मौत की बरसात

देश में बारिश-बाढ़ से तबाही का दौर जारी है। हिमाचल से लेकर केरल तक बारिश का कहर है। देश भर में यह रिपोर्ट लिखे जाने तक बारिश-बाढ़ से करीब 898 लोगों की जान जा चुकी है। केरल, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तराखंड, हिमाचल, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान में बाढ़ और बारिश का सबसे ज्यादा असर दिखा है।

केरल में भारी तबाही

केरल को 1924 के बाद की सबसे भंयकर बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है। उस समय बाढ़ में 1000 से ज़्यादा लोग मारे गए थे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस बाढ़़ में अब तक 167 लोग मारे जा चुके हैं और दो लाख से ज़्यादा लोग 1200 राहत शिविरों में रह रहे हैं। बचाव कार्य के लिए नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (एनडीआरएफ) की 12 अतिरिक्त टुकडिय़ां तैनात की गई हैं जिनमें 540 लोग हैं। ये उन 18 टुकडिय़ों से अतिरिक्त हैं जो पहले से वहां तैनात है। इस तरह एनडीआरएफ की 30 टुकडिय़ां वहां तैनात हैं। इनके अलावा थल सेना, जल सेना और वायु सेना के सैनिक भी लगातार बचाव कार्य में लगे हैं। आने वाले समय में एनडीआरएफ की 23 और टुकडिय़ां भी वहां भेजी जाएंगी। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों का दौरा किया।

केरल में बारिश का कहर जारी है। बाढ़ से केरल में यह रिपोर्ट लिखे जाने तक 79 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 85 हजार से ज्य़ादा लोग शरणार्थी शिविरों में पहुंचाए गए हैं। केरल के इतिहास में यह पहला अवसर है जब नदियों के उफान पर होने के कारण राज्य के मुल्लापेरियार समेत 35 बांधों के फाटक खोल दिए गए हैं। इससे पहले इडुक्की बांध के द्वार 1992 में खोले गए थे। मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन ने कहा कि भीषण बाढ़ से अब तक राज्य में 8,430 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है।

राज्य सरकार ने कहा है कि बाढ़ के खतरे को देखते हुए कोच्चि एयरपोर्ट 18 अगस्त तक बंद रहेगा। केरल में 28,000 हेक्टेयर खेती की जमीन बाढ़ के पानी में डूबी है, जिससे 1,80,000 किसानों को 680 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इसमें 310 करोड़ का नुकसान अलपुझा और कोट्टायम की रबड़ बेल्ट में 93 करोड़ रुपये का नुकसान शामिल है। अतिरप्पली, पोनमुढी और मन्नार समेत कई बड़े पर्यटन केंद्र बंद कर दिए गए हैं। कोच्चि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा परिसर में पानी घुस जाने के कारण उसे शनिवार तक बंद करने की घोषणा की गई है। इंडिगो, एयर इंडिया और स्पाइस जेट ने कोच्चि हवाई अड्डा से अपना परिचालन बंद करने की घोषणा की है। राज्य में बाढ़ का खतरा बना हुआ है। सभी 14 जिलों में अलर्ट जारी कर दिया गया है। कासरगोड से लेकर दक्षिण में तिरूवनंतपुरम तक सभी नदियां उफान पर हैं। खतरे की आशंका के मद्देनजर केरल के सभी स्कूलों को बंद रखने का ऐलान किया गया है। बाढ़ से 2100 से ज्य़ादा घरों को नुकसान पहुंचा है। राज्य में लोगों के लिए 718 राहत शिविर बनाए गए हैं। एनडीआरएफ की चार टीमें पुणे से केरल में काम कर रही हैं।

केरल के मुख्यमंत्री पिनारयी विजयन के मुताबिक भारी वर्षा अभी कुछ और दिन जारी रहेगी। स्थिति के बिगडऩे की आशंका बनी है। पूरे राज्य में डेढ़ लाख से ज्यादा लोग राहत शिविरों में रखे गए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने केरल के मुख्यमंत्री से 16 अगस्त को भी राज्य में बाढ़ के हालात को लेकर चर्चा की। प्रधानमंत्री ने सहायता का आश्वासन दिया है।

सूबे में ट्रेन सेवाएं बाधित हैं और सड़क परिवहन सेवाएं भी अस्तव्यस्त हैं। सड़कें पानी में डूब गई हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक कसारगोड को छोड़कर बाकी सभी जिलों में शैक्षणिक संस्थानों में छुट्टी की घोषणा कर दी गयी है। कॉलेजों और महाविद्यालयों की परीक्षाएं स्थगित की हैं।

सूबे के विभिन्न हिस्सों में विद्युत आपूर्ति, संचार प्रणाली, पेयजल आपूर्ति बाधित है। स्थिति के और गंभीर होने पर राज्य सरकार ने सेना, एनडीआरएफ और सैन्य इंजीनियरिंग की टीमों की मदद मांगी है।

उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश में बाढ़ का कहर जारी है। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक सूबे में 296 लोगों की जान जा चुकी है। उत्तर प्रदेश में भारी बारिश से जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त है। यूपी में कई जगह बाढ़ के हालत हैं। प्रमुख नदियां गंगा, घाघरा, राप्ती नदियों का जलस्तर खतरे के निशान को पार कर गयी हैं। कुशीनगर, बिजनौर, गोरखपुर, लखीमपुर खीरी, रायबरेली, मुरादाबाद और बस्ती जिलों में सबसे ज्य़ादा बारिश रेकार्ड की गयी है।

बाराबंकी में घाघरा नदी एल्गिन ब्रिज पर खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। घाघरा अयोध्या और फैजाबाद में भी खतरे के निशान से ऊपर है। बलिया के तुर्ती पार में भी नदी का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर है। वहीं रायबरेली में सई नदी खतरे के निशान से ऊपर चली गई है। राप्ती नदी बलरामपुर खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। बंसी सिद्धार्थनगर में भी राप्ती नदी चेतावनी बिंदु के ऊपर है। गंगा कानपुर देहात में चेतावनी बिंदु को पार कर गई है। फतेहगढ़, फर्रुखाबाद में भी गंगा नदी और बदायूं में भी कचला ब्रिज और कन्नौज में भी गंगा चेतावनी बिंदु से ऊपर बह रही है।

सरयू नदी में उफान है और करीब एक दर्जन गांव इसकी चपेट में हैं। गोंडा में घाघरा और सरयू नदियों का कहर भी जारी है। कर्नलगंज तहसील के कई गांव बाढ़ की चपेट में हैं जबकि तरबगंज तहसील में भी हजारों लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। आधिकारिक आंकड़ों की बात करें तो पहली जुलाई से अगस्त मध्य तक प्रदेश में 296 लोगों की जान बारिश-बाढ़ से जा चुकी है। यूपी राज्य आपदा प्रबंध प्राधिकरण इमरजेंसी ऑपरेशन परियोजना निदेशक अदिति उमराव के मुताबिक प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में लोगों को जान से हाथ धोने पड़े हैं और सरकारी और निजी सम्पति का भी नुक्सान हुआ है। उन्होंने कहा कि राज्य में 379 लोग घायल हो गए है। घर ढहने के कारण ही 209 लोगों की मौत हुई है, वहीं बिजली गिरने से 46, सांप के काटने से सात और बोरवेल में गिरने से दो लोगों अपनी जान गंवा चुके है। बाकी लोगों की मौत नदी- नालों में बह जाने से हुई है। राज्य में भारी बारिश के कारण अब तक 3001 मकान/भवन क्षतिग्रस्त हो चुके हैं।

बारिश ने सरकार के दावों की पोल भी खोली है। यहाँ तक की ड्रीम प्रोजेक्ट कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश का आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे भी बारिश के कहर से बच नहीं पाया। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के इस ड्रीम प्रोजेक्ट में जब फाइटर प्लेन उतारे गए थे तब देश भर में खूब वाह-वाह हुई थी। लेकिन पहली ही बरसात में एक्सप्रेस-वे की सर्विस लेन 50 फीट धंस गई। ज़मीन धंसने से इसकी चपेट में एक कार आ गई। हादसा आगरा के डौकी क्षेत्र में वाजिदपुर पुलिया पर हुआ। इस हाइवे को 22 महीने के रेकार्ड समय में तैयार गया था और इस पर करीब 13,200 करोड़ रुपए की लागत आई है। हाइवे पर कई जगह दरारें भी आ गई हैं। कई जगह पर सड़क के नीचे की मिट्‌टी धंस रही है। पिछले दिनों जब इसमें कार धंसी तो मौके पर पहुंची क्रेन से गाड़ी में फंसे लोगों को तो बाहर निकाल लिया गया लेकिन जब कार को निकालने का प्रयास किया गया तो क्रेन का पटा ही टूट गया। हादसे ने निर्माण कार्य की गुणवत्ता पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं।

उत्तर प्रदेश में तटवर्ती इलाकों में लोग दहशत में हैं और वे पलायन को मजबूर हो गए हैं। फसलें जलमग्न हो गई हैं। पश्चिमी उप्र में भी काफी नुक्सान हुआ है। बहराइच, गोंडा, बाराबंकी, बलरामपुर, श्रावस्ती, सीतापुर, लखीमपुर के गांव बाढ़ से घिरे हैं। मऊ, बलिया और आजमगढ़ में घाघरा उफान पर होने से कटान की भी स्थिति पैदा हो गई है जिससे तटवर्ती इलाकों में लोग अब पलायन करने लगे हैं। एनडीआरएफ की टीम राहत कार्य में जुटी है। सैकड़ों किसानों की खरीफ की फसलें नदी में समा चुकी हैं।

बुंदेलखंड और मध्य उत्तर प्रदेश के जिलों में भी नुक्सान हुआ है। उन्नाव में गंगा चेतावनी बिंदु के करीब बह रही है। हमीरपुर में यमुना और बेतवा का जलस्तर भी बारिश के साथ बढ़ता रहा है। प्रतापगढ़, कौशांबी और पूर्वांचल में नुक्सान हुआ है जबकि सोनभद्र, मीरजापुर और चंदौली में नदी नालों में उफान से लोग मुश्किल जीवन जी रहे हैं। अभी तक यही देखा गया है कि एनडीआरएफ की टीमें भी कई जगह मज़बूर हो कर हाथ खड़े कर चुकी हैं।

मूसलाधार बारिश की वजह से कर्नाटक के जलाशयों में जलजमाव का स्तर बढ़ता जा रहा है। इससे बाढ़ की स्थिति भयावह होती जा रही है। चेरुथोनी डैम के दो और गेट खोल दिए गए हैं ताकि इड्डुकी जलाशय में पानी का दबाव कम हो। खराब मौसम की वजह से राज्य के इड्डुकी, वायनाड़, पल्लकड़, एर्नाकुलम, कोझीकोड़, मालापुरम और कोलम आदि इलाकों में स्कूल-कॉलेजों को बंद कर दिया गया है। राज्य के कई इलाकों में बचाव कार्य और क्षतिग्रस्त सड़कों के निर्माण के लिए सेना को तैनात किया गया है। राहत शिविरों में ठहरे हुए लोगों के लिए दवा और भोजन के इंतजाम किए जा रहे हैं।  तमिलनाडु में भी बाढ़ की आशंका से प्रशासन सचेत है। मेट्टूर का स्टैनली जलाशय 120 फुट की अपनी पूरी क्षमता तक भर चुका है, जिसके बाद राज्य के 12 जिलों में बाढ़ का अलर्ट जारी किया गया है।

तमिलनाडु के सालेम, इरोड, नमक्कल, करूर, त्रिची, तंजावुर, थिरुवरूर, नागपट्टनम, कुडडालोर, पुडुक्कोट्टाई, पेरम्बलूर और अरियालूर जिले में बाढ़ की चेतावनी जारी की गई है। मेट्टूर बांध का निर्माण 1934 में किया गया था और यह अब तक 40 बार अपनी पूरी क्षमता तक भर चुका है। गौरतलब है कि केरल में बारिश लोगों पर कहर बनकर टूट रही है। पिछले 40 साल में यहां सबसे भीषण बाढ़ देखी गई है। 8 जिले बाढ़ की चपेट में है।

सेना, नेवी से लेकर एनडीआरएफ राहत कार्य में लगे हुए हैं। कर्नाटक के काबिनी और कृष्णा सागर बांध के डूब इलाकों में भारी बारिश की वजह से तमिलनाडु के मेट्टूर बांध में भी बहुत ज्य़ादा पानी पहुंच रहा है। राज्य सरकार ने निचले इलाकों में रहने वाले लोगों को वहां से खाली कर कहीं और जाने का सुझाव दिया है। लोगों को यह चेतावनी भी दी गई है कि वे मछली पकडऩे, तैराकी या अन्य किसी भी गतिविधि के लिए कावेरी नदी में न जाएं।

अन्य राज्य

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में खीरगाड़ नदी ने भारी तबाही मचाई है। उत्तराखंड में गंगोत्री नेशनल हाइवे भारी बारिश के चलते बार-बार बंद करना पड़ा है। भूस्खलन से कई जगह सरकारी और निजी सम्पति का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है। प्रदेश में अब तक 72 लोगों की जान जा चुकी है।

मध्य प्रदेश में भारी बारिश जबलपुर, सतना, भोपाल, होशंगाबाद, उज्जैन, रतलाम जबकि राजस्थान के कोटा, बूंदी, और झालावाड़ में बहुत नुक्सान हुआ है। उधर सूबे के जैसलमर, बाड़मेर, बीकानेर सहित पश्चिम राजस्थान में भी बारिश हुई है। पिछले सालों में यहाँ ज्य़ादा बारिश नहीं देखी गयी है। वैसे मौसम विभाग के मुताबिक बिहार में अब तक वर्षा सामान्य से 15 और उत्तर प्रदेश में 7 प्रतिशत कम हुई है। दोनों राज्यों में मॉनसून अगस्त मध्य से हरकत में आएगा और पटना, लखनऊ, आगरा में अच्छी बारिश होगी।

हरियाणा में भी बारिश के काफी नुक्सान हुआ है। कई जगह खेती की ज़मीन बाढ़ में बह गयी है। घरों और अन्य सम्पति को भी नुक्सान हुआ है।

बारिश पहाड़ी सूबे हिमाचल में बड़ी तबाही लेकर आई है। 26 लोगों की जान चली गयी है और प्रदेश के 6 नेशनल हाईवे चंडीगढ़-शिमला, चंडीगढ़-मनाली और पठानकोट-पालमपुर यह रिपोर्ट लिखे जाने तक बंद थे। प्रदेश में अब तक 812 करोड़ रूपये के नुक्सान का आकलन किया गया है। स्कूल बंद रखने के आदेश सरकार ने दिए हैं। टोल फ्री नम्बर 1077 स्थापित किया गया है ताकि वर्षा के कारण हुए नुकसान पूर्वनुमान की सूचना उपलब्ध करवाई जा सके।

प्रदेश में भू-स्खलन के कारण 923 सड़कें अवरूद्ध हैं, जिनमें 6 राष्ट्रीय उच्च मार्ग भी शामिल हैं। मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने प्रदेश में भारी वर्षा के कारण उत्पन्न स्थिति की समीक्षा के लिए वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक तलब की और हालात का जायजा लिया। मुख्यमंत्री ने राज्य उच्च मार्गों और राष्ट्रीय उच्च मार्गों पर भू-स्खलन से निपटने के लिए अधिकारियों को तत्काल श्रमशक्ति और मशीनरी तैनात करने के निर्देश दिए ताकि लोगों को किसी प्रकार की कठिनाई का सामना न करना पड़े। प्रदेश सरकार ने बचाव, बहाली और पुनर्वास कार्यों के लिए 96.50 करोड़ रुपये की राशि जारी की है। प्रदेश में भारी बारिश के कारण 812 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। प्रदेश सरकार ने पुन:स्थापन कार्य के लिए अभी तक 229 करोड़ रुपये जारी किए हैं।

राज्य मुख्यालय पर प्राप्त सूचना के अनुसार अब तक विभिन्न जिलों से 26 व्यक्तियों की मृत्यु की खबर है । प्रभावित परिवारों को जिला प्रशासन के माध्यम से अंतरिम राहत प्रदान की गई है। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को सड़कों के अवरूद्ध होने के कारण सेब की ढुलाई में किसी प्रकार की बाधा नहीं आना सुनिश्चित बनाने के भी निर्देश दिए हैं। उन्होंने लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों को सेब उत्पादक क्षेत्रों में अवरूद्ध सड़कों को तत्काल बहाल करने के भी निर्देश दिए। मुख्य सचिव विनीत चौधरी ने उपायुक्तों को खराब मौसम के पूर्वानुमान के दृष्टिगत विद्यार्थियों की सुरक्षा के लिए शिक्षण संस्थानों को 14 अगस्त को बंद करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने उपायुक्तों को सैलानियों और स्थानीय लोगों को नदियों के किनारे नहीं जाने देने के लिए कदम उठाने और ट्रैकिंग गतिविधियों पर नजर रखने के भी निर्देश दिए हैं । उन्होंने कहा कि सड़कों, जल और विद्युत आपूर्ति की बहाली के लिए पर्याप्त श्रमशक्ति और मशीनरी तैनात की गई है और उपायुक्तों और सम्बन्धित विभागों को धनराशि जारी कर दी गई है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के किसी भी हिस्से में आवश्यक खाद्य सामग्री की कोई भी कमी नहीं है।

अतिरिक्त मुख्य सचिव राजस्व और लोक निर्माण मनीषा नंदा ने कहा कि प्रदेश में भू-स्खलन के कारण 923 सड़कें अवरूद्ध हैं, जिनमें 6 राष्ट्रीय उच्च मार्ग भी शामिल हैं। विभाग इन सड़कों को शीघ्रातिशीघ्र खोलने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि बचाव और राहत कार्यों के लिए पर्याप्त धनराशि उपलब्ध है और अगर आवश्यक हो तो उपायुक्त सड़कों को बहाल करने और अन्य कार्यों के लिए स्थानीय स्तर पर भी मशीनरी किराये पर ले सकते हैं।

उपायुक्त कुल्लू ने बताया कि मनाली राष्ट्रीय उच्च मार्ग भू-स्खलन के कारण अवरूद्ध है और इस मार्ग को खोलने के लिए युद्धस्तर पर कार्य चल रहा है।  भारी बारिश से नदियों में जल स्तर बढऩे के साथ ही गाद भी बढ़ गयी है। इसका असर बिजली उत्पादन पर पड़ रहा है। सतुलज नदी जलग्रहण क्षेत्र में भारी वर्षा से सतलुज नदी में गाद का स्तर इतना बढ़ गया है कि नदी पर बनी 1500 मेगावाट की नाथपा झाकड़ी पनविद्युत परियोजना, 1000 मेगावाट की कड़छम वांगतू पनविद्युत परियोजना और 412 मेगावाट की रामपुर पनविद्युत परियोजना में बिजली उत्पादन ठप हो गया है। जानकारी के मुताबिक सतलुज नदी में गाद का स्तर 20 हजार पीपीएम से ऊपर पहुंच गया है। इसके चलते इन तीनों ही बड़ी परियोजनाओं में बिजली उत्पादन बंद कर दिया गया है ताकि टरबाईन को कोई नुकसान न हो। अब इन बिजली परियोजनाओं में फिर से उत्पादन शुरू होने के लिए गाद का स्तर 5 हजार पीपीएम से नीचे आना जरूरी है। इन 3 बड़ी पनविद्युत परियोजनाओं में बिजली उत्पादन ठप हो जाने से देश के 9 उत्तरी राज्यों हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड और चंडीगढ़ में बिजली आपूर्ति प्रभावित होगी। बिजली उत्पादन ठप होने से हिमाचल को हर रोज रॉयल्टी के रूप में करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है।

दरकते पहाड़

हिमाचल बेहाल है। जहाँ-तहाँ पहाड़ दरक रहे हैं। पर्यावरण का बंटाधार करने के गंभीर नतीजे सामने आने लगे हैं। कहीं राष्ट्रीय राजमार्गों तो कहीं दूसरे विकास के नाम पर जंगल के जंगल तबाह कर दिए गए और अब प्रकृति का भीवत्स रूप सामने है। प्रदेश के चार बड़े राष्ट्रीय और राज्य मार्ग हर दूसरे दिन मलबा गिरने से बंद हो जाते हैं और मुसीबत झेलनी पड़ती है स्थानीय लोगों या पर्यटकों को। सरकार का आपदा प्रबंधन भी इस मुसीबत के सामने पंगु नजर आता है।  पर्यटकों के लिहाज से अहम् चंडीगढ़-मंडी-मनाली नेशनल हाईवे पिछले एक महीने में दर्जन बार बंद हो चुका है। बार-बार रास्ता बंद होने से वाहनों की लंबी कतार लग जाती है और यात्री-पर्यटक घंटों बीच में बेहाली की हालत में फंसे रहते हैं। इनमें छोटे बच्चो से लेकर बूढ़े-जवान सब शामिल हैं। कई बार तो खाने के लाले तक पड़ जाते हैं। पूरे बरसात मौसम में हर साल इस पहाड़ी सूबे में अरबों की सरकारी और निजी सम्पति तबाह हो जाती है। इसमें बड़ा हाथ सालों से बेदर्दी से कट रहे पेड़ हैं। दसियों की मौत पहाड़ों से पत्थर, मलबा गिरने से हो जाती है। लेकिन इस से बड़ी चुनौती भविष्य की है। जो हालत पहाड़ों की हो गयी है (देखें फोटो) उससे साफ़ जाहिर हो जाता है कि आने वाले कुछ ही सालों में हमें पेड़ काटने और बिना भविष्य की चिंता किये अंधाधुंध विकास की बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। विस्फोटकों के इस्तेमाल और लगातार खुदाई से पहाड़ कमजोर हो गए हैं। खासकर सभी राष्ट्रीय राजमार्गों और राज्य मार्गो से।

परवाणू-शिमला नेशनल हाईवे के फोरलेन बनने के काम में अब तक हज़ारों पेड़ों की बलि दी जा चुकी है। अभी तो 35 प्रतिशत काम ही हुआ है। उसमें भी पहाडिय़ां लगातार खिसक रही हैं। निर्धारित कौण ज्यादा भीतर तक पहाडिय़ां दरक चुकी हैं। इस हाईवे पर पिछली तीन-चार बरसात से हर रोज मलबा नीचे गिर रहा है। कई बार घंटों हाईवे बंद रहता है या उस पर लंबा जाम लग जाता है। जब खुलता है तब भी खतरा बना रहता है कि पता नहीं कब ऊपर से मलबा मौत बनकर आ गिरे।

इस हाईवे से हर रोज हज़ारों वाहन गुजरते हैं जिनमें बड़ी संख्या में पर्यटक वाहन भी शामिल हैं। सोलन और परवाणू के बीच पिछले चार साल से हाईवे फोरलेन करने का काम चल रहा है जिसमें अभी भी बहुत काम बाकी है। सोलन-शिमला के बीच अभी बहुत छोटे हिस्से में ही काम शुरू हुआ है। इसमें उतनी दिक्कत अभी नहीं है जितनी सोलन-परवाणू के बीच है।  दूसरे सेब का सीजन शुरू होने से यहाँ ट्रैफिक में खासी बढ़ोतरी हो जाती है। इससे लम्बे जाम लगते हैं। कई बार तो बस का जो सफर परवाणू-शिमला के बीच 3 घंटे का होता है वह 6-7 घंटे का हो जाता है। इस इलाके में फॉर लेन के कारण बड़ी तादाद में पेड़ काटे गए हैं। सोलन में दुकान करने वाले सुभाष चंद ने बताया कि फोरलेन का काम शुरू होने से पहले आम तौर पर सड़क पर जाम या लहासा (मलवा) गिरने की घटनाएं नहीं होती थीं। अब तो आये दिन यहाँ जाम लगते हैं और पहाड़ से मलबा गिरने की घटनाएं होती हैं।  यही हाल मंडी-कुल्लू-मनाली नेशनल हाईवे (एनएच 71) का है। पंडोह से हणोगी और ओट मार्ग बहुत संवेदनशील है जहाँ कभी भी पहाड़ दरक जाता है। यहाँ पिछले सालों में बड़े हादसे हो चुके हैं। पूरा पहाड़ खोदने से कमजोर हो चुका है। इस मार्ग पर बड़ी संख्या में पेड़ कटे हैं। पूरा रास्ता संवेदनशील पहाड़ के नीचे है और पता नहीं चलता बरसात में कब पहाड़ी नीचे आ गिरे। इसके अलावा प्रदेश में केंद्र की योजनाओं के दर्जनों मार्ग हैं जहाँ पेड़ों की बलि बड़े पैमाने पर दी गयी है। राज्य मार्गों को चौड़ा करने का भी काम चल रहा है। पिछले सालों में प्रदेश के लिए दर्जनों मार्ग केंद्र से मंजूर हुए हैं। यह सही है कि लोगों की ज़रुरत सड़क पहुँचाने की रही है लेकिन यह भी सच है कि पेड़ों के काटने से जो नुक्सान हुआ है उसने लोगों की ही जि़ंदगी नरक बनाई है।  प्रदेश पर्यावरण और खेल संस्था के संयोजक और विधायक विक्रमादित्य सिंह कहते हैं कि पहाड़ी सूबे में जैसे सड़कें लोगों की जीवन रेखा हैं वैसे ही पेड़ भी हैं। पेड़ों का संरक्षण हर हालत में होना चाहिए। यदि ज़रुरत में पेड़ काटने ही पड़ें तो क्षेत्र में उससे दोगुने पेड़ लगाने का प्रावधान होना चाहिए और उनका संरक्षण भी करना चाहिए ताकि वो बर्बाद न हो जाएँ।