राफेल पर फिर सवाल

The Union Minister for Defence, Shri Rajnath Singh after flying a sortie in the newly inducted Rafale aircraft, in France on October 08, 2019.

लड़ाकू विमान सौदा मामले में अनियमितताओं की फ्रांस में जाँच शुरू होने से केंद्र सरकार दबाव में

एक फ्रांसीसी खोजी वेबसाइट में ख़ुलासों के बाद राफेल लड़ाकू विमान की फ्रांस में जाँच शुरू होना
एक असाधारण घटना है। इस जाँच के नतीजों से फ्रांस में ही नहीं, भारत में भी राजनीतिक उबाल आ
सकता है। क्योंकि सम्भावना है कि राफेल सौदे के समय फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद और वर्तमान राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों से भी पूछताछ हो सकती है, जो तब फ्रांस के वित्त मंत्री थे। भारत में विपक्ष, ख़ासकर कांग्रेस नेता राहुल गाँधी इस मुद्दे पर मोदी सरकार के ख़िलाफ़ बहुत आक्रामक रहे हैं और उन्होंने शुरू से ही इस पर सवाल उठाये हैं। तमाम घटनाक्रम और बिन्दुओं पर विशेष संवाददाता राकेश रॉकी की रिपोर्ट :-

 

राफेल लड़ाकू विमान युद्ध में विरोधियों के छक्के छुड़ा देने के लिए जाना जाता है; लेकिन इसके विपरीत इसकी ख़रीद में अनियमितताओं के ख़ुलासों के बीच फ्रांस में इसकी जाँच शुरू होने के बाद राफेल विरोधियों की राजनीति का सबसे बड़ा हथियार बन गया है। विरोधी, ख़ासकर राहुल गाँधी और दूसरे कांग्रेस नेता सरकार पर ताबड़तोड़ हमले कर रहे हैं। वहीं सरकार फ़िलहाल चुप बैठी है। बोफोर्स के बाद क़रीब 59,000 करोड़ रुपये वाला राफेल सौदा ऐसा मसला बनने की तरफ़ बढ़ता दिख रहा है, जो देश की राजनीति में तूफ़ान खड़ा कर सकता है। इसका बड़ा कारण यह भी है कि राफेल ख़रीद में घिरे भारतीय व्यापारी अनिल अंबानी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नज़दीकी माना जाता है और मोदी के फ्रांस दौरे के दौरान ही सन् 2016 में राफेल का सौदा अन्तिम रूप से सिरे चढ़ा था। यदि फ्रांस सरकार की जाँच में राफेल ख़रीद में कुछ बड़ा सामने आता है, तो यह अगले साल के पाँच या सम्भवत: राज्यों के विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ दल की लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर सकता है। अब चूँकि फ्रांस में शुरू हुई जाँच के दायरे में वहाँ के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद और उनके समय वित्त मंत्री रहे अब के वहाँ के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों भी हैं। इसलिए यह एक अंतर्राष्ट्रीय मसला बन गया है।
फ्रांस में राफेल ख़रीद में जाँच शुरू होने के बाद राफेल सौदे में लम्बे समय से चल रहे विवाद में बड़ा मोड़ आ गया है। फ्रांस ने भारत के साथ क़रीब 59,000 करोड़ रुपये के राफेल सौदे में कथित भ्रष्टाचार की न्यायिक जाँच कराने का आदेश दिया है। इसके लिए एक फ्रांसीसी जज की भी नियुक्ति की गयी है। फ्रांसीसी ऑनलाइन जर्नल मीडियापार्ट, जिसने सबसे पहले इस सौदे में गड़बडिय़ों का दावा करते हुए रिपोर्ट छापी थी; ने दावा किया है कि सन् 2016 में हुई इस इंटर गवर्नमेंट डील (सरकार से सरकार के बीच सौदा) की अत्यधिक संवेदनशील जाँच औपचारिक रूप से 14 जून को शुरू की गयी थी। रिपोर्ट के मुताबिक, फ्रांसीसी लोक अभियोजन सेवाओं की वित्तीय अपराध शाखा ने इस बात की पुष्टि भी की है। ज़ाहिर है राफेल सौदा, जो पिछले कुछ महीनों से भारत की राजनीति आरोपों-प्रत्यारोपों तक सीमित था; अब फ्रांस में जाँच होने की रिपोर्ट के बाद केंद्र की मोदी सरकार के गले की फाँस बनता दिख रहा है। बता दें इस फ्रांसीसी वेबसाइड मीडियापार्ट ने इसी साल अप्रैल में राफेल सौदे में कथित अनियमितताओं पर एक के बाद एक रिपोट्र्स प्रकाशित की थीं। मीडियापार्ट ने दावा किया है कि फ्रांस की सार्वजनिक अभियोजन सेवाओं की वित्तीय अपराध शाखा के पूर्व प्रमुख इलियाने हाउलेट ने सहयोगियों की आपत्ति के बाद भी राफेल सौदे में भ्रष्टाचार के कथित सुबूतों की जाँच को रोक दिया। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि हाउलेट ने फ्रांस के हितों, संस्थाओं के कामकाज को संरक्षित करने के नाम पर जाँच को रोकने के अपने फ़ैसले को सही ठहराया।
अब मीडियापार्ट की नयी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पीएनएफ के नये प्रमुख जीन-फ्रेंकोइस बोहर्ट ने जाँच का समर्थन करने का फ़ैसला किया है। मीडियापार्ट में कहा कि आपराधिक जाँच तीन लोगों के आसपास के सवालों की जाँच करेगा, जिसमें पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद, वर्तमान राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और विदेश मंत्री जीन-यवेस ले ड्रियन शामिल हैं। इसमें से पूर्व राष्ट्रपति इस सौदे के हस्ताक्षर के समय पदस्थ थे, वर्तमान राष्ट्रपति उस समय हॉलैंड की अर्थ-व्यवस्था में थे और विदेश मंत्री उस दौरान रक्षा विभाग सँभाल रहे थे। भारत सरकार ने सन् 2016 में फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान ख़रीदने का समझौता किया था, जिसमें से क़रीब 21 विमान भारत को मिल गये हैं और बाक़ी 2022 तब मिलने का अनुमान है। इस सौदे के दौरान ही भारत में काफ़ी विवाद खड़ा हो गया था। सन् 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी राफेल सौदे में भ्रष्टाचार के मामले पर कांग्रेस, ख़ासकर राहुल गाँधी ने मोदी सरकार पर गम्भीर आरोप लगाये थे। कई अन्य विपक्षी दल भी इस मामले पर मोदी सरकार को घेर रहे हैं। इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी सवालों की बाढ़-सी आयी हुई है। राफेल सौदे की जाँच के फ्रांस सरकार के इस बड़े क़दम के बाद मोदी सरकार ने भले चुप्पी साध रखी है; लेकिन भारत में इस मसले पर राजनीति गरमा रही है। राहुल गाँधी लगातार मोदी सरकार पर चुभती हुई टिप्पणियाँ कर रहे हैं और इस मामले की जाँच जेपीसी के करवाने पर ज़ोर र दे रहे हैं, जिसके लिए सरकार क़तई तैयार नहीं दिखती। क़रीब 59,000 करोड़ रुपये के इस सौदे में कथित भ्रष्टाचार की फ्रांस में न्यायिक जाँच होने और इसके एक फ्रांसीसी जज को नियुक्त करने की ख़बर भारत में भी सुर्ख़ियों में रही है। भ्रष्टाचार भारत में राजनीतिक दृष्टि से बहुत ही संवेदनशील मुद्दा रहा है। सन् 2014 में जब नरेंद्र मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित किया था, तब देश की जनता की नब्ज़ पकड़ते हुए उन्होंने सबसे ज़्यादा प्रहार तब की यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में हुए घोटालों पर किये थे। उस समय यूपीए के कुछ मंत्रियों पर विभिन्न मामलों की जाँच चल रही थी या कुछ गिरफ़्तार हुए थे। यूपीए सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोप सामने आते ही कार्रवाई भी की और ऐसे मंत्रियों के इस्तीफ़े लेकर उनके ख़िलाफ़ जाँच को मंज़ूरी भी दी।

जाँच की आँच


राफेल को लेकर नित नये ख़ुलासों से भारत में सियासी पारा बढ़ रहा है। राहुल गाँधी लगातार मोदी सरकार की चुप्पी पर निशाना साध रहे हैं और जेपीसी से इसकी माँग कर रहे हैं। माकपा ने तो प्रधानमंत्री की भूमिका की जेपीसी जाँच की माँग उठा दी है। राफेल सौदे में कथित भ्रष्टाचार और लाभ पहुँचाने के मामले में फ्रांस में जाँच शुरू की गयी है। मामला इसलिए भी गम्भीर है कि वहाँ अब इस मामले में फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद और वर्तमान राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों से भी पूछताछ हो सकती है। जब राफेल सौदे पर हस्ताक्षर हुए थे, उस समय फ्रांस्वा ओलांद ही फ्रांस के राष्ट्रपति थे; जबकि मैक्रों उनके वित्त मंत्री थे।
सौदे की जाँच का आदेश तब दिया गया, जब इस मामले में लगातार ख़ुलासे कर रहे फ्रांसीसी पत्रकार यान फिलीपीन की एक रिपोर्ट मीडियापार्ट वेब पोर्टल पर प्रकाशित हुई। फिलीपीन ने दस्तावेज़ों के साथ दावा किया है कि राफेल सौदे में अनियमितताएँ हुई हैं। इस रिपोर्ट के बाद शेरपा नाम के एनजीओ ने शिकायत दर्ज करवायी। बता दें कि यह एनजीओ वित्त फ्रॉड का शिकार हुए लोगों की मदद करता है। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि दसॉ-रिलायंस की इस संयुक्त सौदेबाज़ी (ज्वॉइंट वेंचर) के लिए दसॉ एविएशन 49 फ़ीसदी हिस्सेदारी लगा रहा था, वहीं रिलायंस सिर्फ़ 51 फ़ीसदी। आगे दावा किया गया था कि भारत सरकार द्वारा लड़ाकू विमान ख़रीदने की बात सार्वजनिक करने से पहले ही दसॉ एविएशन को पता था कि भारत को किस तरह के लड़ाकू विमान चाहिए।
रिपोर्ट में सुशेन गुप्ता का भी नाम है, जो कि अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी चॉपर सौदा घोटाले में पकड़ा गया था। दावा किया गया है कि उसकी कम्पनी से भी कुछ संदिग्ध लेन-देन हुआ था और यह पैसा उसे राफेल सम्बन्धी दस्तावेज़ मंत्रालय से निकालने के लिए दसॉ ने दिया था।
इसके बाद फ्रांस के राष्ट्रीय अभियोजन कार्यालय (पीएनएफ) ने एक जज को इस सौदे की जाँच के लिए नियुक्त किया है। यहाँ दिलचस्प बात यह है कि फ्रांस में आमतौर पर ऐसी न्यायिक जाँच के आदेश नहीं दिये जाते हैं। ज़ाहिर है वर्तमान घटनाक्रम के लिहाज़ से यह गम्भीर मुद्दा बन गया है। फ्रांस के नियमों के मुताबिक, जाँच के आदेश मिलने पर जज के पास कुछ विशेष अधिकार होते हैं, जिसमें उसे कार्रवाई करने और निर्देश देने से पहले दूसरी अथॉरिटी से रज़ामंदी आदि नहीं लेनी होती। अब यदि न्यायिक जाँच में सुबूत सही पाये जाते हैं, तो फिर आगे जाँच होगी। ज़हिर है भारत की राजनीति के लिहाज़ से यह जाँच सत्तारूढ़ दल भाजपा और उससे भी ज़्यादा व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निजी प्रतिष्ठा को छति पहुँचा सकती है। मोदी ने इस सौदे को हमेशा सही क़रार दिया है।

क्यों गहराया विवाद?


फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों के दाम और दसॉ रिलायंस एविएशन को ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट मिलने के मुद्दे पर मोदी सरकार और कांग्रेस के बीच तकरार काफ़ी समय से चल रही है। कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्ष ने इस सौदे की वित्तीय शर्तों पर संसद में भी बहुत सवाल उठाये थे। कांग्रेस ने साँठगाँठ वाले पूँजीवादी खेल का भी आरोप लगाया। भले सरकार आरोपों को लगातार ख़ारिज करती रही है और वह ख़ुद को इस मसले पर सर्वोच्च न्यायालय की ‘क्लीन चिट’ मिलने की भी बात करती है, यह मामला लगातार सुर्ख़ियों में रहने से सरकार को इससे मुक्ति नहीं मिली है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का सवाल है कि मोदी सरकार फ्रांस में बनाये गये विमानों के लिए ज़यादा क़ीमत चुकाने पर क्यों राज़ी हो गयी, जबकि इस सौदे पर पिछली सरकार ने मोलभाव कर क़ीमत कम करवायी थी। कांग्रेस का आरोप यह भी था कि सरकारी कम्पनी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को दरकिनार कर अनिल अंबानी, जिन्हें कांग्रेस प्रधानमंत्री मोदी का मित्र कहती है; की रिलायंस डिफेंस को अहम वित्तीय लाभ दिया गया। एनडीए सरकार ने अप्रैल, 2015 में घोषणा की थी कि 36 राफेल लड़ाकू विमान ऑफ द शेल्फ (स्वयं) ख़रीदे जाएँगे। सन् 2012 में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने कई कम्पनियों के विमानों के बीच से राफेल ख़रीदने का फ़ैसला किया था। यूपीए सरकार ने तब 126 राफेल विमान ख़रीदने का फ़ैसला किया था, जिनमें से 108 विमान एचएएल को भारत में बनाने थे। मोदी सरकार की दलील रही है कि राफेल जेट बनाने वाली दसॉ एविएशन के साथ अन्तिम सौदे (फाइनल डील) की तुलना यूपीए के मूल सौदे (ओरिजिनल डील) से नहीं की जा सकती है। मोदी सरकार ने यह आरोप भी ख़ारिज किया है कि एचएएल पर एक प्राइवेट कम्पनी को तरजीह दी गयी है। मोदी सरकार का कहना है कि दसॉ एविएशन ने ऑफसेट या निर्यात से जुड़े अपने दायित्व पूरे करने के लिए रिलायंस डिफेंस को अपना साझेदार चुना और इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं थी।
कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा कहते हैं कि मोदी सरकार ने 7.87 अरब यूरो यानी क़रीब 59,000 करोड़ रुपये की बढ़ी हुई क़ीमत पर ये विमान ख़रीदने का सौदा किया है। खेड़ा के मुताबिक, एनडीए सरकार ने प्रति विमान 1670 करोड़ रुपये चुकाये, जबकि यूपीए सरकार ने 570 करोड़ रुपये का भाव तय किया था। हालाँकि रक्षा मंत्रालय की आंतरिक गणना में दिखाया गया है कि हर राफेल विमान यूपीए वाले सौदे के मुक़ाबले 59 करोड़ रुपये सस्ता पड़ रहा है। ईटी ने इस आंतरिक गणना का दस्तावेज़ देखा है। सरकार का दावा है कि भारत की ज़रूरतों के हिसाब से जो साज़-ओ-सामान विमान में जोड़ा गया है, उसके चलते यूपीए वाली शर्तों पर हर राफेल जेट की क़ीमत 1705 करोड़ रुपये पड़ती, जबकि एनडीए सरकार ने 36 विमानों पर जो सौदा किया, उसमें भाव 1646 करोड़ रुपये पड़ा। लागत का एक बड़ा हिस्सा भारत से जुड़ी ज़रूरतों वाले साज़-ओ-सामान का बताया जा रहा है। इसमें लेह जैसे बेहद ऊँचाई वाले इलाक़ों से उड़ान भरने से लेकर बेहतर इंफ्रारेड सर्च और ट्रैक सेंसर और इलेक्ट्रॉनिक जैमर पॉड जैसी क्षमताएँ शामिल हैं। इस साज़-ओ-सामान का दाम 36 विमानों का सौदा की तरह 126 विमानों वाले सौदे में भी ऐसा ही रहता; क्योंकि यह रिसर्च ऐंड डिवेलपमेंट (खोज और विकास) पर एक ही बार लगने वाली लागत है।

राफेल का सफ़र
सन् 2007 में भारतीय वायुसेना ने मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) ख़रीदने का प्रस्ताव सरकार को भेजा, जिसके बाद सरकार ने 126 लड़ाकू विमानों को ख़रीदने की निविदा जारी की। इसके बाद जिन लड़ाकू विमानों को ख़रीद की सूची में रखा गया, उनमें अमेरिका के बोइंग एफ/ए-18 सुपर हॉरनेट, फ्रांस की दसॉ का राफेल, ब्रिटेन का यूरोफाइटर, अमेरिका का लॉकहीड मार्टिन एफ-16 फाल्कन, रूस का मिखोयान एमआईजी-35 और स्वीडन के साब जेएएस-39 ग्रिपेन आदि एयरक्राफ्ट शामिल थे।
इसके बाद 4 सितंबर, 2008 को मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाले रिलायंस ग्रुप ने रिलायंस एयरोस्पेस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड (आरएटीएल) नाम से एक नयी कम्पनी बनायी। इसके बाद आरएटीएल और दसॉ के बीच बातचीत हुई और साझा उपक्रम बनाने पर दोनों में सहमति बनी। मक़सद भविष्य में भारत और फ्रांस के बीच होने वाले सभी क़रार हासिल करना था। मई, 2011 में एयरफोर्स ने राफेल और यूरो लड़ाकू विमानों को शॉर्ट लिस्ट किया। जनवरी, 2012 में राफेल को ख़रीदने के लिए निविदा (टेंडर) सार्वजनिक कर दी गयी। राफेल ने सबसे कम दर पर विमान उपलब्ध कराने को बोली लगायी। शर्तों के अनुसार भारत को 126 लड़ाकू विमान ख़रीदने थे, जिनमें से 18 लड़ाकू विमान तैयार हालत में देने की बात थी, जबकि बाक़ी 108 विमान दसॉ की मदद से एचएएल द्वारा तैयार किये जाने थे। हालाँकि इस दौरान भारत और फ्रांस के बीच इन विमानों की क़ीमत और उनके बनाने की प्रक्रिया शुरू करने के समय पर अन्तिम समझौता नहीं हुआ था। 13 मार्च, 2014 तक राफेल विमानों की क़ीमत, तकनीक, हथियार प्रणाली (वेपन सिस्टम), अनुकूलन (कस्टमाइजेशन) और इनके रख-रखाव को लेकर बातचीत जारी रही। साथ ही एचएएल और दसॉ एविएशन के बीच समझौते पर हस्ताक्षर हो गये। इस दौरान भारत में 2014 में लोकसभा के चुनाव आ गये और सरकार बदल गयी। यूपीए शासनकाल में राफेल ख़रीद का सौदा अन्तिम नहीं हो पाया था; बेशक उसने 526.1 करोड़ रुपये प्रति राफेल विमान की दर से सौदा किया था। मोदी के नेतृत्व में एनडीए के सत्ता में आने के क़रीब एक साल के बाद 28 मार्च, 2015 को अनिल अंबानी के नेतृत्व में रिलायंस डिफेंस कम्पनी बनायी गयी। 10 अप्रैल, 2015 को प्रधानमंत्री मोदी ने फ्रांस की राजधानी पेरिस का दौरा किया और 36 राफेल लड़ाकू विमान ख़रीदने के अपनी सरकार के फ़ैसले का ऐलान कर दिया।इसके बाद जून, 2015 में रक्षा मंत्रालय ने 126 एयरक्राफ्ट ख़रीदने का टेंडर निकाला। दिसंबर, 2015 में रिलायंस इंटरटेनमेंट ने फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति ओलांद की पार्टनर जूली गयेट की मूवी का-प्रोडक्शन में 16 लाख यूरो का निवेश किया। मीडियापार्ट के मुताबिक, यह निवेश फ्रांस के एक व्यक्ति के निवेश कोष (इनवेस्टमेंट फंड) के ज़रिये किया गया, जो अंबानी को पिछले 25 वर्षों से जानता था। हालाँकि जूली गयेट के प्रोडक्शन रॉग इंटरनेशनल ने अनिल अंबानी या रिलायंस के प्रतिनिधियों से मुलाक़ात करने की बात से इन्कार किया। फिर जनवरी, 2016 में गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए ओलांद भारत आये। इस दौरान उन्होंने राफेल विमान ख़रीदने के एक एमओयू पर हस्ताक्षर किये। 24 जनवरी को रिलायंस इंटरटेनमेंट ने प्रेस विज्ञप्ति जारी की, जिसमें इंडो-फ्रेंच ज्वाइंट प्रोडक्शन की घोषणा की गयी। सितंबर, 2016 को भारत और फ्रांस के बीच 36 राफेल विमान ख़रीदने की फाइनल डील पर दस्तख़त हुए। इन विमानों क़ीमत 7.87 बिलियन यूरो रखी गयी। इस सौदे के मुताबिक, इन विमानों की सुपुर्दगी (डिलीवरी) सितंबर, 2018 से शुरू होने की बात कही गयी। तीन अक्टूबर, 2016 को अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस लिमिटेड और दसॉ एविएशन ने एक साखा उपक्रम बनाने की घोषणा कर दी। फरवरी, 2017 में दसॉ-रिलायन्स एरोस्पेस लिमिटेड (डीआरएएल) बाक़ायदा गठित भी हो गया। हालाँकि कांग्रेस ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने एचएएल को दरकिनार करके अनिल अंबानी की रिलायंस कम्पनी को सौदा-समझौता दिलाया।
इस पर रिलायंस डिफेंस लिमिटेड ने सफ़ाई देते हुए कहा कि कम्पनी को संयुक्त समझौता अनुबंध (ज्वाइंट वेंचर कॉन्ट्रैक्ट) सीधे दसॉ से मिला और इसमें सरकार का कोई रोल नहीं था। सितंबर, 2018 को राफेल सौदे पर मचे घमासान के बीच फ्रांस्वा ओलांद ने एक फ्रांस अख़बार को दिये साक्षात्कार में कहा कि अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस का नाम ख़ुद भारत सरकार ने सुझाया था। हालाँकि फ्रांस सरकार और दसॉ ने इससे किनारा कर लिया; लेकिन भारत में इससे जबरदस्त विवाद छिड़ गया। विपक्ष के ख़रीद में आरोपों को तो ताक़त मिली ही, उसने नये सिरे के मोदी सरकार पर हमला शुरू कर दिया।

बिचौलिये को बेहिसाब दलाली


फ्रांस की समाचार वेबसाइट मीडियापार्ट ने राफेल ख़रीद सौदे में भ्रष्टाचार की बात करते हुए अप्रैल में ढेरों सवाल उठाये थे। मीडिया पार्ट ने बाक़ायदा फ्रांस भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी की जाँच रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया था कि दसॉ एविएशन ने फ़र्ज़ी नज़र आने वाले भुगतान किये हैं। यह ख़बर सामने आने के बाद भारत में राजनीतिक तूफ़ान उठ खड़ा हुआ था। राफेल ख़रीद में भ्रष्टाचार होने का मामला फिर मीडिया में आने के बाद कांग्रेस ने मोदी सरकार पर तीखा हमला किया। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी तो पहले से ही इस मामले में मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करते रहे हैं। मीडियापार्ट ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दसॉ एविएशन कम्पनी के 2017 के खातों के ऑडिट में 5,08,000,925 यूरो (4.39 करोड़ रुपये) ग्राहक तोहफ़ा (क्लाइंट गिफ्ट)के नाम पर ख़र्च दर्शाये गये हैं। हालाँकि तनी बड़ी राशि का कोई ठोस स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। मॉडल बनाने वाली कम्पनी का मार्च, 2017 का एक बिल ही उपलब्ध कराया गया।
एएफए की जाँच के दौरान दसॉ एविएशन ने बताया कि उसने राफेल विमान के 50 मॉडल एक भारतीय कम्पनी से बनवाये। इन मॉडल के लिए 20,000 यूरो (क़रीब 17 लाख रुपये) प्रति विमान के हिसाब से भुगतान किया गया। यह मॉडल कहाँ और कैसे इस्तेमाल किये गये? इसका कोई प्रमाण नहीं दिया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, मॉडल बनाने का काम कथित तौर पर भारत की कम्पनी डेफसिस सॉल्यूशंस को दिया गया। बता दें यह कम्पनी दसॉ की भारत में सब-कॉन्ट्रैक्ट कम्पनी है। इसका स्वामित्व रखने वाले परिवार से जुड़े सुषेण गुप्ता रक्षा सौदों में बिचौलिया रहे और दसॉ के एजेंट भी। सुषेण गुप्ता को 2019 में अगस्ता-वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर ख़रीद घोटाले की जाँच के सिलसिले में प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ़्तारर किया था। रिपोर्ट के मुताबिक, सुषेण ने ही दसॉ एविएशन को मार्च, 2017 में राफेल मॉडल बनाने के काम का बिल दिया था। रिपोर्ट सामने आते ही कांग्रेस ने सोमवार को मोदी सरकार पर हमला किया। पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा- ‘इस पूरे लेन-देन को गिफ्ट टू क्लाइंट की संज्ञा दी गयी। अगर यह मॉडल बनाने के पैसे थे, तो इसे गिफ्ट क्यों कहा गया? क्या यह छिपे हुए ट्रांजेक्शन (लेन-देन) का हिस्सा था। ये पैसे जिस कम्पनी को दिये गये, वो यह मॉडल बनाती ही नहीं है। 60 हज़ार करोड़ रुपये के राफेल रक्षा सौदे से जुड़े मामले में सच्चाई सामने आ गयी है। यह हम नहीं, फ्रांस की एक एजेंसी कह रही है।’

सुरजेवाला ने मोदी सरकार से पाँच सवाल भी किये थे, जिनमें पहला यह था कि 1.1 मिलियन यूरो के जो क्लाइंट गिफ्ट दसॉल्ट के ऑडिट में दिखा रहा है। क्या वो राफेल सौदा के लिए बिचौलिये को कमीशन (दलाली) के तौर पर दिये गये थे? दूसरा, जब दो देशों की सरकारों के बीच रक्षा समझौता हो रहा है, तो कैसे किसी बिचौलिये को इसमें शामिल किया जा सकता है? तीसरा, क्या इस सबसे राफेल सौदे पर सवाल नहीं खड़े हो गये हैं? कांग्रेस ने चौथा सवाल यह किया है कि क्या इस पूरे मामले की जाँच नहीं की जानी चाहिए, ताकि पता चल सके कि इस सौदे के लिए किसको और कितने रुपये दिये गये?
क्या प्रधानमंत्री इस पर जवाब देंगे? याद रहे कांग्रेस ने राफेल सौदे में गम्भीर अनियमितताओं का आरोप लगाया था। पार्टी का आरोप था कि जिस लड़ाकू विमान को यूपीए सरकार ने 526 करोड़ रुपये में लिया था उसे एनडीए सरकार ने 1670 करोड़ प्रति विमान की दर से लिया। कांग्रेस ने यह भी सवाल उठाया था कि सरकारी एयरोस्पेस कम्पनी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को इस सौदे में शामिल क्यों नहीं किया गया। इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ लगायी गयी याचिका को सर्वोच्च न्यायालय ने 14 नवंबर, 2019 को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया था कि इस मामले की जाँच की ज़रूरत नहीं है। हालाँकि, विमान ख़रीद में राशि को इसमें नहीं जोड़ा गया था। मीडियापार्ट की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि राफेल लड़ाकू विमान सौदे में गड़बड़ी का सबसे पहले पता फ्रांस की भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी एएफए को 2016 में हुए इस सौदे पर दस्तख़त के बाद लगा। एएफए को मालूम हुआ कि राफेल बनाने वाली कम्पनी दसॉ एविएशन ने एक बिचौलिये को 10 लाख यूरो देने पर रज़ामंदी जतायी थी। यह हथियार दलाल इस समय एक अन्य हथियार सौदे में गड़बड़ी के लिए आरोपी है। हालाँकि एएफए ने इस मामले को प्रोसिक्यूटर के हवाले नहीं किया। रिपोर्ट में कहा गया कि अक्टूबर 2018 में फ्रांस की पब्लिक प्रॉसिक्यूशन एजेंसी को राफेल सौदे में गड़बड़ी की चेतावनी मिली और उसी समय फ्रेंच क़ानून के मुताबिक दसॉ एविएशन के ऑडिट का भी समय हो गया।

कम्पनी के 2017 के खातों की जाँच का दौरान ‘क्लाइंट को गिफ्ट’ के नाम पर हुए 5,08,925 यूरो के ख़र्च का पता लगा। यह समान मद में अन्य मामलों में दर्ज ख़र्च राशि के मुक़ाबले कहीं अधिक था। मीडियापार्ट के दावे के मुताबिक, इस ख़र्च पर माँगे गये स्पष्टीकरण पर दसॉ एविएशन ने एएफए को 30 मार्च, 2017 का बिल मुहैया कराया, जो भारत की डेफसिस सॉल्यूशंस की तरफ़ से दिया गया था। यह बिल राफेल लड़ाकू विमान के 50 मॉडल बनाने के लिए दिये ऑर्डर का आधा काम के लिए था। इसके लिए प्रति पीस 20,357 यूरो की राशि का बिल थमाया गया। अक्टूबर, 2018 के मध्य में इस ख़र्च के बारे में पता लगने के बाद एएफए ने दसॉ से पूछा कि आख़िर कम्पनी ने अपने ही लड़ाकू विमान के मॉडल क्यों बनवाये और इसके लिए 20,000 यूरो की मोटी रक़म क्यों ख़र्च की गयी? साथ ही सवाल पूछे गये कि क्या एक छोटी कार के आकार के यह मॉडल कभी बनाये या कहीं लगाये भी गये? तब दसॉ और डेफसिस सॉल्यूशंस ने एक बयान में कहा था कि 36 राफेल लड़ाकू विमानों की आपूर्ति के लिए भारत के साथ सन् 2016 में किये गये सौदे में अनुबन्ध संरचना का किसी भी तरह उल्लंघन नहीं किया गया है।
दसॉ एविएशन के प्रवक्ता ने बयान में कहा कि एएफए सहित अन्य आधिकारिक संगठन बहुत-सी जाँचें करते हैं और हम कहना चाहते हैं कि 36 विमानों की ख़रीद में भारत के साथ हुए अनुबन्ध का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है। प्रवक्ता ने कहा कि दसॉल्ट एविएशन आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के रिश्वत रोधी प्रस्ताव और राष्ट्रीय क़ानूनों का कड़ाई से पालन करता है। उसने सभी आरोपों से इन्कार किया और कहा कि उसने राफेल की निर्माता कम्पनी दसॉल्ट एविएशन को इस विमान के 50 नक़ली मॉडल (प्रतिकृति) सप्लाई की थी। डेफसिस सॉल्यूशंस ने कर (टैक्स) रसीद पेश करते हुए इन आरोपों को ग़लत ठहराने का प्रयास किया। कम्पनी ने कहा कि यह मीडिया में सामने आये उन निराधार, बेबुनियाद और भ्रामक दावों का जवाब है, जो कहते हैं कि डेफसिस ने राफेल विमानों के 50 प्रतिकृति मॉडल की आपूर्ति नहीं की है।

 

वायुसेना के पास अब 21 राफेल


विवाद का विषय बने राफेल लड़ाकू विमान को भारत लाने का सिलसिला मोदी सरकार ने बहुत तामझाम के साथ शुरू किया था। इसमें कोई दो-राय नहीं कि राफेल आने से वायुसेना की ताक़त बढ़ी है। मई के आख़िर में तीन राफेल विमान भारत की धरती पर लैंड हुए और उन्हें पश्चिम बंगाल के हाशिमारा वायुसेना हवाई अड्डे पर तैनात करने की तैयारी की गयी है। इन तीन विमान के भारत आते ही अब वायुसेना के पास कुल 21 राफेल आ चुके हैं। भारत सरकार की तरफ़ से फ्रांस के साथ 36 राफेल विमान का सौदा किया गया है। इससे पहले 18 राफेल विमान की स्क्वाड्रन को अंबाला वायुसेना हवाई अड्डे पर तैनात किया गया था। बाक़ी जो 18 आने वाले हैं, उन्हें पश्चिम बंगाल के हाशिमारा वायुसेना हवाई अड्डे पर तैनात करने की योजना है। राफेल फाइटर विमान एमआइसीए और मेट्योर एअर-टू-एअर मिसाइल से लैस हैं। इनमें स्कैल्प एअर टू ग्राउंड क्रूज मिसाइल से हमला करने की क्षमता है और एक ख़ूबी यह भी है कि राफेल एक ही बार में 14 जगह सटीक निशाना लगा सकते हैं। सम्भावना है कि साल के आख़िर तक भारत को बाक़ी राफेल भी मिल जाएँगे।

 

“राफेल सौदे में शुरू की गयी फ्रांसीसी न्यायिक जाँच माकपा द्वारा उठायी गयी आशंकाओं की पुष्टि करती है कि पहले के ख़रीद समझौते को लेकर प्रधानमंत्री मोदी का बदला रुख़ गहरे भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग में फँस गया है। माकपा इस पूरे मामले में प्रधानमंत्री और सरकार की भूमिका की जाँच करने और सौदे की सच्चाई का पता लगाने के लिए एक संयुक्त संसदीय समिति के गठन के लिए सितंबर, 2018 में उठायी गयी अपनी माँग को दोहराती है।”

सीताराम येचुरी
माकपा नेता

 

राहुल गाँधी का हमला


“कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने राफेल सौदे में कथित गड़बडिय़ों की फ्रांस में जाँच शुरू होने के बाद एक ट्वीट में लिखा- ‘ख़ाली जगह को भरिए, …मित्रों वाला राफेल है, टैक्स वसूली – महँगा तेल है, पीएसयू-पीएसबी की अन्धी सेल है और सवाल करो तो जेल है…मोदी सरकार… है!’
इससे पहले राहुल गाँधी ने अपने इंस्टाग्राम पर एक फोटो शेयर किया और कैप्शन दिया- ‘चोर की दाढ़ी…’ इस इंस्टाग्राम पोस्ट में राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री मोदी की एक तस्वीर को राफेल विमान के साथ एडिट करके शेयर किया। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने एक अन्य ट्वीट में लोगों से पोल के माध्यम से पूछा कि जेपीसी जाँच के लिए प्रधानमंत्री मोदी तैयार क्यों नहीं हैं? राहुल ने इस पोल में चार विकल्प दिये; 1- अपराधबोध, 2- मित्रों को भी बचाना है, 3- जेपीसी को राज्यसभा सीट नहीं चाहिए और 4- उपरोक्त सभी। ज़्यादातर लोगों ने चौथे विकल्प को चुना।