मुद्दों पर मतदान

हाल के उपचुनाव नतीजे भाजपा के लिए बड़ा सबक़ हैं

दीपावली से पहले 13 राज्यों में फैले विधानसभा उपचुनाव के नतीजों ने भाजपा नेताओं की पेशानी पर बल डाल दिये हैं। नतीजों के संकेत साफ़ हैं। देश में कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की भयंकर कमी से हज़ारों लोगों की मौत, आम आदमी की पीठ पर मुसीबतों का बोझ लाद चुकी महँगाई, पेट्रोल-डीजल के हद से आगे निकल चुके दाम और किसानों की समस्यायों का हल न होना जनता को त्रस्त कर रहा है और मत (वोट) के ज़रिये वह इसका सन्देश दे रही है। नतीजों से जो दूसरा संकेत मिलता है वह यह है कि कांग्रेस धीरे-धीरे खोई ज़मीन हासिल कर रही है और भाजपा का कांग्रेस मुक्त भारत का सपना फलीभूत नहीं हुआ है। भविष्य में कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले इन नतीजों ने भाजपा ख़ेमे में चिन्ता भर दी है। क्योंकि जनता ने मुद्दों पर मतदान किया है और भाजपा इन मुद्दों के प्रति बेपरवाह दिखती है।

कमोबेश पूरे देश में हुए इन उपचुनावों के नतीजों से भविष्य की राजनीतिक स्थिति की जो ज़मीनी तस्वीर उभरती है, भाजपा शिविर में उससे निश्चित ही चिन्ता पसरी है; क्योंकि इन नतीजों का जनता में भाजपा के प्रति इसका नकारात्मक सन्देश गया है, जिसका असर उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों के 2022 के विधानसभा चुनावों पर पड़ेगा। भाजपा के लिए बड़ी चिन्ता की बात यह है कि इन नतीजों से यह कहीं नहीं लगता कि उसकी सबसे प्रमुख प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस ख़त्म हो रही है, जो उसके कांग्रेस मुक्त भारत के नारे को चिढ़ाती दिखती है। हिमाचल जैसे भाजपा शासित राज्य में तो भाजपा को चार (एक लोकसभा सीट सहित) सीटों में से एक भी सीट नहीं मिली है।

पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान पिछले 11 महीने से तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आन्दोलन कर रहे हैं। सरकार बेपरवाह है। तीन महीने से पेट्रोल-डीजल के दाम से जनता में हाहाकार था। सरकार ने उसमें मामूली-सी राहत देकर ऐसा ज़ाहिर किया मानों कोई बड़ा नज़राना जनता को दे दिया हो। अब जो जनता सरकार की इस ज़्यादती का सामना कर रही है, उसे आप झूठ का लॉलीपॉप थमाने लगो, तो यह उसके गले कहाँ उतरेगा। नतीजों से यह भी ज़ाहिर होता है कि सरकार की मुद्दों के प्रति असंवेदनशीलता जनता को रास नहीं आ रही। उदहारण के तौर पर किसान आन्दोलन इतने महीनों से चल रहा है। देश की आबादी का बड़ा हिस्सा खेत-खलिहान से जुड़ा हुआ है। ऐसे में उसे सरकार की किसानों के प्रति उपेक्षा समझ नहीं आ रही। देश में आज भी किसान और सैनिक दो ऐसे वर्ग हैं, जिनके प्रति आम जनता में सम्मान की भावना रहती है। लेकिन सरकार इसे समझ नहीं पा रही। जनता इसका अर्थ मान रही है कि केंद्र सरकार अहंकारी हो गयी है।

अगले साल के पहले हिस्से में उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनाव हैं। यह चुनाव जितनी बड़ी चुनौती विपक्ष के लिए हैं, उतनी ही बड़ी चुनौती भाजपा के लिए भी हैं, जिसे तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, गोआ और उत्तराखण्ड में अपनी सत्ता बचानी है। पंजाब में उसका कोई नामलेवा है नहीं और मणिपुर में उसका संघर्ष चल रहा है, जहाँ स्थानीय मुद्दे जनता में हमेशा राष्ट्रीय मुद्दों से कहीं ज़्यादा महत्त्व रखते हैं। इन पाँच राज्यों में पंजाब, उत्तराखण्ड, गोआ, मणिपुर में कांग्रेस का ख़ासा असर है; जबकि उत्तर प्रदेश में वह अपने आधार का विस्तार कर रही है, जिसका पता चुनाव के पास ही चलेगा। इस तरह देखा जाए, तो भाजपा को कांग्रेस से मिलने वाली चुनौती एक बार कम होकर फिर बढऩे लगी है।

इन उपचुनावों में भाजपा को कई बड़े झटके लगे हैं। इन एक पहाड़ी राज्य हिमाचल भी है, जहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक समय भाजपा प्रभारी रह चुके हैं। वहाँ लोकसभा की एक सीट के अलावा तीन विधानसभा सीटों के लिए भी उपचुनाव था। भाजपा सत्ता में होते हुए भी सभी चार सीटें हार गयी। भाजपा के लिए यह बड़ा झटका इसलिए भी है, क्योंकि जिस मंडी लोकसभा सीट पर भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह से हारीं, यह सीट भाजपा के पास थी और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह ज़िले में पड़ती है। इससे जयराम की जनता पर पकड़ को लेकर भाजपा के बीच ही सवाल उठने लगे हैं।

जयराम की छवि को इससे धक्का लगा है; क्योंकि इससे यह संकेत गया है कि वह पार्टी को चुनाव नहीं जिता सकते। हिमाचल वैसे भी ऐसा राज्य हैं, जहाँ हर चुनाव के बाद सत्ता बदल देने का चलन जनता में रहा है। हाल के वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी की छवि के बूते भाजपा चुनावों में अपनी जीत की ज़मानत (गारंटी) मानती रही है। अब यह चलन टूट गया है। इन उपचुनावों के प्रचार में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का ऐसा कोई भाषण नहीं था, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और केंद्र सरकार की उपलब्धियों का बखान न किया हो। दिलचस्प यह है कि उप चुनाव में पार्टी की शर्मनाक हार के बाद जयराम ने महँगाई को ज़िम्मेदार बताया। क्या यह माना जाए कि मोदी सरकार की महँगाई रोकने में नाकामी पर यह उनकी ही पार्टी के मुख्यमंत्री की एक अति गम्भीर टिप्पणी है?

नतीजे देखें तो भाजपा तीन लोकसभा सीटों में से दो पर हार गयी। मध्य प्रदेश में ज़रूर उसे एक लोकसभा और दो विधानसभा सीटों पर जीत मिली, जिसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के समर्थकों ने मुख्यमंत्री की छवि की जीत कहकर ज़्यादा प्रचारित किया। हालाँकि यह आम राय है कि कांग्रेस की सरकार तोडक़र अपनी सरकार बनाने वाले शिवराज सिंह धीरे-धीरे पकड़ खो रहे हैं और अगले विधानसभा चुनाव में उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।

उधर पश्चिम बंगाल में सभी सीटों पर भाजपा को पटखनी देकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने साबित कर दिया कि राज्य में भाजपा के पास उन्हें टक्कर दे सकने ही हैसियत वाला एक भी नेता नहीं है। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनावों में भाजपा की करारी हार के बद उपचुनावों में भी यही संकेत गया है कि भाजपा आलाकमान जिन सुवेंदु अधिकारी पर बहुत ज़्यादा उम्मीद लगाये बैठी थी, जो असल में उतने असर रखने वालेनेता हैं नहीं। तृणमूल कांग्रेस ने चारों सीट जीत लीं।

असम की ज़रूर भाजपा ने पाँच सीटों में उन तीन पर जीत हासिल की जहाँ उसने अपने उम्मीदवार उतारे थे। मुख्यमंत्री हिमंता विश्व सरमा को इसका श्रेय दिया जा सकता है, जिन्होंने असम में अपनी अलग छवि बनायी है।

राजस्थान की बात करें, तो वहाँ मुख्यमंत्री गहलोत ने ज़मीनी पकड़ बनाकर रखी है। राजस्थान में दी सीटों पर ही कांग्रेस जीती, जिनमें वल्लभनगर और भाजपा के मज़बूत प्रभाव वाली धरियावद सीट शामिल हैं। हालाँकि राज्य में गहलोत और युवा नेता सचिन पायलट के बीच अभी तनातनी जारी है।

दक्षिणी के राज्य कर्नाटक में भी भाजपा सत्ता में है। येदियुरप्पा को हटाकर भाजपा ने बीएस बोम्मई को हाल में मुख्यमंत्री बनाया था; लेकिन पार्टी दो में से एक सीट पर हार गयी। एक सीट पर कांग्रेस जीती। हंगल सीट पर भाजपा की हार से उसे झटका लगा है, क्योंकि यह सीट नये मुख्यमंत्री बोम्मई के गृह ज़िले हावेरी का हिस्सा है।

पूरे नतीजे देखें, तो 13 राज्यों की 29 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में से भाजपा वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन (एनडीए) को 15 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस ने आठ सीटें जीतें जीतीं। ज़ाहिर है कांग्रेस भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंद्वी बनी हुई है। टीएमसी के खाते में चार सीटें गयीं, जबकि आंध्र प्रदेश की एक सीट पर वाईएसआरसीपी और हरियाणा की एक सीट पर इनेलो ने विजय पायी। तीन लोकसभा सीटों में दादरा और नगर हवेली सीट शिवसेना, हिमाचल प्रदेश की मंडी सीट कांग्रेस और मध्य प्रदेश की खंडवा सीट भाजपा की झोली में गयी। नतीजों को देखकर लगता है कि भाजपा को आने वाले चुनावों में आसानी से सत्ता नहीं मिलेगी या उसे कुछ जगह सत्ता खोनी पड़ सकती है।

 

“भाजपा लोकसभा उपचुनावों में तीन में से दो लोकसभा सीटें हारी है। विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस-भाजपा की जहाँ सीधी टक्कर थी, वहाँ भाजपा ज़्यादातर जगहों पर हारी है। हिमाचल, राजस्थान, कर्नाटक और महाराष्ट्र इसके सुबूत हैं।”

रणदीप सुरजेवाला

कांग्रेस प्रवक्ता

 

भाजपा में योगी का बढ़ता क़द

उपचुनावों के नतीजों से भाजपा ख़ेमे में बेचैनी को यह इस बात से समझा सकता है कि उसने उत्तर प्रदेश से लेकर दूसरे सभी राज्यों में रणनीति को लेकर अभी बैठकों का दौर शुरू कर दिया है। पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव बहुत ज़्यादा मायने रखता है। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की अक्टूबर के पहले हफ़्ते बैठक हुई। इस बैठक का मक़सद पार्टी की चुनावी तैयारियों की रणनीति बनाना था। लेकिन काफ़ी आश्चर्यचकित बात यह हुई कि बैठक में कुछ नेता दिल्ली में साथ बैठे; लेकिन बाक़ी ने आभासी रूप से (वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये) बैठक में शामिल हुए। बैठक का एजेंडा पाँच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव ही था। सबसे दिलचस्प बात यह हुई कि बैठक में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बैठक दिल्ली में मौज़ूद रहे, जबकि पार्टी के अन्य मुख्यमंत्रियों को आभासी रूप से जोड़ा गया। निश्चित ही यह भाजपा में योगी के बढ़ते क़द की तरफ इशारा करता है।