मोदी की राह में, मोदी की चाह में

Amit-Shahनरेंद्र मोदी देश की बागडोर अपने हाथों में लेने के लिए किस कदर बेताब हैं इसकी जानकारी लगभग सभी को है. लेकिन मोदी के अलावा कोई और भी है जो उनके सर पर प्रधानमंत्री का ताज देखने के लिए उतना ही बेताब है. इसके लिए वह दिन-रात एक किए हुए है. यह व्यक्ति अपने ‘साहब’ के गांधीनगर से सात आरसीआर तक के रास्ते में मौजूद हर अड़चन, हर ठोकर को हटाने की जी-जान से कोशिश कर रहा है. मोदी के इस विश्वासपात्र का नाम है अमित अनिलचंद्र शाह. शाह, नरेंद्र मोदी के हनुमान कहे जाते हैं, उनके लिए मोदी भगवान से कम नहीं हैं और वे भी शाह पर ही सबसे अधिक भरोसा करते हैं.

पार्टी महासचिव अमित शाह वर्तमान में उत्तर प्रदेश में भाजपा के चुनाव प्रभारी हैं. भाजपा को पता है कि अगर पिछले 10 साल का संन्यास खत्म करना है तो उत्तर प्रदेश में उसे चमत्कार करना ही होगा. देश को सबसे अधिक सांसद और अब तक सबसे अधिक प्रधानमंत्री देने वाले उसी उत्तर प्रदेश में शाह अपने साहब और भाजपा की जीत सुनिश्चित करने में लगे हुए हैं. Read More>>

 


Mayawati

ईमां मुझे रोके है तो खेंचे है मुझे कुफ्र, 
काबा मेरे पीछे है, कलीसा मेरे आगे

गालिब का यह शेर मायावती और उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक तबके मुस्लिम समुदाय के लिए भी फिलहाल बेहद मौजूं है. उत्तर प्रदेश की वर्तमान राजनीतिक स्थिति ऊपरी तौर पर मायावती और मोदी के लिए सबसे मुफीद दिख रही है. लेकिन बसपा के नजरिये से इसमें अभी कुछ ऐसे छोटे-छोटे छेद हैं जिन्हें बंद किया जाना जरूरी है. यदि मुफीद हालात को सीटों में तब्दील करना है तो इन छोटे-छोटे कामों को करने का यह आखिरी समय है. बसपा के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक बहनजी हर कसर को पूरी करने में चुपचाप लगी हुई हैं. जानकारों की मानें तो मायावती की कोशिश बदसूरत पैबंद लगाने की नहीं बल्कि बारीक रफू करने की है. हाल के कुछ दिनों में बसपा सुप्रीमो ने उन तमाम गलतियों को दूर करने के कई दूरगामी उपाय किए हैं जो अतीत में उनसे जाने-अनजाने हुईं.

बसपा का मानना है कि अगर उनका 2007 वाला सर्वजन फार्मूला बना रहे और मुजफ्फरनगर के बाद पैदा हुए हालात में मुसलमान भी उसके साथ जुड़ जाए तो उत्तर प्रदेश में एक ऐसा जातिगत गठजोड़ खड़ा हो जाएगा जिसके आगे सारे समीकरण धराशायी हो जाएंगे. लेकिन जहां मुसलमान के उनसे जुड़ने की बारी आई वहीं उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण समुदाय को मोदी की हवा लगने के हालात भी बनने लगे हैं. इसके इतर अतिपिछड़ी जातियों का जो कुनबा कभी कांशीराम ने जोड़ा था वह भी उनके जाने के बाद कुछ कमजोर हो गया है. लेकिन पिछले कुछ महीनों के दौरान उन्होंने इस दिशा में जो काम किए हैं उनसे ऐसा माहौल जरूर बना है जिसमें सिर्फ बसपा ही अपने पिछले प्रदर्शन को या तो सुधारते हुए दिखती है या फिर पिछले प्रदर्शन को कायम रखने की स्थिति में है. Read More>>