राहत पर राजनीति और एफआईआर

आज जब कोरोना जैसी भयावह महामारी हर रोज़ लोगों को निगलती जा रही है। लोग भयभीत हैं। श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों में बीमारी से मरने वालों की लाशें ज़्यादा आ रही हैं। समूचा विश्व घरों में कैद होकर रह गया है। लोग रोटी के लिए हाथ-पाँव मार रहे हैं। देश में सरकारें लोगों को राहत पहुँचाने की कोशिश में जुटी हैं। ऐसे में भी हम सरकार के आपदा प्रबन्धन को राजनीतिक चश्मे से देखने में जुट जाएँ। असंगतियों में सुधार की सलाह की बजाय सुरक्षा सेनानियों का सिर फोडऩे में लग जाएँ। होम क्वारंटाइन किये गये लोगों को दिये जाने वाले भोजन में साम्प्रदायिकता का ज़हर घोलने लगें। …यह तो ठीक नहीं।

राजस्थान के एक नामचीन साहित्यकार ने यह नैतिक बात दलीय सियासत में गले तक डूबे उन नेताओं के रुदाली-प्रलाप से आजिज़ होने के बाद कही है, जो राज्य सरकार के आपदा प्रबन्धन को मज़हबी पलड़ों में बाँट रहे हैं। भाजपा विधायक मदन दिलावर का वायरल हुआ वीडियो इस तल्ख माहौल में जलते अंगारों के जैसा है। मिसाल के तौर पर उन्होंने कहा कि जयपुर के रामगंज इलाके में होम क्वारंटीन किये गये मुस्लिमों को महँगा और स्वादिष्ट भोजन दिया जा रहा है, जबकि हिन्दू लोग सामान्य भोजन को भी तरस रहे हैं। भाजपा नेता के ये व्यंग्यबाण सीधे-सीधे राज्य सरकार के आपदा प्रबन्धन को चुनौती हैं। बहरहाल इन आरोपों ने सरकार की निष्पक्षता पर निशाना साधते हुए लोगों में संशय पैदा किया है। लेकिन इस विषैली राजनीति ने जो उन्माद की विषबेल रोपी है? उसकी कीमत कौन चुकाएगा? कुछ ऐसे ही विषबुझे बयान विधायक अशोक लाहोटी ने भी दिये हैं। उनका कहना है कि कोरोना संकट की इस घड़ी में सरकार तब्लीगी समाज की आवभगत में लगी हुई है। जबकि अन्य समुदाय के लोगों को सुबह की चाय भी नसीब नहीं हो रही है। उन्हें भोजन भी मिल रहा है, तो दोपहर 3:00 बजे बाद; वो भी सूखी रोटियाँ और बासी दाल? लाहोटी का आरोप है कि इलाज, जाँच और दवाइयों में भी भेदभाव बरता जा रहा है। यह सरकार की तुष्टिकरण की राजनीति नहीं तो और क्या है? इतना ही नहीं, भाजपा विधायक राजेन्द्र सिंह राठौड़ आरोप की दौड़ में एक कदम आगे रहे। उन्होंने स्क्रीनिंग के आँकड़ों को झूठा बताते हुए स्वास्थ्यकॢमयों को ही बेचैन कर दिया है।

भाजपा नेताओं द्वारा माहौल खराब करने पर चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा ने कहा है कि इससे सुरक्षा सेनानियों का मनोबल नहीं टूटेगा, तो क्या होगा? बहरहाल कांग्रेस ने मिथ्या आरोपों को लेकर विधायक मदन दिलावर के खिलाफ कोटा के महावीर नगर थाने में धारा-505(1) 505(2) 505 (3) आपदा प्रबन्धन की धारा-54 और महामारी आधारित धारा-3 के तहत शिकायत दर्ज करा दी है। इसी प्रकार विधायक अशोक लाहोटी के विरुद्ध भी थाना मानसरोवर में इन्हीं धाराओं के तहत कांग्रेस के रामचंद्र देवेन्द्र ने शिकायत दर्ज करायी है।

दुस्साहस की भी अपनी एक कूटनीति होती है। इतिहास की सबसे बड़ी आपदा के दौरान प्रबन्धन में साम्प्रदायिक सूराख खोजने की आदत वाले भाजपा नेताओं को सोचना चाहिए कि अगर ऐसा था, तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गहलोत की सराहना क्यों की? उन्होंने कहा कि मैं गहलोत जी को बधाई दूँगा कि उन्होंने इस संकट से उबरने केेे लिए कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये। उन्होंने यह भी कहा कि राजस्थान ने एक दिशा दिखायी है। सभी राज्यों को इसका अनुसरण करना होगा। ज़ाहिर है कि गहलोत के प्रयास आपदा नियंत्रण पर 100 टंच सुधार साबित हुए। लेकिन सियासी विपक्षियों की नामुराद सियासत को क्या कहा जाए, जो कि प्रादेशिक आपदा प्रबन्धन को साम्प्रदायिक बतोलबाज़ी में फँसाकर उसे मुँह के बल गिराने पर तुले हुए है? रिश्तों के रसायन को बिगाडऩे की कोशिशों पर संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान से शायद ही कोई उपद्रवी ही असहमत होगा। उन्होंने कुछ समय पहले ही सख्त लहज़े में कहा था कि ज़रूरत इस समय अफवाहों से सावधान रहने की और समाज विरोधी लोगों से सख्ती से निपटने की है। कुछ सिरफिरे लोग जानबूझकर माहौल खराब कर रहे हैं। ऐसे लोगों को कानून का पाठ पढ़ाने की सख्त ज़रूरत है। विश्लेषकों की मानें, तो राजनीतिक दलों की सामान्य धारणा यही रही है कि वे हर हाल में अपना फायदा तलाश करते हैं। अगल मौज़ूदा वैश्विक महामारी के समय में भी उनके विचारों में सुधार नहीं आता है, लोगों से उनकी सम्वेदनाएँ नहीं जुड़ती हैं, तो यह तय है कि ऐसे नेता जनता का भला नहीं कर सकते। बहरहाल आज जब सरकारों के कौशल की सबसे बड़ी परीक्षा हो रही है, तो राज्यों को चाहिए भरपूर मदद। आज जब राज्यों की वित्तीय सेहत डाँवाँडोल है, तो वीसी के दौरान गहलोत प्रधानमंत्री से यह अंदेशा साझा करने से नहीं चूके कि कोरोना से ज़्यादा तो कहीं भूख ही लोगों की जान न ले ले! उन्होंने आॢथक सुधार के लिए 20 लाख करोड़ की ज़रूरत बताते हुए कहा कि प्रदेश का आॢथक नक्शा बिगड़ चुका है।

इस समय सबसे ज़्यादा ज़रूरत उद्योगों, व्यापारिक संस्थानों, मीडिया संस्थानों, रियल एस्टेट आदि क्षेत्र के साथ-साथ दैनिक मज़दूरों, छोटे श्रमिकों-कर्मचारियों और कर्ज़दारों राहत देने की है। विभिन्न चरणों में धीरे-धीरे लॉकडाउन में ढील देकर आॢथक गतिविधियाँ चलाने की ज़रूरत है। अन्यथा कोरोना से ज़्यादा लोग भूख से मर जाएँगे। हालाँकि राज्य सरकार का अपने स्तर पर किया गया नवोदय भी सराहा जाना चाहिए, जिसके तहत दो साल के लिए विधायक कोष के तहत आवंटित राशि को स्वास्थ्य क्षेत्र के विकास के लिए समर्पित कर दिया गया है।

अगर राहत कार्यों में फिज़ूल की मीन-मेख को सच मान लिया जाए, तो इन तथ्यों को से कैसे मुँह मोड़ा जा सकता है कि महाराष्ट्र और तमिलनाडू के बाद राजस्थान देश में सबसे अधिक कोरोना की जाँचें करने वाला तीसरे नम्बर का राज्य बन गया है। रिपोर्ट लिखे जाने तक राजस्थान ने एक लाख से ज़्यादा सेंपल लेने का आँकड़ा छू लिया। हालाँकि कोरोना वायरस के नये मामले लगातार सामने आते जा रहे हैं। बढ़ते संक्रमण को देखते हुए सरकार और सक्रियता दिखा रही है। सूर्य नगरी जोधपुर में ‘एम्स’ और ‘एस.एन. मेडिकल कॉलेज में लगातार संदिग्धों की जाँच हो रही है और संक्रमितों का इलाज चल रहा है। बहरहाल लोकडाउन को कोरोना वायरस का तोड़ समझा जाए, तो यह भी एक अच्छी खबर हो सकती है कि राजस्थान में मिलावटखोरों पर ज़बरदस्त गाज गिरी है। कोरोना से पहले इस सूबे में रोज़ 6 लाख लीटर नकली दूध बिक रहा था। अब सप्लाई रुक-सी गयी है, जिससे धन्धा बन्द है।

कोरोना से भयंकर ज़ुबान

भाजपा नेताओं ने क्या हर मौके पर ज़हरीली ज़ुबान बोलने का मन बना लिया है। कोरोना की विभीषिका के दौरान इन नेताओं ने ऐसी घृणित मिसाल कायम की है, जिसकी गूँज बरसों तक सुनायी देगी। कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता रामसिंह कस्वां का कहना है कि कोरोना से कहीं ज़्यादा खतरनाक तो भाजपा नेताओं की ज़हरीली ज़ुबान है; जो हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे को जलाकर राख कर देगी। कोरोना पर तो हम निश्चित रूप से काबू पा लेंगे। लेकिन इन टूटे हुए रिश्तों का क्या होगा?, जो बिगाड़े जा रहे हैं। इनको ठीक करना आसान नहीं हो पाएगा। कोरोना की मार से बुरी तरह जख्मी लोगों का दर्द समझने के बजाय भाजपा नेता उनका धर्म और जाति टटोल रहे हैं; ताकि वे साम्प्रदायिक धु्रवीकरण का दाँव खेल सकें। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर नेताओं का गुस्सा फूट रहा है, तो इसलिए कि गहलोत ने संक्रमितों के आँकड़े जारी करने में धर्म-जाति और समुदाय का उल्लेख नहीं होने दिया। गहलोत देश के पहले मुख्यमंत्री कहे जाएँगे, जिन्होंने साम्प्रदायिक धु्रवीकरण की कोशिशों पर करारा प्रहार करते हुए कह दिया कि महामारी का कोई धर्म और कोई जाति नहीं होती। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी गहलोत की बात की तस्दीक करते हुए साफ कर दिया कि संक्रमितों के जारी किये जाने वाले आँकड़ों में धर्म-जाति का उल्लेख नहीं किया जाना चाहिए। बाद में केंद्र सरकार ने भी गहलोत की बात को उचित ठहराया। लगता है भाजपा नेता कुर्सी के सम्मोहन में बँधे हुए हैं, जो हर समय साम्प्रदायिक धु्रवीकरण से चिपके रहना चाहते हैं। जिस बेशर्मी के साथ जो सियासी लोग साम्प्रदायिक धु्रवीकरण का पत्ता खेल रहे हैं, वे आिखर राहत कार्यों में नज़र क्यों नहीं आते? अलबत्ता साम्प्रदायिकता के कंगूरों पर बैठकर ऐसा नज़ारा देखने को बेताब रहते हैं कि किसने किसको मारा? कौन हिन्दू था? कौन मुसलमान? लेकिन सवाल है कि धाॢमक तनाव के ऑक्टोपस ने देश-प्रदेश को जिस तरह डस लिया है, अब उसकी दवा तलाशना भी बहुत मुश्किल काम है। सबसे बड़ी दिक्कत तो इन नेताओं की मानसिकता की है, जो झूठे वीडियो वायरल करने की दौड़ में सबसे आगे हैं। सवाल है कि कोरोना जेहाद के अँगारे मज़हबी भाईचारे की झोली में कौन फेंक रहा है? ट्वीटर के तयशुदा कायदों में तोड़-फोड़ कौन कर रहा है? नफरत की कीचड़ में सनी हेट स्पीच कौन दे रहा है? थाईलैंड के फेंक ट्वीट को भारत का बताकर किसने जारी किया? बड़ा सवाल तो यह है कि महामारी से डरे और पीडि़त लोग वायरस से लड़ें? कोरोना वायरस से या साम्प्रदायिक धु्रवीकरण वाले नफरस के वायरस से? जो कोरोना से कहीं ज़्यादा पैना और खतरनाक है। हमारा खयाल है कि उन्हें दोनों से ही लडऩा चाहिए। एक से सफाई और सोशल डिस्टेंसिंग रखकर और दूसरे से आपसी सद्भाव और भाईचारा बढ़ाकर।