राहुल हारे नहीं, बल्कि जीते

राहुल की हार, इस देश की जनता की जीत है। जिसकी वे चिंता कर रहे थे। जनता जानती है क्या होती है जीत और हार। गली-मोहल्ले में बहुरूपिए के नाच और पश्चिमी संगीत पर चा चा चा… नाच में अंतर होता है। इस अंतर को समझने वाली जनता जानती है कि राहुल आज हारे नहीं है। वे आज उस जनता के ह्रदय में हैं। जो अपने नेता को ध्यान से सुनती है। वोट नहीं देती लेकिन सब समझती है।

जनता को पता है कि राहुल वह प्रतिभा हैं जो आज नहीं तो कल, बहुमत से भी ज्य़ादा वोट पाकर एक दिन संसद में पहुंचेगे। गाली-गलौच नहीं करते। झूठे सपने नहीं दिखाते। वे कभी अपने सपने को भारत में साकार करेंगे। इस देश की जनता ने इस चुनाव में अच्छे से यह बात भी जान ली है कि राहुल जहां जहां भाषण देते है। अपनी योजनाएं बताते हैं वे क्यों नहीं देश की जनता तक पहुंचती। गांव के तिलकधारी प्रधान तो लालच देते हैं सब साथ चलेंगे, कमल पर ठप्पा लगाएंगे। शाम को गाड़ी-घोड़ा, जलपान सबकी अच्छी व्यवस्था है। प्रधान तो यह बताते हैं अबकी गैस का सिलंडर और चूल्हा मिल गया। आगे पांच साल हंडा भी मुफ्त मिलेगा। सब व्यवस्था किए हैं सरकार। इसीलिए इतनी गर्मी में इतना लंबा चुनाव। सब जानते हैं गप और सच।

राहुल को शिशु से युवा होते देखा है इस देश की जनता ने। उसे पता है राहुल की दीदी प्रियंका ने जब दुखी होकर बताया था कि आतंकवाद क्या होता है। ‘हम जानते हैं। कैसे हमारे पिता मारे गए। कैसे हमारी दादी मारी गई। परिवार का कमाने वाला जब मार दिया जाता है तो उसकी कितनी तकलीफ होती है। हम जानते हैं। पैसों से भूख ज़रूर बुझ जाती है लेकिन परिवार में ज़रूरत होती है साथ की, प्यार और दुलार की।’ आतंकवाद किस तरह उजाड़ता है परिवार लेकिन वे नहीं जानते जो दावे करते हैं झूठे। यह राहुल, प्रियंका और उसकी मां जानते हैं, समझते हैं। बस दुहाई नहीं देते।

देश की जनता ने राहुल बाबा को अपने बीच बड़े होते और अमेठी में आते जाते देखा और जाना है। एक दौर था जब बात करते करते राहुल ठिठक जाते थे। लेकिन दो साल में वे हजारों लोगों के बीच आज अपनी बात समझाना सीख गए हैं।

इसी चुनाव में उनका जो चुनावी मैनीफेस्टो आया। उसमें कितनी योजनाएं थीं। कितने सपने थे। लेकिन उनको समझाता कौन। यह चुनावी दस्तावेज भरोसे का था लेकिन उसे घर-घर ले जाकर लोगों को समझाता कौन? कांग्रेस के जिन नेताओं का यह काम था वे तो बकरी के गले में थन की तरह उस परिवार से चिपके रहने में ही अपनी भलाई देखते रहे हैं। वे सिर्फ बयान बाजी करते हैं। घूप में घूमें क्यों। गाड़ी से उतरें क्यों?

इस देश की जनता ने देखा है कि इस चुनाव में युवा नेता राहुल के साथ उनके नाम का मंत्रपाठ करने वाली उत्साही भीड़ नहीं थी। राहुल को उनके नाना जवाहर लाल नेहरू, दादी इंदिरा गांधी, पिता राजीव गांधी का नाम ले-लेकर वे कोसते थे जो नया भारत रचे थे। राहुल को पप्पू, नामदार, शहंशाह और न जाने क्या क्या पदवी दी जाती थी। जिसे पांच हजार नेता दुहराते रहे। चुनाव में आचार संहिता की खूब धज्जियां उड़ीं। चुनाव आयोग लाचार था और सिर्फ चुप रहा। देश की सीमा की रक्षा, और हिंदुत्व के नाम पर देश का तमाम तरह का मीडिया उनके था जिसके पास सत्ता थी।

राहुल ‘न्याय’ की बात करते थे। जनता को समझाया गया, जानते हो, इन्कम टैक्स की दर बढ़ा कर, सरचार्ज लगा कर आपका पैसा लेकर छोटे किसानों, दलितों व आदिवासियों में ऐसे उड़ा दिया जाएगा। यह प्रचार समाज के मझोले तबके और वणिक वर्ग में किया गया। बताया गया क्या मोदी पांच साल में बेरोज़गारी नहीं दूर की। अरे छोटी-छोटी नौकरियां जैसेे सहायकों की, चौकीदारों की, ड्राइवर की नौकरियां तो लगाई। क्या उनका ईपीएफ नहीं जमा होता। किसी ने नहीं पूछा कि तीन महीने बाद ये नौकरियां ‘रिन्यू’ क्यों नहीं होती। ईपीएफ में तीसरी किश्त क्यों नहीं जमा करता नियोक्ता। लेकिन सत्ता का प्रचार जारी रहा। राहुल कहां से नौकरियां देंगे। वे चीन का उदाहरण देते हैं।

देश की जनता ने देखा, करारी हार के बाद भी राहुल गांधी देश की जनता के सामने प्रेस कांफ्रेस में आए। उन्होंने शालीनता से कहा, ‘मैंने अपने चुनाव प्रचार में कहा था और आज भी कहता हूं कि जनता मालिक है। जनता का फैसला आज ही आया। मैं मोदी जी को बधाई देता हूं। इस चुनाव में उनकी अलग विचारधारा थी। वे इस चुनाव में जीते हैं। मैं उन्हें बधाई देता हूं।’

पार्टी के कार्यकर्ताओं से उन्होंने कहा, ‘हमारी लड़ाई विचारधारा की है। आप डरें नहीं, घबराएं नहीं। हम एक साथ मिल कर लड़ेंगे और जीतेंगे।’ उन्होंने उस मीडिया को भी धन्यवाद दिया जो इस पूरे चुनाव में कभी निष्पक्ष नहीं दिखा। इसके बाद राहुल उठ गए। बेहद शांत, शालीन और सौम्य।

इस देश की जनता जानती है कि उत्तर प्रदेश के सबसे पिछड़े इलाकों में रायबरेली, अमेठी कभी थे। तब यहां की सफेद मिट्टी में बमुश्किल दो फसलें साल भर में होती थीं। लेकिन गांधी परिवार ने इस इलाके में नहर से पानी और विकास की एक राह बनाई। राजीव गांधी की मृत्यु के बाद जो भी विकास योजनाएं पहले की थीं उन पर केंद्र सरकार पैसा ही नहीं देती थी। क्या विकास ठहर गया। निजी तौर पर गांधी परिवार ने वहां स्वास्थ्य, नारी शिक्षा और छोटे काम-धंधे यानी वैकल्पिक आय के स्रोत के लिहाज से हस्तशिल्प के काम सिखाना बताना शुरू किया। लेकिन राहुल इस बार अमेठी में हार गए। अपनी प्रेस कांफ्रेस में राहुल ने कहा, ‘इस बार अमेठी से स्मृति ईरानी जीत गई हैं। मैं उन्हें बधाई देता हूं। वे वहां की जनता के भरोसे का ख्याल रखेंगी। इसकी मुझे उम्मीद है।’

एक सवाल के जवाब में उन्होंने प्रेस कांफ्रेस में ही कहा कि कांग्रेस की कार्यकारिणी की जल्दी ही बैठक होगी उसमें हार की तमाम वजहों पर हम छानबीन करेंगे। एक और सवाल पर उन्होंने कहा, ‘पूरे चुनाव प्रचार के दौरान मैंने हमेशा शांति से, प्यार से ही अपनी बात रखी। हमेशा मेरी यही कोशिश थी कि मैं प्यार से ही बोलूं। प्यार से ही अपनी बात रखूं।’ जनता का अपना यह दुलारा नेता था जिसे अमेठी की जनता ने अपनी आंखों के सामने छोटे से बड़ा होते देखा। उसी अमेठी के लोगों की देख-रेख, शिकायतों, रोज़गार, काम धंधो, खेती-किसानी की समस्याओं को प्यार से देखने-समझने की गुजारिश उन्होंने जीती हुए उम्मीदवार से की। जो सिर्फ महानगरों की तड़क-भड़क, रंगीनी जानती हैं। वे अमेठी के लोगों के साथ न्याय नहीं कर पाएगी। भले ही उन्होंने देश के गांधी परिवार के एक नेता को उसी के घर में हराने का तमगा हासिल कर लिया। उनका एक मकसद पूरा हो गया। यह जीत अमेठी की जनता की हार है। उसे पता है कि अब उसके दिन लौटेंगे जो 72 साल पहले थे। क्योंकि उनकी नई प्रतिनिधि के पास न तो वक्त है और न उनकी समस्याओं को समझ पाने की क्षमता।

देश की जनता जानती है कि पांच साल सिर्फ चमक-दमक के थे। उस चमक-दमक-रंगीनी से प्रभावित युवाओं का मोहभंग जल्दी ही होगा। तब देश की जनता नया इतिहास रचेगी।

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