राम मंदिर निर्माण के लिए प्रवीण तोगडिय़ा ने भी बजाया बिगुल

अंतरराष्ट्रीय हिंदू परिषद के अध्यक्ष प्रवीण तोगडिय़ा ने राम मंदिर बनाने की मांग तेज कर दी है। उन्होंने 21 व 22 अक्तूबर को लखनऊ से आयोध्या तक जुलूस निकाला, प्रदर्शन किया। इसमें शामिल लोगों की सक्रियता और नाराजग़ी को देखते हुए अयोध्या पुलिस ने इन्हें राममंदिर की ओर नहीं जाने दिया। उन्हें अयोध्या में ही रोक दिया। जुलूस में शामिल श्रद्धालुओं और प्रवीण तोगडिय़ा ने राम मंदिर बनाने का संकल्प लिया।

भाजपा पूरे बहुमत से हासिल जीत के बाद भी राम मंदिर बनाने से क्यों हिचक रही है इसकी आलोचना प्रवीण तोगडिय़ा ने की। विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंहल के साथ उनकी राम मंदिर आंदोलन में खासी भूमिका रही है।

कहा जाता है कि प्रधानमंत्री और भाजपा के नेता नरेंद्र मोदी से प्रवीण तोगडिया में काफी असहमतियां हैं, इसलिए प्रवीण तोगडिय़ा अलग थलग भी हैं। भाजपा की केंद्र और राज्यों में सरकारें बनी लेकिन साथ ही प्रवीण की सक्रियता घटती गई। उन्हें बीमार, असंतुलित और निष्क्रिय मान लिया गया। लेकिन अक्तूबर में अयोध्या में पहुंच कर जिस तरह उन्होंने राम मंदिर बनाने के लिए जुलूस निकाला और प्रदर्शन किया उससे लगा कि प्रवीण तोगडिया अब स्वस्थ हैं और राम मंदिर बनाने के लिए पूरी तौर पर संघर्षशील रहेंगे।

सवांददाताओं से बातचीत करते हुए प्रवीण तोगडिय़ा ने कहा, भाजपा को 1984 की लोकसभा में सिर्फ दो सीटें मिली थी। तब भी पार्टी का यही कहना था कि सोमनाथ मंदिर की ही तरह अयोध्या में राममंदिर बनेगा। इसके लिए कानून की ज़रूरत होगी। कानून बनाने के लिए केंद्र में भाजपा की बहुमत की सरकार ज़रूरी होगी। 2014 में तो भाजपा की केंद्र में भारी बहुमत की सरकार भी देश की जनता ने बनवाई। फिर भी मंदिर नहीं बना। यह गलत बात नहीं है।

राममंदिर अयोध्या में बनेगा इस उम्मीद में हमने दो साल इंतज़ार किया। मुझे ही पार्टी ने बदलने की कोशिश की। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं खोई। मैं लगातार सक्रिय रहा। साधु-संतों की पहली धर्म संसद 1984 में हुई थी। तब से जब भी धर्म संसद हुई सभी संतों ने कहा कि कानून के जरिए राम मंदिर बनाने का फैसला लिया जाए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनका सवाल रहा है कि उन्होंने जो वादे जनता से किए वे पूरे क्यों नहीं हुए। अगर तीन तलाक पर कानून बन सकता है तो राम मंदिर बनाने पर कानून क्यों नहीं बनवाया जा सकता। उन्होंने कहा कि दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी का दफ्तर तो पांच सौ करोड़ में बन गया। लेकिन राम मंदिर की सुध नहीं ली गई। जबकि राम जी 1992 के बाद से ही तंबू में ही बैठे हैं।

देश में हर व्यक्ति की प्रतिभा, परिश्रम और प्रतिष्ठा की इज़्जत होनी चाहिए जो आज नहीं है। यह देख कर अफसोस होता है। जब भाजपा सरकार बनी थी तो सबको उम्मीद थी कि संसद में कानून बना कर राम मंदिर का निर्माण होगा। लेकिन यह मुद्दा कहीं पीछे रह गया।

राम मंदिर आंदोलन में सैकड़ों लोग मारे गए। बार-बार भाजपा ने चुनावी भाषणों में कहा कि कानून बना कर राम मंदिर बनना चाहिए। कानून बनाने के लिए जनता बहुमत दिलाए तो

राम मंदिर बने। जनता ने अपार वोटों से आपकी सरकार केंद्र और राज्यों में बनवा दी। लेकिन आप फिर खामोश हो गए। यह तो रामजी के साथ धोखा है।