मर्यादा, अपराध और राजनीति

कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने सन् 2019 में कर्नाटक के कोलार में चुनाव प्रचार के दौरान तंज कसा था- ‘इन सभी चोरों के नाम में मोदी कैसे है?’ सूरत की एक अदालत ने इसे मानहानि माना और राहुल गाँधी को दो साल के कठोर कारावास की सज़ा सुनायी, जो कि आईपीसी की धारा-500 के तहत अधिकतम है। इस सज़ा के बाद लोकसभा से राहुल गाँधी को संसद सदस्यता से अयोग्य क़रार दिया गया। ग़ौरतलब है कि आईपीसी की धारा-499 ‘व्यक्तियों के समूह’ की अभिव्यक्ति को संदर्भित करती है, जिन्हें मानहानि के लिए आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए चिह्नित किया जा सकता है। सवाल यह है कि क्या ‘मोदी’ उपनाम वाले सभी लोग दु:खी हो सकते हैं, न कि केवल वे तीन व्यक्ति, जिन्हें कांग्रेस नेता ने दोषी ठहराया था?

वास्तव में एक वरिष्ठ विपक्षी नेता राहुल गाँधी का नाम के आधार पर कुछ कहना अशोभनीय था; लेकिन सज़ा देने में जल्दबाज़ी और सज़ा की सीमा उनके अपराध के लिए असंगत लगती है और सवाल उठाती है। कानून केवल अपराध की गम्भीरता के अनुपात में जेल की शर्तें निर्धारित करते हैं। क्या एक सामान्य टिप्पणी इतनी गम्भीर थी कि अधिकतम सज़ा का रास्ता खोल दे? आपराधिक मानहानि एक औपनिवेशिक विरासत है और आधुनिक लोकतंत्र में इसका कोई स्थान नहीं होना चाहिए। क्योंकि यह आलोचना और मुक्त आवाज़ को दबाने के लिए एक उपकरण के रूप में कार्य करती है। विपक्ष संसद और बाहर गौतम अडानी मुद्दे पर जेपीसी से जाँच की माँग के लिए दबाव बढ़ा रहा है, जबकि सत्ताधारी दल राहुल गाँधी पर ज़ोर दे रहा था कि उन्होंने लंदन में जो कहा, उसके लिए वह माफ़ी माँगें। इस कटुता को बढ़ाते हुए कांग्रेस ने राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ विशेषाधिकार हनन का नोटिस पेश कर दिया है।

विपक्ष यह कह रहा है कि वायनाड से कांग्रेस सांसद राहुल गाँधी के ख़िलाफ़ कार्रवाई अनुचित  है और जल्दबाज़ी में की गयी थी। पहले उन्हें तुरन्त अयोग्य घोषित कर दिया गया। हालाँकि उसी ट्रायल कोर्ट द्वारा 30 दिन के लिए दो साल की सज़ा को निलंबित कर दिया गया। फिर आनन-फ़ानन उन्हें लुटियंस जोन में उनके सरकारी बंगले को 22 अप्रैल तक ख़ाली करने का नोटिस दे दिया गया। हालाँकि चुनाव आयोग ने संयम दिखाया, जब उसने कहा कि वायनाड लोकसभा सीट पर उपचुनाव की घोषणा करने की कोई जल्दी नहीं है, क्योंकि ट्रायल कोर्ट ने राहुल गाँधी को अपील दायर करने के लिए एक महीने का समय दिया है। सवाल है कि क्या अभियोजन पक्ष राहुल गाँधी को बड़ा नेता बना देगा? क्योंकि इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है कि जब भी किसी नेता को सताया जाता है, तो उसे लोगों की सहानुभूति मिलती है।

इस सारे घटनाक्रम के बाद आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस सहित 18 विपक्षी दल पहले ही साथ आ चुके हैं, जो पहले कांग्रेस से दूरी बनाये हुए थे। सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस को लोकतंत्र बचाने की लड़ाई के समन्वय की पहल करने के लिए कहने का निर्णय इस वास्तविकता की स्वीकृति है कि कांग्रेस को विपक्षी एकता के किसी भी प्रयास से अलग नहीं रखा जा सकता है। जब राहुल ने 136 दिन तक 4,080 से अधिक किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा की थी, तो इसने लोगों को गाँधी परिवार को गम्भीरता से लेने पर मजबूर कर दिया और अब उनकी सज़ा के बाद विपक्षी दल एक साथ आ रहे हैं। हालाँकि राहुल को ‘मेरा नाम सावरकर नहीं है। मैं गाँधी हूँ। मैं माफ़ी नहीं माँगूँगा।’ जैसी विवादित टिप्पणियों से बचना होगा। क्योंकि इससे विपक्षी एकता के प्रयासों को धक्का लग सकता है।