राम मंदिर ट्रस्ट और संतों की नाराज़गी

अपने तरकश के आखरी तीर के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक तीन दिन पहले संसद में बहुत जल्दबाज़ी की सी हालत में अयोध्या में ध्वस्त की गयी बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर के निर्माण और प्रबंधन के लिए श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का ऐलान किया था। सरकार की इस घोषणा का सर्वोच्च न्यायालय की रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संवैधानिक पीठ के 9 नवंबर, 2019 के आदेश के बाद से इंतज़ार था। प्रधानमंत्री मोदी ने सदन को सूचित किया कि ट्रस्ट विवादित 67.703 एकड़ भूमि का अधिग्रहण करेगा और वहाँ एक बाहरी और भीतरी प्रांगण होगा।

उन्होंने यह भी बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार 5 एकड़ ज़मीन देने को अपनी मंज़ूरी दे दी है। उत्तर प्रदेश सरकार ने राम जन्मभूमि परिसर से लगभग 25 किलोमीटर और ज़िला मुख्यालय से लगभग 18 किलोमीटर दूर, लखनऊ राजमार्ग पर अयोध्या के ही धनीपुर गाँव में सुन्नी वक्फ बोर्ड को पाँच एकड़ ज़मीन देने पर सहमति व्यक्त की थी। अयोध्या के 14-कोसी इलाके के बाहर मस्जिद रखने की संतों की इच्छा योगी सरकार की सबसे बड़ी चिन्ता है।

एक स्वतंत्र ट्रस्ट के गठन के साथ ही सरकार ने श्री राम मंदिर का निर्माण फिर शुरू करने की एक बड़ी शुरुआत कर दी, जो तत्कालीन कांग्रेस सरकार के समय 9 नवंबर, 1989 को नींव रखने के तुरन्त बाद बन्द हो गयी थी। इस घटना में कांग्रेस के राजनीतिक के आधार और जन-समर्थन को बर्बाद कर दिया था और उत्तर प्रदेश में उसके भविष्य पर एक तरह का ग्रहण लगा दिया था। तबसे कांग्रेस ने राज्य में सत्ता का चेहरा नहीं देखा है और इसकी संगठनात्मक ताकत का भी क्षय हुआ है और उसने बड़ा झटका झेला है।

प्रधानमंत्री की संसद में घोषणा के बाद 5 फरवरी, 2020 को गृह मंत्रालय ने विवादित स्थल के आंतरिक और बाहरी प्रांगण सहित अयोध्या में केंद्र सरकार के अधिग्रहित पूरे क्षेत्र के सम्बन्ध में सभी अधिकार, टाइटल और हितों को निर्दिष्ट करते हुए एक अधिसूचना जारी की कि यह सब नवगठित श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट में निहित होंगे। हैरानी की बात है कि ट्रस्ट का पंजीकरण पूर्व अटॉर्नी जनरल और वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरन के दक्षिणी दिल्ली निवास पर हुआ, जो 9 नवंबर, 1989 में हुए शिलान्यास समारोह के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के शीर्ष कानूनी सलाहकार थे। आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद् (विहिप) के नेताओं ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद के बगल में प्रस्तावित राम मंदिर की नींव रखी। कांग्रेस सरकार ने वीएचपी नेताओं से लिखित में यह आश्वासन ले लिया था कि वे यह सब विवादित ढाँचे के बाहर करेंगे।

मोदी सरकार ने बार के बहुत सम्मानित सदस्य के परासरन (93) को राम मंदिर ट्रस्ट का नेतृत्व करने के लिए ट्रस्टी के रूप में नियुक्त किया है। बता दें कि उन्होंने अयोध्या विवाद में सर्वोच्च अदालत की पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के सामने हिन्दू पक्षों के लिए रामलला विराजमान की ओर से बहुत मज़बूत पैरवी की थी। वे राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में सुन्नी वक्फ बोर्ड और अन्य की तरफ से दायर मुकदमे में बचाव पक्ष के महंत सुरेश दास की ओर से पेश हुए। शीर्ष अदालत के अनुकूल फैसले के तुरन्त बाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के दो शीर्ष नेता मोहन भागवत और सुरेश भैयाजी जोशी व्यक्तिगत रूप से अपने आवास पर पराशरन से मिलने गये और उनके योगदान के लिए धन्यवाद दिया।

सरकार ने ट्रस्ट में बिहार के एक दलित नेता कामेश्वर चौपाल को भी नामांकित किया, जो 9 नवंबर, 1989 को अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखने वाले लोगों में से एक थे। उनके अलावा जगद्गुरु माधवाचार्य स्वामी विश्व प्रसन्नतीर्थ, पेजावर मठ, उडुपी, जगद्गुरु शंकराचार्य ज्योतिषपीठाधीश्वर स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती,  प्रयागराज, उत्तर प्रदेश, युगपुरुष परमानंद महाराज, हरिद्वार, स्वामी गोविंददेव गिरि महाराज, पुणे, दीनेंद्र दास, निर्मोही अखाड़ा, अयोध्या, अनिल मिश्रा, अयोध्या के होम्योपैथिक चिकित्सक और हरिद्वार के परमानंद महाराज सदस्यों में से हैं।

बिमलेन्द्र मोहन प्रताप मिश्र नवगठित ट्रस्ट में अयोध्या के तत्कालीन शासकों के वंशज के रूप में शामिल हैं। सरकार में तीन दशक से अधिक समय तक मंदिर आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले संतों, आरएसएस या विहिप के प्रमुख चेहरों को शामिल नहीं किया, जिससे आन्दोलन के आन्दोलनकारियों में आक्रोश फैल गया। भाजपा नेतृत्व इन संतों और विहिप नेताओं को शान्त करने के लिए परदे के पीछे से प्रबंधन में जुटा है।

अयोध्या के आयुक्त एमपी अग्रवाल ने राम जन्मभूमि के संरक्षक के रूप में तत्कालीन अयोध्या शासक और नव मनोनीत न्यासी, बिमलेन्द्र मोहन प्रताप मिश्रा को पदभार सौंपा। सुप्रीम कोर्ट ने 24 अक्टूबर, 1994 को विवाद के तहत फैज़ाबाद के आयुक्त को जगह का आधिकारिक संरक्षक नियुक्त किया था। उन पर सुरक्षा, स्थल पर यथास्थिति बनाये रखने और भक्तों के अस्थायी मंदिर में धन और अन्य प्रसाद एकत्र करने का ज़िम्मा था। उत्साह से भरे अयोध्या के संत श्रीराम के भव्य मंदिर का शीघ्र निर्माण चाहते हैं और उन्होंने कहा कि राम नवमी को निर्माण शुरू करने का सबसे उपयुक्त समय है। राम मंदिर का एक डिज़ाइन और मॉडल अयोध्या के कारसेवक पुरम में प्रदर्शित किया गया है, जहाँ पिछले दो दशक से अधिक समय से कारीगर मूर्तियों और पत्थरों को तराशने का काम जारी रखे हुए हैं।

भरोसे का अभाव

नये घोषित राम मंदिर ट्रस्ट में मंदिर आन्दोलन के नेताओं की उपेक्षा के सरकारी फैसले से अयोध्या के संत नाराज़ थे। मंदिर आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले संतों में अपनी उपेक्षा से भाजपा नेतृत्व के प्रति ज़बरदस्त गुस्सा उभरा। उन्होंने सरकार के फैसले का विरोध करने वाले संतों की बैठक बुलायी, जिन्होंने इन सभी वर्षों में आन्दोलन का नेतृत्व किया। हालाँकि, बाद में गृह मंत्री अमित शाह के आश्वासन के बाद बैठक को स्थगित कर दिया गया।

मणि राम दास जी की चावनी मंदिर आन्दोलन का प्रमुख केन्द्र था और इसके 82 साल के महंत रति गोपाल दास विहिप के अध्यक्ष राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष हैं; जो राम मंदिर बनाने के लिए प्रतिबद्ध निकाय है। ट्रस्ट में उनके प्रतिनिधियों के रूप में उनके नाम की सिफारिश की गयी थी; लेकिन सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया।

सरकार के फैसले से सबसे ज़्यादा नाराज़, नृत्य गोपाल दास ने उन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया, जिन्होंने दशकों पुराने राम मंदिर आन्दोलन को गति दी। उन्होंने साधुओं की एक आपात बैठक बुलायी और 6 फरवरी, 2020 को शाम 5 बजे एक प्रेस कॉन्फ्रेंस निर्धारित की; लेकिन आिखरी समय में गृह मंत्री अमित शाह के आश्वासन से यह टल गयी। उन्होंने आश्वासन दिया कि उन्हें ट्रस्ट में जगह भी मिल जाएगी। क्योंकि वर्तमान में वे बाबरी विध्वंस मामले में मुकदमे का सामना कर रहे हैं; जो अगले महीने तक खत्म होने की सम्भावना है। अयोध्या के विधायक वेद प्रकाश गुप्ता, जिन्होंने अन्य स्थानीय नेताओं के साथ आन्दोलनकारी संतों से खराब व्यवहार किया और उन्हें मणि राम चावनी में प्रवेश नहीं करने दिया ने कहा कि हमने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ टेलीकॉफ्रेंसिंग की व्यवस्था करने के बाद महंत निराला गोपाल दास को शान्त करने में कामयाबी हासिल की।

उन्होंने दावा किया कि महंत दास को समायोजित करने के लिए तीन पद खाली हैं। महंत नृत्य गोपाल दास के उत्तराधिकारी, कमल नयन दास ने तहलका संवाददाता को बताया कि वैष्णव समाज को नज़रअंदाज़ कर दिया गया और ऐसे हालात में भरोसा पैदा नहीं हो सकता।

उन्होंने आरोप लगाया कि बसपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लडऩे के बावजूद, बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्रा जैसे राजनीतिक लोगों को ट्रस्ट में शामिल किया गया और राम मंदिर आन्दोलन का नेतृत्व करने और बलिदान करने वालों को सरकार ने दरकिनार कर दिया। दिगंबर अखाड़े के महंत सुरेश दास ने भी असंतोष व्यक्त किया और अयोध्या के संतों को ट्रस्ट में शामिल नहीं किये जाने का विरोध किया। उन्होंने सवाल किया कि वो कहाँ हैं, जो राम मंदिर के लिए लड़े?

अयोध्या के संत बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में लंबित आपराधिक मुकदमे के कारण न्यास अध्यक्ष नित्य गोपाल दास और विहिप उपाध्यक्ष चंपत राय को ट्रस्ट में शामिल न किये जाने के बहाने को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। वे कहते हैं कि यदि यह कारण है, तो कल्याण सिंह और उमा भारती को राज्यपाल और केंद्रीय मंत्री के पद पर कैसे रखा गया।

मुस्लिम समुदाय में भी असंतोष

उत्तर प्रदेश सरकार के मस्जिद के लिए पाँच एक ज़मीन ज़िला मुख्यालय से लगभग 18 किलोमीटर दूर, राम जन्मभूमि से लगभग 25 किलोमीटर दूर धनीपुर गाँव में दिये जाने से आयोध्या शहर के मुसलमान दु:खी हैं। बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक ज़फरयाब जिलानी ने तहलका संवाददाता से कहा कि मस्जिद बनाने के लिए यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दी गयी भूमि अयोध्या (जिसका नाम पहले फैज़ाबाद था) में नहीं है, जैसा कि पिछले साल 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया था। यूपी सरकार ने पिछले साल दिवाली समारोह के दौरान फैज़ाबाद ज़िले का नाम बदलकर अयोध्या रखने की घोषणा की थी।

उन्होंने कहा कि सभी अदालती दस्तावेज़ों में मुकदमे में अयोध्या फैज़ाबाद का हिस्सा है; क्योंकि अयोध्या फैज़ाबाद का एक छोटा शहर था। इस अयोध्या को केवल एक शहर का नाम देकर और इसकी नगरपालिका सीमा का विस्तार करके नये बनाये गये अयोध्या ज़िले की बराबरी नहीं की जा सकती है। जिलानी ने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि प्रस्तावित भूमि अभी भी अयोध्या में है। उन्होंने कहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी), मुस्लिम समुदाय के साथ-साथ सभी मुस्लिम संगठनों ने बाबरी मस्जिद के लिए वैकल्पिक भूमि स्वीकार करने से इन्कार कर दिया है। हालाँकि, भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जा रही है। जिलानी ने स्पष्ट किया कि एआईएमपीएलबी इसे अदालत में चुनौती नहीं देगा; लेकिन निश्चित रूप से इसे शीर्ष अदालत के फैसले के िखलाफ प्रस्तावित क्यूरेटिव याचिका का हिस्सा बना सकता है।

उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने शीर्ष अदालत के आदेशों के अनुसार बाबरी मस्जिद के बदले में एक मस्जिद के निर्माण के लिए पाँच एकड़ भूमि आवंटित करने के सरकारी निर्णय पर चुप्पी साध ली। वक्फ बोर्ड के चेयरपर्सन ज़फर फारुकी विदेश चले गये हैं और बोर्ड 24 फरवरी को होने वाली अपनी बैठक में यह तय कर सकता है कि उसे आवंटित ज़मीन बोर्ड को स्वीकार है या नहीं।