राहुल के सवालों के जवाब ढूँढता देश

दीपक बल्यूटिया

राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव में राहुल गाँधी का नया रूप देखने को मिला। लोकसभा में भाजपा से क़रीब छ: गुणा छोटी हो चुकी कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी ताबड़तोड़ हमले कर रहे थे और भाजपा के सांसद टकटकी लगाकर उनके इस परिवर्तित रूप पर विस्मित थे। यह चमत्कार ही है कि मामूली टोका-टाकी के बीच राहुल गाँधी ने लगभग निर्बाध रहते हुए अपना भाषण पूरा किया।

7 फरवरी को पूरा सदन न सिर्फ़ गौतम अडानी की कारगुजारियों से रू-ब-रू हो रहा था, बल्कि नरेंद्र मोदी की अडानी से साँठगाँठ पर भी ख़ामोश था। चमत्कार वास्तव में क्या था- राहुल का भाषण या भाजपा की चुप्पी? अगर भाजपा के सांसद नहीं चाहते, तो क्या राहुल गाँधी अपना भाषण पूरा कर सकते थे? इस सवाल का क्या यह मतलब निकाला जाए कि भाजपा सांसदों ने कांग्रेस नेता का साथ दिया? नहीं, क़तई नहीं। फिर ऐसा क्यों हुआ?

गौतम अडानी पूरी दुनिया के सामने ग़लत करते पकड़े गये हैं और आने वाले समय में वे और भी कुख्यात होते जाएँगे। ऐसे में भाजपा को अपनी छवि की चिन्ता है। वह खुले तौर पर गौतम अडानी का साथ देती हुई दिखना नहीं चाहती। यही वह रणनीति है, जिसके कारण राहुल गाँधी को सदन में खुलकर देश की समस्याएँ और सवाल रखने का मौक़ा मिला। राहुल गाँधी के तीखे सवाल का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न तो लोकसभा और न ही राज्यसभा के अपने भाषण में कोई उत्तर दिया। जब प्रधानमंत्री लोकसभा और राज्यसभा में बोल रहे थे, तो ऐसा लग रहा था कि राहुल गाँधी के तीक्ष्ण सवालों ने प्रधानमंत्री की धार कुंद कर दी है। प्रधानमंत्री मोदी के बचाव में क्यों नहीं उतरे भाजपा सांसद?

ताज्जुब की बात यह है कि सदन में गौतम अडानी के बचाव में भाजपा सांसद नहीं उतरे; लेकिन वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बचाव करते भी नहीं दिखायी पड़े। सदन के बाहर भाजपा नेताओं और प्रवक्ताओं ने जो कुछ कहा, उससे सदन के भीतर चुप्पी के कारण हुई जग हँसाई की भरपाई नहीं हो सकती। क्या इसे भाजपा की रणनीतिक भूल माना जाए? वास्तव में गौतम अडानी मामले पर चर्चा के लिए विपक्ष लगातार ज़ोर दे रहा था; लेकिन मोदी सरकार इसके लिए तैयार नहीं हो रही थी। राहुल गाँधी ने गौतम अडानी पर चर्चा में बदलकर रख दिया। स्पीकर ओम बिड़ला ने अपने पद की गरिमा के विपरीत व्यवहार करते हुए राहुल गाँधी को आगाह भी किया कि राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए भी ऐसी ही स्थिति सदन में बन सकती है; लेकिन राहुल इस धमकी के आगे झुके नहीं।

राहुल गांधी, कांग्रेस सांसद

राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री मोदी से जो सवाल पूछे, वह हमेशा जीवंत रहेंगे। जरा उन सवालों पर ग़ौर करें-1. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कितनी बार गौतम अडानी के साथ विदेश गये? 2. कितनी बार प्रधानमंत्री मोदी ने विदेश यात्रा के तुरन्त बाद गौतम अडानी से मुलाक़ात की? 3. कितनी बार विदेश में गौतम अडानी ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाक़ात की? 4. कितनी बार प्रधानमंत्री मोदी के विदेश यात्रा से लौटने के ठीक बाद उसी देश में अडानी को ठेका मिला है? 5. अडानी ने भाजपा को 20 साल में कितने पैसे दिये?

सदन में चुप रहकर भाजपा ने काम चला लिया; लेकिन ये सवाल सदन से बाहर उसके गले की फाँस बनेंगे, जिनका जवाब भाजपा को कभी-न-कभी देना ही पड़ेगा।

वास्तव में हमला गौतम अडानी पर होता दिख रहा है; लेकिन राहुल गाँधी नरेंद्र मोदी पर हमला कर रहे हैं। राजनीति में सवालों से जितना बचने की कोशिश होती है, वे उतने ही मुखर होते चले जाते हैं। राहुल गाँधी ने सवालों की झड़ी लगाकर यही स्थिति भाजपा के लिए पैदा की है। ऐसा नहीं है कि भारत जोड़ो यात्रा से जीवंत हुए राहुल गाँधी सिर्फ़ सवाल पूछ रहे हैं। वास्तव में इन सवालों का आधार सच्ची घटनाएँ हैं, जिनमें वे सवाल भी शामिल हैं, जो भारत जोड़ो यात्रा के दौरान आमजनों ने राहुल के सामने रखे। लिहाज़ा सदन में पूछे गये सवाल राहुल के नहीं, देश की जनता के हैं।

इन सवालों के आधार बने कुछ बिन्दुओं पर ग़ौर करें- पहले नरेंद्र मोदी अडानी के विमान में सफ़र करते थे। अब अडानी मोदी के विमान में सफ़र करते हैं। (ऐसी एक तस्वीर भी राहुल गाँधी ने सदन में दिखलायी)। यह मामला गुजरात का था; फिर भारत का हो गया और अब अंतरराष्ट्रीय हो गया है। दूसरा, 2022 में श्रीलंका बिजली बोर्ड के अध्यक्ष ने श्रीलंका में संसदीय समिति को सूचित किया कि उन्हें राष्ट्रपति राजपक्षे ने बताया कि उन पर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अडानी को पवन ऊर्जा परियोजना देने का दबाव डाला गया था। प्रधानमंत्री मोदी ऑस्ट्रेलिया गये और अचानक एसबीआई ने अडानी को एक बिलियन डॉलर का ऋण दे दिया। फिर वह बांग्लादेश जाते हैं और फिर बांग्लादेश पॉवर डेवलपमेंट बोर्ड अडानी के साथ 25 साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर करता है। सीबीआई, ईडी जैसी एजेंसियों का उपयोग करके जीवीके से मुंबई एयरपोर्ट का अपहरण कर लिया गया और भारत सरकार ने उसे अडानी को दे दिया।

राहुल गाँधी ने कहा- ‘लोग मुझसे पूछते थे कि अडानी किसी भी बिजनेस में आता है और कभी फेल नहीं होता। अडानी अब 8-10 क्षेत्रों में हैं और 2014 से 2022 तक उसकी कुल सम्पत्ति 8 बिलियन डॉलर से 140 बिलियन डॉलर तक कैसे पहुँच गयी?’

अडानी से दूरी दिखाने को मजबूर हुई भाजपा

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार द्वारा अडानी की कम्पनी को बिजली के मीटर लगाने का टेंडर रद्द कर देने का फ़ैसला यह बताता है कि राहुल गाँधी ने लोकसभा में ऐसी जगह चोट की है, जिसे भाजपा न छिपा पा रही है, न बता पा रही है। लिहाज़ा गौतम अडानी से न सिर्फ़ दूरी दिखाने को भाजपा मजबूर हुई है, बल्कि योगी सरकार अडानी की कम्पनी की कार्रवाई करती हुई भी दिख रही है। ऐसा जनता के कोपभाजन बनने की आशंका के कारण सम्भव हुआ है। राहुल ने भाजपा के लिए यह मजबूरी पैदा की है। इससे यह भी पता चलता है कि अडानी गेट कांड को लेकर भाजपा के भीतर घमासान मचा हुआ है और आगे भी इस पर घमासान बढऩे वाला है।

गौतम अडानी के साथ खड़ा नहीं दिखने की भरपूर कोशिश करते हुए भाजपा सदन से बाहर राहुल गाँधी पर हमलावर है, जो व्यक्तिगत हमला अधिक है। भाजपा की ओर रविशंकर प्रसाद से लेकर स्मृति ईरानी ने राहुल गाँधी पर व्यक्तिगत आरोप लगाये। पुराने ग़ैर-प्रमाणित आरोप लगाकर राहुल पर हमला बोला। मगर क्या इन हमलों से मोदी और अडानी के अनैतिक सियासी-कारोबारी रिश्ते का बचाव हो सकता है? अगर ऐसा होता, तो लोकसभा के भीतर भाजपा के सांसद तब तमाशबीन नहीं बने रहते, जब राहुल गाँधी बोल रहे थे।

भाजपा यह कभी नहीं बता पाएगी कि 2014 में 8 बिलियन डॉलर की सम्पत्ति 140 बिलियन डॉलर तक कैसे पहुँच गयी? कांग्रेस से पूछा गया कोई भी सवाल इस सवाल का जवाब नहीं हो सकता।  महँगाई, बेरोज़गारी जैसे सवाल भी मज़बूत हुए राहुल गाँधी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान अफ़सोस जताया कि राष्ट्रपति के सम्बोधन में महँगाई और बेरोज़गारी जैसे शब्दों का ज़िक्र तक नहीं था। अग्निवीर जैसी योजना का ज़िक्र करते हुए राहुल गाँधी ने कहा कि देश के लोग और सेना के अफ़सर बोल रहे हैं कि यह योजना थोपी गयी है। आरएसएस और अजित डोभाल जैसे लोगों ने इसे सेना पर थोपा है। सुबह-सवेरे मैदान पर अभ्यास करने वाले युवा निराश हैं कि अब उन्हें 15 साल की नौकरी की जगह चार साल की अग्निवीर योजना से जुडऩा होगा। संसद में राहुल गाँधी ने अहम मुद्दों को छुआ है। ये मुद्दे आने वाले समय में ज़मीन पर मज़बूत होंगे। आन्दोलन के लिए मुद्दों का दस्तावेज़ीकरण हुआ है। संसद में बातें रिकॉर्ड में आयी हैं।

बहरहाल जिन सवालों से भाजपा और मोदी सरकार भाग रही थी, उन सवालों के कटघरे में उन्हें ला खड़ा किया जा सका है। इसी मायने में राहुल का भाषण ऐतिहासिक है और अडानी गेट वास्तव में मोदी गेट बनता दिख रहा है।

(लेखक स्तंभकार हैं। लेख में उनके अपने विचार हैं।)