महँगाई का चाबुक

कोरोना-काल के चलते बाज़ारों में माहौल पहले से फीका चल रहा है। अब लगातार पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दामों में इज़ाफ़ा होने से आम जनमानस और किसान महँगाई के बोझ तले दबता जा रहा है। ईंधन महँगा होने से खाद्य सामग्री महँगी हो रही है। महँगाई को लेकर दुकानदारों, आम लोगों और आर्थिक मामलों के जानकारों से तहलका संवाददाता ने बातचीत की। उनका कहना है कि यह ठीक है कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस के दामों में बढ़ोतरी हो रही है; लेकिन महँगाई के तेज़ी से बढऩे में कहीं-न-कहीं सरकारी व्यवस्था भी दोषी है। अगर समय रहते महँगाई पर सरकार ने क़ाबू नहीं पाया, तो जनता की मुश्किलें और बढ़ जाएँगी।

बताते चलें कोरोना वायरस के कहर के चलते मार्च, 2020 से देश के सभी छोटे-बड़े बाज़ारों की फीकी पड़ी रौनक़ जैसे-तैसे लौटनी शुरू हुई, लेकिन महँगाई ने लोगों को इतना मार रखा है कि ख़रीदारी का स्तर काफ़ी निम्न है।

दिल्ली के व्यापारियों का कहना है कि पेट्रोलियम पदार्थों की क़ीमतों में अगर ऐसे ही बढ़ोतरी होती रही, तो लोगों को अपने दैनिक बुनियादी ख़र्च पूरे करने में भी दिक़्क़त होगी। क्योंकि डीजल-पेट्रोल के बढ़ते दामों से ढुलाई भाड़ा बढ़ा है, जिससे खाद्यान्न से लेकर हर वस्तु के दाम 10 से 15 फ़ीसदी तक बढ़ चुके हैं; जिसका सीधा बोझ जनता की जेब पर पड़ेगा। सदर बाज़ार व्यापारी नेता राकेश यादव का कहना है कि दिल्ली में इसी साल में डीजल के दाम क़रीब 75 रुपये प्रति लीटर से 92 रुपये प्रति लीटर के क़रीब पहुँच गये हैं। यानी 10 महीने में डीजल पर 17 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हुई है। इसी तरह पेट्रोल के दाम बढ़े हैं और वह आज दिल्ली में 103 रुपये से अधिक प्रति लीटर है। आर्थिक मामलों के जानकार दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. हरीश खन्ना का कहना है कि डीजल-पेट्रोल के बढ़े हुए दामों से बाज़ार-व्यवस्था तहस-नहस हो गयी है। हर वस्तु के दाम सवा गुने से दोगुने तक हुए हैं। रसोई गैस के दाम लगातार बढ़ रहे हैं, जिससे घरेलू बजट और भी बिगड़ा है। इसी साल में रसोई के गैस के दामों में 200 रुपये से अधिक की बढ़ोतरी होना चिन्ताजनक है। इस बेतहाशा बढ़ोतरी ने ग़रीब और मध्यम वर्ग के लोगों को झझकोर कर रख दिया है।

दिल्ली में दूध, मिठाई और चाय की दुकान चलाने वालों का कहना है कि गैस सिलेंडर और दूसरी चीज़ों के दाम बढऩे के चलते उन्हें भी दाम बढ़ाने पड़ रहे हैं, जो कि उनकी मजबूरी है। सब्ज़ी उगाने वाले किसानों का कहना है कि सारा खेल डीजल, बीज, कीटनाशक और खादों के दामों में बढ़ोतरी से बिगड़ा है। इससे खेती की लागत बढ़ी है, जिसके चलते बाज़ारों सब्ज़ियाँ महँगी हो रही हैं। खेत से बाज़ार सब्ज़ी ले जाने का ख़र्च भी बढ़ा है, जिसके चलते लोगों को सब्ज़ियाँ महँगे दामों में ख़रीदने को मजबूर होना पड़ रहा है। किसान राधेश्याम ने बताया कि वो दिल्ली के यमुना नदी के किनारे वर्षों से सब्ज़ियाँ उगा रहे हैं। लेकिन इस साल डीजल के दाम जिस तरह बढ़े हैं, इस गति से डीजल महँगा होता कभी नहीं देखा। यह निश्चित तौर पर किसानों के हित में नहीं है। डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस के दाम जिस तरह हर दिन बढ़ रहे हैं, उससे निम्न और मध्यम वर्ग का किसान टूट जाएगा। क्योंकि लागत बढऩे के चलते उसे बैंक या साहूकार से क़र्ज लेना होगा, जिससे उसकी दशा और भी बिगड़ेगी।

आयकर मामलों के जानकार एवं अधिवक्ता नवीन कृष्ण गिरि ने कहा कि डीजल, पेट्रोल और रसोई गैस के लगातार बढ़ते दाम यह संकेत करते हैं कि आने वाले दिनों में अभी और बढ़ोतरी होगी। एक साल में जिस तेज़ी से इन ईंधनों के दाम बढ़े हैं, वह कभी नहीं हुआ। कोई विरोधी राजनीतिक दल बढ़े हुए दामों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाला नहीं है। एक दौर वो था, जब एक रुपये की भी बढ़ोतरी होने पर संसद से सड़क तक हंगामा होता था। लेकिन अब कोई विरोध-प्रदर्शन नहीं होता, जिससे सरकार मनमाने तरीक़े से महँगाई बढ़ा रही है। इससे देश में ग़रीबी और बढ़ेगी। ग़रीब और हो रहा है तथा अमीर और अमीर हो रहा है। मौज़ूदा हालात में सरकार सीधे तौर पर व्यापारियों से कर (टैक्स) लेने की बजाय जनता से अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में बढ़ोतरी का हवाला देकर महँगाई बढ़ाकर वसूली कर रही है। इससे लोगों की परेशानियाँ बढ़ रही हैं। महँगाई बढ़ाने का सारा खेल डीजल-पेट्रोल के दामों में बढ़ोतरी करके खेला जा रहा है, जिसका ठीकरा अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में महँगाई के नाम पर फोड़ा जा रहा है; ताकि सरकार पर कोई आरोप न लग सके। जबकि सच यह है कि जब देश में 65 रुपये के आसपास डीजल और 70-71 रुपये के आसपास पेट्रोल होता था, तब क्रूड ऑयल के दाम अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में आज की अपेक्षा तक़रीबन दोगुने थे।