मुख्य न्यायाधीश की जांच के लिए बनी समिति

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई पर लगे आरोपों की पड़ताल के लिए सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायधीशों की एक पीठ बनी है। अमूमन ऐसे आरोपों के घेरे में न्यायाधीश विभिन्न मामले-मुकदमों में अपने फैसलों के चलते आ ही सकते हैं। लेकिन यह भी कम नहीं कि प्रधान न्यायाधीश ने एक व्यवस्था दी है जिससे आरोपों की तह तक जाने की कोशिश हो। साथ ही सुप्रीम कोर्ट की मर्यादा भी बनी रहे।

जो जांच कमेटी बनी है उसमें जस्टिस एसए बोबदे, एनवी रामना और इंदिरा बनर्जी है। यह एक तरह से इन हाउस एन्क्वाएरी है। यह कमेटी विभागीय जांच पड़ताल करेगी। इस कमेटी के गठन को प्रशासनिक तौर पर सुप्रीम कोर्ट की पूरी बेंच ने मान्य किया है। यह कमेटी उस आरोप पत्र की जांच करेगी जिसमें मुख्य न्यायाधीश पर सेक्सुअल हैरासमेंट के आरोप लगाए गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश खुद यह चाहते थे कि आरोपों की जांच हो। यह बात खुद जस्टिस एसए बोबदे ने बताई। उन्होंने कहा कि,’मैंने तब जस्टिस रामना और जस्टिस इंदिरा बनर्जी को भी इस कमेटी में शामिल किया।’

जस्टिस बोबदे सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जस्टिस हैं। जब मुख्य न्यायाधीश नवंबर महीने में सेवानिवृत होंगे तो उनकी जगह वे लेंगे। जस्टिस रामना दूसरे नंबर पर वरिष्ठ जस्टिस हैं। जस्टिस बनर्जी उन तीन महिला न्यायाधीशों में एक हैं जो सुप्रीम कोर्ट में हैं।

इस ‘इन हाउस जांच’ के लिए शिकायतकर्ता को नोटिस दे दिया गया है और सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को भी जानकारी दे दी गई है। जिससे वे भी जांच कमेटी की मौजूदगी में सारी कार्रवाई देखें।

प्रधान न्यायाधीश पर सेक्सुअल हैरासमेंट का आरोप लगाने वाली सुप्रीम कोर्ट में कार्य करने वाली महिला ने घटना की तारीख पिछले साल अक्तूबर की दी है। उसका कहना है कि उसने जब विरोध किया तो उसे उसके पति और उसके देवर को नौकरी से ‘सस्पेंड’ कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट की ‘इन हाउस कमेटी’ का गठन ‘इन हाउस प्रोसीजर्स’ के ही तहत हुआ जिसमें मुख्य न्यायाधीश की जांच के लिए कोई निर्धारित व्यवस्था नहीं है। इसलिए इस पूरे मामले को न्यायिक दिशा में रखने की बजाए प्रशासनिक स्तर पर ही आरोपों की छानबीन होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने 22 अप्रैल को एक वकील को नोटिस दिया। उसका कहना था कि भारत के मुख्य न्यायाधीश को पद से त्यागपत्र देने की साजिश रची जा रही है। उन पर गलत आरोप लगाए जा रहे हैं, वह भी सेक्सुअल हैरासमेंट का। वकील का दावा था कि उसे बहुत बड़ी धनराशि देने का लालच भी दिया गया यदि वह सुप्रीम कोर्ट में काम करने वाली महिला का मामला ले ले और प्रेस कांफ्रेंस करवा दे। जिससे यह मामला और ज़्यादा सार्वजनिक किया जा सके।

जस्टिस अरूण मिश्र, आरएफ नरिमन और दीपक गुप्ता ने वकील उत्सव बैंस की एफिडेविट पर सुनवाई शुरू की और कहा कि वह खुद अदालत में आए और अपनी बात के पक्ष में सबूत भी दें। जिससे दावों को संगत माना जाए। जब साढ़े दस बजे सुबह अदालत शुरू हुई तो बैंस अदालत में नहीं पहुंचे थे। अदालत ने आदेश जारी कर दिया कि वे अपनी बातों के पक्ष में सबूत अदालत में पेश करें। अदालत ने इस बात को भी संज्ञान में लिया कि वकील ने अपनी सुरक्षा को खतरा बताया है। अदालत ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर का उचित सुरक्षा के लिए कहा।

मुख्य न्यायाधीश को बेअसर करने की यह साजिश है। मेरा यह छिछलापन होगा यदि मैं इस आरोप को नकारते हुए कुछ कहंू। बतौर न्यायाधीश मैंने बीस साल निस्वार्थ काम किया है। मेरे खाते में आज रुपए छह लाख अस्सी हजार मात्र हैं। रुपए के लेनदेन का मुझ पर कोई आरोप नहीं लग सकता। लेकिन लोगों को कुछ तो करना ही है। उन्हें लगा कि यह आरोप ज़्यादा ठीक है, इसे लगाते हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने शानिवार (20 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट की एक विशेष सुनवाई आयोजित की। तीन जज की बेंच में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस अरूण मिश्र, जस्टिस संजीव खन्ना थे। एपेक्स कोर्ट की एक पूर्व महिला कर्मी ने बाइस जज को ब्यौरे वार एफीडेविट जजों के निवास पर भेजा था। इसे भेजने वाली महिला अदालत में पहली मई 2014 से 21 दिसंबर 2018 तक कार्यरत थी। वह मुख्य न्यायाधीश के घर में आफिस में भी काम करती थी। उसका आरोप है कि उसे बिना कारण बताए नौकरी से निकाल दिया गया।

उसका आरोप है कि उसकी सेवाएं खत्म करने के बाद उसके पति और उसके देवर को भी जो दिल्ली पुलिस में बतौर हेडकांस्टेबल नौकरी कर रहे थे- उन्हें भी सस्पेंड कर दिया गया। उसका सगा भाई जो सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त था उसकी भी सेवाएं समाप्त कर दी गईं। उसका आरोप है कि इच्छा पूरी न करने के कारण उसके और उसके परिवार के साथ ऐसा किया गया।

इस एफीडेविट का पूरा ब्यौरा शुक्रवार की शाम को मीडिया के चार ऑनलाइन मीडिया चैनेल में आ गया। मुख्य न्यायाधीश का कहना है कि इन मीडिया आउटलेट ने उन्हें शनिवार की सुबह सात बजे तक का समय भी दिया था।

सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल एसएस कलगाँवकर ने पत्र के इस दावे का खंडन किया। अपने ब्यौरेवार ईमेल में संबंधित महिला के तमाम आरोपो को आधारहीन उन्होंने बताया। सेक्रेटरी जनरल ने लिखा कि उसने सोच-समझ कर उपयुक्त समय पर ये आरोप लगाए हैं। ऐसा लगता है कि ये गलत आरोप एक तरह की दबाव डालने की कोशिश है। क्योंकि गलत काम करने पर उसके और उसके परिवार पर कानून के तहत कार्रवाई शुरू हो गई है।

यह भी संभव है कि इसके पीछे गलत ताकतें हों जिनका इरादा संस्थान को ही बदनाम कर देने का हो। आरोप है कि उस महिला ने किसी से रुपए 50हजार मात्र यह लालच देकर लिए कि वह सुप्रीम कोर्ट में उसकी नौकरी लगवा देगी।

शनिवार को हुई सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने कहा कि उनके खिलाफ जो आरोप लगाए गए हैं। वह न्यायापालिका को बदनाम करने के लिए हैं। मैं बेंच पर बैठ कर अपनी जिम्मेदारी बिना किसी भय के निभाता रहूंगा। कोई कोई बुद्धिमान आदमी जज होना चाहेगा। हम सबके पास तो सिर्फ आदर-सम्मान ही है और उसे भी बर्बाद करने की कोशिश हो रही है। यदि जज के लिए ये सब शर्तें हैं तो अच्छे लोग कभी भी न्यायापालिका में नहीं आएंगे। जस्टिस खन्ना भी बेंच के हिस्सा थे। उन्होंने कहा कि ऐसे आरोप रूकावट तो डालते ही हैं।

एटार्नी जनरल (एजी) वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल और सोलीसिटर जनरल तुषार मेहता भी इस दौरान मौजूद थे। वेणुगोपाल ने कहा चूंकि वे सरकार की हिमायत करते हैं तो उनके खिलाफ दूसरे वकील बेमतलब की बातें करते हैं। मेहता ने अदालत से अनुरोध किया कि उनकी ओर से एक मामला दर्ज किया जाए।

अदालत ने कोई न्यायिक आदेश जारी नहीं किया लेकिन मीडिया को यह ताकीद ज़रूर की कि वह इस जिम्मेदारी के साथ काम करे कि ऐसे आरोपों से न्यायापालिका की निष्पक्षता पर कोई आंच नहीं आए। इस फैसले में मुख्य न्यायाधीश मौजूद नहीं थे। जस्टिस मिश्र और जस्टिस खन्ना ने परामर्श लिखा।