महात्मा गांधी ने तब क्या कहा था

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संयुक्त सचिव मनमोहन वैद्य दिल्ली में 1947 में महात्मा गांधी और एमएस गोलवलकर के बीच हुई बैठक का जि़क्र करते ही हैं। तब गोलवलकर आरएसएस प्रमुख थे। वैद्य गोलवलकर के संपूर्ण कृतित्व से इस बैठक का हवाला देते हैं। इस बैठक के बारे में तकरीबन 22 साल बाद 1969 में गोलवलकर टिप्पणी करते हैं। वैद्य जिसका उल्लेख करते हैं।

महात्मा गांधी जन्मशती के मौके पर गांधी की एक मूर्ति का अनावरण गोलवलकर ने किया। अपने भाषण में उन्होंने कहा कि, महात्मा से मेरी अंतिम मुलाकात 1947 में हुई। उस समय दिल्ली में दंगे हो रहे थे। जो लोग परंपरा से अहिसंक होने की बात कर रहे थे वे अचानक क्रूर और बेदिल हो उठे थे। महात्मा ने मुझसे कह, देखो, क्या हो रहा है? मैंने कहा, यह हमारा दुर्भाग्य है। ब्रिटिश कहा करते थे जब हम जाएगे तो आप लोग एक-दूसरे का गला काट दोगे। वही आज हो रहा है। सारी दुनिया में हमारी थुक्का-फजीहत हो रही है। उस दिन प्रार्थना बैठक में गांधी जी ने गर्व से मेरा नाम लिया और मेरे विचार सुनाए।

पटेल की जीवनी (पहली बार 1990 में छपी) और गांधी की जीवनी (जो 2006 में) आई। मेरा साबका गांधी गोलवलकर की बैठक (12 दिसंबर 1947) से पड़ा। महात्मा गांधी के ‘हरिजन’ प्रार्थना सभा में प्रार्थना बैठक का ब्यौरा छपा जो महात्मा गांधी के ‘क्लेक्टेड वक्र्स ऑफ महात्मा गांधी’ में छपा। मैंने बैठक के संबंध में पाया कि दो स्थानों पर इस बैठक का संदर्भ मिलता है। एक तो बृजकृष्ण चांदी वाला की ‘गांधी जी की दिल्ली डायरी और एक पत्र में जिसे नेहरू ने पटेल को अक्तूबर 1948 में लिखा था। यह सरदार पटेल का पत्राचार (संपादित दुर्गादास) खंड सात, पृ 672) में है।

सितंबर 21, 1947 के हरिजन में गांधी जी का पूरा वृतांत है जो सितंबर 12 को प्रार्थना बैठक खत्म होने पर हुआ था। उसी दिन सुबह गोलवलकर के साथ उनकी बात होती है। उन्होंने उनसे कहा (यानी गांधी जी ने गोलवलकर से कहा) कि उनके हाथ (आरएसएसके) के खून से से हुए हैं। गुरूजी ने उन्हें भरोसा दिया कि यह असत्य है। उस संगठन का मुसलमानों की हत्याओं से कोई लेना-देना नहीं है। यह कुल मिला कर पूरी सामथ्र्य से हिंदुस्तान की रक्षा करना चाहता है। यह शांति का इच्छुक है और गांधी से चाहता है कि वे अपना नज़रीया सार्वजनिक करें।

दिल्ली में 1947 में कृष्ण चांदीवाला गांधी के लगातार साथी थे। वे गांधी के सहयोगी और सहायक 1920 से बन गए थे। जब उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए सेंट स्टीफेंस कॉलेज छोड़ दिया था। वृजकृष्ण के अनुसार जब गोलवलकर ने उन्हें भरोसा दिया कि आरएसएस मुसलमानों की हत्या के पक्ष में नहीं है। गांधी ने तब उनसे कहा कि यह बात वे सार्वजनिक तौर पर कहें। गोलवलकर ने कहा कि अपनी प्रार्थना सभा में वे उस शाम सार्वजनिक तौर पर भी कहें। गोलवलकर ने कहा कि गांधी को उनके नाम से हवाले के साथ यह कहा गांधी ने यही किया। प्रार्थना के बाद सभा में किया और फिर गोलवलकर से कहा कि बयान तो गोलवलकर की ओर से आना चाहिए था। इसके बाद नेहरू ने 27 अक्तूबर 1948 को एक पत्र पटेल को लिखा। गांधी ने नेहरू से कहा उन्हें गोलवलकर के कथन पर भरोसा नहीं हुआ।

गांधी गोलवलकर बैठक के चार दिन बाद गांधी जी ने (16 सितंबर को) नई दिल्ली की वाल्मीकि कालोनी में की। इसका उल्लेख हरिजन में महात्मा गाधी आखिरी दौरा में है। इसे उनके सहायक (1919 से) प्यारे लाल नैय्यर ने लिखा है और यह बृजकृष्ण से कहा कि हालांकि पहले वे आरएसएस के एक शिविर में अनुशासन, सरलता और छूआछूत के अभाव से खासे प्रभावित हुए थे। लेकिन सही इरादे के बिना त्याग और सही ज्ञान समाज के लिए बर्बादी की वजह होता है। यह समाज को नष्ट भी कर सकता है। इसकी ताकत का इस्तेमाल भारत के हितों के लिए होना चाहिए न कि इसे बर्बाद करने के लिए।

जब आरएसएस के एक कार्यकर्ता ने गांधी जी से पूछा, क्या हिंदू धर्म इस बात की अनुमति नहीं है कि बुरा करने वाले किसी एक की जान ले ली जाए? उन्होंने जवाब दिया, कैसे एक पापी सही फैसला लेने का दावा कर सकता था कि उसका दूसरे पापी को मारने का आम फैसला सही है। सही तौर पर बनी एक सरकार ही एक पापी को सज़ा दे सकती है। पटेल और नेहरू का जि़क्र करते हुए गांधी जी ने कहा (वे दोनों) वर्षों के साथी हैं। और उनका एक ही मकसद है। उन्होंने जोड़ा। दोनों ही सरदार और नेहरू शक्तिहीन हो जाएंगे। यदि आप जज होंगे और जल्लाद भी। आप उनके प्रयासों को अपने हाथ में कानून लेकर नष्ट मत करो।

फिर गांधी जी ने वह कहा जो आज भी भारत में प्रासंगिक हैं और उसमें आवश्यक जोड़-घटाव किया जा सकता है, ‘यदि हिंदुओं का बहुत बड़ा समूह किसी एक दिशा में जाने का इच्छुक है और यदि यह गलत हो तो भी कोई उसे ऐसा करने से रोक नहीं सकता।’ लेकिन एक अकेले व्यक्ति में यह ताकत होती है कि वह इसके खिलाफ आवाज उठाए। उन्हें चेतावनी दें। यही मैं करता रहा हूं।

लेखक सेंटर फार साउथ एशियन

एंड मिडिल ईस्टर्न स्टडीज,

यूनिवर्सटी ऑफ इलिनॉइए में प्रोफेसर है