मंडियों में मंदी

देश में फैले कोरोना वायरस के चलते लगे लॉकडाउन के बाद भले ही बाज़ार खुलने लगे हैं, लेकिन व्यावसायिक गतिविधियों ने अभी तक पहले जैसी रफ्तार नहीं पकड़ी है। देश में लगे लॉकडाउन से अर्थ-व्यवस्था तो बुरी तरह चौपट हो ही गयी, लोग भी बेकारी और बेरोज़गारी की चपेट में आ गये। अब जब थोड़ी-थोड़ी उम्मीद जग रही थी, तीन नये कृषि कानूनों के चलते किसान आन्दोलन से कई नयी परेशानियाँ खड़ी होने का डर है। कई क्षेत्रों में महँगाई पहले ही बढ़ी हुई है। रिर्जव बैंक द्वारा दिये जाने वाले सस्ते कर्ज़ की प्रक्रिया पर भी अंकुश लगा दिया गया है। इससे फल और सब्ज़ी मंडियों में काफी मंदी छायी हुई है। मंडियों की मंदी पर तहलका संवाददाता कंचन की रिपोर्ट :-

कोरोना महामारी से एशिया की सबसे बड़ी आज़ादपुर मंडी से लेकर सभी छोटी-बड़ी मंडियाँ अब मंदी की चपेट में हैं। हालाँकि मंदी तो पहले भी कई बार देश में दस्तक दे चुकी है, लेकिन पिछले कुछ दशकों के बड़े रिकॉर्ड देखें, तो यह अभी तक की सबसे भयंकर मंदी है। इस मंदी ने देश की अर्थ-व्यवस्था को पूरी तरह से झकझोरकर रख दिया है। कोरोना-काल से पहले जहाँ इन मंडियों में पैर रखने तक की जगह नहीं हुआ करती थी, वहीं आज यहाँ रौनक नहीं है।

विदित हो कि कोरोना वायरस के कहर को कम करने के लिए पूरे देश में 22 मार्च, 2020 से लॉकडाउन लगाया गया था। इससे कोरोना वायरस की महामारी की रफ्तार रोकने में भले ही मदद मिली, मगर आम देशवासियों, खासकर नौकरीपेशा, दिहाड़ी मज़दूरों, किसानों और छोटे-मँझोले दुकानदारों पर इसका बुरा असर पड़ा। लाखों लोग थोड़े ही समय में बेरोज़गार हो गये। यही वजह रही कि देश की अर्थ-व्यवस्था रसातल में चली गयी और केंद्र सरकार से राज्य सरकारों तक को यह कहना पड़ा कि अब लॉकडाउन और नहीं।

इसके बाद बाज़ार, उद्योग काफी हद तक खुल गये, लेकिन बड़ी संख्या में लोग अभी भी बेरोज़गार हैं। इसके चलते लगातार माँग में कमी आयी है, और माँग की कमी के चलते छोटे-बड़े विक्रेताओं को भारी नुकसान हो रहा है। तहलका संवाददाता को ओखला मंडी के विक्रेता अशरफ अली ने बताया कि एग्रीकल्चर मार्केटिंग प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (एपीएमसी) से उन्हें किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं है, उनकी इस समय सबसे बड़ी परेशानी यह है कि कोविड-19 महामारी के खौफ ने लोगों के मन में इस प्रकार घर बना लिया है कि वे मंडी नहीं आ रहे, इससे मंडी में काम न के बराबर है। बिक्री न होने के कारण हमें रोज़ाना माल लाने और ठीया लगाने तक का खर्चा निकाल पाना बेहद मुश्किल हो गया है।

आज़ादपुर मंडी के एक व्यापारी ने बताया कि कोरोना से पहले ऐसा कभी भी नहीं हुआ था कि हमारा सामान बच गया हो, लेकिन मंदी के कारण कोरोना-काल से पहले की तुलना में आज के समय में हम अपना सामान आधा ला रहे हैं; यह भी बिक नहीं पा रहा है। दिक्कत यह है कि बची हुई सब्ज़ियाँ और फल सड़ जाते हैं, जिससे बड़ा नुकसान होता है।

यह हाल केवल दिल्ली की आज़ादपुर मंडी का ही नहीं है, बल्कि ओखला, महरौली तथा दिल्ली-एनसीआर की अन्य छोटी-बड़ी मंडियों में इसी तरह मंदी छायी हुई है। व्यापारियों का कहना है कि इस तरह से संक्रमण बढ़ता रहा और कोरोना-टीका नहीं आया, तो मंडियों का सँभल पाना बेहद मुश्किल है। जहाँ एक ओर मंडियों में काम की कमी एक समस्या बनी हुई है, वहीं दूसरी ओर इन मंडियों के विक्रेता, कर्मचारी और उपभोक्ता सरकार द्वारा कोरोना वायरस के प्रति सावधानी बरतने को लेकर जारी किये गये दिशा-निर्देशों, जैसे- मास्क लगाना, हाथ धोना, दो गज की दूरी का पालन नहीं कर रहे हैं।

एपीएमसी के एक अधिकारी ने बताया की हम मंडियों में साफ-सफाई और कोरोना को लेकर जारी दिशा-निर्देशों का पालन करने के लिए समय-समय पर माइक द्वारा उद्घोषणा कराते हैं। सभी शौचालयों में सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता है, जिससे कि कोरोना वायरस के संक्रमण से लोगों को बचाया जा सके। लेकिन स्थिति यह है कि इन मंडियों में कर्मचारियों और व्यापारियों द्वारा इन दिशा-निर्देशों का सही तरह से पालन नहीं किया जा रहा है। यही कारण है कि लोग मंडियों तक नहीं पहुँच रहे और कारोबार ठप पड़ा है। हालाँकि कोरोना संकट का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है, जिससे लोग परेशान हैं, डरे हुए हैं।

बता दें कि कोविड-19 महामारी से शिक्षा, उद्योग, कम्पनियाँ, खेती-बाड़ी, छोटे-बड़े बाज़ार-व्यापार सभी प्रभावित हुए हैं, जिससे दीर्घकालिक नुकसान की अभी सम्भावना बनी हुई है। इस बीमारी से भारत में मचे हाहाकार का एक बड़ा कारण यह भी है कि अभी तक इसकी कोई दवा नहीं आयी है। हाल ही में कोविड-19 को लेकर एक सर्वदलीय बैठक भी हुई, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जनता को आश्वासन दिया है कि कोरोना-टीका सिर्फ कुछ हफ्तों के भीतर आ जाएगा और यह टीका सर्वप्रथम बीमारी से जूझ रहे स्वास्थ्यकर्मियों, फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं और बुजुर्गों को दिया जाएगा। लेकिन कोरोना-टीके पर अभी से सवाल उठने लगे हैं।