मोटे कर्ज़ में डूबा है महाराष्ट्र!

महाराष्ट्र में नवगठित त्रिशंकु सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि वह राज्य का कर्ज़ हल्का करने के साथ-साथ विकास करे, युवाओं को रोज़गार मुहैया कराये तथा किसानों को राहत दे। लेकिन यह सब करने में इस नवगठित सरकार, खासतौर से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के सामने कितनी और किस तरह की चुनौतियाँ आड़े आएँगी?

महाराष्ट्र में एक ही नहीं, अनेक समस्याएँ हैं। इनमें किसानों की समस्याएँ, रोज़गार की समस्या, पुराने अधूरे कार्यों को पूरा करने की समस्या, नये वादों को पूरा करने की समस्या तो है ही; साथ ही एक और बड़ी समस्या भी है और वह है- महाराष्ट्र पर लदे विकट कर्ज़ की। िफलहाल तो इस नवगठित त्रिशंकु सरकार ने जनता से बहुत सारे लोकलुभावन वादे कर रखेे हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके मंत्रियों के सामने अब यह चुनौती है कि वक्त रहते सभी वादों को मूर्त रूप देते हुए राज्य की जनता का विश्वास जीतें। तिजोरी खाली हो या न हो, लेकिन राज्य पर भारी-भरकम कर्ज़ न केवल सरकार की चिंता बढ़ायेगा, बल्कि ठाकरे के सामने कई चुनौतियाँ बनकर खड़ा रहेगा। अब क्योंकि राज्य की तिजोरी इस वक्त कर्ज़ में डूबी है, इसलिए राज्य की नवगठित सरकार की प्राथमिकता विकास के साथ राज्य को कर्ज़-मुक्त या लदे कर्ज़ को कम करने की भी होगी ही।

सूत्रों से मिली जानकारी की मानें तो महाराष्ट्र पर इस वक्त तकरीबन पौने पाँच लाख करोड़ का कर्ज़ है। ऐसे में महाविकास अघाड़ी सरकार को इसी स्थिति में कर्ज़ में डूबी अर्थ-व्यवस्था को सँभालने के साथ-साथ जनता से किये गये वादों को पूरा करते हुए विकास करना है। जैसा कि अघाडी का दावा है कि वह राज्य को विकास की दिशा में ले जाएगी।

यह इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि इस नयी सरकार को न केवल जनता में अपना भरोसा मज़बूत करना है, बल्कि अगली बार फिर से अपने को और मज़बूत स्थिति में स्थापित करने के लिए मज़बूत जनादेश की भूमि भी तैयार करनी है। पुरानी सरकार के कार्यकाल के दौरान बहुत सारे बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स को आनन-फानन में हरी झंडी दिखा दी गयी थी, जिसके चलते ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया’ वाली स्थिति पैदा हो गयी थी। कई काम भी अधूरे छूटे थे, कई कामों से जनता संतुष्ट भी नहीं थी। एक बैंक भी दिवालिया हो गया था। जंगल के कटान पर भी काफी ऊहापोह की स्थिति बनी थी, किसानों की विकट समस्याएँ और उनके द्वारा किये गये आन्दोलन तथा आत्महत्याएँ भी एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरी थीं। अब नयी सरकार के सामने इन सभी समस्याओं का समाधान करने के साथ-साथ पुरानी अर्थ-व्यवस्था की समीक्षा करने के साथ-साथ नयी अर्थ-व्यवस्था के मद्देनज़र श्वेत पत्र जारी करेगी।

हालाँकि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की मिली-जुली सरकार ने भी जो वादे किये हैं, उन्हें पूरा करने के लिए भारी भरकम बजट की ज़रूरत है। इसलिए महाविकास अघाड़ी, चाहती है कि जनता के सामने पुरानी सरकार की असलियत ज़ाहिर हो।

अगर पुरानी सरकार की बात करें तो पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के ड्रीम प्रोजेक्ट्स बुलेट ट्रेन, समृद्धि महामार्ग और मुम्बई, पुणे, नागपुर की मेट्रो रेल परियोजनाएँ काफी खर्चीली रहीं और अधूरी भी। बुलेट ट्रेन का खर्च एक लाख करोड़, समृद्धि महामार्ग का खर्च 48 हजार करोड़ और मेट्रो परियोजनाओं में लगभग 30 हजार करोड़ का खर्च। इन सभी परियोजनाओं के चलते महाराष्ट्र की तिजोरी पर भारी-भरकम खर्च का भार बढ़ता चला गया और साथ ही कर्ज़ का बोझ भी। खर्च बढऩे के साथ-साथ राजस्व  भी  घटता चला गया। सरकार हर बार घाटे का बजट पेश करती चली गयी। इन सभी के चलते महाराष्ट्र की अर्थ-व्यवस्था चरमरा गयी है, जिसे पटरी पर लाना ठाकरे की महाराष्ट्र सरकार के सामने सबसे एक बड़ी चुनौती है। इस पर यह भी है कि महाविकास अघाड़ी ने महाराष्ट्र के किसानों का कर्ज़ माफ करने व बेमौसम बारिश से हुए नुकसान की तुरन्त भरपाई करने का वचन भी किसानों को दिया है। अपने इस वादे पर खरा उतरना नयी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। फडणवीस के कार्यकाल में राज्य सरकार पर 7,38,114  करोड़ का कर्ज़ बड़ा, जिसमें से 2,66,472 कर्ज़ चुका दिया गया।  फिलवक्त राज्य पर 4,71,642 करोड़ का कर्ज़ बाकी है। यानी महाराष्ट्र पर तकरीबन पौने पाँच लाख करोड़ का कर्ज़ है। यह देखना वाकई दिलचस्प होगा कि नयी सरकार अपने वादों को पूरा करने की चुनौती किस तरह से जामा पहनाती है? जो कि उसके लिए बहुत ही ज़रूरी है। देखना यह होगा कि नवगठित सरकार वाकई जनता से किये गये वादे पूरे करेगी या फिर तिज़ोरी खाली होने और राज्य पर विकट कर्ज़ होने का बहाना बनाकर वक्त निकालती है।