह और कारगिल दोनों के लिए अलग लोकसभा और राज्यसभा सीटें देने की है।‘ हालाँकि केवल राज्य का दर्जा ही एकमात्र ऐसा मुद्दा नहीं है, जिसकी माँग क्षेत्र के यह समूह कर रहे हैं। वे लद्दाख़ के लिए अलग लोकसभा और राज्यसभा सीटें और सरकारी विभागों में 10,000 से 12,000 रिक्त पदों को भरने की भी माँग कर रहे हैं।

सन् 2011 की जनगणना के अनुसार, लद्दाख़ की कुल जनसंख्या 2.74 लाख है। इसमें 1,33,487 की आबादी वाला बौद्ध बहुल लेह है; तो वहीं 1,40,802 की आबादी वाला मुस्लिम बहुल कारगिल है। कुल मिलाकर लद्दाख़ मुस्लिम और बौद्ध बहुल है। दशकों में ऐसा पहली बार हुआ है कि लद्दाख़ के दो ज़िले राज्य का दर्जा और अधिकारों की सुरक्षा की अपनी माँगों के लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए एक ही दिशा में देख रहे हैं। हाल ही में केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला ने केंद्र शासित प्रदेश के मसले और क्षेत्र में रोज़गार की माँग पर चर्चा करने के लिए एक बैठक बुलायी थी। लेकिन यह मामला सुलझने से कोसों दूर है। पूर्ण राज्य के दर्जे की माँग ने स्थिति को बहुत जटिल बना दिया है। सिर्फ़ तीन लाख की आबादी वाला लद्दाख़ शायद ही राज्य का दर्जा पाने के योग्य हो। इससे केंद्र सरकार में हड़कम्प मच गया है। इससे भी अधिक ऐसे समय में जब जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने की उसकी तत्काल कोई योजना नहीं है, केंद्र सरकार की परेशानी को समझा जा सकता है।