मोदी का चुनावी मंत्रिमंडल

The President, Shri Ram Nath Kovind, the Vice President, Shri M. Venkaiah Naidu, the Prime Minister, Shri Narendra Modi and other members of Council of Ministers at the Swearing-in Ceremony, at Rashtrapati Bhavan, in New Delhi on July 07, 2021.

 2024 के लोकसभा चुनाव में युवा टीम के साथ मैदान में होंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
 12 बड़े मंत्रियों की छुट्टी कर 43 नये मंत्रियों को मंत्रिमंडल में जगह देकर दिया सन्देश

साल 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए देश के फिर से चुनावी मोड में आने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास अब सिर्फ़ तीन साल बाक़ी हैं। अगले बड़े चुनावों को देखते हुए, हाल में प्रधानमंत्री ने पहले अपने 52 मंत्रियों के प्रदर्शन की महीने भर समीक्षा की उसके बाद 12 बड़े मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाते हुए कुछ पुराने और बाक़ी नये सहित कुल 43 मंत्रियों को विस्तार में जगह देकर अपना जम्बो क़ुनबा 79 मंत्रियों का कर लिया है। इनमें काफ़ी युवा मंत्री हैं, जिससे मंत्रिमंडल की औसत आयु भी 58 साल के आसपास हो गयी; जो पहले 61 साल थी। इसमें जातिगत और राज्यवार समीकरणों का काफ़ी ख़याल रखा गया है, जिसका कारण अगले साल होने वाले पाँच राज्यों (पहले गोवा, मणिपुर, पंजाब, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश) के चुनाव हैं। इसके बाद इसी साल गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव हो सकते हैं। बता दें कि गोवा, मणिपुर, पंजाब और उत्तराखण्ड विधानसभाओं का कार्यकाल मार्च, 2022 में समाप्त होगा। वहीं, उत्तर प्रदेश विधानसभा का कार्यकाल मई, 2022 तक और गुजरात तथा मणिपुर का विधानसभा कार्यकाल दिसंबर, 2022 तक चलेगा।
ज़ाहिर है 12 मंत्रियों को बाहर कर नये मंत्रियों को सन्देश दिया गया है कि मंत्रियों काम करना होगा या शायद उनकी नाकामी से बचाव का रास्ता निकाला गया है। मोदी प्रधानमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के 7वें वर्ष में हैं और उन्होंने अभी-अभी कोरोना वायरस की दूसरी लहर की चुनौती का सामना किया है, जिसमें अस्पतालों में बिस्तरों, ऑक्सीजन, दवाओं और वैक्सीन की भीषण कमी के कारण हज़ारों लोगों की जान चली गयी। यही नहीं, महामारी से अर्थ-व्यवस्था तबाह हुई, मोदी सरकार के तीन विवादित कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों का आन्दोलन जारी है; जबकि चीन और पाकिस्तान के साथ सीमाओं पर तनातनी अभी भी बनी हुई है।

मुद्दों से अवगत प्रधानमंत्री ने सबसे पहले जून और जुलाई के शुरू में एक समीक्षा अभ्यास किया और अपने 52 मंत्रियों से मुलाक़ात की। एकमात्र मंत्री जो प्रधानमंत्री से नहीं मिल सके, वह रमेश पोखरियाल निशंक थे, क्योंकि तब वह कोरोना संक्रमण से पीडि़त थे। प्रधानमंत्री ने अपने 52 मंत्रियों को 10 उप-समूहों में विभाजित किया और प्रत्येक समूह के साथ हर दिन 6-7 घंटे तक बैठकें कीं, जहाँ प्रत्येक मंत्री ने 2019 में सौंपे गये कार्यों और दो वर्षों के दौरान हासिल किये गये लक्ष्यों का ब्यौरा दिया। जानकारी के मुताबिक, प्रधानमंत्री ने सभी मंत्रालयों को किया था कि उनमें से प्रत्येक को कम-से-कम दो से तीन परियोजनाओं के साथ सामने आना होगा, जिन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले लोगों के सामने पेश किया जा सकता हो। उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि मंत्रालयों को अगस्त, 2023 तक सभी परियोजनाओं को पूरा करना होगा; क्योंकि 2024 एक चुनावी वर्ष होगा।
विशेषज्ञ बताते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए भारत के फिर से चुनावी मोड में आने से पहले मोदी के पास दो साल से अधिक का समय है। क्या वह विनिर्माण को बढ़ावा देने, मुद्रास्फीति पर लग़ाम कसने और बेरोज़गारों को रोज़गार प्रदान करने के लिए आर्थिक एजेंडे पर निर्भर करेंगे। इसमें से अधिकांश चीज़ें कोरोना वायरस की एक और लहर की सम्भावना को कम करने और इस वित्तीय वर्ष में अर्थ-व्यवस्था में नुक़सान की सम्भावना को कम करने और टीकाकरण में तेज़ी लाकर महामारी को नियंत्रित करने पर निर्भर करती हैं। ये चीज़ें 2024 के चुनावों का सामना करने के लिए मोदी को छवि में बदलाव का आधार दे सकती हैं।
निश्चित ही आगे एक ऊबड़-खाबड़ रास्ता है। बेशक, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाक़ात के बाद कहा कि विपक्ष की किसी भी रणनीति के बावजूद, मोदी 2024 में फिर से प्रधानमंत्री होंगे; क्योंकि वह लोगों के दिलों पर राज करते हैं। प्रधानमंत्री चाहते हैं कि उनका सपना ‘बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट’ 2023 तक पूरा हो जाए। इसी तरह विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जी-20 शिखर सम्मेलन की तैयारियों पर प्रकाश डाला, जिसकी मेजबानी भारत पहली बार 2023 में करेगा। राम मंदिर निर्माण को भी लम्बे समय से लम्बित सभी मुद्दों को हल करने के एक प्रमुख उदाहरण के रूप में दिखाया जाएगा।
समीक्षा में कुछ मंत्रालयों, विशेष रूप से दूरसंचार और शिक्षा, के ख़राब प्रदर्शन की बात सामने आयी थी। शायद यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने वहाँ बदलाव किया है। एक विचार था कि भविष्य के नेताओं को विकसित करने के लिए युवा चेहरों को लाया जाए। इसे भी मूर्त रूप विस्तार में दिया गया है। मंत्रिमंडल विस्तार निश्चित ही 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए प्रधानमंत्री का युद्ध टीम गठित करना था। वास्तव में मोदी-2.0 ने तीन तलाक़ पर क़ानून के बाद राजनीतिक प्रतिक्रिया देखी। इसके बाद जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 को आश्चर्यजनक रूप से हटाना और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करना और फिर नागरिकता संशोधन विधेयक लाना भी राजनीतिक प्रतिक्रिया के लिहाज़ से बड़ी मुद्दे बने। हालाँकि आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने के सरकार के प्रयासों का उलटा असर हुआ, कृषि सुधारों ने किसानों को सड़कों पर ला दिया, श्रम सुधारों ने भी उलटा सरकार पर ही हमला किया और 2019 का बहु-प्रचारित नागरिकता संशोधन अधिनियम अभी भी नियमों के बनने की प्रतीक्षा कर रहा है। साथ ही भारत को विश्व फार्मेसी घोषित करने के कुछ दिनों के भीतर सरकार दुनिया को टीके और चिकित्सा उपकरणों के स्रोत के लिए परिमार्जन कर रही थी; क्योंकि कमी के कारण पूरी स्वास्थ्य प्रणाली लडख़ड़ा रही थी। पश्चिम बंगाल के चुनावों में भाजपा की हार ने मोदी और शाह की अजेयता को झकझोर कर रख दिया है। चुनाव परिणाम ने 2024 के आम चुनाव में भाजपा से आगे निकलने की विपक्षी उम्मीदें जगा दी हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में गंगा में तैरती लाशों की कहानियों और इससे उपजे ग़ुस्से ने सरकार को राजनीतिक असुरक्षा से भर दिया।
मोदी-ढ्ढढ्ढ की स्थिति अचानक यूपीए-ढ्ढढ्ढ जैसी लग रही है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन, कोयला ब्लॉक आवंटन और राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना किया था। भाजपा के लिए चुनौतियाँ बहुत बड़ी हैं, ख़ासकर उत्तर प्रदेश में जहाँ अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश में आम आदमी पार्टी द्वारा बनाये गये रास्ते और उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों में हालिया उलटफेर और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कोरोना महामारी से निपटने के तरीक़े से लगता है कि भाजपा अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करके मुख्य चुनावी लाभ की उम्मीद कर रही थी।
प्रधानमंत्री ने आत्मानिभर भारत पर ज़ोर दिया है, तो उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि इससे अक्षम घरेलू उद्योग की रक्षा के लिए उच्च शुल्क बाधाएँ खड़ी न हों। यह सिर्फ़ भारत को निर्यात बाज़ार में कम प्रतिस्पर्धी बनाएगा। साल 2024 में भाजपा को सत्ता में बनाये रखने के लिए मोदी को महामारी से बुरी तरह प्रभावित लोगों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के अलावा रोज़गार और आर्थिक विकास पर भी काम करना होगा। इस साल (2021 में) उन्हें यह प्रदर्शित करना होगा कि उन्होंने महामारी के कारण होने वाली असमानताओं को कम करते हुए भारतीय अर्थ-व्यवस्था को मज़बूती से ठीक होने की राह पर रखा है।
भारतीय अर्थ-व्यवस्था अच्छी स्थिति में नहीं है और कम-से-कम 2024 में अगले आम चुनावों तक मज़बूत आर्थिक सुधार की किसी भी सम्भावना के लिए बहुत कम उम्मीद की जा रही है। यहाँ तक कि भारत के आर्थिक प्रदर्शन से कहीं पीछे चलने वाली दक्षिण एशिया की अधिकांश क्षेत्रीय अर्थ-व्यवस्थाएँ, अब आगे चल रही हैं; ख़ासकर बांग्लादेश की अर्थ-व्यवस्था। महामारी से पहले 2019 के लिए भारत की युवा बेरोज़गारी दर 23 फ़ीसदी को छू गयी थी। 2020 में इसका वार्षिक जीडीपी प्रदर्शन -8.0 फ़ीसदी तक गिर गया, जो सभी विकासशील देशों में सबसे ख़राब है। जबकि 2020 में बांग्लादेश 3.8 फ़ीसदी की दर से बढ़ा। सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थ-व्यवस्थाओं में से एक रहने वाले देश भारत के लिए ये आँकड़े हैरान और चिन्तित करने हैं।
ख़ैर, प्रधानमंत्री की 52 मंत्रियों के साथ हुई बैठकों का लब्बोलुआब यह था कि 2024 के आम चुनाव में मोदी की युग पुरुष और विकास पुरुष के रूप में छवि उभारी जाए। अब विस्तार के बाद नये मंत्रिमंडल की पहली ही बैठक में मंत्रियों को लक्ष्य तय करने और उन्हें समय पर पूरा करने का आदेश दिया गया है। इसका उद्देश्य 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले लोगों को मोदी सरकार के काम को दिखाना है। प्रधानमंत्री का ज़ोर सभी मंत्रालयों पर अगस्त 2023 तक सभी परियोजनाओं को पूरा करने का है; क्योंकि 2024 एक चुनावी वर्ष होगा। इससे मोदी सरकार की 2024 के आम चुनाव के लिए पूरी तैयारी की तत्परता उजागर होती है, ताकि विपक्ष पर बढ़त बनायी जा सके। हालाँकि पश्चिम बंगाल चुनावों में भाजपा की हार, महामारी से निपटने पर सवालिया निशान, देश में देखी जा रही आर्थिक गिरावट और देश की सीमाओं पर बढ़ते तनाव, 2024 के आम चुनाव की भाजपा की यात्रा को कठिन बना सकते हैं। फ़िलहाल सभी की निगाहें इस बात पर हैं कि नयी मंत्रिमंडलीय टीम 2024 के आम चुनाव के लिए मोदी की उम्मीदों पर कितना खरा उतर पाती है?

राजनीतिक लक्ष्य साधने की क़वायद
मोदी मंत्रिमंडल में विस्तार अगले साल के पाँच विधानसभा चुनावों के साथ-साथ 2024 तक होने वाले सभी विधानसभा चुनावों और ख़ासकर लोकसभा चुनाव को नज़र में रखकर किया गया है। मोदी ने अपने नये मंत्रिमंडल में जिस तरह पाँच चुनावी राज्यों के जातिगत लक्ष्य साधने की कोशिश की है, उससे साफ़ ज़ाहिर होता है कि पश्चिम बंगाल में बुरी हार के बाद भाजपा नेतृत्व कितना बेचैन है। लिहाज़ा भाजपा का यह दावा मज़ाक़ ही लगता है कि यह विस्तार सरकार की दक्षता को और बढ़ाने के लिए है। यह शुद्ध रूप से उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में कुछ ख़ास वर्गों को प्रतिनिधित्व देकर राजनीतिक लक्ष्य साधने की क़वायद से ज़्यादा कुछ नहीं है। उलटे एक साथ 12 मंत्रियों को सरकार से बाहर करने से यह सन्देश जनता में गया है कि पिछले दो साल से यह अप्रभावी मंत्री बोझ बनकर सरकार में थे। इन मंत्रियों में रविशंकर प्रसाद, हर्षवर्धन, प्रकाश जावेड़कर, सन्तोष गंगवार, सदानंद गौड़ा जैसे बड़े नाम शामिल हैं। वैसे तो मोदी सरकार की कई विफलताएँ भी हैं। फिर भी मोदी ने युवा चेहरे लेकर जनता को लुभाने का प्रयास किया है। लेकिन इसके लिए सरकार को उन्हें रोज़गार भी देना होगा। दलित-पिछड़ों पर मोदी ने मेहरबानी बरती है, जो यह संकेत करती है कि भाजपा को इस वर्ग की नाराज़गी का डर है। मोदी मंत्रिमंडल में अब 79 हो गयी है। पहले इनकी संख्या 52 थी।