मदद न मिलने पर अन्तिम संस्कार के लिए माँ का शव कन्धे पर ले गया मजबूर बेटा

पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में जिगर के टुकड़े को अपनी माँ के शव को अकेले ही श्मशान घाट तक अपने कन्धों पर लादकर ले जाने को मजबूर होना पड़ा। कोरोना के ख़ौफ़ के चलते अन्तिम संस्कार के लिए मदद को कोई आगे नहीं आया। दिल दहला देने वाली यह घटना देवताओं के प्रदेश हिमाचल में हुई। कांगड़ा जिले में बीर सिंह की माँ का कोविड-19 संक्रमण के कारण निधन हो गया। बीर सिंह के द्वारा माँ के शव को अकेले अपने कन्धों पर ले जाने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसने संवेदनशील लोगों की अंतर्रात्मा को झकझोर दिया। उसे शव को क़रीब एक कि.मी. दूर श्मशान तक अकेले इसलिए ले जाना पड़ा, क्योंकि ग्रामीणों और अपनों ने आगे आने और शव को कन्धा तक देने से इन्कार कर दिया। जब बेटा शव को श्मशान घाट पर ले जा रहा था, तो उसकी पत्नी एक हाथ में बच्चा और दूसरे में श्मशान सामग्री लेकर उसके पीछे-पीछे पहुँची।
डबडबायी आँखों से बेटे ने कहा कि उसकी माँ को 12 मई को बुखार आया और साँस लेने में तकलीफ हुई। अस्पताल में बिस्तर न मिलने के कारण उसे घर पर ही दवाएँ दीं। पर 13 मई को माँ का निधन हो गया। उसने बताया कि इस बारे में मैंने गाँव के प्रधान और रिश्तेदारों को जानकारी दी। दो पीपीई किट की व्यवस्था की गयी। लेकिन अन्तिम संस्कार करने में मदद के लिए कोई आगे नहीं आया। फिर मैंने शव को अपने कन्धों पर उठाया और क़रीब एक कि.मी. दूर श्मशान घाट ले गया। वहाँ भी माँ का अन्तिम संस्कार करने के लिए अकेले ही सब कुछ करना पड़ा।
सवाल उठ रहे हैं कि ऐसे समय में सभ्य समाज कैसे आँखें मूँद सकता है? ग्राम पंचायत और जिला प्रशासन की भूमिका पर भी सवालिया निशान लग रहे हैं। अफ़सोस की बात है कि मृत महिला कांगड़ा से 35 किलोमीटर दूर रानीताल क्षेत्र के पास भंगवार पंचायत की पूर्व उप प्रधान थीं। कोरोना पॉजिटिव होने के बाद वह घर पर ही क्वारंटीन थीं। भंगवार पंचायत प्रधान सुरम सिंह ने कहा कि वह बुख़ार से पीडि़त थीं, इसलिए वे बीर सिंह के घर नहीं जा सकते थे। प्रधान ने दावा किया कि उन्होंने शव ले जाने के लिए ट्रैक्टर-ट्रेलर चालकों से सम्पर्क किया, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। उपायुक्त राकेश कुमार प्रजापति ने बताया कि प्रशासनिक मदद पहुँचने से पहले ही बीर सिंह शव को अन्तिम संस्कार के लिए ले गये। हालाँकि इसकी जिम्मेदारी समाज पर भी है। उल्टा उन्होंने सवाल किया कि पीपीई किट लाने वाले ग्रामीणों और रिश्तेदारों ने पीडि़त परिवार की मदद क्यों नहीं की? क्या हम वायरस से इतना डरते हैं? अगर लोग ऐसे संकट में एक-दूसरे की मदद नहीं करते हैं, तो यह मानो वे पहले ही मर चुके हैं। उन्होंने कहा कि एक प्रशासनिक अधिकारी एसडीएम या तहसीलदार या फिर नायब तहसीलदार दाह संस्कार के दौरान मौजूद रहेगा। इसी तरह की एक घटना हमीरपुर जिले में भाकरेड़ी पंचायत में हुई, जहाँ पर कोविड-19 रोगी की मृत्यु होने के बाद अन्तिम संस्कार के लिए कोई ग्रामीण नहीं गया।

घटना से आहत मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सभी पुलिस उपायुक्तों को निर्देश दिया है कि राज्य भर में होम आइसोलेशन में जान गँवाने वाले कोरोना मरीज़ो के शव का अन्तिम संस्कार करने के लिए जारी प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन किया जाए। उपायुक्तों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर कोविड-19 पीडि़त के शोक संतप्त परिवार को अन्तिम संस्कार करने में जिला अधिकारियों का पूरा सहयोग मिले। दरअसल चिन्तित करने वाली बात यह है कि जहाँ देश में कोरोना संक्रमण की पॉजिटिविटी दर 20 फ़ीसदी से नीचे आ गयी है, वहीं हिमाचल प्रदेश में यह 26 फ़ीसदी है और इसकी बड़ी वजह यह है कि यहाँ ग्रामीण इलाके़ भी इसकी चपेट में आ चुके हैं। शिमला, सिरमौर, सोलन और मंडी जिलों में पॉजिटिविटी दर 30 फ़ीसदी से अधिक है।