महाभारत ही है अगला आम चुनाव

कांग्रेस के पूर्ण सत्र में महाभारत के अंदेशे के बारे में राहुल गांधी ने बड़े साफ तौर पर इशारा किया था। उन्होंने भाजपा को कौरव और कांग्रेस को पांडव बताया। राहुल ने अगले चुनाव के लिए अपना कार्यक्रम भी तय किया। अगले चुनाव को महाभारत बताने से यह बात साफ हो गई कि आगामी आम चुनाव भी कौरवों और पांडवों के बीच महाकाव्य में हुए महाभारत की ही तरह होगा। पांडव संख्या में कम ज़रूर थे लेकिन वे सही दिशा में थे।

राहुल गांधी अपनी बात में आक्रामक थे। उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में भाजपा की भूमिका पर व्यंग्य किया, कथित क्रोनी पूंजीवाद और हिंदू मिथकों के संदर्भों को याद करते हुए उन्होंने भाजपा के उन्मादी रवैए को कौरवों का और खुद को पांडव बताया।

आगे हैे जबरदस्त लड़ाई

इसी से यह साफ हुआ कि हम बेहद कठिन चुनावी लड़ाई की ओर बढ़ रहे हैं। इसके पहले सोनिया गांधी ने विपक्षी नेताओं के लिए रखे भोज में मेजें सजाते हुए यह संकेत दिया था। इसमें वे तमाम बातें थी जो राहुल गांधी के नेत्तृव में कांग्रेस के पुनर्जीवन को बताती थीं। उन्होंने बताया कि ‘भारत के विचारÓ मुद्दे पर और वर्तमान सरकार की शैली पर यह जंग होगी। भारत क्या भय और धमकी की संस्कृति बर्दाश्त करेगा, हिंसा पर उतारू भीड़ को सहेगा और वैज्ञानिक चेतना का उपहास उड़ाना पसंद करेगा। उन्होंने उपचुनावों में भाजपा की परेशानी बढ़ाते हुए अभी हाल हुए उप चुनावों में उसकी हार का उल्लेख भी किया।

अब राहुल गांधी ने खुद को उनकी तरह ही सोचने वाली पार्टियों के समर्थन से प्रधानमंत्री को चुनौती देने वाला बना लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पर निजी हमले करते हुए उन्होंने यह भी साफ किया कि कांग्रेस बिना थके प्रचार करेगी और मोदी सरकार को विभिन्न मुद्दों पर घेरेगी।

मोदी के नेतृत्व में भाजपा की अजेयता

सभी यह मानते हैं कि इस साल कर्नाटक, राजस्थान में होने वाले और इसी साल के अंत में छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में होने वाले चुनावी नतीजों पर ही निर्भर करता है आम चुनाव। भाजपा के अजेय रहने के मिथक पर उत्तरप्रदेश में अभी हाल हुए उपचुनाव से सवाल उठा है। कांग्रेस का पूर्ण सत्र तब हुआ जब भाजपा और कांग्रेस का विरोध कर रही पार्टियों ने आपस में तालमेल बनाने की कोशिश शुरू कर दी थी। जब तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने गैर भाजपा औैर गैर कांग्रेसी मोर्चा बनाने का प्रस्ताव दिया और तत्काल उनके प्रस्ताव को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाथों-हाथ लिया। इसके साथ ही यह बात साफ हुई कि सभी दल इस मुद्दे पर एकमत नहीं है। हालांकि ममता की तृणमूल कांग्रेस और राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति पार्टी ज़रूर भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ होने के अलावा कई मुद्दों पर एक जान पड़ती है। इससे कांग्रेस को भी भाजपा विरोधी तमाम पार्टियों से तालमेल करने और भाजपा के 2014 के ‘अच्छे दिनÓ के वादे की सच्चाई बताने का मौका मिलता है।

सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी अब वाकई उस दौर में आ गए हैं जहां से वे चुनौती दे सकें? या आज भी वे पार्टी की वंशवादी विरासत के ही प्रतीक हैं? या क्या वे ऐसे राजनेता के तौर पर विकसित हो गए हैं कि वे राजनीति में युवाओं को साथ लेकर चल सकते हैं। अभी हाल गुजरात में उनकी यानी एक व्यक्ति की मेहनत दिखी थी जिसके बाद ही कांग्रेस का पूर्ण सत्र हुआ था। इसमें उन्होंने कुलीन नेता होने की अपनी छवि बदल दी थी। वे एक कार्यकर्ता के रूप में दिख रहे थे।

हाल में उनके प्रयासों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि 132 साल पुरानी कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी अब जनता की आकांक्षाओं को समझने लगे हैं और संभावित सहयोगियों की पहचान भी उन्हें होने लगी है। इस पूर्ण सत्र में वे अगले आम चुनावों में कांग्रेस की रणनीति को बड़े ही साफ तरीके से समझा सके और उन्होंने संयुक्त मोर्चे की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिया। नए नेतृत्व की योजना है कि वे राजनीतिक सृजनात्मकता को और तेज़ करें। ‘डिजिटलÓ के लिहाज से सतर्क हों और पार्टी की आंतरिक मज़बूती को और अधिक बढ़ा सकें जिसे सभी देखें और परखें।

कांग्रेस पार्टी की चुनावी युद्ध की तैयारी से यह साफ है कि वे चाहते हैं कि वैचारिक मतभेदों को दरकिनार रखते हुए भाजपा के सहयोगियों के सीमित हो रहे आधार क्षेत्रों का उपयोग कर सकें। राहुल गांधी के राजनीतिक जीवन का सबसे महत्वपूर्ण क्षण तब था जब उन्होंने अपनी चुप्पी छोड़ दी और मां सोनिया गांधी की छाया से अलग हो गए। सोनिया ने उस पर कहा था ‘आज वे मेरे भी बॉस हैंÓ। इसे लेकर कहीं कोई ऊहापोह नहीं होना चाहिए। यह एक रणनीतिक बयान था जिसके जरिए पार्टी के कार्यकर्ताओं को यह संदेश दिया गया कि वे राहुल गांधी को अपना समर्थन दें।

राहुल ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बयान दिया जिसमें उन्होंने यह माना कि कांग्रेस लोगों की उम्मीदों को समझ नहीं पाई और उससे गलतियां हुई। यह कहने के पीछे आशय था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को यह जता देना कि उन्हें नए सिपहसालार से अब चुनौती मिल रही है।

कांग्रेस ने आगे की चुनावी लड़ाई के लिए अपने कार्यकर्ताओं में खासी स्फूर्ति भरी। यह भी जताया कि यह पार्टी ही भाजपा का विकल्प है। साथ ही यह बात भी साफ हुई कि वह उन सभी पार्टियों के साथ सहयोग की इच्छुक है जो मोदी सरकार को2019 के लोकसभा चुनावों में सत्ता से बेदखल करना चाहते हैं।

पार्टी कार्यकर्ताओं से राहुल गांधी ने वादा किया है कि उनकी शिकायतों पर ध्यान दिया जाएगा। चुनाव में टिकट देने के समय बहुधा वास्तविक समर्पित कार्यकर्ताओं की बजाए नेताओं को टिकट बांट दिए जाते हैं। इस प्रक्रिया पर अब रोक लगेगी। उन्होंने कहा कि पार्टी नेताओं से कार्यकर्ताओं का मिलना अब ज़्यादा सहज होगा और युवाओं को ज़्यादा टिकट दिए जाएंगे। यह भी सच्चाई है कि कई राज्य इकाइयों में कांग्रेस में ही खासी गुटबाजी है और वे पुराने ढर्रे पर ही चलना चाहते हैं। राहुल ने इस पर संकेत दिया कि वे अनुशासन चाहते है। जिससे पार्टी की जीत के आसार किसी भी तरह कम न हों। दूसरा बदलाव जो दिखा वह था कार्यकर्ता को केंद्र में रखा जाना। राहुल गांधी ने कहा कि उन्होंने मंच को इसीलिए खाली रखा है जिससे पार्टी के अंदर के और बाहर के नौजवान जिनमें योग्यता हैं, वे यहां आएं। मंच पर इस बार लोग बैठे नहीं थे। सिर्फ नेतागण भाषण देने आते और भाषण देकर लौट जाते।

तालमेल का प्रयास

राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी के राजनीतिक प्रस्ताव में सहयोग पर जोर है साथ ही न्यूनतम साझा कार्यक्रमों पर परस्पर सहयोग की बात है जिससे भाजपा-आरएसएस को अगले आम चुनाव में परास्त किया जा सके और भाजपा की आर्थिक नीतियों को बदला जाए।

पार्टी के राजनीतिक, आर्थिक, विदेशी मामलों और कृषि, बेरोजगारी और गरीबी के जरिए समाज के विभिन्न वर्गों की चिंताएं दूर करने की कोशिश की गई। पार्टी अध्यक्ष ने अपने समापन भाषण में युवाओं और किसानों के दो वर्गों को जो मोदी सरकार से काफी निराश हो चुके हैं और वे जनसंख्या के एक बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व भी करते हैं, उनका भी आहवान किया।

ऐसा साफ दिखा कि राहुल गांधी पूरी तौर पर प्रभुत्व में हैं। उन्होंने अपनी नई टीम भी बनानी शुरू कर दी थी। पार्टी में इस्तीफा देने का दौर दौरा भी शुरू हो गया। ऐसी खबरें भी आई कि अभिनेता राजनीतिज्ञ राजबब्बर को अपने पद पर तब तक बने रहने को कहा गया है जब तक पार्टी राज्य इकाई का नया प्रमुख नहीं चुन लेती। राजबब्बर के उदाहरण से साफ है कि पार्टी पुराने सिपहसालारों में हताशा दिखती नज़र आ रही है जबसे राहुल ने कांग्रेस प्रमुख का पद संभाला है। अभी हाल गोरखपुर और फूलपुर में लोकसभा चुनाव हुए। गोरखपुर का प्रतिनिधित्व पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ करते थे और फूलपुर लोकसभा सीट पर उनके उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का प्रतिनिधित्व था। वहां चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के प्रदर्शन से कांग्रेस अध्यक्ष काफी निराश हैं। इसी तरह गुजरात कांग्रेस के प्रमुख भारत सिंह सोलंकी ने भी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को अपना इस्तीफा सौंप दिया। रिपोर्ट है कि पार्टी के और भी कई बड़े नेता आने वाले दिनों में अपने इस्तीफे देंगे।

इसके पहले गोवा कांग्रेस के अध्यक्ष शांताराम नायक (71 वर्ष) ने कहा था कि वे राहुल गांधी के भाषण से बहुत प्रभावित हुए हैं। वे पहले वरिष्ठ कांग्रेसी नेता हैं जिन्होंने तब इस्तीफा दे दिया जब राहुल गांधी ने कहा कि वे चाहते हैं कि युवा पीढ़ी को आगे आने और पार्टी का नेतृत्व संभालने का मौका दिया जाना चाहिए। नायक ने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी को अपना इस्तीफा भेज कर गोवा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने आठ जुलाई 2017 को यह पद संभाला था। उन्होंने लुई जीनो फेलेरियो से शपथ ली थी। नायक 1984 में उत्तर गोवा लोकसभा सीट पर विजयी हुए थे। राज्यसभा में भी वे दो बार रहे थे।

राहुल गांधी को जब कांग्रेस कार्यसमिति में मनोनयन करने का मौका मिला तब कुछ ही दिनों में यह सिलसिला शुरू हो गया। ऐसा समझा जाता है कि अखिल भारत कांग्रेस समिति (एआईसीसी) के प्रतिनिधियों ने हाथ उठा कर गांधी से कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों का चुनाव करने को कहा था।

अब समझदार हैं राहुल

कांग्रेस का जब पूर्ण सत्र होने को था, उसके पहले से ही राहुल गांधी परिपक्व हो चले थे। उनके बेहद अच्छे पल बर्कले यूनिवर्सटी (2017-18) के थे। उन्होंने तब यह माना था कि घमंड के कुछ तत्व ज़रूर कांग्रेस में घुस आए हैं। यह दौर यूपीए दो का था। यूपीए सरकार जो 2004 में बनी थी उसका पूरा दौर दस साल का ही था। राहुल ने सोशल मीडिया के महत्व को माना और अपनी सोशल मीडिया टीम को यह निर्देश भी दिया कि ‘इन पोस्टÓ की और ‘ऑफिस ऑफ आर जीÓ की परवाह भी करें।

‘सूट-बूट की सरकारÓ कह कर उन्होंने यह जता दिया था कि वे प्रधानमंत्री के सूट पर कटाक्ष कर सकते हैं। ‘गब्बर सिंह टैक्सÓ जो जल्दबाजी में लिया गया केंद्र का फैसला था। उस पर व्यंग्य उन्होंने गुजरात चुनावों से ठीक पहले ही गढ़ा था। उनके कटाक्ष के बाद ही सरकार ने 200 मदों से जीएसटी दरें कम कर दीं और 50 फीसद मदों पर 28 फीसद टैक्स दरों में कांट-छांट भी कर दी। उन्होंने विपदाग्रस्त कृषि के दौरान विमुद्रीकरण के सरकारी फैसले की निंदा की थी। उन्होंने अपने दम पर चुनाव प्रचार किया और दूसरे गुटों के लोगों को साथ जोडऩे की कोशिश की। उनकी इस पहल का नतीजा हुआ कि भाजपा को अपने बड़े नेताओं को मैदान में उतारना पड़ा और उन्हें एहसास हुआ कि 22 साल पुराना किला इस बार धसक रहा है।

राहुल ने अचानक मंदिरों में जाने का फैसला लिया और बताया कि वे शिव के उपासक हैं। यह संदेश चारों तरफ फैला और गुजरात के हिंदू मतदाताओं पर उसका असर पड़ा। रणनीतिक तौर पर उन्होंने अपनी चुनावी रैलियों में मुसलमानों का नाम तक नहीं लिया क्योंकि उन्हें इस बात का अनुमान था कि वे कांग्रेस का समर्थन करेंगे। उनके इस कदम से यह भ्रम भी टूटा कि कांग्रेस ‘मुसलमानों का तुष्टिकरणÓ करती है। उन्होंने बहुत साफ तौर पर यह बात साफ कर दी कि वे किस तरह पार्टी को चलाते हैं जब खासे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘नीच किस्म का आदमीÓ कहा तो उनसे पार्टी की ‘प्राइमरी सदस्यता छीन ली गई।

राहुल गांधी जब आक्रामक रूप लेते है तो उनकी आवाज में तल्खी आ जाती है। जब वे भाजपा पर उसकी अलगाववादी नीतियों पर और प्रशासनिक मामलों पर आलोचना करते हैं तो संभलते हुए तीखा बोलते हैं। उन्होंने भाजपा की प्रतिबद्धता को पूरे देश के बजाए एक संगठन के प्रति बताते हुए उसकी आलोचना की है।

यदि आर्थिक प्रस्ताव में बीच की राह निकाल गई है तो राजनीतिक प्रस्ताव में यह अपील की गई है कि समान न्यूनतम कार्यक्रमों पर दूसरी पार्टियों के साथ काम किया जाएगा। राहुल गांधी भले ही बहुत अच्छे वक्ता न हो लेकिन वे न तो उत्तेजित होते हैं और न ही अभिनय करते हैं। वे साधारण तरीके से अपनी बात ज़रूर रख देते हैं। राहुल गांधी में ज़रूर अपनी बात साफ-साफ रखने की कुछ कमी ज़रूर है और मोदी की उस पर नज़र भी है। वे हमला बोलने की बजाए एक अच्छे भले इंसान की तरह अपनी बात रखते हैं। एक दौर था जब भाजपा ने तमाम सोशल मीडिया पर कब्जा कर लिया था और राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस नींद में थी लेकिन राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस आज सोशल मीडिया में भी पूरी आक्रामकता और तर्कों के साथ सक्रिय है।

राहुल गांधी अब न तो ‘पप्पूÓ हैं। जिसे कह कर मोदी और भाजपा मजाक उड़ाते थे और पूरे देश को बताते थे कि देखो वह है जोकर! आज राहुल एकदम बदले हुए व्यक्तित्व हैं। उनमें आत्मविश्वास है, वे मजाक भी करते हैं और उनका रवैया दोस्ताना है। उनके नेतृत्व को लेकर उनके विपक्षी अब पृष्ठभूमि में चले गए हैं।

भाजपा ने पूरी कोशिश की है कि आज़ादी की लड़ाई की विरासत को कांग्रेस से छीन ले लेकिन राहुल उसका मुकाबला करने के लिए तैयार हुए और कामयाब भी हैं। राहुल हर बार अपनी आलोचना करते है। और हर बार एक नया और फुर्तीला राहुल सामने आता है। कांग्रेस को भविष्य की पार्टी बताते हुए उसे ही ताकतवर भाजपा से लोहा जो लेना है।