मौत के सौदागर

जित दूध-दही का खाणा से विख्यात हरियाणा अब अन्य कुछ प्रदेशों की तरह शराब के मामले में कमोबेश कुख्यात हो रहा है। राज्य के सोनीपत और पानीपत ज़िलों में ज़हरीली शराब पीने से नवंबर के पहले सप्ताह तक 47 लोगों की मौत हो गयी। सोनीपत में जहाँ 37 लोगों ने दम तोड़ा, वहीं पड़ोसी ज़िले पानीपत में नौ लोग मौत के शिकार हो गये। शराब के ज़्यादा सेवन से कई मौतें तुरन्त हो गयीं, जबकि कुछ ने घर पहुँचकर दम तोड़ दिया। दर्ज़नों लोग इलाज़रत हुए। मरने वालों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ज़हरीले रसायन की पुष्टि हुई है। यह स्पष्ट संकेत है कि राज्य में सस्ती शराब के नाम पर लोगों को ज़हर बेचा जा रहा है। जितनी सस्ती शराब, उतनी ज़्यादा बिक्री।

राज्य में अवैध शराब का कारोबार करने वाले लोगों का मूल मंत्र चाँदी काटना है। उन्हें किसी की ज़िन्दगी से कोई सरोकार नहीं है। हरियाणा सरकार ने पंजाब में हुई शराब त्रासदी से कोई सबक नहीं लिया। तीन माह पहले वहाँ इसी तरह की रसायन युक्त शराब पीने से 130 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गयी थी। बाद में पुलिस ने छापेमारी के दौरान हज़ारों लीटर रसायन बरामद किया; जिसका शराब में इस्तेमाल किया जा रहा था। बता दें कि इस रसायन की ज़्यादा मात्रा से नशा देने वाली शराब ज़हर बन जाती है। स्टॉक रजिस्टर में हेरफेर करके थोक विक्रेता यह रसायन शराब माफिया को बेच रहे थे। लगभग तीन माह बाद अब यह घटना हरियाणा में हो गयी। इसे सरकार की पूरी तरह से नाकामी कहा जा सकता है।

अवैध शराब की बिक्री पर नज़र रखने वाला प्रदेश का आबकारी विभाग तीन-चार माह के दौरान दूसरी बार बिल्कुल नकारा साबित हुआ है। यह विभाग राज्य के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के पास है; जो शराब से ज़्यादा राजस्व के लिए तो कोशिश करते हैं, लेकिन शराब की तस्करी और अवैध शराब की बिक्री कैसे रुके? इससे अनभिज्ञ हैं। उन्होंने अब तक कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की है। पुलिस अपने तौर पर रुटीन की कार्रवाई कर रही है; जैसा कि हर बड़ी घटना के बाद हुआ करता है।

ज़हरीली शराब त्रासदी के लिए आबकारी विभाग के साथ पुलिस विभाग भी उतना ही ज़िम्मेदार है। सोनीपत की मयूर विहार, शास्त्री कॉलोनी और इंडियन कॉलोनियों में सबसे ज़्यादा मौते हुई हैं। क्या सम्भव है कि सम्बन्धित थाना क्षेत्र की पुलिस को पता ही नहीं कि अवैध शराब की बिक्री धड़ल्ले से हो रही है। जब आम लोगों को इसकी जानकारी है, तो भला पुलिस कैसे अनजान रह सकती है? सस्ती और आसानी से सुलभ अवैध शराब घर बैठे उपलब्ध होती है। पीने वाला जहाँ चाहे फोन के माध्यम से डिलीवरी ले सकता है। यह देसी शराब ठेकों पर मिलने वाली से बहुत सस्ती होती है; लिहाज़ा इसकी ब्रिक्री खूब होती है। इससे आँखें मूँदे रखने की एवज़ में धन्धा करने वाले आबकारी और पुलिस विभाग के लोगों को खुश रखते हैं। मतलब साफ है कि साँठगाँठ से धन्धा चोखा चलता आ रहा है। त्रासदी न होती, तो इसका खुलासा भी नहीं होता कि राज्य में अवैध शराब की बिक्री खूब हो रही है।

लॉकडाउन में करोड़ों रुपये की शराब सरकारी गोदामों से गायब हुई और महँगे दाम पर लोगों तक पहुँची। करोड़ों के वारे-न्यारे हो गये। खूब हो-हल्ला हुआ, तो सरकार ने वृहद स्तर पर जाँच और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की बात कही। लेकिन क्या हुआ? सरकार ने वरिष्ठ आईएएस टीसी गुप्ता की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय विशेष जाँच टीम (एसईटी) गठित की। लम्बी जाँच के बाद समिति ने रिपोर्ट पेश की, तो निष्कर्ष खोदा पहाड़ निकली चुहिया जैसा रहा। किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं, बल्कि आबकारी और पुलिस विभाग की निष्क्रियता का उल्लेख किया गया। कहाँ तो आरोप साबित होने पर संतरी से लेकर मंत्री तक कड़ी कार्रवाई की बात कही गयी, मगर रिपोर्ट में कोई भी नाम सामने नहीं आया। अगस्त में आयी रिपोर्ट के दौरान गृहमंत्री ने इस मामले में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से आबकारी आयुक्त शेखर विद्यार्थी और आईपीएस प्रतीक्षा गोदारा के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की थी।

ज़हरीली शराब त्रासदी में भी क्या सरकार वैसी ही कोई कार्रवाई करने वाली है? अवैध शराब का धन्धा अंतर्राज्यीय स्तर पर चलता है। इस गोरखधन्धे को चलाने वाले कोई छुटभैया नहीं होते, वे तो मोहरा मात्र होते हैं। इसे चलाने वाले ऊपर तक पहुँच रखते हैं। यह करोड़ों का खेल है, जिसमें किसी की ज़िन्दगी कोई मायने नहीं रखती और जान की कीमत कुछ भी नहीं होती। लगभग चार दर्ज़न लोगों की मौत की ज़िम्मेदारी आखिर किसकी है? निश्चित तौर पर सरकार की है; लेकिन वह कार्रवाई तो घटना के बाद कर रही है। जिस पुलिस को अब छापों के दौरान अवैध शराब बनाने की फैक्ट्रियाँ मिल रही हैं, वो पहले क्यों नहीं मिल रही थीं? ये फैक्ट्रियाँ कुछ दिनों में नहीं बनीं, बल्कि बरसों से चल रही थीं। साँठगाँठ से धन्धा चल रहा था; जो त्रासदी में उजागर हुआ।

 मृतकों में ज़्यादातर गरीब तबके के लोग हैं। शराब के आदी अधिकतर लोग ठेकों से नहीं, बल्कि बिचौलियों से नकली शराब खरीदते हैं। क्योंकि सस्ती होने के साथ इससे नशा भी ज़्यादा होता है। ज़हरीली शराब के सेवन से अपना भाई खो चुके शख्स के मुताबिक, पूरे राज्य की बात वह नहीं कहते, लेकिन सोनीपत ज़िले में अवैध शराब धड़ल्ले से बिकती है। कौन लोग यह काम कर रहे हैं? कहाँ इनका स्टाक रहता है? सभी को पता है। शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं होती और माफिया यह धन्धा बेधड़कचलाते हैं। अवैध शराब के धन्धे में लोगों का नेटवर्क इतना बड़ा है कि आप कहीं भी शराब मँगवा सकते हैं। ज़िले के गुमड़ गाँव में तीर्थ, जयपाल, प्रदीप, राकेश, सुरेंद्र, विक्रम और शेरा ज़हरीली शराब सेवन से दम तोड़ चुके हैं। पूरे गाँव में मातम का माहौल है। लोगों में आक्रोष है, जिसके चलते सड़क पर शव रख रास्ता जाम किया गया। सरकार ने मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख रुपये की आर्थिक मदद देने की घोषणा की है; लेकिन इससे लोगों का रोष कम नहीं हुआ है। वे भविष्य में ऐसा घटना न हो इसके लिए पुख्ता प्रबन्ध करने की माँग कर रहे हैं। कई परिवार हादसे के बाद बेसहारा हो गये हैं, आजीविका चलाने वाला कोई नहीं रहा।

 पुलिस ने दोनों ज़िलों में 20 से ज़्यादा प्राथमिकियाँ दर्ज करके दर्ज़न से ज़्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है। इतनी चुस्ती दिखाने वाली पुलिस काफी देर से जागी है। सोनीपत ज़िले में पहली मौत का मामला 2 नवंबर को आया। 3 नवंबर को ज़िले के बरोदा में उप चुनाव था; लिहाज़ा पूरे सरकारी तंत्र का ध्यान वहाँ था। इसके बाद तीन मौतें और हो गयीं। सभी मौतें एक ही वजह से हुईं। पीडि़तों के परिजनों को शराब के सेवन के बाद हालत बिगडऩे की जानकारी थी; लेकिन पुलिस के डर से उन्होंने अन्तिम संस्कार कर दिया।

3 नवंबर के बाद जब एक के बाद एक पीडि़त गम्भीर हालत में अस्पताल पहुँचने लगे और मौतों का सिलसिला बढऩे लगा, तब कहीं जाकर प्रशासन जागा। ज़िला उपायुक्त श्यामलाल पूनिया अस्पताल पहुँचे और पीडि़तों से मिले। अगर समय रहते शुरुआती मौत के बाद पुलिस सक्रिय हो जाती, तो शायद मौतों का आँकड़ा इतना न बढ़ता। ज़हरीली शराब सेवन करने वालों को पता ही नहीं चला कि शुरुआत में मरने वाले चार लोगों की मौत उसी से हुई है। बरोदा उप चुनाव की गहमागहमी में शासन-प्रशासन को पता ही नहीं चला कि लोगों की मौत किन कारणों से हो रही है?

सोनीपत की इंडियन कॉलोनी, शास्त्री विहार और मयूर विहार सभी थाने के दो किलोमीटर के दायरे में है। वहाँ बीट इंचार्ज को भी मौत की वजह का पता नहीं चल सका। कार्रवाई के नाम पर कोर्ट परिसर प्रभारी सुरेंद्र कुमार, मोहाना थाना प्रभारी श्रीभगवान और बीट इंचार्ज को निलंबित कर दिया गया है। पुलिस ने नरेश नामक व्यक्ति को पूरी घटना का मास्टर माइंड बताते हुए गिरफ्तार किया है। इनके अलावा अंकित और साहिल समेत दर्ज़न भर से ज़्यादा की गिरफ्तारी हुई है। आरोप है कि अवैध शराब की सप्लाई सरकारी ठेकों के माध्यम से भी होती है। पुलिस इसकी भी जाँच कर रही है। इसकी पुष्टि होती है, तो यह बहुत ही गम्भीर घटना मानी जाएगी। क्योंकि इससे भविष्य में ऐसी किसी त्रासदी को टालना मुश्किल होगा।

पानीपत ज़िले के धनसौली, नगलापार और राणामाजरा जैसे कई गाँवों में खुलेआम शराब बिकने के आरोप है। लोग करीब के ठेकों का विरोध करते हैं, वहीं शराब माफिया घरों तक शराब पहुँचा रहे हैं। सोनीपत के डीएसपी रविंद्र राव के मुताबिक, घटना के बाद से पुलिस ठोस कार्रवाई को अंजाम दे रही है। धन्धे से जुड़ी एक महिला समेत सात लोगों को तुरन्त गिरफ्तार किया गया है। जैसे-जैसे कडिय़ाँ जुड़ती जा रही हैं, गिरफ्तारियाँ हो रही हैं। इतने बड़े नेटवर्क के पीछे कौन है? इसका खुलासा तो जाँच पूरी होने के बाद ही चल सकेगा। पुलिस और आबकारी विभाग अब शराब माफिया से जुड़े लोगों की धरपकड़ और अवैध शराब के नेटवर्क को खत्म करने का दावा कर रहे हैं; लेकिन क्या हकीकत में वह ऐसा करने की क्षमता रखते हैं? माफिया और दोनों विभागों के इस दुष्चक्र को तोडऩा होगा, तभी भविष्य में ऐसी घटनाएँ रोकी जा सकती हैं।

अवैध शराब फैक्ट्रियाँ

शराब माफिया से जुड़े लोगों से पूछताछ के आधार पर आबकारी विभाग और मुख्यमंत्री उडऩदस्ते की ओर से गाँव ततारपुर और खरखौदा में अवैध शराब बनाने की इकाइयों (फैक्ट्रियों) का पता चला। वहाँ से भारी मात्रा में शराब में मिलाया जाने वाला रसायन, दो ड्रम शराब, हज़ारों बोतलों के ढक्कन और सील लगाने वाली मशीनें मिली हैं। बताया जा रहा है कि यहाँ बरसों से यह काम चल रहा था।

मृतकों में प्रवासी मज़दूर

मृतकों में स्थानीय लोगों के अलावा प्रवासी मज़दूर भी हैं। इनमें नौ परिवारों में कमाने वाला कोई नहीं रहा है। परिजनों का कहना है कि उनकी दुनिया उजड़ गयी। अब शायद उन्हें हरियाणा से पलायन ही करना होगा। शराब सेवन के बाद तीन दर्ज़न से ज़्यादा लोग गम्भीर हुए, जिनमें 18 स्थानीय और 13 अप्रवासी मज़दूर थे। बिहार से रमेश और दलेर चंद रोज़गार के लिए आये, लेकिन ज़हरीली शराब से जान गँवा बैठे।

अब तक शराब से मौतें

देश में ज़हरीली शराब से कमोबेश हर दो साल के अंतराल में किसी-न-किसी राज्य में हादसा होता रहा है। सन् 1978 से वर्ष नवंबर, 2020 तक 19 बड़े मामले सामने आये हैं। सबसे बड़ी घटना सन् 1981 के दौरान कर्नाटक में हुई, जहाँ ज़हरीली शराब सेवन से 308 लोग मौत के मुँह में समा गये थे। सन् 1978 में बिहार में 254, सन् 1981 कर्नाटक में 308, सन् 1982 में केरल में 77, सन् 1991 में दिल्ली में 199, सन् 1992 में ओडिशा में 200, कर्नाटक-तमिलनाडु में 180, सन् 2009 में गुजरात में 136 लोगों की मौत हुई। सन् 2011 में बंगाल में 167, सन् 2012 में ओडिशा में 29, सन् 2013 में उत्तर प्रदेश में 39, सन्  2015 में फिर पश्चिम बंगाल में 167, इसी वर्ष मुंबई (महाराष्ट्र) में 102 और सन् 2016 के दौरान बिहार में 16 लोग ज़हरीली शराब से मरे। 2019 में असम में 168 लोग, 2020 में पंजाब में 130 और अब इसी वर्ष नवंबर तक हरियाणा में 47 लोग ज़हरीली शराब के काल के ग्रास बने हैं।