मणिपुर हिंसा पर लीपापोती!

शैलेंद्र कुमार ‘इंसान’

भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर जातीय हिंसा की वजह से माहौल तनावपूर्ण है। हिंसा की ख़बरें मुख्यधारा की मीडिया के अधिकांश प्लेटफॉर्म से नदारद हैं। एक लम्बी हिंसा के बाद अब हालात मामूली तौर पर सुधरे हैं, परन्तु अभी भी हालात बिगडऩे की आशंका है। कर्नाटक में बजरंगबली को चुनाव में भुनाने की कोशिश करने वाले भाजपा नेता मणिपुर पर अब भी ख़ामोश हैं। हालाँकि मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने इस हिंसा को दुर्भाग्यपूर्ण बताया, परन्तु बहुत देर होने के बाद। सरकारी आँकड़े बताते हैं कि इस हिंसा में 60 लोगों की जान चली गयी, 231 लोगों के घायल हो गये तथा 1700 घरों में आग लगा दी गयी। इस भीषण हिंसा में एक विशेष समुदाय के लोगों पर अत्याचार हुआ, परन्तु देश के प्रधानमंत्री अपनी प्रचार लॉबी के साथ किसी भी हाल में कर्नाटक में विधानसभा जीतने के लिए प्रचार करते रहे।

मणिपुर हिंसा तब भडक़ी, जब ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने आदिवासी एकजुटता मार्च निकाला। आदिवासी एकजुटता मार्च एक ऐसे समय में मणिपुर में निकाला जा रहा था, जब देश ने पहली बार एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति का का ताज पहनाया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदिवासियों के कई महोत्सवों को बढ़ावा दिया है, उनके कार्यक्रमों में भाग लिया है।

बावजूद इसके मणिपुर में आदिवासी एकजुटता मार्च के दौरान भडक़ी हिंसा पर किसी ने संज्ञान नहीं लिया, जबकि वहाँ भाजपा सरकार है। हालाँकि जब हिंसा की आग बुझने लगी, तब भाजपा ने उसे शान्त करने का क़दम उठाया है, जो कि लम्बी आगजनी और हिंसा के बाद आग के अधबुझे शोलों पर धूल डालने जैसा ही माना जाएगा। यह हिंसा क्यों भडक़ी इसके पुख़्ता सुबूत तो जाँच के बाद ही सामने आएँगे। परन्तु अभी तक मिली जानकारियों के मुताबिक, यह मार्च 19 अप्रैल को मणिपुर उच्च न्यायालय के फ़ैसले के जवाब में आयोजित किया गया था।

इस मार्च में राज्य की मेइती आबादी को अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी में शामिल करने की माँग की जा रही थी, इसी माँग के ख़िलाफ़ अन्य आदिवासी समुदाय, जिसमें विशेष रूप से कुकी और नागा समुदाय शामिल थे, पर कथित रूप से मेइती समुदाय के लोगों ने हमला कर दिया और हिंसा भडक़ उठी। मेइती समुदाय की माँग के ख़िलाफ़ मार्च निकालने पर आदिवासी समुदायों पर हुए हमले को मेइती समुदाय, जो कि संख्या में अन्य आदिवासी समुदायों से काफ़ी अधिक है, इस हिंसा को अपने ख़िलाफ़ एक साज़िश बता रहा है। वहीं आदिवासी समुदायों ने हमले के लिए मेइती समाज को आरोपी ठहराया है। मणिपुर में मेइती समाज के लोगों की आदिवासी दर्जे की माँग को पहले से आदिवासी समाज अपने आरक्षण और अन्य प्राकृतिक संसाधनों में में सेंध मान रहा है और इसका विरोध कर रहा है।

दरअसल मेइती समाज द्वारा अपने लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा माँगने के मामले में मणिपुर उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर केंद्र को एक सिफ़ारिश भेजने का निर्देश दिया था, जिस आदिवासी मेइती के लिए आरक्षण का विरोध कर रहे हैं।

धरातल से छनी जानकारियों का दावा है कि हिंसा की धुरी भले ही मेइती, कुकी और नागा समुदाय हो, परन्तु यह केवल एक जातीय विवाद नहीं है। इस हिंसा में बड़े-बड़े हाथ हैं, जिन्हें गैर राजनीतिक भी नहीं कहा जा सकता। मणिपुर में बहुसंख्यक मेइती समुदाय की उसे अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की माँग सरकार से कोई आज की नहीं है। परन्तु आग में घई ऐसे समय में डाला गया है, जब कर्नाटक के बाद कुछ आदिवासी बहुल पूर्वोत्तर राज्यों में चुनाव होने हैं। स्थानीय सूत्रों का दावा तो यहाँ तक है कि हिंसा में 100 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, और हज़ारों लोग घायल हुए हैं। सरकार का कहना है कि मणिपुर में हिंसक झड़पों के चलते पाँच दर्ज़न के लगभग लोगों की जान जा चुकी है, वहीं सैकड़ों लोगों को घर छोडऩा पड़ा है।

मुख्यमंत्री बीरेन बता चुके हैं कि हिंसा वाली जगहों से 20,000 फँसे हुए लोगों को निकाला जा चुका है और 10 हज़ार लोग अब भी फँसे हुए हैं। केंद्र सरकार ने केंद्रीय बलों की कई कंपनियाँ भेजी हैं। सुरक्षा व्यवस्था कड़ी है। पीडि़तों के लिए बतौर मुआवज़ा 5-5 लाख रुपये प्रति मृतक के हिसाब से उसके परिवार को, गम्भीर रूप से घायलों को 2-2 लाख रुपये और कम गम्भीर चोटिलों को 25-25 हज़ार रुपये दिये जाएँगे। हिंसा भडक़ाने वाले व्यक्तियों / समूहों और सरकारी कर्मचारियों की ज़िम्मेदारी तय करने के लिए एक उच्च-स्तरीय जाँच की जाएगी। 1,593 छात्रों सहित 35,655 लोग सुरक्षित स्थानों पर चले गये हैं। उन्होंने कहा कि 3 मई की दुर्भाग्यपूर्ण घटना में क़रीब 60 निर्दोष लोगों की जान चली गयी, 231 लोगों को चोटें आयीं और लगभग 1,700 घर जल गये। मैं लोगों से राज्य में शान्ति और शान्ति लाने की अपील करता हूँ।

हाल के मणिपुर के हालात देखें, तो पता चलता है कि मामला अभी भी शान्त नहीं हुआ है और इसका असर कहीं हो न हो, पूर्वोत्तर राज्यों में बहुत होगा। कुछेक जगहों को छोड़ दें, तो लोगों में अभी भी डर बना हुआ है और फँसे हुए लोग सुरक्षित स्थान चाहते हैं। स्थानीय लोगों में इतना ग़ुस्सा है कि उन्होंने नेताओं की भी पिटाई की है। स्थानीय जानकारी से पता चला है कि वहाँ भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं ने मणिपुर छोड़ दिया है और कई राज्य में ही सुरक्षित स्थानों पर चले गये हैं।

मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह कह रहे हैं कि हालात पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह नज़र रखे हुए हैं। लेकिन सुलगते मणिपुर को शान्त करने के लिए कई बार हर दिन एक नया मुख्य सचिव बनाया गया और आख़िर में हिंसक घटनाओं को रोकने के लिए राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी के महानिदेशक आईएएस विनीत जोशी को ज़िम्मेदारी दी गयी है। जोशी ने मणिपुर सरकार के रेजिडेंट कमिश्नर के रूप में भी काम किया है। विनीत जोशी भाजपा के बड़े नेताओं के काफ़ी पसंदीदा अधिकारी हैं और वह मणिपुर की रग जानते हैं।

इधर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने मणिपुर में लम्बे समय से चल रही हिंसा को लेकर मुख्यमंत्री पर निशाना साधा है। जयराम रमेश ने ट्वीट किया- ‘मणिपुर के मुख्यमंत्री ने आख़िरकार सभी राजनीतिक दलों और कुछ नागरिक समाज के समूहों के साथ बैठक करने का एहसान किया। लेकिन वह राज्य में भीषण हिंसा तथा हत्याओं के लिए ख़ुद को तथा नयी दिल्ली और नागपुर में अपने संरक्षकों को ज़िम्मेदारी से मुक्त नहीं कर सकते।’

जयराम रमेश ने इशारे-इशारे में मणिपुर हिंसा का आरोप आरएसएस और भाजपा पर लगाया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) / भाजपा पूर्वोत्तर में जो कर रहे हैं, कांग्रेस उसके नतीजों की चेतावनी देती रही है। लेकिन अब मणिपुर में शान्ति तथा सौहार्द लाने के लिए सामूहिक संकल्प लेने का व$क्त है। मैं प्रदेश के लोगों से शान्ति और सौहार्द बनाये रखने की अपील करता हूँ।

जो भी हो, तत्काल तो मणिपुर सरकार के आगे राज्य को हिंसा से बचाना है; क्योंकि वहाँ हिंसा कई जगह भडक़ी है, जिसके आसानी से शान्त होने के आसार नहीं हैं। तमाम चुनौतियों के बीच मणिपुर सरकार आईएएस विनीत जोशी पर भरोसा किये बैठी है, जो कि यह साबित करता है कि मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ख़ुद इस हिंसा से निपटने में नाकाम हैं या फिर वो इसके लिए केंद्र सरकार पर निर्भर हैं कि वो ही कुछ करे। यह भी हो सकता है कि बीरेन सिंह के हाथ बँधे हों कि वो अपनी मर्ज़ी से कुछ नहीं कर सकते, जब तक कि केंद्रीय नेतृत्व की ओर से कोई निर्देश नहीं मिल जाता। तो क्या जाँच के नाम पर हीलाहवाली चल रही है?

अब देखना यह है कि मणिपुर हिंसा कब तक थमती है। राजनीति की शिकार जनता आख़िर कब समझेगी कि जातिवाद की दलदल से निकलकर उसे आगे बढऩा चाहिए, अन्यथा वो लगातार इसी तरह हिंसा का शिकार होती रहेगी या फिर निचले स्तर पर पिसती रहेगी। मणिपुर में जिन तीन जातियों में हिंसक झड़पें हुईं, उन्हें देखना होगा कि कौन उनके बीच घुसकर इस हिंसा का कारण बना। यह किसी पर दोषारोपण नहीं है, वरन् सचेत करने के लिए एक सुझाव है; जिसे पूरे देश की जनता को समझना होगा।

कभी भी किसी भी जगह हिंसा की वजह दो समुदाय हो सकते हैं, परन्तु बहुत बड़े पैमाने पर हिंसा, आगजनी, मारकाट तथा तोडफ़ोड़ का मतलब उसके लिए आम जनता से कहीं अधिक अराजक तत्त्व हैं, जिसके पीछे कोई-न-कोई राजनीतिक खोपड़ी काम करती है, वो चाहे सत्ता पक्ष की हो या फिर विपक्ष की हो। तस्वीर साफ़ करने के लिए निष्पक्ष जाँच ही एक सही रिपोर्ट पेश कर सकती है, जो किसी भी हाल में होनी चाहिए।