राष्ट्र शर्मसार – गणतंत्र दिवस पर किसानों की युवा टोली ने सुरक्षा व्यवस्था को धता बता लाल किले पर फहराया अपना झण्डा

आज़ाद भारत के इतिहास में पहली बार किसानों का इतना बड़ा आन्दोलन देखने को मिला है, जिसमें ऐतिहासिक ट्रैक्टर रैली से इस बात का स्पष्ट संकेत मिलता है कि नये कृषि कानूनों में कुछ-न-कुछ तो काला है। लाल िकले की घटना और आन्दोलन से जुड़े तमाम पहलुओं की पड़ताल करती राजीव दुबे और शबाना की रिपोर्ट :-

केंद्र सरकार के साथ किसान संगठनों की 11 दौर की बातचीत में जब सरकार ने कह दिया कि नये कृषि कानूनों को डेढ़ साल तक टालने से बेहतर विकल्प हमारे पास नहीं है, इसके बाद अगली वार्ता का रास्ता भी एक तरह से बन्द हो गया। लेकिन इससे किसान आन्दोलन नहीं रुका और सबकी निगाहें 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस की किसान परेड यानी ट्रैक्टर रैली पर टिक गयीं। हालाँकि पहले से अंदेशा भी था कि जब हज़ारों की तादाद में ट्रैक्टर राजधानी में प्रवेश करेंगे, जिनके साथ लाखों किसान, खासकर युवा दिल्ली में लाल िकले की ओर बढ़ेंगे और उनको रोकने की कोशिश की जाएगी, तो टकराव मुमकिन है। तमाम कयासों और किन्तु-परन्तु के बावजूद जब किसान राजधानी की सीमाओं के अन्दर घुस रहे थे, तो उनका पुलिसकर्मियों के साथ टकराव हुआ, इसमें जन-धन हानि के साथ एक युवा समर्थक की मौत हुई। मौत कैसे हुई, इस पर भी बवाल मचा। पोस्टमार्टम रिपोर्ट कहती है कि मौत हादसे में हुई। लेकिन परिजनों का कहना है कि नवदीप की मौत पुलिस की गोली से हुई है। युवा किसान का नाम नवदीप था, वह रामपुर, उत्तर प्रदेश के थे। शुरू में यह आरोप भी लगे थे कि नवदीप की मौत पुलिस की गोली से हुई है। वहीं एक वीडियो में उनका टै्रक्टर पुलिस बैरिकेड से टकराकर पलटता नज़र आ रहा है। कुछ लोगों का कहना है कि इस हिंसा में सरकार की भूमिका भी संदिग्ध है। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि सरकार और किसान दोनों के अडिय़ल रुख के चलते ही हिंसा पनपी, जिसकी ज़िम्मेदारी प्रशासक के तौर पर निश्चित रूप से सरकार की है और उसे ही इसका हल निकालना होगा। अभी भी सवाल वहीं-का-वहीं है, यानी नये कानूनों पर कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं है, जिससे हालात आगे और भी बदतर हो सकते हैं और टकराव बढ़ सकता है। इसलिए ज़रूरी है कि संवेदनशील और विशेषज्ञों की टीम को लेकर समाधान निकालना ही होगा। क्योंकि यह मामला अब महज़ भारत तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि लाल िकले की घटना के बाद यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गरमा गया है।

देश की राजधानी नई दिल्ली में 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर कृषि कानून के विरोध में किसानों की बेकाबू ट्रैक्टर रैली ने शक्ति प्रदर्शन करके देश के सियासतदानों को साफ बता दिया है कि अगर अभी कृषि कानूनों को वापस नहीं लिया गया, तो आने वाले दिनों में प्रदर्शन और ज़्यादा उग्र हो सकता है। गणतंत्र दिवस पर एक ओर दिल्ली के राजपथ पर देश के शूरवीरों के पराक्रम और शौर्य की गाथाओं का प्रदर्शन और सम्मान किया जा रहा था, तो दूसरी ओर देश के कोने-कोने में अन्नदाता अपने अधिकार और सम्मान को बरकरार रखने के लिए तीनों नये कृषि कानूनों को वापस लेने की माँगों को लेकर प्रदर्शन करके जद्दोजहद कर रहे थे। राजपथ पर पहली बार राफेल लड़ाकू विमान की गर्जना के आगे ट्रैक्टरों की गूँज हावी हो गयी। महज़ दिल्ली ही नहीं, पंजाब-हरियाणा के साथ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और दक्षिण के कई राज्यों में भी इसका व्यापक प्रभाव देखने को मिला। संगठनों का कहना है कि सरकार किसानों को धमकाना छोड़े और कृषि कानून को वापस ले; ताकि देश का किसान तसल्ली से खेती-बाड़ी कर सके। विदित हो कि ट्रैक्टर रैली का मामला पहले उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) पहुँचा था, जिसमें सीधे दखल देने से उचचतम न्यायालय ने इन्कार कर दिया। उसने कहा कि इस पर दिल्ली पुलिस और सरकार ही फैसला करें। इसके बाद 26 जनवरी को दिल्ली पुलिस ने 37 शर्तों के साथ किसानों को दिल्ली में तीन जगहों से प्रवेश की अनुमति दी थी। इसमें यह भी कहा गया था कि हर प्रवेश द्वार से महज़ 5,000 ट्रैक्टर ही प्रवेश करेंगे, जिनके साथ 5,000 ही किसानों को अनुमति होगी; वह भी एक तय रूट पर। रैली का समय सुबह राजपथ पर परेड पूरी होने के बाद यानी दोपहर 12:00 से शाम बजे तक तय किया गया था। लेकिन कुछ किसानों, खासकर युवाओं की टोली ने सुबह से ही सिंघु बॉर्डर समेत अन्य जगहों पर ट्रैक्टरों के ज़रिये प्रवेश करना शुरू कर दिया। सिंघु बॉर्डर पर एक किसान नेता पर भड़काऊ भाषण देने के भी आरोप लगे हैं। इसके बाद तो जगह-जगह बैरिकेडिंग तोड़कर ट्रैक्टरों को प्रवेश करा दिया गया, साथ ही युवाओं का जोश और उफान मारने लगा। इसका नतीजा यह हुआ कि लाल िकले से पहले आईटीओ पर पुलिस और किसानों के बीच टकराव हो गया। कई जगह ट्रैक्टर और किसानों को रोकने के लिए बसें, ट्रक और ट्रॉले भी लगाये गये थे; लेकिन सब नाकाम साबित हुए। जब किसान लाल िकला पहुँचे, तो वहाँ पर जो घटना हुई उससे न सिर्फ किसान आन्दोलन की किरकिरी हुई, बल्कि इसके संचालकों पर भी उँगलियाँ उठायी गयीं।

हालाँकि संचालकों ने इससे पल्ला झाड़ लिया कि जो भी हिंसा हुई वह अराजक तत्त्वों ने की, उनका किसान संगठनों से कोई लेना-देना नहीं है। वे किसानों के समर्थक कतई नहीं हो सकते। पुलिस और अद्र्धसैनिक बलों के जवानों को लाल िकले के गेट से जबरन हटा दिया गया। जोश से भरी युवाओं की टोली इस तरह से लाल िकले पर चढ़ गयी, मानो उसने िकला फतह कर लिया हो। चूँकि सरकार इससे पहले उनकी बातों को गम्भीरता से नहीं ले रही थी, ऐसा उनका मानना है। शायद इसीलिए वे अपनी बात को प्रभावी तरीके से मनवाने के लिए दुनिया को दिखाने के लिए ऐसी हरकत कर बैठे। हालाँकि इस पर कई सवाल खड़े हो गये हैं। पहला यह कि जब दिल्ली की सीमाओं पर किसानों पर लाठियाँ भाँजी जा रही थीं और आँसू गैस के गोले दागे जा रहे थे, तो लाल िकले पर पुलिस इतनी शान्ति से तमाशा क्यों देखती रही? दूसरा, लाल िकले की प्राचीर पर जब युवा चढ़ रहे थे, तब उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया? तीसरा, लाल िकले तक मुख्य किसानों को क्यों नहीं पहुँचने दिया गया? कितनी ही जगह किसानों और पुलिस के बीच झड़प हुई, आँसू गैस के गोले दागे गये, लाठियाँ भी भाँजी गयीं, मगर लाल िकले पर घटना ऐसे घटने दी गयी, जैसे कोई फिल्म की शूटिंग चल रही हो। यह घटना इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गयी। 72वें गणतंत्र की इस घटना को शायद देश का कोई नागरिक भुला पाएगा।

गाज़ीपुर से नेशनल हाई-वे के रास्ते दिल्ली में ट्रैक्टर रैली में शामिल किसान सुरजीत और भीरू ने ‘तहलका’ को बताया कि देश को गुमराह करते-करते राजनेता अब किसानों को गुमराह करने में लगे हैं। सुरजीत ने बताया कि 26 नवंबर से 26 जनवरी तक तकरीबन डेढ़ सौ किसानों की जान ठण्ड और दूसरे कारणों से जा चुकी है। लेकिन सरकार ने किसानों की मौत पर दु:ख तक नहीं जताया है। बल्कि किसानों की मौत पर सियासत कर रही है कि ये तो किसान ही नहीं हैं। ऐसे में किसानों को गुस्सा आना स्वाभाविक है। किसान सुरजीत की मानें तो देश का अन्नदाता जब पहले से बने कानूनों से खुश है, तो नये कानूनों की ज़रूरत ही क्या है? नये कानून हम पर क्यों थोपे जा रहे हैं? दिल्ली के अक्षरधाम मन्दिर के पास ट्रैक्टर रैली को रोकने के लिए पुलिस ने आँसू गैस के गोले दागे। इससे झड़पें हुईं, जिसमें किसानों के साथ-साथ कई पुलिसकर्मी भी हुए। लेकिन किसानों का हौसला कम नहीं हुआ, वे आगे बढ़ते गये। आँसू गैस को गोले से घायल किसान मंदीप ने बताया कि वह पिछले दो महीने से किसान आन्दोलन में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि हम पुलिस और सरकार से लडऩे के लिए नहीं आये हैं, हम नये कृषि कानूनों को वापस कराने के लिए आये हैं। उन्होंने कहा कि अगर सरकार तीनों कानूनों को वापस नहीं लेती, तो वे अपनी जान तक कुर्बान करने को तैयार हैं। आँसू गैस का गोला लगने से ट्रैक्टर से गिर पडऩे पर किसान सोनू रंधावा ने कहा कि ये सरकार की दमनकारी नीतियों का नतीजा ही है, जिससे देश का अन्नदाता आज परेशान है। सरकार सत्ता के नशे में चूर है और किसानों की एक नहीं सुन रही।

संयुक्त किसान मोर्चा के नेता युद्धवीर सिंह का कहना है कि किसानों की ट्रैक्टर रैली में जो भी उत्पात, उपद्रव और हिंसा हुई है, उसकी वे कड़े शब्दों में निन्दा करते हैं। लेकिन इस हिंसा में किसानों की कोई भूमिका नहीं है। इसमें असामाजिक तत्त्वों के घुसने से माहौल खराब हुआ है। पुलिस को इसकी गहन छानबीन करनी चाहिए। मौज़ूदा हालात को देखते हुए किसानों की माँगों पर सरकार को भी गौर करना चाहिए। क्योंकि किसानों के आन्दोलन के चलते मंडियों के साथ-साथ कारोबार भी काफी हद तक प्रभावित हो रहा है। गाज़ीपुर बॉर्डर पर धरने में बैठे किसान कश्मीरी सिंह का कहना है कि सरकार कहती है कि जो किसानों का समर्थन कर रहे हैं, वे सियासी लोग हैं, किसान। तो सरकार उन सियासतदानों से निपटे। किसानों को बदनाम करने से सरकार को कुछ भी हासिल नहीं होगा। ये किसान कोई विदेश से नहीं आये हैं। जैसा किसान चाहते हैं, वैसा ही सरकार कर दे, तो ठीक है। अन्यथा किसानों का ये आन्दोलन मई, 2024 तक चलेगा। आज़ाद भारत के इतिहास में पहली बार किसानों का इतना बड़ा आन्दोलन देखने को मिला है, जिसमें ऐतिहासिक ट्रैक्टर रैली से इस बात का स्पष्ट संकेत मिलता है कि सरकार से आगे बड़ा टकराव हो सकता है। क्योंकि देश के किसान खेती-बाड़ी को छोड़कर, तमाम नुकसान उठाकर दिल्ली की सीमाओं पर दो महीने से अधिक समय से बैठे हैं और अब किसी भी हाल में पीछे लौटने को तैयार नहीं हैं। आज़ाद भारत के इतिहास में 72वें गणतंत्र दिवस पर पहली बार ऐसा हुआ कि गणतंत्र लहूलुहान हुआ। कुछ हिंसक भीड़ की वजह से, जिसे सरकार और पुलिस किसान बता रही है और किसान किराये के सियासी तथा उपद्रवी लोग; और कुछ सरकार व किसानों की हठधर्मिता की वजह से। लेकिन इस गणतंत्र में दिल्ली की पाँच तस्वीरें बड़ी साफ देखने को मिलीं, पहली- किसानों की अहिंसक ट्रैक्टर रैली, दूसरी- दिल्ली के बहुत-से लोगों द्वारा किसानों के स्वागत में पोस्टर लेकर खड़े होना, तीसरी- किसानों और पुलिस की हिंसक झड़प, तीसरी लाल िकले पर अभद्रता और लाल िकले के प्राचीर पर धार्मिक झण्डे का फहराया जाने के बावजूद पुलिस की चुप्पी और पाँचवीं- इंटरनेट सेवाएँ बन्द करने की घटना। इसमें दो मामले- झड़प और लाल िकले की घटना से लोकतंत्र शर्मसार हुआ। आईटीओ यानी दिल्ली पुलिस के मुख्यालय पर बेहद तनावपूर्ण माहौल में किसानों ने पुलिस को चेताया कि सरकार ने अगर कानून वापस नहीं लिए, तो भयानक परिणाम भुगतने होंगे। लेकिन इसके बाद पुलिसिया कार्रवाई का खौफ भी किसानों में देखा गया। एक ओर जहाँ बेहद खामोशी थी, तो दूसरी ओर वे सहमे हुए भी थे। अब पुलिस हरकत में आ गयी है, क्योंकि मामले में करीब तीन दर्ज़न  लोगों के खिलाफा एफआईआर दर्ज की गयी है। माना जा रहा है कि पुलिस आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर सकती है।

ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा की निन्दा करते हुए स्वराज इंडिया के नेता व किसान नेता योगेंद्र यादव ने कहा कि हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार की हठ की वजह से किसानों को आन्दोलन करने को मजबूर होना पड़ रहा है। लाल िकले पर धार्मिक झण्डा लगाये जाने की निन्दा करते हुए किसान नेता हन्नान मुल्ला ने कहा कि पुलिस की मौज़ूदगी में ये धार्मिक झण्डा लगाया गया है। मामले की जाँच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पिछले दो महीने से किसान शान्तिपूर्वक तरीके से आन्दोलन कर रहे हैं। अगर अचानक ये हिंसा हुई है, तो इसके पीछे ज़रूर कोई सियासी चाल है। किसान नेता राकेश टिकैत ने ट्रैक्टर रैली में हुई हिंसा के लिए सरकार और पुलिस को ज़िम्मेदार करार देते हुए कहा कि जब पुलिस ने ट्रैक्टर रैली की अनुमति दी थी, तो किसानों को क्यों रोका गया? इतना हीं नहीं, युवा किसानों को उकसाया तक गया। किसान मंगल सिंह ने ‘तहलका’ को बताया कि सरकार जानबूझकर आन्दोलन को बदनाम करने के लिए किसानों को भड़काया। इसको उन्होंने समझाया कि जब किसान आईटीओ से लाल िकले की ओर कूच कर थे, तब पुलिस ने क्यों नहीं रोका? और तो और नजफगढ़ और द्वारका से किसानों का जत्था ऐलान कर रहा था कि लाल िकले पर झण्डे को फहराने जा रहे हैं, तो भी पुलिस ने क्यों नहीं रोका? इससे साफ ज़ाहिर है कि लाल िकले की घटना कोई स्वत:स्फूर्त नहीं हुई, बल्कि कहीं-न-कहीं कोई बड़ी चूक हुई है या जानबूझकर होने दी गयी है।

इंटरनेट के साथ 50 मेट्रो स्टेशन करने पड़े बन्द

सुरक्षा के तमाम पुख्ता दावों के बावजूद 26 जनवरी को दिल्ली में अफरा-तफरी का आलम हो गया था। आनन-फानन में प्रभावित इलाकों में इंटरनेट सेवाएँ बन्द कर दी गयीं, बाकी जगह भी इंटरनेट की स्पीड कम कर दी गयी। इतना ही नहीं, हरियाणा और पंजाब में भी कई ज़िलों में इंटरनेट सेवाओं को रोक दिया गया। इसके अलावा मोबाइल से एसएमएस भेजने पर भी पाबन्दी लगायी गयी। दिल्ली में सबसे ज़्यादा प्रभावित सीमांत इलाकों के 50 मेट्रो स्टेशनों को बन्द कर दिया गया। इसके अलावा कहीं मेट्रो स्टेशनों पर प्रवेश की अनुमति नहीं थी, तो कहीं बाहर नहीं निकलने की। हिंसक झड़पों में करीब 300 पुलिसकर्मी घायल हुए। दिल्ली पुलिस के संयुक्त सचिव आलोक कुमार का कहना है कि किसानों ने अपना वादा नहीं निभाया है। उन्होंने गणतंत्र की गरिमा पर प्रहार किया है। मामले में सैकड़ों किसानों व उनके समर्थकों को गिरफ्तार किया गया। दिग्गज किसान नेताओं के खिलाफ भी नामजद एफआईआर दर्ज की गयी है।

भाजपा में भी अंतर्कलह!

‘तहलका’ की जानकारी के अनुसार,  सरकार और भाजपा के अन्दर भी सब ठीक नहीं चल रहा है। कुछ पार्टी नेताओं की मानें, तो अन्दरखाने मतभेद और कलह का उबाल है, जो लम्बे खिंचते किसान आन्दोलन का नतीजा है। पार्टी में एक बड़ा गुट और कार्यकर्ता नहीं चाहते कि किसानों को कोई परेशानी हो। इललिए वे दबी ज़ुबान या ऑफलाइन यह कह रहे हैं कि तीनों कृषि कानून वापस लेने में सरकार को हिचक नहीं दिखानी चाहिए। लेकिन आलाकमान अपनी ज़िद पर अड़ा है। इससे किसानों का सरकार के प्रति मोह सा भंग हो रहा है। कुछ पार्टी के कार्यकर्ताओं का मानना है कि कोरोना काल में कृषि कानून को लाकर सरकार ने पूँजीपतियों के लिए काम किया है। उससे किसान ही नहीं, बल्कि आम नागरिक भी नाराज़ हैं, जिससे पार्टी को नुकसान हो रहा है।

…और बढ़ेगा किसानों का साहस

दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों को रोकने लिए सरकार नज़र ज़रूर रख रही है, लेकिन यह भी सच है कि किसानों के समर्थन करने वाले लगातार बढ़ रहे हैं। इतना ही नहीं, आन्दोलनकारी किसान सोशल मीडिया के ज़रिये देश भर के किसानों और आम लोगों से जुड़ रहे हैं। टीकरी बॉर्डर में बैठे किसानों का कहना है कि सरकार के रवैये से किसानों का साहस और प्रबल होगा।

इधर, भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सम्बित पात्रा ने कहा कि 26 जनवरी को किसानों की आड़ में उपद्रवियों ने जो भी किया है, उससे ये आन्दोलन किसानों के हाथों से निकल गया है। उन्होंने कहा कि ये आन्दोलन कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के सहयोग से चल रहा था। लेकिन उनकी पोल खुल गयी है। किसान ऐसा घिनौना काम कर ही नहीं सकते हैं। वहीं कांग्रेस नेता अजय माकन ने कहा कि आज पूरे देश के किसानों में उग्र सोच रखने वाले नेतृत्व को बल मिलेगा और पूरा आन्दोलन अतिवादी तत्त्वों के हाथों में आ जाने का खतरा हो जाएगा। नरमी रखने वालों नेताओं के हाथ से आन्दोलन निकल जाएगा। क्योंकि ये किसान रैली राजनीतिक रूप से मायने रखती है। ऐसे में अगर हिंसा हो रही है, तो ज़रूर चिन्ता का विषय है। जो भी हो, ‘तहलका’ का मानना है कि देश में किसी तरह की हिंसा, उपद्रव या आन्दोलन सिर्फ और सिर्फ पूरे देश और देशवासियों का ही नुकसान करते हैं। इसलिए किसानों और सरकार को जल्द-से-जल्द इस मामले को सुलझा लेना चाहिए, ताकि देश का और नुकसान न हो।

झण्डा फहराने वाला दीप सिद्धू कौन?

दिल्ली के जंतर-मंतर में बैठे किसानों के समर्थन में अन्नदाताओं ने कहा कि दीप सिद्धू भाजपा के एक नेता का रिश्तेदार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के साथ 36 वर्षीय अभिनेता दीप सिद्धू की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। दीप ही आन्दोलन को तहस-नहस करने पर तुला है। पंजाब कांग्रेस की युवा नेता जे.एन. ने बताया कि सोशल मीडिया से लेकर सत्ता के गलियारों में दीप सिद्धू को सब जानते हैं। उनकी पहल पर ही लाल िकले पर धार्मिक झण्डा फहराया गया है। उन्होंने कहा कि दीप सिद्धू को पहले ही आन्दोलन को कुचलने के लिए किसान संगठनों ने अलग कर दिया था। उसके बावजूद वह लाल िकले में पहुँच गया और धार्मिक झण्डा लगा दिया। इसके पीछे भी सियासत की बू आ रही है। उन्होंने कहा कि चाहे जो हो, आन्दोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक कृषि कानून वापस नहीं हो जाते। वहीं मामले में दीप सिद्धू का कहना है कि उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज को नहीं हटाया है, बल्कि नये कृषि कानून के खिलाफ प्रतीकात्मक रूप से अपना विरोध दर्ज कराया है। उन्होंने कहा कि उन्होंने निशान साहिब और किसान झण्डा साथ लगाये और साथ ही किसान एकता का नारा भी लगाया।

लक्खा सिधाना : कबड्डी खिलाड़ी से लेकर गैंगस्टर और नेता बनने का सफर

हिंसा भड़काने में जिस 42 वर्षीय लक्खा सिधाना का नाम आ रहा है, वह पंजाब के बठिंडा का रहने वाला है। सिधाना कभी अपराध की दुनिया में बड़ा नाम हुआ करता था। बाद में वह राजनीति में आया और फिर समाजसेवा के कामों में लग गया। लक्खा कबड्डी खिलाड़ी भी रह चुका है। खेल से अपराध और फिर राजनीति में आने वाले लक्खा ने किसान आन्दोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। गैंगस्टर लक्खा सिधाना का असली नाम लखबीर सिंह है और डबल एम.ए. है। उस पर हत्या, हत्या के प्रयास और मारपीट के कई आरोप हैं। लक्खा विधानसभा चुनाव भी लड़ चुका है, लेकिन उसकी जमानत ज़ब्त हो गयी थी। सिधाना कुछ साल से पंजाबी सत्कार समिति से जुड़कर पंजाबी भाषा को बचाने के लिए भी काम कर रहा है। इसके अलावा गैंगस्टर पंजाब के युवाओं को बड़े पैमाने पर अपने साथ जोड़ रहा था।

पत्रकारों के खिलाफ एउआईआर की एडिटर्स गिल्ड ने की भत्र्सना

दिल्ली में  26 जनवरी को किसानों के विरोध-प्रदर्शन की रिपोर्टिंग के लिए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश पुलिस ने वरिष्ठ पत्रकारों के खिलाफ जिस तरह से डराने-धमकाने के लिए एफआईआर दर्ज की है, उसकी एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भत्र्सना की है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा, महासचिव संजय कपूर ने 29 जनवरी को एक लिखित बयान में कहा है- ‘ईजीआई विभिन्न राज्यों में एफआईआर के ज़रिये मीडिया को डराने, परेशान करने और धमकाने का प्रयास करता है।’

पत्र में लिखा गया बयान :-

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने किसानों के विरोध-प्रदर्शन की रैलियों की रिपोर्टिंग करने पर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के पुलिस प्रशासन द्वारा दोनों राज्यों के वरिष्ठ संपादकों और पत्रकारों (ईजीआई के वर्तमान और पूर्व पदाधिकारियों सहित) के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की तीखे शब्दों में भत्र्सना की है। बता दें कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस को किसानों की ट्रैक्टर रैली में जबरदस्त हिंसा हुई। पत्रकारों ने इस ख़बर, ख़ासकर प्रदर्शनकारी किसानों में से एक किसान की मौत की ख़बर की रिपोर्टिंग की और कुछ ने उसे अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी चलाया। एडिटर्स गिल्ड ने अपने बयान में कहा है- ‘ध्यान देने योग्य बात यह है कि किसानों के दिल्ली कूच के दौरान पुलिस और किसानों के बीच क्या होगा? इसकी रिपोर्टिंग करना पत्रकारिता के लिहाज़ से स्वाभाविक था; क्योंकि यह लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की ज़िम्मेदारी भी है, पत्रकारीय व्यवहार के स्थापित मानदण्डों के अनुरूप भी है और पत्रकारों का काम भी।’  पुलिस  द्वारा दर्ज प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि पत्रकारों ने जानबूझकर दुर्भावनापूर्ण ट्वीट किये थे, जो कि लाल िकले की घटना का कारण बने।

वहीं एडिटर्स गिल्ड ने कहा है- ‘सच्चाई से कुछ भी दूर नहीं हो सकता। लेकिन पुलिस ने फिर भी पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। दोनों प्रदेशों की पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर में पत्रकारों पर राजद्रोह कानून, साम्प्रदायिक विद्वेष को बढ़ावा देने और धार्मिक विश्वासों का अपमान करने सहित 10 विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है। पत्रकारों को इस तरह निशाना बनाने से हमारे लोकतांत्रिक गणराज्य के लिए खड़े पत्रकारिता के मूल्यों पर गम्भीर चोट हुई है। इसका उद्देश्य पत्रकारों को प्रताडि़त करना और उन्हें निष्पक्ष तरीके से काम करने से रोकना है। इसलिए हम माँग करते हैं कि एफआईआर तुरन्त वापस ली जाए और मीडिया को बिना किसी भय और स्वतंत्रता के साथ रिपोर्टिंग करने दी जाए। कई कानूनों, जैसे कि देशद्रोह का इस्तेमाल अक्सर बोलने की स्वतंत्रता को बाधित करने के लिए किया जाता है। हम अपनी पहले की माँग पर भी फिर से ज़ोर देते हैं कि उच्च न्यायपालिका इस तथ्य पर गम्भीरता से संज्ञान ले और दिशा-निर्देश जारी करे कि ऐसे कानूनों का दुरुपयोग न हो। इस तरह के कानूनों का उपयोग स्वतंत्र-निष्पक्ष पत्रकारिता के रास्ते में रोड़े डालने के लिए नहीं करना चाहिए।’

जो किसान नेता आन्दोलन की अगुवाई कर रहे थे उनके खिलाफ केंद्र सरकार ने मुकदमे दर्ज किये हैं। लेकिन 26 जनवरी को दिल्ली में जो कुछ हुआ, वह केंद्र सरकार की साज़िश थी।

अभय चैटाला

(विधानसभा से इस्तीफा देने के बाद)

हिंसा किसी समस्या का हल नहीं है और इस कानून को तुरन्त वापस लिया जाना चाहिए। चोट किसी को भी लगे, नुकसान हमारे देश का ही होगा। देशहित के लिए कृषि-विरोधी कानून वापस लो।

राहुल गाँधी, कांग्रेस नेता

दिल्ली की कानून व्यवस्था और खुफिया तंत्र की नाकामी के लिए गृहमंत्री अमित शाह बर्खास्त हों। हिंसा के लिए सीधे गृहमंत्री ज़िम्मेदार हैं। उपद्रवियों की अगुवाई कर रहे अवांछित तत्त्वों पर मुकदमे दर्ज न कर किसान मोर्चा नेताओं पर मुकदमों ने मोदी सरकार और उपद्रवियों की मिली-भगत तथा साज़िश को बेनकाब कर दिया है।

रणदीप सिंह सुरजेवाला, कांग्रेस नेता

आज भाजपा और मोदी सरकार ये कोशिश कर रही है कि मुद्दा भटक जाए। किसान नेताओं पर मुकदर्म दर्ज किये हैं; जबकि देश का अपमान करने वालों के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं किया है। हमारा सवाल है कि दीप सिद्धू को अब तक क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया है।

राघव चड्ढा, आप नेता