‘राम मंदिर निर्माण पर इंतज़ार रहेगा अदालती फैसले का’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नववर्ष के पहले दिन एक संवाद एजेंसी को दिया साक्षात्कार में राम मंदिर निर्माण पर आर्डिनेंस लाने के पहले न्यायिक प्रक्रिया पूरा होने पर जोर दिया। सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर चार जनवरी को हुई सुनवाई के बाद अब 29 जनवरी से सुनवाई की प्रक्रिया तय होने को है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को इस न्यायिक प्रक्रिया को राजनीति के तौर पर नहीं लेना चाहिए। इसमें बाधा नहीं पहुंचनी चाहिए।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इस मुद्दे पर पिछले 70 साल से राज करती विभिन्न सरकारों ने कोई फैसला नहीं लिया। अयोध्या में राममंदिर निर्माण के मसले को महज टाला जाता रहा। भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी मैनीफेस्टो में कहा है कि ‘संविधान के दायरे में’ राम मंदिर निर्माण का हल ढूंढा जाएगा।

यह पूछे जाने पर क्या सरकार आर्डिनेंस लाने की अपनी क्षमता से पीछे हट रही है तो प्रधानमंत्री ने कहा, फिलहाल सुप्रीम कोर्ट इस पर सुनवाई की लगातार प्रक्रिया शुरू कर रही है। एक बार यह न्यायिक प्रक्रिया पूरी हो जाए सरकार बतौर हमारी जो भी जिम्मेदारी होगी उसे हम पूरा करेंगे।

प्रधानमंत्री ने कहा, शांति, सुरक्षा और एकता के लिहाज से कांगे्रस को सुप्रीम कोर्ट में वकीलों को बाधाएं खड़ी करने से रोकना चाहिए। ये वकील न्यायिक प्रक्रिया में बाधा पहुंचाते रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने राम मंदिर निर्माण की दिशा में प्रधानमंत्री की टिप्पणी को सकारात्मक बताया। साथ ही उम्मीद जताई है कि भाजपा नेतृत्व की सरकार अपने कामकाज के इसी दौर में अपना वादा पूरा करेगी।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने कहा, 2014 का चुनावी मैनोफेस्टो जिसे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तैयार किया गया था उसमें भाजपा ने वादा किया था कि संविधान के दायरे में ही अयोध्या में राममंदिर निर्माण के संबंध में तमाम संभावनाएं तलाशेंगे। भारत के लोगों ने इस पर भरोसा किया और अब उम्मीद करते हैं कि यह सरकार अपने कार्यकाल की अवधि में ही इस वादे को पूरा करेगी।

उन्होंने कहा, हम मंदिर निर्माण पर प्रधानमंत्री के बयान को सकारात्मक मानते हैं। यह 1989 में पालमपुर में पास किए गए प्रस्ताव के अनुरूप है जिसमें भाजपा ने कहा था कि अयोध्या में दोनों समुदायों से राय-मश्विरा करके या आवश्यक कानून लाकर अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाएंगे।

पिछले साल सितंबर महीने में नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने अपनी प्रवचनमाला में कहा था कि जल्दी से जल्दी अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए। अक्तूबर

महीने में हुए सालाना विजयादशमी के जलसे में भी बोलते हुए उन्होंने कहा कि भूमि स्वामित्व विवाद को जल्दी से जल्दी निपटा कर सरकार को उचित कानून लाकर मंदिर निर्माण शुरू करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने 29 अक्तूबर को उत्तरप्रदेश सरकार के इस तर्क को खारिज कर दिया था जिसमें यह मंशा की गई थी कि भूमि स्वामित्व विवाद की सुनवाई में जल्दी की जाए। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की प्रक्रिया के संबंध में जनवरी की तारीख तय की।

नागपुर में 25 नवंबर को आरएसएस प्रमुख ने अफसोस जताया कि सुप्रीम कोर्ट की प्राथमिकता सूची में राम मंदिर निर्माण नहीं है इसलिए मोदी सरकार को ही यह सोचना चाहिए कि यह किस तरह कानून बना कर राम मंदिर निर्माण की राह प्रशस्त कर सकती है। राम मंदिर निर्माण के पक्ष में आवाज उठाने में संघ परिवार की विभिन्न संस्थाएं पीछे नहीं रहीं। विश्वहिंदू परिषद, बजरंगदल आदि ने राम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया तेज करने की मुहिम छेड़ दी। उनकी मांग थी कि सरकार आर्डिनेंस लाकर राम मंदिर निर्माण के इस काम में वैसी तेजी दिखाए जैसी इसने तीन तलाक वाले मुद्दे पर

दिखाई। भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना की भी यही मांग थी। साथ ही भाजपा सरकार को राम मंदिर निर्माण पर कोई फैसला न करने पर आड़े हाथों लिया था।

मोदी प्रसंग राम मंदिर

राम भाजपा के लिए कानून से बड़े नहीं! –  शिवसेना

भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में सहयोगी घटक शिवसेना ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी के लिए कानून से बड़े राम नहीं है। नववर्ष के पहले दिन प्रधानमंत्री ने अपने साक्षात्कार में कहा कि न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही केंद्र सरकार अध्यादेश लाएगी। शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के प्रतिनिधि मंडल के साथ अयोध्या जाकर राम मंदिर निर्माण की मांग की। शिवसेना की मांग रही है कि केंद्र सरकार राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाए।

राम मंदिर निर्माण की मांग का मकसद ध्रुवीकरण : माकपा

राममंदिर निर्माण की मांग पर आंदोलन जारी रखने के पीछे भाजपा व संघ परिवार का मकसद समाज में सिर्फ ध्रुवीकरण का है। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी के अनुसार भाजपा का एकमात्र एजेंडा ध्रुवीकरण का रहा है। इसी कारण देश की जनता में राम मंदिर निर्माण के उसके भरोसे पर भरोसा बहुत कम है।

शिया वक्फ बोर्ड भी पक्ष रखेगा सुप्रीम कोर्ट में 

शिया वक्फ बोर्ड भी सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखेगा। चार जनवरी से शुरू हुई सुनवाई में एमसी ढींगरा और एसपी सिंह मौजूद थे। ज़रूरत पडऩे पर और भी वकील  तैनात किए जाएंगे।

‘सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मामला आस्था का है’

‘सबरीमाला मंदिर में मासिक धर्म वाली ऐसी महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी आस्था, परंपरा और विश्वास की बात है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से स्त्री और पुरुष के सबरीमाला में प्रवेश की इज़ाजत का विरोध हिंदू भक्त समूह कर रहे हैं। यह आस्था का मामला है। यह कहना है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का।

उनका कहना है कि देश में ऐसे भी मंदिर हंै जहां पुरूष नहीं जा सकते। अदालत के फैसले में मौजूद एक महिला न्यायाधीश ने अपनी जो टिप्पणी लिखी वह भी देखी जानी चाहिए। मंदिर में महिला प्रवेश के विरोध का जिम्मेदार किसी राजनीतिक दल को नहीं ठहराना चाहिए। इस मुद्दे पर पूरी बहस होनी चाहिए जिससे जागरूकता हो।

लैंगिक समानता का मुद्दा है: तीन तलाक का मुद्दा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए साल के पहले दिन दिए गए इंटरव्यू में कहा कि तीन तलाक का मुद्दा लैंगिक समानता का है। उसे ही ध्यान में रखते हुए और सामाजिक न्याय के लिए अध्यादेश भारत सरकार ने जारी किया था। इसे धार्मिक मामले में दखल देना नहीं कहना चाहिए।

ज्य़ादातर मुस्लिम देशों में तीन तलाक पर पाबंदी है। पाकिस्तान में भी तीन तलाक पर रोक है। यह मामला जेंडर इक्वैलिटी (लैंगिक समानता)  का है यानी सामाजिक न्याय का।

उर्जित पटेल पर इस्तीफा देने का दबाव नहीं

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के पूर्व गर्वनर उर्जित पटेल ने खुद पद  से इस्तीफा दिया। उन्होंने मुझसे उस बारे में निजी तौर कहा था पर मुझसे छह सात महीने पहले। उन्होंने लिखित में दिया। मैं मानता हूं कि बतौर गवर्नर उन्होंने अच्छा काम किया। उन पर कतई कोई राजनीतिक दबाव नहीं था।

सीबीआई व न्यायपालिका महत्वपूर्ण

उनकी सरकार ने सीबीआई और न्यायपालिका को हमेशा विशेष महत्व दिया है। कांग्रेस को इस पर भाजपा को सरकार की आलोचना नहीं करनी चाहिए। उसे इस मुद्दे पर बोलने का कतई अधिकार नहीं है। प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय और एनएसी (नेशनल एडवाइजरी कौंसिल) का गठन किया गया। किस तरह का सशक्तिकरण था यह? मंत्रिमंडल एक बड़ा फैसला लेती है और एक बड़ा नेता उस कैबिनेट के फैसले की धज्जियां एक प्रेस कांफ्रेस में उड़ा देता है। यह किसी संस्था का मान रखना है क्या?

सीबीआई में जब आंतरिक मामले सामने आए (सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और उनके सहायक उप निदेशक राकेश अस्थाना) तो दोनों को कानूनन छुट्टी पर भेज दिया गया। वजह बहुत साफ थी। हमें एक संस्थान को बचाए रखना था।

अभी हाल में सौहराबुद्दीन फैसला आया। उसे पढि़ए। देखिए किस तरह न्यायपालिका का बेजा इस्तेमाल हुआ। हमारे ऊपर आरापे है कि मोदी इन लोगों पर कार्रवाई नहीं करते।