योगी के लिए गली-गली में राजनीति

इस बार होली पर योगी समर्थकों ने उनकी जय-जयकार की

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के दोबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखने का सपना देखने वाले अब खुले रूप से उनके समर्थन में उतर रहे हैं। इस बार होली पर योगी आदित्यनाथ के समर्थकों की नारेबाज़ी और जय-जयकार में इसकी झलकी साफ़ दिखी। इस बार शहरों की ही नहीं, बल्कि गाँवों की गलियों में भी यह नज़ारा आम था। गौंटिया गाँव के रामदयाल कहते हैं कि 50 साल से ज़्यादा की उम्र से तो मैं देख रहा हूँ, कभी भी किसी भी पार्टी की जीत पर उसके नाम होली या दीवाली नहीं मनायी गयी। मगर इस बार होली पर ऐसा लग रहा था मानो योगी और मोदी ने ही होली की शुरुआत की हो। यह हमारे नौजवानों की समझ को क्या होता जा रहा है, जो यह भी भूल गये कि हमारे त्योहार हमारी संस्कृति का अटूट हिस्सा हैं, जिनका हमसे लाखों साल पुराना रिश्ता है। भला कोई त्योहार किसी नेता के नाम क्यों किया जाना चाहिए? जबकि इस देश में देवता पूजे जाते हैं; न कि कोई इंसान।

बरेली के सुभाषनगर के रहने वाले विजय शर्मा कहते हैं कि यह बदलाव की हवा है, जो लोगों को प्रभावित कर रही है। यह बात सही है कि त्योहार हमारी संस्कृति में बहुत पहले से हैं; लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई व्यक्तित्व इनको प्रभावित नहीं कर सकता। पहले भी लोग किसी-न-किसी से प्रभावित रहे हैं और अबके लोग भी मोदी और योगी से पूर्णत: प्रभावित हैं, इससे किसी को ऐतराज़ क्यों होना चाहिए।

इसी मोहल्ले के जयंत कुमार कहते हैं कि जब राजनीति और राजनेता लोगों के सिर पर सवार होने लगें, तो समझ लो कि पीढिय़ाँ बर्बादी की ओर जा रही हैं। आज अगर लोग अपनी चिन्ता छोडक़र नेताओं की जय-जयकार कर रहे हैं, तो इसका मतलब वे ख़ुद से बर्बाद होना चाहते हैं। यह ग़ुलामी की ही पहचान है। आज जो लोग नेताओं की विजयगाथा गा रहे हैं, उनके लिए नारेबाज़ी कर रहे हैं, ज़मीनी हक़ीक़त में उनके घरों की हालत बहुत बेहतर नहीं मिलेगी। चंद लोग जो राजनीति से बड़ा फ़ायदा उठा रहे हैं, उनके इशारे पर नाचने वाले बहुत समय तक नहीं नाच सकेंगे, अन्त में उन्हें रोटी और दाल के बारे में ही सोचना पड़ेगा। ठीक है कि प्रदेश में योगी की सरकार है, किसी-न-किसी की तो सरकार हर जगह होती ही है; मगर इसका मतलब यह नहीं कि हम भी उनके लिए पागल हो जाएँ। सरकार अपना काम कर रही है, हमें अपना काम करना चाहिए।

बरेली से सटे भिटौरा गाँव के मास्टर श्याम प्रसाद कहते हैं कि जब शिक्षा का अभाव होगा, तो यही होगा। दो साल से कोरोना-काल में जिस तरह पढ़ाई को पलीता लगा है, यह उसका असर है कि अब युवा पढ़ाई की चर्चा छोडक़र राजनीति की चर्चा करते दिख रहे हैं। हमारे ज़माने में यह उम्र अपने परिवार के काम में हाथ बँटाने और पढऩे की होती थी, उस समय अगर हम बड़ों के सामने चौपालों में बैठते थे, तो वो हमसे सवाल पूछते थे। जब कभी गाँव के दो-चार साथ पढऩे वाले बच्चे इकट्ठा होते थे, तो किताबों से बाहर की चर्चा तक नहीं होती थी। उसका नतीजा यह था कि अधिकतर बच्चे बड़े होकर सरकारी नौकर हो गये। अब न तो सरकारी नौकरियाँ हैं, न वो पढ़ाई है और न बच्चे अपने माँ-बाप से डरते हैं। घर में कितनी भी परेशानी हो, बच्चे बाहर यह दिखाना चाहते हैं कि उनके पास कोई कमी नहीं है।

बहुत बच्चे पढ़ाई की उम्र में ही नशा करने लगे हैं। त्योहारों पर तो इस संख्या का अंदाज़ा भी लग जाता है, बाक़ी समय वे छिपकर नशा करते हैं और माँ-बाप उनसे कुछ कहें, तो घरों से भाग जाते हैं। घर के काम में वे बच्चे ही हाथ बँटाते हैं, जो इन बातों को समझते हैं। सरकार को बच्चों की पढ़ाई को जल्द-से-जल्द सुचारू करना चाहिए, ताकि यह पीढ़ी और न भटक सके। शिक्षा ही इंसान को सभ्य बनाती है, अन्यथा तो इंसान भी एक पशु ही है।

जो भी हो, जब से प्रदेश में भापजा की प्रचंड जीत हुई है और योगी आदित्यनाथ दोबारा मुख्यमंत्री बने हैं, तबसे हर जगह ऐसे युवाओं, बच्चों और बड़ों की संख्या काफ़ी दिख रही है, जो योगी का गुणगान करते नहीं थक रहे। यह वो लोग हैं, जो योगी आदित्यनाथ को अभी से अपना भावी प्रधानमंत्री मानने लगे हैं।

हालाँकि इस भीड़ में वो लोग भी हैं, उनमें काफ़ी संख्या उनकी भी है, जो योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री तो देखना चाहते हैं, मगर प्रधानमंत्री के रूप में केवल और केवल नरेंद्र मोदी को ही पसन्द करते है। कई बार इन दोनों पक्षों के लोगों में इस मामले में मतभेद इस हद तक सामने आ जाते हैं कि बातचीत बहस में बदल जाती है। लेकिन अन्त में इस बात पर सहमति भी बनती दिखती है कि नरेंद्र मोदी के सेवानिवृत्ति के बाद प्रधानमंत्री आख़िरकार योगी ही बनेंगे। यह एक ऐसी राजनीतिक चिंगारी भडक़ी है, जिसे लेकर गली-गली में अब चर्चा होती दिख जाती है। योगी का जुनून लोगों के सिर पर इस क़दर सवार है कि इस होली में उनके चेहरे वाले मुखौटे लगाये रैलियाँ निकाली गयीं, कुछ लोग मोदी के मुखड़े में ही पहले की तरह दिखे। इन लोगों का मानना है कि मोदी बड़े भाई हैं, तो योगी छोटे भाई। यह बात तबसे ज़्यादा मान्य हो रही है, जबसे नरेंद्र मोदी को योगी आदित्यनाथ का हाथ पकडक़र ऊँचा किये हुए वाले पोस्टर जगह जगह चस्पा दिखायी दिये हैं।

इस बार की होली में होली की परम्परा के गीतों की जगह ज़्यादातर ऐसे गाने भी बजाये गये, जो योगी और मोदी के गुणगान में बनाये गये। इनमें ‘जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएँगे’, ‘यूपी में बाबा’, ‘बुलडोजर बाबा’, ‘योगी जी-जोगी जी’, ‘योगीरा सारारारा, मोदीरा सारारारा’ जैसे गाने ख़ूब चले।

यह उत्तर प्रदेश की नयी हवा है, जो संकेत देती है कि राजनीति में अब उसी का गुणगान होगा, जो शक्तिशाली होगा। साथ ही इस बात का भी इससे संकेत मिलता है कि राजनीति से अब कोई अछूता नहीं रह सकेगा। जो लोग राजनीति से दूर-दूर रहते हैं, उन्हें भी कभी-कभार बहस का हिस्सा बनते देखने से इस बात को दृढ़ता से कहा जा सकता है। इस प्रकार उत्तर प्रदेश के शहरों और गाँवों की गली-गली इन दिनों राजनीतिक चर्चाओं से गरम दिखती है।

कमुआ के नंदराम मास्टर कहते हैं कि राजनीति गली-गली में होने लगे, तो इसके दो ही मतलब हैं, या तो समाज पतन की ओर जा रहा है या फिर राजनीति में कोई बड़ा बदलाव होने वाला है। इन दिनों जो उत्तर प्रदेश में हो रहा है, उससे यह अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल है कि इन दोनों में से भविष्य में क्या होने वाला है, मगर कुछ-न-कुछ ज़रूर होना है। या तो दोनों ही काम एक साथ होंगे। वैसे दोनों के ही संकेत ज़्यादा दिखते हैं; क्योंकि आज के युवाओं के ज्ञान की जाँच करो, तो उनकी राजनीतिक समझ बहुत उथली और खोखली नज़र आती है। स्वामी विवेकानंद जी किसी देश की तरक़्क़ी और पतन का सबसे बड़ा साधन उसके युवाओं को मानते थे। यह बात पूरी तरह सत्य भी है। और आज के युवा किधर जा रहे हैं, यह हम सब अच्छी तरह जानते हैं।

बदलाव ज़रूरी है, बदलाव नहीं होगा, तो तरक़्क़ी के नये रास्ते नहीं खुलेंगे। लेकिन बदलाव बहते हुए पानी की तरह होना चाहिए, न कि रुके हुए पानी की तरह। क्योंकि बहता हुआ पानी ही स्वच्छ होता है, ठहरा हुआ पानी तो कुछ ही दिन में बदबू मारने लगता है। राजनीति में भी बदलाव होना चाहिए। पर वो सही दिशा में हो, तभी विकास होगा। अन्यथा राजनीति में अगर दिशाहीन बदलाव होगा, तो वह लोगों को दिशाहीन कर देगा।