‘मर्जर’ नहीं है मर्ज़ की दवा

सरकार बैंकों के मर्जर (विलय) कर रही है। इससे केवल बैंक की परिसम्पत्ति में बढ़ोतरी होगी; न कि बैंकों का प्रदर्शन बेहतर होगा। इस पर विचार किया जाना चाहिए।

सरकारी बैंकों के विलय पर सरकार द्वारा स्पष्टीकरण देने के बाद भी संशय की स्थिति बनी हुई है। 30 अगस्त, 2019 को सरकार द्वारा 10 सरकारी बैंकों के विलय करके 4 बड़े बैंक बनाने की घोषणा की गयी थी। तय समय-सीमा के अनुसार, 01 अप्रैल, 2020 तक 10 सरकारी बैंकों का विलय करके 4 बैंक बनाने की प्रक्रिया पूरी करनी है। बैंक ऑफ बड़ौदा का विजया बैंक और देना बैंक के साथ 01 अप्रैल, 2019 को विलय हुआ था; लेकिन उसके प्रदर्शन में लगातार गिरावट देखी जा रही है। चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा है। पूर्व के विलयों का परिणाम भी बहुत उत्साहजनक नहीं रहा है। इसलिए कहा जा रहा है कि समय-सीमा के अन्दर 10 बैंकों की विलय प्रक्रिया का पूरा होना मुश्किल है।

दरअसल, विलय से पहले सरकार द्वारा अधिसूचना जारी करने के बाद सम्बन्धित बैंक के बोर्ड सदस्यों की बैठक होती है, जिसकी सूचना ग्राहकों को दी जाती है। अगर सरकार फरवरी महीने में अधिसूचना नहीं जारी करती है, तो विलय में देरी हो सकती है। विलय के दौरान बैंकों को छोटे शेयरहोल्डर्स को नुकसान न हो इसका भी ध्यान रखना होगा। विलय होने वाले बैंकों की वैल्यू चालू वित्त वर्ष में पहली छमाही के नतीजे के आधार पर तय की जाएगी। पंजाब नेशनल बैंक में ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का विलय होने से यह देश का दूसरा सबसे बड़ा कर्ज़दाता बैंक बन जाएगा।

विलयों के परिणाम उत्साहजनक नहीं

बैंकिंग क्षेत्र में बैंकों का विलय कोई नयी बात नहीं है। भारतीय स्टेट बैंक के साथ उसके 5 सहायक बैंकों और एक महिला बैंक का विलय वर्ष 2018 में किया गया था; जबकि स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र और स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का विलय क्रमश: 2008 एवं 2010 में भारतीय स्टेट बैंक के साथ किया गया था। आर्थिक और बैंकिंग विषयों पर केंद्रित प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ‘द बैंकर’ के मुताबिक, वर्ष 2017 में विलय के तुरन्त बाद भारतीय स्टेट बैंक की रैंकिंग 54 थी, जो वर्ष 2018 में गिरकर 56 और पुन: वर्ष 2019 में गिरकर 57 हो गयी। इससे इस बात की पुष्टि होती है कि विलय के बाद भारतीय स्टेट बैंक के प्रदर्शन में गिरावट आयी है, जबकि विलय से पहले बैंक का प्रदर्शन अच्छा था। ऐसे में सरकारी बैंकों के विलय पर सवाल उठाया जाना लाज़िमी है।

एकीकरण के पक्ष में तर्क

सरकार का मानना है कि अगले 5 साल में पाँच लाख करोड़ डॉलर की अर्थ-व्यवस्था बनाने के लिए देश में बड़े बैंकों का होना ज़रूरी है। सरकार का यह भी कहना है कि बढ़ते एनपीए, बासेल तृतीय के विविध मानकों को पूरा करने, बैंकों की आधारभूत संरचना को मज़बूत करने आदि के लिए बैंकों को पूँजी की ज़रूरत है, जिसे विलय के ज़रिये पूरा किया जा सकता है। कहा यह भी जा रहा है कि विलय से बैंकों के परिचालन लागत व दूसरे खर्चों में कमी, लाभ में बढ़ोतरी, जोखिम प्रबंधन में आसानी, प्रदर्शन में बेहतरी आदि आ सकती है। इतना ही नहीं, इसकी मदद से प्रशिक्षित मानव संसाधन में बढ़ोतरी, प्रशिक्षण के खर्च में कमी, संसाधनों की उपलब्धता में वृद्धि एवं धोखाधड़ी के मामलों में कमी लाने की बात भी कही जा रही है।

पूँजी नहीं है सफलता की गारंटी

निजी बैंकों की कुल परिसम्पत्ति सरकारी बैंकों के मुकाबले बहुत ही कम है। उदाहरण के तौर पर- एचडीएफसी बैंक की कुल परिसम्पत्ति 120 बिलियन यूएस डॉलर, कोटक महिंद्रा की कुल परिसम्पत्ति 31 बिलियन यूएस डॉलर, आईसीआईसीआई बैंक की कुल परिसम्पत्ति 160 बिलियन यूएस डॉलर, एक्सिस बैंक की कुल परिसम्पत्ति 100 बिलियन यूएस डॉलर, इंडसइंड बैंक की कुल परिसम्पत्ति 26 बिलियन यूएस डॉलर, बंधन बैंक की कुल परिसम्पत्ति 4.4 बिलियन यूएस डॉलर और आईडीएफसी फस्र्ट बैंक की कुल परिसम्पत्ति 16 बिलियन यूएस डॉलर है। इन शीर्ष निजी बैंकों की कुल परिसम्पत्ति भारतीय स्टेट बैंक की कुल परिसम्पत्ति 530 बिलियन यूएस डॉलर से कम है। बावजूद इसके कुछ अपवादों को छोड़कर हर मोर्चे पर इन निजी बैंकों का प्रदर्शन अच्छा रहा है।

एनपीए बढऩे की आशंका

विलय के बाद भी आधारभूत संरचना जैसे- टेक्सटाइल, सीमेंट, ऊर्जा, स्टील, सड़क आदि क्षेत्रों को ऋण देने के लिये सरकारी बैंकों पर दबाव बना रहेगा। जहाँ एनपीए का फीसदी आज सबसे ज़्यादा है। बीते महीनों में मुद्रा ऋण में एनपीए बढ़ा है और यह 10 फीसदी के आसपास पहुँच गया है, लेकिन सरकार इसका दायरा और भी बढ़ाना चाहती है। सरकार ने 59 मिनट में ऋण देने की योजना का आगाज़ किया है, लेकिन अल्प समय में ऋण प्रस्तावों का गुणवत्ता पूर्ण विश्लेषण करना मुमकिन नहीं है। ऐसे में एनपीए में और भी बढ़ोतरी हो सकती है।

निष्कर्ष

सरकार चाहती है कि 5 वर्षों में पाँच लाख करोड़ डॉलर की अर्थ-व्यवस्था बनायी जाए; लेकिन इसके लिए क्रेडिट ग्रोथ को बढ़ाकर लगभग 20 फीसदी करना होगा। चालू कैलेंडर वर्ष के पहले 6 महीनों में यह 7.3 फीसदी रहा है, जो 5 वर्षों में सबसे कम है। वर्ष 2018 की पहली छमाही में यह 7.7 फीसदी, वर्ष 2017 में 8.6 फीसदी, वर्ष 2016 में 8.1 फीसदी और वर्ष 2015 में 8.5 फीसदी रहा है। ऐसे में 20 फीसदी क्रेडिट ग्रोथ की बात करना यूटोपिया की तरह है। सरकार सभी समस्याओं का समाधान विलय में ढूँढ रही है, लेकिन इससे केवल बैंक की परिसम्पत्ति में बढ़ोतरी होगी; न कि प्रदर्शन बेहतर होगा। इस पर गौर किया जाना चाहिए कि विलय के बाद मानव संसाधन के स्तर पर समस्याएँ देखी जा रही हैं, जो प्रदर्शन की राह में सबसे बड़ा रोड़ा हैं। प्रदर्शन में बेहतरी लाने के लिए सभी बैंकों, केंद्रीय बैंक, सरकार और दूसरे तंत्रों को मिलकर काम करना होगा।

(लेखक बैंक में अधिकारी हैं और वित्तीय मामलों के जानकार हैं।)