राज्यपाल के साथ बैठक में 24 विधायकों के नदारद रहने के बाद बंगाल भाजपा में हड़कंप    

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से ऐन पहले टीएमसी से दलबदलकर भाजपा में गए सुवेन्दु अधिकारी के खिलाफ विद्रोह बढ़ता जा रहा है। भाजपा नेतृत्व ने अधिकारी को  तमाम वरिष्ठ नेताओं अंगूठा दिखाते हुए भाजपा विधायक दल का नेता बनवा दिया था। इसके बाद पार्टी में जबरदस्त नाराजगी है। सोमवार को जब अधिकारी राज्यपाल
जगदीप धनखड़ से मिलने गए तो 74 में से 24 विधायक नदारद रहे। इसके बाद बंगाल भाजपा विधायक दल में बड़ी टूट की चर्चा तेज हो गयी है। उधर राज्यपाल धनखड़ आज गृह मंत्री अमित शाह से मिलने दिल्ली आये हैं।
वरिष्ठ नेता मुकुल रॉय और उनके बेटे सुभ्रांशु रॉय के भाजपा छोड़कर टीएमसी में वापस लौटने के बाद कई और नेता भाजपा छोड़ने की तैयारी में दिख रहे हैं। अब 24 विधायकों के अधिकारी के साथ राज्यपाल से न मिलने से इन सभी विधायकों को लेकर चर्चा शुरू हो गयी है।
बंगाल भाजपा विधायक दल का एक बड़ा वर्ग सुवेन्दु अधिकारी को अपना नेता  (विधायक दल का नेता) मानने को कतई तैयार नहीं है। अधिकारी को यह पद देने के आलाकामन के निर्णय के बाद कई विधायकों ने टीएमसी नेतृत्व से संपर्क किया है। इन विधायकों में से कई का अंदरखाते कहना है कि सुवेन्दु अधिकारी को नेता मानने से तो बेहतर है, टीएमसी में ही चले जाएँ।
भाजपा के लिए मुकुल रॉय भी बड़ा संकट बनने जा रहे हैं। भाजपा में ऐसे कई नेता/विधायक हैं जो मुकुल रॉय को बहुत मानते हैं। मुकुल ने जब विधानसभा चुनाव से पहले टीएमसी छोड़ भाजपा का दामन थामा था, तो भी उन्होंने टीएमसी या ममता बनर्जी को लेकर कमजोर टिप्पणी नहीं की थी। इसके विपरीत सुवेन्दु अधिकारी ममता बनर्जी के खिलाफ कथित रूप से अपशब्दों का इस्तेमाल करने से भी गुरेज करते नहीं दिखे हैं।
ममता कह चुकी हैं कि वो ऐसे नेताओं को पार्टी में वापस नहीं लेंगी जो टीएमसी के खिलाफ आग उगल चुके हैं या पैसे या पद के लालच में भाजपा में गए थे। बेशक
भाजपा बंगाल में किसी बगावत की खबरों को अफवाह बता रही है, सुवेंदु के साथ राज्यपाल से मिलने न जाने वाले विधायकों की इतनी बड़ी संख्या से बेचैन है। यदि यह विधायक पाला बदलते हैं तो भाजपा से बाद में और लोग भी टूटेंगे।
वरिष्ठ नेता राजीव बनर्जी, दीपेंदु विश्वास आदि की जल्द घर वापसी की चर्चा पहले से  तेज है। मुकुल रॉय के विधायक पद से इस्तीफे की मांग कर रही भाजपा को फिलहाल बंगाल में पार्टी नेताओं को संभालना बड़ी चुनौती बन गया है।