राजस्थान में जल परियोजना पर राजनीति

ईस्टर्न राजस्थान कैनाल परियोजना को लेकर इन दिनों सियासत में गहमा-गहमी मची हुई हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कहना है- ‘हम प्रधानमंत्री मोदी को उनका वादा याद दिलाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने को कहा था; लेकिन अब वह अपने वादे से मुकर रहे हैं। हम कोई भीख नहीं माँग रहे हैं। यह हमारा अधिकार है।’

गहलोत ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार और हमलावर होते हुए कहा कि इस परियोजना से राजस्थान के 13 ज़िलों में सिंचाई हो सकती है। उन्होंने इस मामले में केंद्र के इस तर्क को ग़लत बताया कि जल प्रदेश का मुद्दा है। उन्होंने कहा कि अगर केंद्र इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने से इनकार करता है, तो हम इसे अपने बूते पूरा करेंगे। सूत्रों की मानें, तो राजनीतिक रस्साकसी में इस परियोजना का काफ़ी मीठा पानी व्यर्थ बह रहा है।

उल्लेखनीय है कि चंबल नदी पर धौलपुर में केंद्रीय जल आयोग का रिवर गेज स्टेशन है। जहाँ नदी में बहकर जाने वाले पानी की मात्रा मापी जाती है। केंद्रीय जल आयोग के इस स्टेशन से प्राप्त 36 साल के आँकड़ों के अनुसार, रिवर गेज स्टेशन से हर साल औसतन 1,900 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी व्यर्थ बह जाता है। राज्य के स्वायत्त शासन मंत्री शान्ति धारीवाल का कहना है कि योजना से मात्र 3,500 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी ही उपयोग में लिया जाएगा। ईआरसीपी की डीपीआर मध्य प्रदेश-राजस्थान अंतरराज्यीय स्टेट कंट्रोल बोर्ड की सन् 2005 में आयोजित बैठक में लिये गये निर्णय के अनुसार तैयार की गयी है। इस निर्णय के अनुसार, राज्य किसी परियोजना के लिए अपने राज्य के कैचमेंट से प्राप्त 90 फ़ीसदी पानी एवं दूसरे राज्य के कैचमेंट से प्राप्त 10 फ़ीसदी पानी का उपयोग इस शर्त के साथ कर सकते हैं कि यदि परियोजना में आने वाले बाँध और बैराजों का डूब (तराई) क्षेत्र दूसरे राज्य सीमा में नहीं आता हो, तो ऐसे मामलों में राज्य की सहमति आवश्यक नहीं है। राज्य सरकार अपने संसाधनों से इस परियोजना पर कार्य करेगी, तो इसमें बहुत ज़्यादा समय लगेगा; क्योंकि जब केंद्र सरकार परियोजना को 90 अनुपात 10 के आधार पर राष्ट्रीय महत्त्व की परियोजना का दर्जा देगी, तब भी यह 10 साल में पूरी होगी। लम्बे समय से इस परियोजना को राष्ट्रीय महत्त्व की परियोजना घोषित करने की माँग केंद्र सरकार से कर रहा है। लेकिन इस पर अभी तक कोई फैसला केंद्र ने नहीं लिया। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री ने जयपुर एवं अजमेर से 7 जुलाई, 2018 एवं 6 अक्टूबर, 2018 को आयोजित रैलियों से ईआरसीपी को राष्ट्रीय महत्त्व की परियोजना घोषित करने का वादा किया था; लेकिन अभी तक निभाया नहीं गया है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।

मंत्री धारीवाल ने कहा कि इस प्रोजेक्ट में अभी तक राज्य का पैसा लग रहा है। पानी राजस्थान के हिस्से का है, तो केंद्र सरकार परियोजना का कार्य रोकने के लिए कैसे कह सकता है? उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार अपने इस रवैये से प्रदेश की जनता को पेयजल से और किसानों को सिंचाई के पानी से वंचित करने का प्रयास क्यों कर रही है? इस तरह के रोड़े अटकाने की वजह से 13 ज़िलों में पेयजल और सिंचाई का काम प्रभावित हो रहा है। इसके अलावा सतही जल की उपलब्धता पर आश्रित जल जीवन मिशन की कई ज़िलों में सफलता दर भी प्रभावित हो रही है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य निर्धारित किया था। ऐसे में केंद्र के इस क़दम से तो किसानों की आय भी ख़त्म हो जाएगी।

बता दें कि इस योजना से हाड़ोती के चारों ज़िले जुड़े हुए हैं। यहाँ दीगोद तहसील में योजना के तहत नवनेरा बाँध का निर्माण हो रहा है। इस योजना को राष्ट्रीय महत्त्व का दर्जा नहीं मिलने पर कांग्रेस नेता खुलकर बयान दे रहे हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस मुद्दे को लेकर 13 ज़िलों के कांग्रेस नेताओं के साथ बैठक भी कर चुके हैं।
स्वायत्त शासन मंत्री शान्ति धारीवाल ने कहा कि ईआरसीपी राज्य की महत्त्वपूर्ण योजना है, जिसमें केंद्रीय जल आयोग की वर्ष 2010 की गाइड लाइन की पालना करते हुए केंद्र सरकार के उपक्रम वेप्कॉस ने 37,200 करोड़ रुपये की डीपीआर तैयार की थी। इसके बाद भी केंद्र सरकार ने इसमें रोड़े अटकाये। धारीवाल ने कहा कि केंद्र सरकार योजना में सिंचाई का प्रावधान हटाने पर अड़ी है। हम किसानों का नुक़सान नहीं होने देंगे। इस परियोजना से सिंचाई सुविधा के प्रावधान को नहीं हटाया जा सकता। केंद्र जब तक राष्ट्रीय महत्त्व का दर्जा नहीं दे देती, राज्य सरकार अपने सीमित संसाधनों से इसका कार्य जारी रखेगी। उन्होंने कहा कि यह परियोजना 13 ज़िलों की जीवन-रेखा साबित होगी। इसके पूरा होने से पेयजल उपलब्धता के साथ 2,00,000 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं का विस्तार होगा। इस परियोजना से बारां, कोटा, बूँदी, झालावाड़ सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर, भरतपुर, दौसा, अलवर, जयपुर, अजमेर एवं टोंक के निवासियों की पेयजल आवश्यकता पूरी होगी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने नवनेरा-गलवा, बिशनपुर-ईसरदा, तिक, महलपुर बैराज, रामगढ़ बैराज के 9,600 करोड़ रुपये के काम हाथ में लेने की बजट में घोषणा की थी। इसका कार्य वर्ष 2022-23 में शुरू कर 2027 तक पूरा किया जाएगा।

दिलचस्प बात है कि केंद्रीय जल शक्ति मंत्री शेखावत इस योजना में ख़ामियाँ निकाल रहे हैं। शेखावत इसकी डीपीआर को ही ग़लत बताते हैं। कोटा प्रवास के दौरान कहा था कि पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना की डीपीआर दिशा-निर्देशों के अनुसार नहीं बनी। इस पर मध्य प्रदेश की भी आपत्ति है। इसलिए इस प्रोजेक्ट को राष्ट्रीय महत्त्व की योजना का दर्जा नहीं मिला। यदि दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रस्ताव केंद्र को मिलता तो कोई दिक़्क़त नहीं आती। केंद्र सरकार चाहती है कि यह योजना समय पर पूरी हो; लेकिन राज्य के निर्धारित प्रारूप में प्रस्ताव नहीं मिला।

उधर भाजपा विधायक संदीप शर्मा ने कहा केंद्र सरकार हर घर तथा जल पहुँचाने की योजना पर कार्य कर रही है। राजस्थान सरकार ने इस योजना में सहयोग नहीं किया, इस कारण प्रगति प्रभावित हुई। ईआरसीपी की कार्य योजना केंद्रीय जल आयोग की दिशा-निर्देशों के अनुसार बनाने में राज्य सरकार को क्या दि$क्क़त है। राज्य सरकार को इस मुद्दे पर राजनीति करने की बजाय हल निकालने में केंद्र सरकार का सहयोग करना चाहिए। इस मुद्दे के बहाने राज्य सरकार अपनी विफलताएँ छिपा रही है। 13 ज़िले के लोग राज्य सरकार के बहकावे में नहीं आएँगे।