मैरी कॉम ने रचा इतिहास नजऱ अब ओलंपिक गोल्ड पर

देश के उत्तर-पूर्व के एक छोटे से प्रांत मणिपुर के एक छोटे से गांव कंगाथी में जन्मी 35 वर्षीय मैरी कॉम को अगर देश में सोने की खान की संज्ञा दी जाए तो गलत नहीं होगा। महिला मुक्केबाजी में सात बार विश्व चैंपियनशिप में खेलना और उसमें सात ही पदक जीतना, जिनमें छह स्वर्ण पदक हों किसी चमत्कार से कम नहीं है। यह किसी भी मुक्केबाज का विश्व मुक्केबाजी में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। इस तरह मैरी ने क्यूबा के फेलिक्स सेवोन फेबर की बराबरी कर ली है। मैरी कॉम ने पिछले दिनों दिल्ली में हुई विश्व चैंपियनशिप के 48 किलोग्राम भार वर्ग में यूक्रेन की हाना ओखोटा को 5-0 से परास्त कर छठा स्वर्ण पदक जीतने के साथ एक विश्व कीर्तिमान भी स्थापित कर दिया। तीन बच्चों की इस मां ने वह कर दिखाया जो दुनिया की कोई और महिला नहीं कर पाई। ध्यान देने की बात यह है कि मैरी कॉम ने अपने सभी मुकाबले 5-0 से ही जीते हैं।

इस विजय के बाद मैरी कॉम ने अपनी निगाहें 2020 के टोक्यो ओलंपिक पर लगा रखी है। यह विश्व चैंपियन मुक्केबाज आज तक ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक से महरूम है। विश्व चैंपियनशिप में वह 48 किलो भार वर्ग में खेली हैं जबकि ओलंपिक में यह भार वर्ग नहीं है। वहां उसे 51 किलो भार वर्ग में खेलना होगा। इस वर्ग में मुकाबला और कड़ा होगा।

2012 के लंदन ओलंपिक में मैरी कॉम ने 51 किलो भार वर्ग में कांस्य पदक जीता था पर दुर्भाग्यवश 2016 के रियो ओलंपिक के लिए वह क्वालीफाई नहीं कर पाई थी। मैरी का कहना कि 51 किलोग्राम भार वर्ग में आने वाली मुक्केबाज कद में लंबी होती हैं इस कारण उनकी ‘रीचÓ लंबी होती है। इस कारण उनके साथ लड़ते हुए अधिक सतर्क रहने की ज़रूरत होती हे। पर मैरीकॉम को उम्मीद है कि वह 2020 में स्वर्ण पदक ज़रूर जीत लेगी। मैरी कॉम के लिए एक मुक्केबाज बनना कोई आसान काम नहीं था। उसके छोटे से गांव में तो जीवन की मूलभूत सुविधाओं का भी अकाल था तो मुक्केबाजी जैसे खेल के लिए कुछ होगा यह तो सोच से भी परे था। उसने लोकटक क्रिस्चियन माडल हाई स्कूल में छठी कक्षा तक पढ़ाई की । उसकी आठवीं तक की पढ़ाई सेंटजेवियर कैथोलिक स्कूल मोरंग में हुई। इससे आगे पढऩे के लिए उसे इंफाल जाना पड़ा जहां एनआईओएस से उसने स्कूली शिक्षा पूर्ण की। फिर बीए के लिए उसने चुराचांदपुर कॉलेज में दाखिला लिया और स्नातक की डिग्री हासिल की। खेलों के प्रति मैरी की रूचि शुरू से ही थी पर जब डिकों सिंह ने सफलता हासिल की तो वह मुक्केबाजी की ओर आकर्षित हो गई। उसके पति के ओनलर कॉम ने मैरी को बहुत उत्साहित किया।

मैरी की मुक्केबाजी की शुरूआज 2000 में हुई जब उसने मणिपुर राज्य मुक्केबाजी और 2001 में क्षेत्रीय चैंपियनशिप बंगाल में जीत ली। अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में उसने 18 साल की उम्र में पदार्पण किया। साल था 2002 जब उसने दूसरी एआइबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप के 45 किलोग्राम भार वर्ग में स्वर्ण पदक जीता। यह चैंपियनशिप तुर्की में हुई थी। इस साल उसने हंगरी में आयोजित विश्व कप मुकाबलों का स्वर्ण पदक भी अपने नाम किया। 2003 में मैरी ने 46 किलोग्राम भार वर्ग में एशियन महिला मुक्केबाजी में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। यह मुकाबले भारत में ही आयोजित किए गए थे। महिला मुक्केबाजी विश्व कप का पहला स्वर्ण पदक मेरी ने 2004 में नार्वे में आयोजित मुकाबलों में जीता। 2005 में फिर एशियाई महिला मुक्केबाजी का खिताब उसने जीत लिया। अगले साल यानी 2006 में मैरी ने दूसरा विश्व खिताब अपने नाम कर लिया।

फिर उसने 2008 तक खुद को मुक्केबाजी से अलग रखा और 2008 में एशियाई महिला मुक्केबाजी में उसे रजत पदक से संतोष करना पड़ा। पर 2009 में मैरी ने वियतनाम में आयोजित एशियाई इंडोर प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीत लिया। इस बीच उसका स्वर्ण पदक जीतने का सिलसिला जारी रहा। 2012 में वह पहली भारतीय मुक्केबाज बनी जिसने ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया और कांस्य पदक जीता। उसने 51 किलोग्राम भार वर्ग में हिस्सा लिया और ओलंपिक खेलों में व्यक्तिगत पदक जीतने वाली तीसरी भारतीय महिला बनी।