मध्यप्रदेश की बाल कल्याण मंत्री के इलाके में सबसे ज़्यादा कुपोषण

भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री और बुजुर्ग नेता बाबू लाल गौर ने अब अपनी ही सरकार के कामकाज़ पर और कुपोषण के मुद्दे पर बंदरबांट पर अपनी बात कही है। राज्य में बढ़ते कुपोषण पर राज्यपाल आनंदीबेन ने जहां मुख्यमंत्री शिवराज चौहान को शीशा दिखा दिया है, वहीं भाजपा की राज्य में वापसी पर सवालिया निशान लगने लगे हैं

गौर के अनुसार समाज कल्याण और बाल मंत्री अर्चना चिटनिस कुपोषण पर चिंता ज़रूर जता रही हैं लेकिन कर कुछ नहीं रही हैं। वे तो मेरे साथ राज्य के कुपोषण क्षेत्रों के दौरे पर जाने को थीं लेकिन वे इतनी व्यस्त हैं कि अब इस साल तो कुछ करेंगी नहीं लेकिन आने वाले साल में ज़रूर करें। मध्यप्रदेश सरकार अपने आखिरी दिनों में कुछ नहीं करने को है, क्योंकि अब करने का समय ही नहीं बचा है। अपनी कुर्सी बचाने की पड़ी है। विधायक बाबू लाल गौर ने विधानसभा के मानसून सत्र में कुपोषण के आंकड़ों की मांग की थी। जो सूचना दी गई उसके अनुसार प्रदेश में बेहद कम वजन वाले बच्चे 1,26,218 हैं। यह आकलन भी 2015 का है। यानी सरकार इस मामले में न तो सक्रिय है और न ऐसी योजनाएं ही इसने बनाई हैं जिससे समस्या का समाधान युद्ध स्तर पर हो सके।

राज्य में मार्च 2015 में जहां कम वजन वाले बच्चे 1,26,218 थे उनकी गिनती मार्च 2016 में 90,537 और मार्च 2017 में 1,53,842 और मार्च 2018 में 1,03,083 हैं सवाल है कि सरकार ने इतनी बड़ी रकम खर्च कर दी पर कम वजन वाले बच्चों का वजन नही बढ़ा।

उनकी माताओं की स्थिति नहीं सुधरी लेकिन संख्या और बढ़ी। सरकारी धन के खर्च का लाभ जो समाज में दिखना था वह क्यों नहीं दिखा। सरकार ने इस पूरे मामले की ठीक तरह से छानबीन क्यों नहीं की। इस मामले में गंगा में प्रदूषण की तरह बढ़ोतरी क्यों होती रही।

महिला और बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस के अपने जिले बुरहानपुर में 2329 बच्चे बहुत कम वजन के मिले हैं। यानी वे अपने काम में पूरी तौर पर कामयाब नहीं हैं। हालांकि उनका दावा है कि खरगोन जिले में मार्च 2018 में कम वजन वाले बच्चों की संख्या सबसे ज़्यादा है। छिंदवाड़ा जिले में बेहद कम वजन वाले बच्चों की संख्या 2235, बालाघाट जिले में 913, सिवनी में 982 और बैतूल जिले में 1711 है।

पूरे राज्य में अति कम वजन वाले बच्चों की संख्या तेजी से डेढ़ लाख होने की ओर है। खरगोन और सतना जिले में सबसे कम वजन वाले बच्चे हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री मे मांग की है कि वे आंगन बाड़ी केंद्रों में पोषण आहार के लिए दी जाने वाली राशि को और बढ़ाए । सरकार अभी तक कम वजन के प्रति बच्चे पर आठ रुपए और अति कम वजन के बच्चों पर बारह रुपए खर्च करती है। आज जब आठ रुपए में चाय नही ंआती, दूध और दलिया कहां से आएगा। इसे हाल-फिलहाल बीस रुपए प्रति बच्चे के मान से सरकार को तय करना चाहिए।

चुनावी शोर में मध्यप्रदेश में पक्ष और विपक्ष आरोप-प्रत्यारोप की रोटियां से केंगा और कम वजन वाले शिशु व बच्चे और अति कम वजन वाले शिशुओं को ब्रेड की स्लाइस पकड़ा कर सरकार पोषण के आंकड़े कीर्तिमान में बदल लेगें लेकिन समस्या बरकरार रहेगी अगले दशकों तक। क्योंकि पक्ष और विपक्ष या दल सिर्फ सपनों में ही राज्य की जनता को उलझाए हुए है।