मिसाल : अपने ही छोड़ जा रहे शव, अनजान करा रहे अंतिम संस्कार

कोरोना संक्रमण का खौफ लोगों में इस तरह घर कर गया है कि वे अपनों को अंतिम विदाई तक देने से बच रहे हैं। ऐसे में कई नेक लोग सामने आकर शवों को पूरी रीति रिवाज के साथ अंतिम संस्कार करा रहे हैं।
नागपुर में एक ऐसी ही संस्था पिछले काफी समय से काम कर रही है जो लावारिस छोड़ दिए जा रहे शवों का दाह संस्कार कर रही है। ऐसे समय में जब लोग अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों के अंतिम दर्शन तक नहीं कर रहे हैं, उस वक्त नागपुर में कुछ नेक इंसान भी हैं जो शवों को को रीति रिवाज के साथ अंतिम संस्कार कर रहे हैं।
जहां अपने ही लोग जहां पीछे हट रहे हैं, वहीं ऐसे में ये देवदूत बन सामाजिक दायित्व मानकर नेक काम को अंजाम दे रहे हैं। हालांकि, छोटे परिवारों को इस भय के मनोविकार का दंश झेलना पड़ रहा है जो अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार के लिए लोगों को जुटा पाने में संर्घष कर रहे हैं।
कोरोना के नेशनल इमरजेंसी के समय इको फ्रेंडली लिविंग फाउंडेशन (ईईएलएफ) के विजय लिमाय ऐसे लोगों की मदद के लिए सामने आए हैं, जो प्रियजनों के अंतिम संस्कार के संकट में फंसे हैं। ईईएलएफ के सदस्य मृतकों की अर्थी उठाकर शवदाह गृह ले जा रहे हैं और अंतिम संस्कार भी करा रहे हैं। विजय लमाय ने पीटीआई एजेंसी को बताया कि संगठन नागपुर नगर निगम के साथ मिलकर पर्यावरण अनुकूल अंतिम संस्कार करने को बढ़ावा देता है जिसके तहत लकड़यिों की बजाय कृषि अपशिष्टों एवं कृषि अवशेषों से चिता बनाई जाती हैं।