मजदूरों को लेकर सरकार देरी ना करें, अन्यथा परिणाम भयावह होगें

अगर परिस्थिति के मुताबिक सरकार ने निर्णय लेने में आना –कानी और देर की तो निश्चित तौर पर, परिणाम भयावह और घातक हो सकते है। जिस प्रकार सरकार साधारण परिस्थित में साधारण निर्णय लेती रही है । उसी तरह अब आसाधारण परिस्थित में आसाधरण निर्णय लेने की आवश्यकता है। इस समय देश में मजदूर अपने घर –गांव जाने को मजबूर है । तो सरकार को उन्हें जाने देना चाहिये और जो बन पडे वो सुविधा भी देना चाहिये। क्योंकि इस समय मजदूरों के साथ अमानवीय और असंवैधानिक व्यहार हो रहा है।पुलिस की घेरा बंदी के कारण मजदूर मुख्य सडकों से नहीं जा पा रहे है। इसलिये वो खेतों से, टूटी-फूटी सडकों से जा रहे है । कई जगह तो नदियां और नालों को पार कर जा रहे है। उनके साथ इस भीषण गर्मी में महिलायें और बच्चें भी है जो भूख –प्यास के कारण बेहाल है।

कोरोना के कहर और उत्पात के कारण काम-धंधा बंद होने के कारण मजदूरों का रोजगार बंद हुआ है। 50 दिनों से अधिक समय हो गया है ।उनके जमा पैसे भी खर्च हो गये है । तो ऐसी परिस्थिति में अगर वे घर –गांव जाना चाहते है, तो सरकार का दायित्व बनता है । कि मजदूरों को सम्मान के साथ जाने दें। माना कि देश –दुनिया में कोरोना नामक संक्रमण उत्पात मचाये हुये है। पर ऐसे में मजदूरों की कोरोना जांच के बाद घर –गांव जाने का रास्ता सरकार को खोल देना चाहिये। जो लाँकडाउन के कारण बंद कर रखा है। सामाजिक कार्यकर्ता व मजदूरों के अधिकारों के लिये संघर्षरत् सचिन गौड का कहना है कि अजीब बिडम्मना है, कि अपने ही देश में अपने घर –गांव मजदूरों को नहीं जाने दिया जा रहा है। वजह कोरोना के संक्रमण का फैलने का खतरा है। माना कि संक्रमण का खतरा है, पर जांच की और मेडिकल की सुविधायें है । तो ऐसे में सरकार की प्राथमिकता बनती है, कि मजदूरों की जांच प्राथमिक जांच केंद्रों में करवाने की व्यवस्था का विस्तार करें ,ताकि मजदूरों को लेकर जो अफरा –तफरी मची है ।वो शांत हो सकें।सरकार को चाहिये कि एक गाइडलाइन बनाये जिसमें कोरोना के उपचार और बचाव की जानकारी मुहैया कराये , जिसमें स-शर्त भी हो, जो भी स-शर्त पालन करेगा ।उसको बसों, रेल या अन्य वाहनों से देश- भर के जो भी नागरिक है। उन्हें जाने की अनुमति मिलना चाहिये। क्योंकि जिन लोगों को अनुमति नहीं दी गई है । तो वो लोग अपने तरीके से एक समुदाय बनाकर भी गये है । तो उनके साथ जो हादसा और मौतें हुई है । वो सरकार की उदासीनता को दर्शाती है।चितंक एंव लेखक पियरंजन का कहना है कि कितना दुखद है जो मजदूर देश और शहर को बसाने- बनाने में अहम शारीरिक श्रम कर रोजी –रोटी कमाता रहा है। आज कोरोना के कारण जो आपदा आयी है। तो इस समय मजदूर असाय और मजबूर खडा ताक रहा है । कि कोई उनकी सुनवाई को आयेगा।पर ऐसे हालात् में निराश और हताश होकर जब अपने घर-गांव जाने को बेबस है, तो जाने नहीं दिया जा रहा है।मजदूरी का काम करने वाले गोपाल दास और किशन सिंह का कहना है,कि कोरोना की लडाई में मजदूर देश और सरकार के साथ है ।जो भी जांच सरकार करना चाहे कर लें पर जाने तो दें। उनका कहना है कि सरकार मजदूरों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रही है। एक ओर तो साधन मुहैया भी नहीं करा रही है और ना ही पैदल जाने दे रहीं है। उनके बच्चें भूख के कारण तडप रहे है ,कोई सुनने वाला नहीं है। किशन का कहना है कि खाना खिलाने का दावा करने वाले लोग तो बहुत है पर हकीकत में कोई नहीं दिख रहा है।ऐसे में जो भी रूखा – सूखा भगवान भरोसे मिल रहा है उसी से गुजारा कर रहे है।