मुद्दों पर लौटता चुनाव !

धीरे-धीरे लोक सभा का चुनाव मुद्दों पर लौट रहा है। लम्बे चरण का चुनाव है लिहाजा पहले चरण के बाद मुद्दे अपना असर दिखाते चले जायेंगे। सर्वोच्च न्यायालय के राफेल दस्तावेजों पर बुधवार को दोबारा सुनवाई के फैसले से पहले चरण के मतदान से महज एक दिन पहले इन मुद्दों में एक और बड़ा मुद्दा जुड़ गया है।
दो बड़े दलों भाजपा और कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिए हैं। भाजपा ”राष्ट्रवाद” पर निर्भर रहना चाहती है जबकि कांग्रेस ”न्याय” की अपनी योजना पर। बाकी क्षेत्रीय दल हैं जिनके अपने मुद्दे हैं। पिछले दिनों के तमाम सर्वे यह बता रहे हैं कि इस चुनाव में आम जनता के बीच बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है। मुद्दों से किसी भी दल को गैर मुद्दों के जरिये भागना आसान नहीं होगा। किसान दूसरा बड़ा मुद्दा हैं।
अब राफेल को भी कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल बड़ा मुद्दा बनाएंगे। भले सरकार के खिलाफ राफेल खरीद को लेकर कोर्ट से कोइ विपरीत फैसला नहीं आया है लेकिन ”द हिन्दू” में छपे दस्तावेजों को कोर्ट ने खारिज नहीं किया जिससे मोदी सरकार को बड़ा झटका लगा है। खासकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, जो इस मुद्दे पर सीधे-सीधे पीएम मोदी पर निशाना साधते रहे हैं, अब राफेल डील में भ्रष्टाचार के अपने आरोपों  के साथ और मुखर होंगे।
”एयर स्ट्राइक” के बाद कुछ टीवी चैनलों ने जो सर्वे किये हैं उनमें से एक भी इस चुनाव में अकेली भाजपा को बहुमत नहीं दे रहा जो उसने २०१४ की मोदी की प्रचंड लहर में हासिल किया था। यानि ”एयर स्ट्राइक” नहीं होता तो भाजपा की स्थिति संभवता और खराब होती। एयर स्ट्राइक से पहले बेरोजगारी, किसान, विकास ही साफ़ तौर पर चुनावी मुद्दे बन चुके थे। क्या जनता इतनी जल्दी इन मुद्दों को अपने मन से निकाल देगी?
”एयर स्ट्राइक” का जहाज पकड़कर भाजपा चुनाव में जीत की उड़ान की उम्मीद कर रही है। क्या मतदाता बेरोजगारी, किसान और अन्य जन सरोकार के मुद्दे भूलकर सिर्फ एयर स्ट्राइक (राष्ट्रवाद) पर वोट करेंगे ? देखना  दिलचस्प होगा।
अगर गौर करें तो भाजपा पिछले तीन महीने में अपने ”नारे” को लेकर बहुत ”कन्फ्यूज” रही है। यह चुनाव को लेकर उसकी अपनी स्थिति के कमजोर आत्मविश्वास की कहानी कहता है। ”मोदी है तो मुमकिन है”, ”मैं भी चौकीदार”से होते हुए कहानी ”फिर एक बार मोदी सरकार” पर आ टिकी है। दूसरे भाजपा अपने चुनाव घोषणा पत्र और चुनाव प्रचार में २०१४ के बाद अपनी उपलब्धियों को लेकर बहुत उम्मीद क्यों नहीं कर रही। क्या उसे लगता है कि इसपर वोट मांगना ”चुनावी सेल्फ गोल” होगा ? ”अच्छे दिन” के उसके नारे के २००४ में ”इण्डिया शाइनिंग” के नारे जैसा ”बेबफा” होने का खतरा खुद भाजपा को है।
क्या देश वास्तव में पड़ोसी मुल्कों से किसी ऐसे ”खतरे” में घिरा है कि इसका हव्वा खड़ा करके भाजपा सिर्फ ”राष्ट्रवाद” के नारे के सहारे पूरे देश का चुनाव जीत जाए और जनता बेरोजगारी, भूख, बिजली-पानी, सड़क-अस्पताल सब कुछ भूल कर भाजपा के पीछे खड़ी हो जाए? जनता ही तय करेगी और नतीजे ही बताएँगे ! ज़मीन पर तो देश को ऐसा कोइ खतरा नहीं दिखता।
सवाल यह भी है कि भाजपा ने आखिर घोषणा पत्र में जन मुद्दों को तरजीह पर क्यों नहीं रखा? उसने क्यों धारा ३७०, राम मंदिर आदि-आदि को सबसे ऊपर रखा ? क्या भाजपा ”अति राष्ट्रवाद” और हिंदुत्व का घोल फिर चुनाव में सामने रखकर अपने समर्थक वर्ग को गोलबंद करना चाहती है? लेकिन यह मुद्दे तो २०१४ के उसके घोषणा पत्र में भी थे और पिछले पांच साल के शासनकाल में उसके पास अपना ही बहुमत भी था, तो फिर उसने इनपर ज़मीनी स्तर पर कुछ क्यों नहीं किया? क्या जनता के दिमाग में यह सवाल नहीं आएंगे ? जनता ही तय करेगी और नतीजे ही बताएँगे !
भाजपा ने कांग्रेस के घोषणा पत्र की निंदा भी अपने एजेंडे के ही हिसाब से की। मसलन कांग्रेस के कश्मीर से जुड़े आफ्सपा जैसे मुद्दों पर। और इसे ”देशविरोधी” और ”पाकिस्तान समर्थक” बताने में देर नहीं की। भाजपा ने कांग्रेस के पूरे घोषणा पत्र को ही ” देशविरोधी” बताकर गंभीर मुद्दों को पल भर में धो डाला। क्या सचमुच कांग्रेस का घोषणापत्र ”ढकोसला” है जिसे की पीएम मोदी ने कहा और उसमें जनता के लिए कुछ नहीं है ? या भाजपा ने ऐसा करके सीधे मुद्दों पर खुद को खड़ा करने से बचने की कोशिश की ? जनता ही तय करेगी और नतीजे ही बताएँगे !
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में ”न्याय” योजना पर फोकस रखा है। यानी देश के २५ करोड़ अति गरीबों को हर साल ७२,००० रूपये देना। इसके आलावा राहुल गांधी ने सत्ता में आने की स्थिति में मार्च २०२० तक खाली पड़े २२ लाख सरकारी पद भरने का वायदा किया है। यह बहुत बड़ा और डेडलाइन के साथ किया वादा है जो राहुल के लिए बड़ी चुनौती रहेगा, भले बेरोजगारों को यह बहुत ज्यादा आकर्षित करने वाला वादा है।
भाजपा ७२,००० रूपये देने की राहुल की योजना को ”ढकोसला” बता चुकी है। उसके समर्थक आर्थिक विशेषज्ञ भी सवाल उठा रहे हैं कि राहुल इसके लिए पैसा कहाँ से लाएंगे। हालांकि जाने माने अर्थशास्त्री रघुराम राजन का कहना कि राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई जाए तो ”न्याय” योजना सफल हो सकती है और पैसे का  इंतजाम भी किया जा सकता है। कुछ अर्थशास्त्रियों का यह भी मानना है कि इससे बाज़ार में लोगों के खरीद करने का दायरा (क्रय शक्ति) बढ़ेगा जिसका बाज़ार को भी लाभ होगा।
राहुल ने तीन राज्यों में चुनाव जीतकर किसान कर्जमाफी के अपने वादे को १० दिन के भीतर लागू करके अपनी छवि ”वादा पूरा करने वाला नेता” की बनाई है। कांग्रेस का भी यही दावा है कि राहुल जो कहते हैं करके दिखाते हैं। भाजपा इसे नहीं मानती और वो तो उन तीन राज्यों में कर्जमाफी पर ही सवाल उठाकर इसे ”फेल” बता रही है। खुद पीएम मोदी कांग्रेस के कर्जमाफी की सफलता का उपहास उड़ा चुके हैं।
क्या बेरोजगारी जैसे सबसे बड़े और गंभीर मुद्दे के बीच भाजपा के ”राष्ट्रवाद” के मुद्दे पर कांग्रेस की ”न्याय” योजना भारी पड़ेगी ? कुछ राजनीतिक विश्लेषक भाजपा के घोषणा पत्र को कांग्रेस के घोषणापत्र की तुलना में ”बहुत कमजोर” बता रहे हैं। कुछ का कहना है ऐसा लगता है भाजपा ने घोषणा पत्र ”बेमन” से पेश किया है और वह पूरी  तरह ”एयर स्ट्राइक, बालाकोट, पुलवामा और राष्ट्रवाद” पर निर्भर रहना चाहती है क्योंकि उसे लगता है कि जन मुद्दे नहीं, यह मुद्दे ही उसकी नैया पार लगा सकते हैं।
कुछ जानकारों का मानना है कि भाजपा का जनता से सीधे जुड़े मुद्दों के बजाए ”राष्ट्रवाद” के मुद्दे पर पूरी तरह निर्भर रहना उसके लिए घातक भी साबित हो सकता है क्योंकि आम जनता के सामने समस्यायों का अम्बार है। ”एयर स्ट्राइक” जैसे मुद्दे  जनता के भीतर क्षणिक आवेग तो भर सकते हैं, उसका पेट नहीं भर सकते न बेरोजगार को रोजगार दे सकते हैं।
एयर स्ट्राइक के बाद निश्चित ही जनता में देशभक्ति का ज्वार उछाल मार रहा था। लेकिन धीरे-धीरे यह ठंडा पड़ गया है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में एयर स्ट्राइक में ३०० आतंकवादियों के मारने के दावे पर सवाल उठाये गए हैं। यहाँ तक कहा गया है कि बालाकोट की एयर स्ट्राइक ”निशाने से दूर” रही। जनता में बहुत से ऐसे लोग हैं जो यह मानते हैं कि भाजपा ने सेना को अपनी राजनीति के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश की है। यूपी के सीएम योगी ने तो भारतीय सेना को ”मोदी की सेना” ही बता दिया जिसके बाद उन्हें चुनाव आयोग की फटकार तक सहनी पड़ी।
इस बार का चुनाव २०१४ से बिलकुल विपरीत राजनीतिक माहौल के बीच लड़ा जा रहा है। मोदी की २०१४ वाली लहर ज़मीन पर नदारद है। लेकिन भाजपा मान कर चल रही है कि ”मोदी की सुनामी” है। इसलिए उसका सबकुछ मोदी के इर्दगिर्द सिमट गया है। इसके विपरीत कांग्रेस मुद्दों के साथ चुनाव में उसके सामने है। इन मुद्दों में पहले चरण के मतदान से महज एक दिन पहले राफेल भी ताकत से आ जुड़ा है। ज़मीनी अध्ययन बताता है कि ”असली मुद्दे” (बेरोजगारी, रोटी-पानी और किसान) चुनाव में लौट चुके हैं और पहले-दूसरे चरण के बाद चुनाव का फैसला करने की स्थिति में होंगे।
ज़मीन पर सिर्फ ”एयर स्ट्राइक” ही नहीं है। बेरोजगारी, नौकरी, रोजी-रोटी, किसान भी  भी बहुत ताकत से हैं। सिर्फ ”एयर स्ट्राइक” इतना ताकतवर मुद्दा होती तो अभी तक के सर्वे में भाजपा अकेली ३००-३५० के पार पहुँच चुकी होती। लेकिन बहुमत पर भी  नहीं पहुँच रही तो इसलिए कि जनता के बहुत बड़े वर्ग में बेरोजगारी और रोटी-पानी बहुत जवलंत मुद्दे हैं। यह मुद्दे ”एयर” में नहीं हैं ”ज़मीन” पर हैं। इस चुनाव में जो ज़मीन पर रहेगा वो ही जनता के पास पहुँच पायेगा !