महँगाई खा रही सारी कमायी

लगातार बढ़ती महँगाई निम्न-मध्यम वर्ग के लिए अब असहनीय होती जा रही है। गैस से लेकर खाद्यान्न तक सब कुछ कई-कई गुना महँगा हो चुका है। बढ़ती महँगाई को कैसे क़ाबू किया जाए? इसे लेकर आर्थिक मामलों के जानकारों से बातचीत के आधार पर ‘तहलका’ के विशेष संवाददाता राजीव दुबे की रिपोर्ट:-

देश में पिछले छ:-सात साल से महँगाई लगातार बढ़ रही है। सरकार महँगाई पर जवाब देने से बचने के लिए यूक्रेन-रूस युद्ध को ज़िम्मेदार ठहरा रही है। लेकिन वास्तविकता यह है कि बढ़ी जीएसटी, वैट, जीएसटी और जमाख़ोरी करके मुनाफ़ा कमाने की पूँजीपतियों की चाहत इसके लिए ज़िम्मेदार है। इस सबके लिए हमारा सरकारी तंत्र ज़िम्मेदार है, जो पूरी तरह अव्यवस्था के दौर से गुज़र रहा है। जनता से सच छिपाया जा रहा है। जो भी आँकड़े बताये जा रहे हैं, वो सही नहीं हैं। बढ़ती महँगाई को लेकर मध्यम और ग़रीब तबक़ा परेशान है। जानकारों का कहना है कि अगर समय रहते महँगाई पर क़ाबू नहीं पाया गया, तो आने वाले दिनों में यह और भी बढ़ेगी, जिससे अपराध बढ़ेंगे।

आर्थिक मामलों के जानकार पीयूष जैन का कहना है कि महँगाई तो 2020 के कोरोना के आने के दौरान से तेज़ी से बढ़ रही है। लेकिन सरकार ने बढ़ती महँगाई के लिए कोरोना को दोषी ठहराकर अपना पल्ला छाड़ लिया था। तब लोगों ने भी कोरोना को वैश्विक महामारी समझकर महँगाई के दंश को स्वीकार कर लिया था। लेकिन अब सरकार ने रूस और यूक्रेन युद्ध को महँगाई के लिए ज़िम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया है। ऐसे में जब सरकार ही अपनी ज़िम्मेदारी से बचेगी, तो महँगाई पर कैसे क़ाबू पाया जा सकता है? पीयूष जैन का कहना है कि देश के कुछ चंद पूँजीपतियों ने जिस तरह से बाज़ार पर अपना क़ब्ज़ा किया है, उसे देखकर तो नहीं लगता है कि महँगाई पर जल्द क़ाबू पाया जा सकता है। आटा, दाल और चावल के साथ खाद्य तेल का कारोबार चंद पूँजीपतियों के हाथों में है। ये लोग सरकार की अनदेखी कर अपनी इच्छानुसार चीज़ों के भाव तय करके जमकर पैसा कमाने में लगे हैं। क्योंकि सरकार का अप्रत्यक्ष रूप से इनके ऊपर हाथ है। यही वजह है कि महँगाई अनियंत्रित होती जा रही है।

आर्थिक मामलों के जानकार एवं कर विशेषज्ञ (टैक्स एक्सपर्ट) ध्रुव अग्रवाल का कहना है कि सरकार अपना ख़ज़ाना भरने के लिए ग़रीबों की जेबें ख़ाली करने में लगी है। जिस तरीक़े से मई के पहले सप्ताह में ही घरेलू गैस के सिलेंडर के दाम एक मुश्त 50 रुपये बढ़ाये हैं, उससे देश के ग़रीब और मध्यम वर्ग के लोगों को करारा झटका लगा है। उन्होंने बताया कि खुदरा महँगाई दर तो क़रीब सात फ़ीसदी के आस-पास है, जबकि थोक महँगाई दर पिछले एक साल से दो-दहाई अंकों पर पहुँच चुकी है, जो अपने आप में सामान्य बात नहीं है। उनका कहना है कि कोरोना के कारण देश के लोग बढ़ती आर्थिक परेशानियों से उबरे नहीं थे कि यूक्रेन और रूस के लम्बे खिंचते युद्ध की वजह से कच्चे तेल और अनाज के साथ खाद्य तेल के दाम बढ़ते ही जा रहे हैं।

दिल्ली के चाँदनी चौक के व्यापारी विजय प्रकाश जैन का कहना है कि पटरी से उतरी अर्थ-व्यवस्था सुचारू रूप से पटरी पर लाने के लिए बड़ी सूझबूझ और मेहनत की आवश्यकता होती है। अगर व्यवस्था में पारदर्शिता न हो, तो वह ठीक नहीं हो सकती। हमारे यहाँ कुछ भी ठीक नहीं है, यही वजह है कि व्यवस्था सुधरने की जगह बिगड़ती जा रही है। जैसा कि मौज़ूदा समय में हो रहा है। उनका कहना है कि सन् 2020 में जब कोरोना के चलते जिन लोगों की नौकरियाँ गयीं, उनकी अभी तक पूर्ण रूप से वापसी नहीं हुई है। जिन्हें नौकरी मिल गयी, उनमें से बहुतों को पूरा और योग्यतानुसार वेतन नहीं मिल रहा है। इससे देश में बड़े तबक़े की आर्थिक स्थिति बिगड़ चुकी है। सरकार इस ओर भी कोई ध्यान नहीं दे रही है। विजय प्रकाश जैन का कहना है कि आँकड़े बताते है कि सन् 2020 से ही देश में लगभग 20 करोड़ से ज़्यादा लोग ग़रीबी रेखा के नीचे चले गये हैं। ऐसे में सरकार को ठोस और कारगर क़दम उठाने की ज़रूरत है, ताकि को लोगों को रोज़गार मिल सके। साथ ही बढ़ती महँगाई पर क़ाबू पाने के लिए भी सरकार को बेहतर क़दम उठाने पड़ेंगे। सरकार को अपनी मनमानी को रोकना होगा। अन्यथा पड़ोसी देशों जैसे हालात बनने में देर नहीं लगेगी। क्योंकि देश का बड़ा तबक़ा महँगाई की चौतरफ़ा मार से कराह रहा है।

दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रो. एस. राज सुमन का कहना है कि जब कोरोना महामारी चरम पर थी, तब और जब देश में पाँच राज्यों में चुनाव चल रहे थे, तब महँगाई का मुद्दा दबा रहा। जैसे ही पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम घोषित हुए, महँगाई बढ़ी भी और लोगों का ध्यान भी इसने खींचा। अब यूक्रेन-रूस का युद्ध चल रहा था, तब भी महँगाई की चर्चा दबाने की कोशिश हो रही है। उन्होंने बताया कि हाल ही में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की रिपोर्ट में यूक्रेन संकट की वजह से चालू वित्त वर्ष 2022-23 में सारी दुनिया में व्यापारिक घाटा बढ़ा है। इसके मद्देनज़र वैश्विक व्यापार लगभग 4.7 से घटकर तीन फ़ीसदी तक रह गया है। ऐसे में भारत जैसे देश में आशंका जतायी जा रही है कि महँगाई अभी और बढ़ेगी। उनका कहना है कि हमारी सरकार को महँगाई पर क़ाबू पाने के लिए सही-सही आँकड़े सार्वजनिक करने होंगे। साथ ही कोरोना-काल में गयी युवाओं की नौकरी को वापस दिलाने का प्रयास करना होगा। जमाख़ोरी पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना होगा और कर (टैक्स) कम करना होगा। अन्यथा महँगाई सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती ही जाएगी। उनका कहना है कि देश में महँगाई बढऩे के पीछे सबसे बड़ा कारण अगर कोई है, तो वो है देश में पूँजीपतियों की विस्तारवादी सोच। क्योंकि वे जमकर जमाख़ोरी करने और चीज़ों के मनमाने दाम वसूलने में लगे हैं। पूँजीपतियों ने अभी से जमाख़ोरी करके आटे-दाल के साथ-साथ खाद्य तेलों के दाम बढ़ा दिये हैं। किसानों की फ़सल को ख़रीदने वाले पूँजीपतियों द्वारा जमाख़ोरी करने की आदत पर रोक लगनी चाहिए। व्यवस्था की कमी और ख़ामी के चलते ये लोग मौक़े का फ़ायदा उठाते जा रहे हैं। कोरोना और युद्ध भी कारण हैं; लेकिन वो दूसरे और अलग कारण हैं। लेकिन आंतरिक कारण जमाख़ोरी और चीज़ों के मनमाने दाम वसूलने की आदत ही हैं।

दिल्ली के कई अन्य छोटे-बड़े व्यापारियों ने साफ़ कहा कि सरकार की नीयत में खोट है। उनका कहना है कि हमारी सरकार को भलीभाँति मालूम है कि कोरोना महामारी के चलते लोगों का रोज़गार छिना है और कामधंधा मंदा हुआ है। परिवार-के-परिवार कोरोना के चलते उजड़ गये हैं। ऐसे में पेट्रोल, डीजल, ट्रांसपोर्ट, गैस, खाद्य तेल, खाद्यान्न महँगे करना; कर (टैक्स) बढ़ाना और कई तरह की वसूली प्रथा को बढ़ावा देना ठीक नहीं है। कई राज्यों में तो गैस सिलेंडर 1,000 रुपये से ज़्यादा का मिल रहा है। देश का किसान गेहूँ, धान (चावल), सब्ज़ी, खाद्यान्न तेल की फ़सलें और दालें पैदा करता है; लेकिन उसे सही दाम कभी नहीं मिलते। उसे अधिकतर मुनाफ़े की जगह घाटा होता है; लेकिन बाज़ार में इन्हीं वस्तुओं के दाम में कई-कई गुना मुनाफ़े पर बिकती हैं। मतलब साफ़ है कि यह महँगाई सुनियोजित है; जबकि इस पर बड़े आराम से क़ाबू किया जा सकता है।

दिल्ली के छोटे व्यापारियों का कहना है कि उपभोक्ताओं को बड़े-बड़े व्यापारी ठगने में लगे हैं। वे कम तोल की पैकिंग करके पुराने रेट पर बेचकर मोटा मुनाफ़ा कमा रहे हैं। हाल यह है कि महँगाई हर रोज़ बढ़ रही है। विपक्षी पार्टियाँ विरोध तक नहीं कर रही हैं; जिसका नतीजा यह है कि सरकार चैन से है और महँगाई बेलगाम होती जा रही है।

ट्रांसपोर्टर रमेश अग्रवाल का कहना है कि पेट्रोल-डीजल के दाम 20 से 30 फ़ीसदी तक बढ़ गये; लेकिन भाड़ा ज्यों-का-त्यों है, या उस अनुपात में नहीं बढ़ा है। ऐसे में लोगों को महँगाई के नाम पर जो लूटा जा रहा है, वो वास्तविकता से दूर है। उनका कहना है कि केंद्र सरकार को जाँच करनी चाहिए कि वे लोग कौन हैं, जो मनमानी कर रहे हैं। छोटे से लेकर बड़ा व्यापारी तक ईंधन के बढ़े दामों का हवाला देकर उपभोक्ताओं को जमकर लूटने में लगा है। लेकिन जाँच कौन करे? सरकारी तंत्र बीमार है और जनता लाचार है।

दिल्ली के शकरपुर की बीना चौधरी कहती हैं कि महँगाई सारी कमायी खा रही है। अब पहले की तरह पति द्वारा दिये गये ख़र्च में से वह बचत नहीं कर पाती हैं। बल्कि अब तो जो ख़र्च मिलता है, वह भी कम पड़ जाता है। कमायी बढऩे के बजाय घटी है और ख़र्चे बढ़े हैं।