यौनकर्मियों की त्रासदी

खुला देह व्यापार : कोलकाता हवाई अड्डे पर बिक्री के लिए सेक्स किसी कहानी के लिए एक आकर्षक शीर्षक है। लेकिन तहलका की विशेष जाँच टीम ने कैमरे में इसे तब क़ैद किया, जब कोरोना महामारी में हुई तालाबंदी के बाद सामान्य स्थिति लौट रही थी। यहाँ तक कि नाबालिग़ लड़कियों को मसाज और शारीरिक सम्बन्धों के लिए बुलाने वाले यात्रियों को लुभाने वाले दलालों के रूप में अवैध टैक्सी संचालक दोहरी भूमिका निभाते दिखते हैं। भारत में अपने स्तर पर वेश्यावृत्ति ग़ैर-क़ानूनी नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने 19 मई को वेश्यावृत्ति को एक पेशे के रूप में मान्यता देने और इस बात पर ज़ोर देने के लिए निर्देश दिया था कि किसी भी अन्य पेशेवरों की तरह यौनकर्मी भी गरिमा और संवैधानिक अधिकारों के हक़दार हैं। हालाँकि वेश्यालय चलाने के लिए सम्पत्ति को दलाली करने के लिए या फिर किराये पर देना अवैध है। यहाँ इस मामले में दलालों ने 14 और 15 वर्ष की आयु वर्ग की नाबालिग़ लड़कियों को तब सेक्स और मसाज के लिए भेजने की पेशकश की जब व्यवसायी के रूप में आये रिपोर्टर ने सवाल किया कि क्या वे उसे मसाज के लिए ले जा भी सकते हैं? ‘सभी के लिए।’

यह सब बेख़ौफ़ चल रहा है। जब सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फ़ैसला आया, तो एशिया के सबसे बड़े रेड-लाइट ज़िलों में से एक कोलकाता के सोनागाछी की तंग गलियों में यौनकर्मियों ने चेहरों पर रंग लगाकर और मिठाई बाँटकर ख़ुशी मनायी। यौनकर्मियों के कल्याण के लिए काम करने वाले एक ग़ैर-सरकारी संगठन, दरबार महिला समन्वय समिति की क़ानूनी अधिकारी महाश्वेता मुखर्जी ने कहा था कि संगठन के 27 साल के संघर्ष ने आख़िरकार फल दिया है। लेकिन ऐसा लगता है कि बहुत कुछ नहीं बदला है। यह अनुमान है कि भारत में 15-35 आयु वर्ग में लगभग 30 लाख यौनकर्मी हैं। इनमें अधिकांश नाबालिग़ लड़कियाँ हैं। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश सिर्फ़ पहला क़दम भर हैं। हालाँकि ग़रीबी, अभाव, भूख और असमानताओं से गम्भीर रूप से पीडि़त कई लोगों के लिए जीवित रहना सर्वोच्च प्राथमिकता है और मानवाधिकार और गरिमा उनके लिए इसके बाद की चीज़ें हैं।

ज़्यादातर महिलाएँ, जिन्होंने स्वेच्छा से या जबरन इस पेशे को चुना है; ग़रीब पृष्ठभूमि से हैं और उन्हें अपने परिवार का समर्थन करने के लिए इस पेशे में घसीटा जाता है। निश्चित ही देश के लिए यह शर्मनाक बात है। वेश्यावृत्ति कई शहरों में समान रूप से फैल गयी है। व्यस्त सड़कों और बाज़ारों में दिन से शाम तक देह व्यापार के लिए पिक-अप प्वॉइंट बन जाते हैं। और अब तो ऑनलाइन देह व्यापार के मामले भी सामने आ रहे हैं, जिन्हें सुलझाना पुलिस के लिए चुनौती बन गया है। पुलिसकर्मी भी यौनकर्मियों की त्रासदी को समझने की जगह उन्हें एक अपराधी के रूप में अधिक देखते हैं। यह हाशिये पर जाने का एक दुष्चक्र है, क्योंकि महिला वेश्याओं को नीची दृष्टि से देखा जाता है; जबकि वेश्यालयों में पैदा होने वाले बच्चों को भी स्कूलों में आसानी से स्वीकार नहीं किया जाता। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के मुताबिक, पुलिस को यौनकर्मियों की शिकायतों को गम्भीरता से लेना है; लेकिन पुलिस पर अक्सर लापरवाही के आरोप लगते रहते हैं। पुनर्वास, समान अधिकार और सुरक्षा सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों के मुख्य विषय प्रतीत होते थे। लेकिन यह खोजी रिपोर्ट एक बड़ा सवाल खड़ा करती है कि क्या वे सम्मान के साथ ज़िन्दगी जीने के अधिकारी नहीं?