मोदी के बाद, गुजरात…

modiदेश की बड़ी आबादी इन दिनों गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने, न बनने को लेकर चर्चा में मशगूल है. गुजरात में भी मोदी के पीएम बनने, न बनने की चर्चा तो है, लेकिन वहां की राजनीतिक चर्चाओं में एक और सवाल पर खूब बहस हो रही है. सवाल यह है कि अगर मोदी प्रधानमंत्री बनने में सफल हो जाते हैं तो फिर गुजरात की कमान किसके हाथों में होगी?  मोदी के बाद कौन मुख्यमंत्री होगा?

मोदी के बाद मुख्यमंत्री बनने की कतार में वैसे तो कई नेता हैं, लेकिन इनमें सबसे आगे हैं प्रदेश की राजस्व मंत्री आनंदीबेन पटेल. गुजरात में इस बात की भी चर्चा जोरों पर है कि कैसे पिछले कुछ समय से मोदी ने भी आनंदी को अपने उत्तराधिकारी के तौर पर तैयार किया है. नौकरशाही और प्रशासन पर अपनी बेहद मजबूत पकड़ रखने और सक्षम प्रशासक की छवि वाली आनंदी बेन फिलहाल राजस्व, सूखा राहत, भूमि सुधार, शहरी विकास सहित कई विभागों की जिम्मेदारी संभाल रही हैं. वे गुजरात में 1998 से लेकर आज तक लगातार कैबिनेट मंत्री रही हैं. राज्य के वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक देवेंद्र पटेल कहते हैं, ‘मोदी के बाद आनंदी बेन के ही मुख्यमंत्री बनने की सबसे अधिक संभावना है. वे वरिष्ठ तो हैं ही साथ में मोदी की विश्वासपात्र भी हैं.’

संघ के दिनों से मोदी की बेहद करीबी रहीं आनंदीबेन उस उथलपुथल के दौर में भी मोदी के साथ रहीं जब उनको 1986 में केशुभाई पटेल और तत्कालीन संगठन मंत्री संजय जोशी के कारण गुजरात से बाहर जाना पड़ा. मोदी के इस बुरे राजनीतिक दौर में अमित शाह की तरह आनंदी बेन गुजरात में मोदी की वापसी के लिए फील्डिंग सजाती रहीं. मोदी के हर उतार-चढ़ाव वाले समय में वे उनके साथ रहीं.दोनों के बीच इतने घनिष्ठ संबंध हैं कि आनंदी बेन पटेल के पति मफतलाल पटेल, जिनसे वे पिछले 25 सालों से अलग रह रही हैं, ने कई बार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी से लेकर संघ के वरिष्ठ नेताओं को ऐसी चिट्ठियां भेजीं जिनमें उन्होंने मोदी पर आरोप लगाया कि मोदी ने उनकी पत्नी को उनसे छीन लिया है. उनका आरोप था कि उनकी पत्नी मोदी के प्रभाव की इस कदर शिकार हैं कि उन्हें अपने पति की चिंता नहीं है. अपनी चिट्ठियों में मफतलाल इन नेताओं से हस्तक्षेप करके मोदी के कब्जे से आनंदी को निकालने की विनती करते. इन चिट्ठियों के साथ ही राज्य में समय-समय पर तमाम पोस्टर-बैनर और हैंडबिल भी इसी विषय पर कई बार दिखाई दिए.

तेजतर्रार वक्ता आनंदी बेन के पक्ष में जाने वाली कई बातों में मोदी के बेहद करीबी और प्रदेश के पूर्व गृह राज्य मंत्री अमित शाह का राज्य से बाहर जाना भी शामिल है. जानकार बताते हैं कि मोदी के निकटतम होने की होड़ में इन दोनों का शीत युद्ध चलता रहता था. लेकिन अब शाह बतौर यूपी का प्रभारी बनकर प्रदेश से बाहर आ चुके हैं और इस बात की तरफ सूत्र भी इशारा करते हैं कि मोदी के केंद्र में आने की स्थिति में वे मोदी के साथ केंद्र में ही रहेंगे. ऐसे में अब गुजरात में आनंदी बेन के पास खुला मैदान है. एबीपी न्यूज से जुड़े प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार बृजेश सिंह कहते हैं, ‘अगर अमित शाह प्रदेश में होते तो फिर आनंदी के लिए रास्ता बेहद कठिन हो जाता. लेकिन शाह के बाहर होने की स्थिति में तो अब उनके सामने कोई चुनौती नहीं है.’

हालांकि अहमदाबाद के मोहनीबा कन्या विद्यालय की इस पूर्व प्रधानाध्यापिका को कुछ चीजें पीछे भी धकेलती दिखती हैं जैसे उनका सख्त मिजाज. साफ सुथरी छवि वाली आनंदी बेन अपने सख्त व्यवहार के कारण काफी चर्चित रहती हैं. भाजपा के एक स्थानीय नेता कहते हैं, ‘उनके इस स्वभाव के कारण जहां प्रदेश की नौकरशाही उनके सामने शीर्षासन की मुद्रा में रहती है, वहीं कार्यकर्ता उनसे खफा रहते हैं. उनकी पहचान एक ऐसे नेता के रूप में है जिससे कार्यकर्ता कोई सिफारिश लगाने के लिए भी घबराते हैं. अनुचित सिफारिश लेकर जाने पर पूर्व में वे कई कार्यकर्ताओं को डांट-फटकार कर अपने कार्यालय से बाहर निकाल चुकी हैं. वे बाकी नेताओं की तरह पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ घुलती-मिलती नहीं है. ’  बृजेश सिंह कहते हैं, ‘ यह सही है कि आनंदी बेन कार्यकर्ताओं के बीच अलोकप्रिय हैं. लेकिन पिछले कुछ समय से उन्हें मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में जरूर प्रोजेक्ट किया जा रहा है. पिछले कुछ सालों में प्रदेश में मोदी के अलावा किसी नेता की अलग पहचान बनी या बनाई गई है तो वे आनंदी बेन ही हैं. बिना मोदी की तस्वीर के गुजरात में शायद ही कोई होर्डिंग ऐसा दिखाई दे जिसमें प्रदेश के किसी और नेता या मंत्री की तस्वीर हो. लेकिन कुछ समय में आनंदी ही ऐसी नेता बनकर उभरी हैं जिनकी अकेली तस्वीर के साथ कई होर्डिंग्स विभिन्न क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं.’

कार्यकर्ताओं से कटे होने या उनके बीच अलोकप्रिय होने के अलावा आनंदी के बारे में ये भी कहा जाता है कि उनका राज्य में कोई जमीनी आधार नहीं है. पटेल कहते हैं, ‘ ऐसा लोग कहते हैं कि वे कार्यकर्ताओं के बीच लोकप्रिय नहीं है, उनका मास बेस नहीं है. लेकिन इस तथ्य का आप क्या करेंगे कि पिछला चुनाव आनंदी ने एक लाख से ज्यादा मतों से जीता था.’

नितिन पटेल
मुख्यमंत्री पद की दावेदारी में आनंदी बेन के बाद दूसरा नाम प्रदेश के 56 वर्षीय वित्त मंत्री नितिन पटेल का है. हाल ही में नितिन उस समय खास तौर पर गुजरात में चर्चा में आए जब मोदी की अनुपस्थिति में उन्होंने दो बार कैबिनेट की बैठक ली. यह मोदी के गुजरात के 12 साल के कार्यकाल में पहली बार था कि मोदी के अलावा किसी और ने कैबिनेट की बैठक ली हो. मोदी द्वारा सरकार के प्रवक्ता बनाए गए और शासन में औपचारिक तौर पर नंबर दो का स्थान रखने वाले नितिन को राजनीति और प्रशासन का काफी अनुभव है. गुजरात में भाजपा की 1995 में बनने वाली पहली सरकार में बतौर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री काम करने वाले नितिन 2002-2007 को छोड़कर 1990 से ही राज्य विधानसभा के लगातार सदस्य हैं. फिलहाल उनके पास वित्त, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा, परिवार कल्याण और परिवहन विभाग की कमान है. उनका राज्य की सबसे ताकतवर लॉबी तेल उत्पादकों पर काफी प्रभाव माना जाता है. प्रदेश के पटेल मतदाताओं के बीच अच्छी पकड़ रखने वाले नितिन पार्टी कार्यकर्ताओं में भी काफी लोकप्रिय हैं. साथ ही संघ के भी वे काफी चहेते रहे हैं. एक कमजोरी उनमें यही बताई जाती है कि पटेल समुदाय के बाहर उनकी खास पकड़ नहीं है.

सौरभ पटेल
प्रदेश के 54 वर्षीय ऊर्जा मंत्री सौरभ पटेल वह चेहरा हैं जो गुजरात में आने वाले विदेशी निवेशों का सूत्रधार माना जाता है. बेहद चर्चित और गुजरात सरकार के सबसे बड़े ब्रांड वाइब्रेंट गुजरात समिट को शुरू करने और उसके सफलता पूर्वक संचालन का श्रेय सौरभ को ही दिया जाता है. गुजरात के जिस बिजली क्षेत्र का मोदी पूरे देश में बखान करना नहीं भूलते उसमें क्रांतिकारी सुधार का श्रेय भी उन्हें दिया जाता है. गुजरात की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मार्केटिंग और विदेशी निवेश को राज्य में लाने की जिम्मेदारी संभालने वाले सौरभ पटेल हाल में अंबानी कनेक्शन के कारण काफी चर्चा में रहे.

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अमेरिका से एमबीए की पढ़ाई करने वाले सौरभ शुरू से ही मोदी के वफादार रहे हैं. 1998 से राज्य विधानसभा के सदस्य रहे सौरभ 2001 में केशुभाई पटेल के हाथों से राज्य की सत्ता जाने के बाद से ही मोदी कैबिनेट में हैं. विभिन्न मंत्रालयों के मंत्री रहे पटेल का राजनीतिक रसूख मोदी के बढ़ते कद के साथ बढ़ता गया. 2012 के विधानसभा चुनावों के बाद राज्य मंत्री से पदोन्नति देकर कैबिनेट मंत्री बनाए गए सौरभ धीरूभाई अंबानी के बड़े भाई रमणीकभाई अंबानी के दामाद हैं. वर्तमान में उनके पास ऊर्जा और पेट्रोकेमिकल, खदान एवं खनिज, कुटीर उद्योग, नमक उद्योग, प्रिंटिंग, स्टेशनरी, योजना, पर्यटन, नागरिक विमानन तथा श्रम एवं रोजगार विभाग की जिम्मेदारी है.

गुजरात में पटेल की प्रशासनिक क्षमता की तारीफ करने वालों की कमी नहीं है. लेकिन कहा जाता है कि प्रदेश की राजनीति पर उनकी कोई पकड़ नहीं है. कार्यकर्ताओं से लेकर आम जनता के बीच उनका कोई आधार नहीं है. देवेंद्र कहते हैं, ‘सौरभ की प्रशासन पर पकड़ बहुत अच्छी है लेकिन जमीनी आधार न होने के कारण इनके सीएम बनने की संभावना अभी तो धुंधली ही दिखाई देती है’.

वजूभाई वाला
संभावितों की लिस्ट में गुजरात विधानसभा के अध्यक्ष 75 वर्षीय वजूभाई वाला का नाम भी है. गुजरात विधानसभा में अभी तक सबसे अधिक बार बजट पेश करने का रिकॉर्ड (14 बार) बनाने वाले पूर्व वित्त मंत्री वजूभाई को 2012 में बनी भाजपा सरकार में वित्त मंत्री की जगह विधानसभा अध्यक्ष बना दिया गया. जब 2001 में मोदी गुजरात वापस आए और यहां आकर उन्होंने चुनाव लड़ने के लिए सीट खोजनी शुरू की तो वजूभाई ही वह विधायक थे जिन्होंने अपनी राजकोट विधानसभा सीट मोदी के लिए छोड़ी. दूसरे शब्दों में कहें तो वे भी लंबे समय से मोदी के वफादार रहे हैं. वजूभाई के एक करीबी नेता कहते हैं, ‘वजूभाई का मोदी भाई बहुत सम्मान करते हैं. वे उनके विश्वासपात्रों की सूची में हैं. यहां सबसे वरिष्ठ भी हैं. ऐसे में उनकी संभावना तो बनती ही है ’ प्रदेश के सौराष्ट्र क्षेत्र में अच्छी पकड़ रखने वाले वजूभाई की सीएम बनने की संभावना पर चर्चा करते हुए ब्रजेश कहते हैं, ‘ वजूभाई के पक्ष में बड़ी बात यह है कि उनकी स्वीकार्यता सबसे अधिक है. वे सबसे सीनियर हैं. सबसे बड़ी बात यह कि वे बहुत महत्वाकांक्षी नहीं हैं. ऐसे में वे मोदी के लिए फिट बैठते हैं.’

हालाकि 70 पार कर चुके वजूभाई की उम्र उनकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा दिखाई देती है. पार्टी के एक नेता कहते हैं, ‘ उम्र एक फैक्टर तो है ही तभी तो पार्टी ने उन्हें मंत्री की जगह विधानसभा अध्यक्ष बनाया है. ’

बदले समीकरण कभी पुरुषोत्तम रूपाला भी मोदी के करीबी माने जाते थे
बदले समीकरण कभी पुरुषोत्तम रूपाला भी मोदी के करीबी माने जाते थे

भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष पुरुषोत्तम रूपाला का नाम भी हवा में तैर रहा है. हालांकि एक वर्ग उनकी संभावना को खारिज करता है. देवेंद्र कहते हैं, ‘ भले ही सौराष्ट्र क्षेत्र के कुछ पटेलों के बीच उनकी पकड़ है  लेकिन रूपाला की कोई संभावना नहीं है. बहुत पहले ही ये महाशय मोदी की गुड बुक्स से बाहर हो चुके हैं.’

हालांकि अंत समय में इन नामों के अलावा किसी और नाम के पहले मुख्यमंत्री जुड़ जाने की भी संभावना से लोग इंकार नहीं करते. ब्रजेश कहते हैं, ‘मोदी का इतिहास लोगों को चौंकाने से भरा हुआ है. ऐसे में अंत समय में कोई नया व्यक्ति सीन में आता है तो उस पर हैरानी नहीं होनी चाहिए. ’

लेकिन क्या गुजरात के ये नेता सीएम की कुर्सी पर बैठने को लेकर कोई सार्वजनिक तैयारी करते हुए दिखाई दे रहे हैं ? देवेंद्र कहते हैं, ‘किसी नेता में ये हिम्मत नहीं है कि वह सरेआम सीएम बनने की अपनी इच्छा को सार्वजनिक करे. जिसने भी किया उसका करियर तो वहीं खत्म हो जाएगा है. यही कारण है कि पर्दे के पीछे ही प्लानिंग चल रही है.’

मुख्यमंत्री पद के इन दावेदारों से लेकर प्रदेश भाजपा के सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को पता है कि होगा वही जो मोदी चाहेंगे. देवेंद्र कहते हैं, ‘गुजरात के मामले में वही कहावत फिट बैठती है कि न खाता न बही जो मोदी कहें वही सही. मोदी जिसे चाहेंगे सीएम के पद पर वही बैठेगा और इस निर्णय को सभी को खुशी-खुशी मानना होगा.’

कुछ लोग यह भी दावा करते हैं कि मोदी के दिल्ली जाने की स्थिति में भी गुजरात भाजपा या प्रदेश सरकार में कोई बदलाव नहीं आने वाला. गुजरात में भाजपा और सरकार वैसे ही चलेगी जैसा मोदी चलाते आए हैं. जानकार बताते हैं कि दिल्ली जाने के बाद भी मोदी ही गुजरात का रिमोट कंट्रोल होंगे.  गुजरात में यह चर्चा भी बेहद गर्म है कि शायद मोदी तब तक किसी और को गुजरात का मुखिया नहीं बनने देंगे जब तक वे प्रधानमंत्री नहीं बन जाते या फिर केंद्र में किसी और बड़े पद पर काबिज नहीं हो जाते. अपनी व्यवस्था होने के बाद ही वे किसी और के बारे में सोचेंगे.

गुजरात भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष आईके जडेजा नेतृत्व के प्रश्न पर कहते हैं, ‘अभी तो यह हमारे यहां चर्चा का प्रश्न भी नहीं है. समय आएगा तो विधायकों और शीर्ष नेतृत्व से चर्चा करके फैसला लिया जाएगा.’

लेकिन क्या मोदी के चुनाव प्रचार में व्यस्त होने और पार्टी की तरफ से पीएम पद का दावेदार बन जाने के बाद क्या उन्हें किसी और को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी नहीं सौंप देनी चाहिए ? जडेजा कहते हैं, ‘इसकी जरूरत नहीं है. प्रदेश के मुखिया की भूमिका मोदी भाई बखूबी निभा रहे हैं. वे भले ही चुनाव प्रचार के लिए देश में कहीं भी हों लेकिन रात को वे वापस गुजरात चले आते हैं. यहां आकर राज्य सरकार का काम निपटाते हैं. ’