मौत के खिलाडिय़ों को फाँसी

जयपुर सीरियल ब्लास्ट में 11 साल बाद मिला इंसाफ

आतंकवाद के नेटवर्क का भूगोल बदल रहा है। इसकी ताज़ा मिसाल 11 साल पहले राजस्थान की राजधानी जयपुर में देखने को मिली। दहशत की वो तारीख 13 मई, 2008 थी। ढलते सूरज के साथ ही जयपुर दहल उठा। 13 मिनट में हुए आठ बम विस्फोटों ने ऐसी चीख-पुकार मचायी कि संगदिल िकस्म के शख्स भी काँप गये। आरती से सजी थालियाँ ही नहीं उड़ीं, उन्हें उठाये हुए हाथ भी उड़ गये। आरती के स्वर आर्तनाद में बदल गये। बम विस्फोटों की जद में जो भी आया, अपंग हो गया अथवा जान गँवा बैठा। जयपुर के सबसे ज़्यादा रौनक वाले ठौर-ठिकाने धुएँ और आग की लपटों में घिर गये। मंदिरों और बाज़ारों का नज़ारा तो बुरी तरह खौफज़दा करने वाला था, जिसने 1993 के मुम्बई विस्फोटों के दर्दनाक मंज़र की यादें ताज़ा कर दीं। इस आतंकवादी हमले ने गुलाबीनगर के परकोटे की दीवारों को खून से सुर्ख कर दिया। आतंकवादियों के निशाने पर जयपुर के मुख्य हनुमान मंदिर चाँदपोल स्थित पूर्वामुखी और साँगानेरी गेट स्थित हनुमान मंदिर रहे। बम ब्लास्ट के छर्रों, भगदड़ और ज़बरदस्त अफरातफरी भी कइयों के लिए जानलेवा बनी। आतंक का कहर 80 लोगों को निगल गया। घायल हुए करीब 170 लोग आज भी अपंगता का अभिशाप भोग रहे हैं। शुक्रवार 20 दिसंबर को विशेष न्यायालय ने सिलसिलेवार बम धमाके में चार आतंकवादियों को मौत की सज़ा सुनायी। न्यायाधीश अजय कुमार शर्मा ने दोषियों को सज़ा का ऐलान करते हुए सबसे पहले सैफुर्रहमान को सज़ा सुनायी। फिर मोहम्मद सरवर, मोहम्मद सैफ और सलमान को अलग-अलग धाराओं में सज़ा सुनायी। न्यायालय ने सभी दोषियों को भा.द.स. की धारा-302 और धारा-16 (1) में मृत्युदंड से दंडित किया। न्यायाधीश ने चारों आरोपियों को बम प्लांट करने के लिए चार मामलों में जहाँ मुख्य तौर पर दोषी ठहराया। वहीं चार मामलों में बम रखने में सहयोग करने और आपराधिक षड्यंत्र रचने के लिए दंडित किया। चारों आरोपियों के चेहरों पर मृत्युदंड सरीखी सज़ा का लेशमात्र भी रंज नहीं था। इसके विपरीत अपनी दरिन्दगी पर वे हँसते-खिलखिलाते नज़र आये। उनका कहना था- ‘हम हाई कोर्ट में सज़ा को चुनौती देंगे।’ इस मामले में बरी किये गये शाहबाज की नज़ीर देते हुए उनका कहना था- ‘जिस आधार पर शाहबाज़ को बरी किया गया। उन्हीं में दूसरों को सज़ा मिली है। हम इसी तर्क पर हाई कोर्ट में अपील करेंगे।’ हालाँकि विशेष लोक अभियोजक श्रीचंद का कहना था कि न्यायालय ने दस्तावेज़ और साक्ष्यों के आधार पर फैसला किया है। इसमें कहीं कोई खामी नहीं है। उन्होंने कहा कि शाहबाज़ को बरी किये जाने के फैसले को हम हाईकोर्ट में चुनौती देंगे।

हालाँकि, इससे पहले 19 दिसंबर को मामले की सुनवाई के दौरान आरोपी दलीले देते गिड़गिड़ाते नज़र आये कि ‘हम प्रतिष्ठित परिवारों के हैं। हमारा कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है। लेकिन न्यायाधीश ने कहा- ‘अभी सज़ा के बिन्दु पर बहस है, जो अपील करनी है, हाई केार्ट में करना।’ अगले दिन अपने फैसले में न्यायाधीश अपने फैसले में लिखा कि अभियुक्तों के कम उम्र होने, स्टूडेंट होने या कुलीन परिवार का होने से छूट नहीं मिल जाती कि वे निर्दोष लोगों की हत्या करें। न्यायाधीश ने कहा कि इनका सम्बन्ध इंडिया मुजाहिदीन से होना पाया गया है। अभियुक्तों का अपराध विरल से विरलतम श्रेणी में आता है। ऐसे अपराध के लिए मृत्युदंड के अलावा और कोई दंड नहीं हो सकता। आतंक फैलाकर लोगों की हत्या करने वाले अभियुक्तों के जीवित रहने से समाज को खतरा है। इस मामले में एसआईटी की चार्जशीट का ब्यौरा खँगाले तो, मोहम्मद सैफ अपने आठ साथियों के साथ दिल्ली से ज़िन्दा बम थैलों में रखकर बस से जयपुर आया था। जयपुर में अलग-अलग जगह से नो साइकिलें खरीदी। बम पलांट करने के बाद इन्हें अलग-अलग जगह खड़ा किया। विस्फोटों का वीडियो बनाया और टैऊन से दिल्ली लौट गये। बेशक दोषी सज़ा पा गये, लेकिन ज़ख्मों की यह दर्दनाक तस्वीर जयपुर शायद ही भूल पाए।