राष्ट्रपति चुनाव में मुर्मू मज़बूत

अगले लोकसभा चुनाव के लिए एकजुटता की कोशिश में जुटे विपक्ष ने अन्तिम समय में जीत की उम्मीद से पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा को अपना उम्मीदवार चुना था। लेकिन इसके तुरन्त बाद भाजपा (एनडीए) ने आदिवासी पृष्ठभूमि वाली द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार घोषित करके मज़बूत दावेदारी पेश कर दी। ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुर्मू के प्रस्तावक बने और उनके नामांकन में साथ गये। यह दावेदारी यूपीए के घटक दल झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) समेत कुछ अन्य के मुर्मू को समर्थन के ऐलान से और मज़बूत दिखती है। बसपा प्रमुख मायावती ने सिन्हा की उम्मीदवारी में विपक्ष पर उनकी सलाह न लेने का आरोप लगाते हुए मुर्मू को समर्थन की बात कही है। एक समय राष्ट्रपति चुनाव में काँटे की टक्कर दिख रही थी; लेकिन उम्मीदवार घोषित होते ही एनडीए का पलड़ा भारी हो गया।

अनुभवी यशवंत सिन्हा ने भी नामांकन पत्र दाख़िल कर दिया है। उनका राजनीतिक क़द निश्चित ही बड़ा है। लेकिन राजनीतिक और प्रशासकीय अनुभव वाली द्रोपदी मुर्मू के नाम की घोषणा होते ही उनके गृह राज्य ओडिशा में सत्तारूढ़ बीजद से लेकर आंध्र प्रदेश की वाईएसआर और झारखण्ड की यूपीए की सहयोगी जेएमएम तक ने उनका समर्थन कर दिया। इससे भाजपा के सामने जीत के लिए मतों का जो टोटा था, वह लगभग बढ़त में बदल गया। राष्ट्रपति का चुनाव विपक्ष के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपनी ताक़त और एकजुटता दिखाने का बड़ा अवसर था। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। महाराष्ट्र की राजनीतिक घटनाओं ने भी विपक्ष का काम मुश्किल किया है। माकपा ने भी टीएमसी के साथ अपने राजनीतिक विरोध के आधार पर सिन्हा को समर्थन देने से हाथ खींच लिये। लिहाज़ा राष्ट्रपति चुनाव से राजनीतिक संकेत यही गया है कि फ़िलहाल विपक्षी दल मानसिक रूप से साथ आने के लिए अभी भी तैयार नहीं हैं। इसी साल के आख़िर में देश में कुछ विधानसभाओं के चुनाव होने हैं। उससे पहले राष्ट्रपति चुनाव में यदि विपक्ष मज़बूत मुक़ाबला करता, तो देश की जनता में उसके प्रति अच्छा संकेत जाता। उम्मीदवारों की घोषणा से पहले तक भाजपा के पास बहुमत लायक मत नहीं थे। ऐसे में विपक्ष के पास पूरा अवसर था कि वह सत्तारूढ़ भाजपा गठबंधन पर दबाव बनाता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जब बैठक के लिए दिल्ली आयीं, तो उनकी मुलाक़ात पहले ही दिन एनसीपी नेता शरद पवार के साथ हुई। अगले दिन जब बैठक में ममता ने पवार का नाम प्रस्तावित किया, तो उन्होंने मना कर दिया। फिर ममता ने राजमोहन गाँधी और फ़ारूक़ अब्दुल्ला के नाम प्रस्तावित किये। फ़ारूक़ ने मना कर दिया और गाँधी का जवाब आता, उससे पहले ही यशवंत सिन्हा का नाम सामने आ गया। ज़ाहिर है विपक्ष ने बिना रणनीति और बिना अन्य विपक्षी दलों को भरोसे में लिये ऐसा किया। राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी तय करने में जिस विपक्ष ने कोई ठोस रणनीति बनाना ज़रूरी नहीं समझा, उससे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह 2024 के लोकसभा चुनाव में साथ आएगा। दरअसल सबके अपने अहं हैं। ज़्यादातर क्षेत्रीय दल इस डर से कांग्रेस को ताक़तवर नहीं होने देना चाहते कि कहीं कांग्रेस के मज़बूत होने से उनकी सत्ता $खतरे में न पड़ जाए।

एनडीए उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू
आदिवासी समुदाय से सम्बन्ध रखने वाली और द्रौपदी मुर्मू जीत जाती हैं, तो वह देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति और पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति होंगी। उनका जन्म बिरंची नारायण टुडू के घर 20 जून, 1958 को ओडिशा के मयूरभंज में हुआ। सन् 1997 से भाजपा से जुड़ी मुर्मू ने स्नातक भुवनेश्वर के रामा देवी महिला कॉलेज से किया इसके बाद वह सन् 1979 में ओडिशा के बिजली महकमे में जूनियर असिस्टेंट के तौर पर नौकरी करने लगीं। यह नौकरी उन्होंने सन् 1983 तक की। इसके बाद सन् 1994 में रायरंगपुर में अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में अध्यापिका बनकर वहाँ सन् 1997 तक काम किया।

राजनीति में आने के बाद मुर्मू सन् 1997 में रायरंगपुर ज़िले में ज़िला पार्षद और उपाध्यक्ष चुनी गयीं। सन् 2002 से सन् 2009 तक मयूरभंज ज़िला भाजपा का अध्यक्ष रहीं। सन् 2004 में रायरंगपुर सीट से वह विधानसभा के लिए चुनी गयीं और सरकार में राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनीं। बाद में भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, एसटी मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष (2009 तक) रहीं। वह सन् 2013 से सन् 2015 तक भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में रहीं।

सन् 2015 में जब झारखण्ड अलग राज्य बना, तो मुर्मू वहाँ की राज्यपाल बनायी गयीं। इस पद पर वह सन् 2021 तक रहीं। उनका विवाह श्यामाचरण मुर्मू के साथ हुआ था, जिनसे उन्हें तीन बच्चे हुए। हालाँकि उन्होंने इनमें से दो बेटों और अपने पति को खो दिया। फ़िलहाल उनकी एक बेटी इतिश्री ही हैं, जो विवाहित हैं। मुर्मू सन् 2007 में सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए ओडिशा विधानसभा के नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी हैं।

विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा
विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का जन्म 6 नवंबर, 1937 को पटना के एक कायस्थ परिवार में हुआ। उन्होंने राजनीति शास्त्र में मास्टर्स की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने पटना विश्वविद्यालय में सन् 1960 तक बतौर शिक्षक काम किया। इस दौरान उन्होंने आईएएस की तैयारी जारी रखी। सन् 1960 में उनका चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए हुआ। उन्होंने बतौर प्रशासनिक अधिकारी 24 साल तक काम किया। इस दौरान वह कई अहम पदों पर रहे।

सिन्हा बिहार सरकार के वित्त मंत्रालय में दो साल तक उप-सचिव और सचिव के पद पर रहे। बाद में उनकी नियुक्ति भारत सरकार के वित्त मंत्रालय में उप-सचिव के पद पर हो गयी। सिन्हा ने अपने कार्यकाल के दौरान भारतीय दूतावास में अहम ज़िम्मेदारी भी सँभाली। वह सन् 1971 से सन् 1974 तक जर्मनी में भारतीय दूतावास के पहले सचिव रहे। सन् 1986 में वह जनता पार्टी में बतौर महासचिव शामिल हुए। सन् 1988 में राज्यसभा के लिए चुने गये। वह सन् 1990-91 में चंद्रशेखर सरकार में वित्त मंत्री के पद पर रहे। इसके बाद सन् 1998 से सन् 2002 तक अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी वित्त मंत्री और विदेश मंत्री रहे। सिन्हा ने सन् 2009 को भाजपा के उपाध्यक्ष पद से त्याग-पत्र दे दिया और सन् 2018 में भाजपा छोड़ दी। फिर सन् 2021 में ममता बनर्जी की टीएमसी में शामिल हो गये। राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने के लिए उन्होंने 23 जून को टीएमसी से त्याग-पत्र दे दिया।
कौन, किसके साथ?

एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, जदयू, एआईएडीएमके, लोक जन शक्ति पार्टी, अपना दल (सोनेलाल), निषाद पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (अठावले), एनपीपी, एनपीएफ, एमएनएफ, एनडीपीपी, एसकेएम, एजीपी, पीएमके, एआईएनआर कांग्रेस, जननायक जनता पार्टी, यूडीपी, आईपीएफटी, यूपीपीएल जैसी पार्टियों का समर्थन है। लोकसभा की तीन और विधानसभा की सात सीटों के नतीजों में भी एनडीए के मत बढ़े हैं। उधर यूपीए (विपक्ष) के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को कांग्रेस, एनसीपी, टीएमसी, सीपीआई, सीपीआई (एम), समाजवादी पार्टी, रालोद, आरएसपी, टीआरएस, डीएमके, नेशनल कॉन्फ्रेंस, भाकपा, राजद जैसे दल शामिल हैं। राष्ट्रपति चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी, टीडीपी, झामुमो, शिअद ने अभी कोई फैसला नहीं किया है। महाराष्ट्र की स्थिति भी साफ़ नहीं है। अभी तक का गणित देखें, तो एनडीए के पास छ: लाख से ऊपर वोट हैं।