यस बैंक : हरियाणा यूटिलिटी ने तोड़े थे नियम

हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम ने कर्मचारियों के 1000 करोड़ रुपये बैंक में कराये थे जमा

उत्तर प्रदेश पॉवर कॉर्पोरेशन लिमिटेड में काम करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों के 4122.70 करोड़ का भविष्य निधि गैर कानूनी तरीके से दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (डीएचएफसीएल) में निवेश किया गया है। हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम ने अपने कर्मचारियों के 1000 करोड़ रुपये से ज़्यादा यस बैंक के साथ मिलकर सभी निर्धारित मानदंडों के विपरीत निवेश कर दिये। यह राशि केवल एएए रेटिड संस्थानों मे जमा की जानी थी, जिससे कोष बढ़ सके और भविष्य निधि और पेंशन की देयता को पूरा किया जा सके।

यह पता चला है कि एचवीपीएन राशि यस बैंक के साथ मिलकर एक बचत बैंक में जमा कि गयी थी। एचवीपीएन ट्रस्ट के कर्मचारियों का मैनेजिंग प्रोविडेंट फंड का प्रबन्धन कर रहा था। यह निवेश एएए रेटिड संस्थान में किया जाना था, ताकि कोष बढ़ाया जा सके और भविष्य निधि और पेंशन की देयता को पूरा कर सके। पड़ताल में सामने आया कि यह राशि उस समय यस बैंक में जमा की गयी थी, जब निवेश के लिए साधन नहीं मिला था। लेकिन अब इसे यस बैंक में ब्लॉक कर दिया गया है।

यदि बचत बैंक खाते में कोई राशि पाँच से छ: महीने तक या उससे अधिक समय तक जमा रहती है, तो प्रोविडेंट फंड कमिश्नर आपत्ति जता सकता है। क्योंकि यह वित्त मंत्रालय के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करता है, क्योंकि सेविंग बैंक अकांउट एएए रेटेड नहीं है।

वी.एस. कुंदू, एसीएस और जीएमडीए के सीईओ ने इस बात की पुष्टि की है कि हाँ हमारे यस बैंक में एफडीआर हैं। हालाँकि, हमें आश्वासन दिया गया है कि हम इन्हें जल्द ही वापस ले सकते हैं। सूत्रों से यह भी पता चला है कि कुरुक्षेत्र के 100 करोड़ रुपये और गुरुग्राम मैट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी के 150 करोड़ रुपये यस बैंक में फँसे हुए हैं।

गौरतलब है कि मूडीज इनवेस्टर्स सर्विस ने बैंक की दीर्घकालिक और स्थानीय मुद्रा बैंक जमा राशि को बीए-3 (क्चड्ड३), विदेशी मुद्रा असुरक्षित एमटीएन प्रोग्राम रेटिंग (पी) 3 बीए-3 के रूप में रखा गया है। बेसलाइन क्रेडिट असेस्मेंट (बीसीए) और बीए-1 का बीसीए समायोजित, बीए-2 का दीर्घकालिक प्रतिपक्ष जोखिम मूल्यांकन सीआर आकलन और बीए-2 का दीर्घकालिक और विदेशी मुद्रा प्रतिपक्ष जोखिम मूल्यांकन (सीआरआर) है।  जब भारतीय रिजर्व बैंक ने कुछ समय पहले यस बैंक को जमाकर्ताओं के साथ एक महीने के लिए प्रति खाता 50,000 रुपये निकालने की सीमा तय की, तब मामला सामने आया।

इसके बाद हरियाणा सरकार ने सभी विभागों, बोर्डों, विश्वविद्यालयों और नगर निगम से यस बैंक सहित विभिन्न बैंकों में जमा धनराशि का विवरण माँगा है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने अधिस्थगन नियम के तहत यस बैंक को रखा, जिसमें जमाकर्ताओं के लिए नकद निकासी की सीमा 50,000 रुपये तक कर दी थी। हालाँकि बाद में यह शर्त हटा दी, जिसके लिए एसबीआई और 5 निजी बैंकों ने यस बैंक में निवेश किया। आरबीआई ने सरकार के साथ मिलकर जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा के लिए यह निर्णय लिया है। आरबीआई ने यस बैंक का बोर्ड हटा दिया है, जो पिछले छ: महीने की पूँजी उठाने में सक्षम नहीं था।

हालाँकि, अब यस बैंक री-ओपन हो चुका है। लेकिन जब बैंक के कथित डूबने से हड़कम्प मचा था, तब वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने ग्राहकों को यह भरोसा दिलाया था कि जर्माकर्ताओं की जमा राशि यस बैंक में सुरक्षित है। सवाल यह है कि कैसे सरकारी विभाग या स्वायत्त निकाय मौज़ूदा नियमों की अवहेलना कर सकते हैं, जिनको सिर्फ एएए रैंक रेटेड वित्तीय संस्थानों में ही पैसा जमा कराना था। स्वाभाविक रूप से कर्मचारी हैरान हैं। ऑल हरियाणा पॉवर कॉर्पोरेशन वर्कर यूनियन के प्रेसिडेंट ने कहा- ‘हम जानना चाहते हैं कि यस बैंक में कितनी राशि जमा है। हम अपनी राशि खोना नहीं चाहते, हम सरकार के रुख का इंतज़ार करने को तैयार हैं।’

गौरतलब है कि हरियाणा एकमात्र सरकार नहीं है, जिसने कर्मचारियों के फंड (पीएफ) को संदिग्ध तरीके से निवेश किया है। हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार को भी आलोचना का सामना करना पड़ा, जब उत्तर प्रदेश पॉवर कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने बिजली कर्मचारियों का 4122.70 करोड़ का भविष्य निधि गैर कानूनी तरीके से मुम्बई स्थित निजी आवास में सभी निर्धारित मानदंडों की अवहेलना कर निवेश किया था।

डीएचएफसीएल का गैंगस्टर दाऊद इब्राहिम के पूर्व सहयोगी इकबाल मिर्ची के साथ कथित सम्बन्ध काफी समय से सुॢखयों में भी था। जब डीएचएफसीएल प्रवर्तक पर प्रवर्तन निदेशालय ने शिकंजा कसा, तब यूपी सरकार ने यह मामला सीबीआई को सौंप दिया। यूपी पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने उस समय के तत्कालीन प्रबन्ध निदेशक एपी. मिश्रा, वित्त निदेशक सुधांशु द्विवेदी और जीपीएफ व सीपीएफ के पूर्व सचिव ट्रस्ट पीके. गुप्ता को गिरफ्तार किया।

ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने कहा- ‘यूपी सरकार जाँच कर इस साज़िश के पीछे के दोषियों का पता लगाये। खासतौर से जब इस साज़िश के पीछे दाऊद इब्राहिम और इकबाल मिर्ची की कम्पनी का नाम सामने आ रहा हो और ईडी डीएचएफएल के अधिकारियों के बीच कुछ पक रहा हो!’

क्या कहते हैं नियम?

 यह सब कैसे हो रहा है? यह तो एक रहस्य है। क्योंकि निदेशक, जनता उद्यम, भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम ने सभी मंत्रालय और विभागों के बीच संयुक्त संसदीय समिति की सिफारिशें प्रसारित की हैं। निदेशक ने लिखा है कि संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने अपनी रिपोर्ट में लिखा- ‘अनियमितता, प्रतिभूतियाँ और बैंक लेन-देन, यह सभी ऊपर लिखित क्षेत्रों की प्रस्तावित की गयी सिफारिशों पर सरकार ने विचार करके निर्णय लिया है।’

समिति द्वारा यह उल्लेखित किया गया था कि सरकार ने विदेशी बैंकों के साथ बैंकिंग लेन-देन करने के लिए सार्वजनिक उपक्रमों को अनुमति दी थी। लेकिन इसकी निगरानी ठीक तरीके से नहीं की गयी थी। जैसा कि सरकार ने निर्णय कर यह जारी किया है कि प्रशासनिक विशेष रूप से सार्वजनिक उपक्रम से निपटने वाले मंत्रालयों को सभी के पालन की निगरानी करनी होगी। पीएसयू को अनुपालन करने मे असमर्थता के मामले में प्रशासनिक मंत्रालय को रिपोर्ट करना चाहिए और राष्ट्रपति के निर्देश पर मंत्रालय निन्दा और प्रवर्तन पर विचार करेगा। सरकार ने इन सभी तथ्यों पर ध्यान दिया कि नीतियों और प्रतिक्रियाओं के बारे में समितियों के अवलोकन पर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के सम्बन्ध में उनके अधिशेष निधियों का निवेश कैसे हुआ, जब पीएसयू द्वारा फॉलो की जा रही नीतियों और प्रतिक्रियाओं में कई मामले संतुष्ट और दिशा-निर्देश के अनुकूल नहीं थे? प्रशासनिक मंत्रालय से अनुरोध किया जाता है कि वह सरकार की ज़िम्मेदारियों का सीमांकन करने के लिए उचित कार्यवाही करे उनके इन अलग-अलग मंत्रालयों, विभागों और साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के बोर्ड, निदेशक और उनके नामांकित निदेशक और शीर्ष अफसरों की निगरानी करे। समिति ने प्रश्न उठाया है कि दिशा-निर्देशों के कर्तव्य और ज़िम्मेदारियों का कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जाए। यह पीएसयू की प्राथमिकता है कि वह सरकार द्वारा दिये गये दिशा-निर्देशों का पालन करे। समिति ने सुझाव दिया है कि नीतियाँ स्पष्ट और पारदर्शी होनी चाहिए। प्रशासनिक मंत्रालयों से अनुरोध है कि विभिन्न प्रकार के पीएसयू अपने नियंत्रण में गंतव्य का संदेश देते हैं कि वे दिशा-निर्देशों का पालन करें। प्रशासनिक मंत्रालय से अनुरोध है कि वे अपने पीएसयू के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को आदेश दें कि इस प्रकार के फंड का निवेश पारदर्शी तो हो ही, साथ ही प्राधिकृत आधिकारी द्वारा लिया गया हो। इसके अलावा वह प्रत्यायोजित प्रधिकार से प्राप्त किया जाए और इस प्रकार के प्राधिकरण के कामकाज की निगरानी बोर्ड द्वारा की जाए।

प्रशासनिक मंत्रालय दिशा-निर्देश देने के लिए इच्छुक है कि सभी सार्वजनिक उपक्रमों के बोर्ड बिठाने के लिए निर्देश दिये गये हैं। अधिशेष निधियों के निवेश स्पष्ट नीतियों पर स्थापित करना, पारदर्शी प्रक्रियाएँ, प्राधिकरण के प्रतिनिधिमंडल की समीक्षा ये सभी बोर्ड को निर्धारित रिर्पोटिंग के साथ निवेश करें। प्रशासनिक मंत्रालयों और सार्वजनिक उद्यमों को यह सलाह दी जाती है कि वो सरकार द्वारा विभिन्न सिफारिशें, कार्यक्षेत्रों में दी गयी सलाह का पालन करें। बदले में मंत्रालय सख्त अनुपालन के लिए उद्यमों को उपयुक्त निर्देश जारी करे। स्पष्ट रूप से जब निर्देश और नियम लागू होते हैं, राज्य संस्थाएँ वित्तीय संस्थानों में निधि जमा करने का काम करती हैं, जो कि ऐसे निवेशों के लिए शत्-प्रतिशत सुरक्षित नहीं है।