‘भारत मेरी दूसरी मां’ गिल रॉन शमा इजऱायली संगीतकार

तेईस सितंबर को भारतीय सेना और इजऱाइल में हाइफा मुक्ति दिवस का आयोजन किया जाता हैं। शारीरिक तौर पर मरने के बाद जी उठने वाले देश इज़राइयल की आज़ादी के संघर्ष को जब हम देखेंगे, तब हम पाएंगे कि यहूदियों को 'ईश्वर के प्यारे राष्ट्र’ का पहला हिस्सा भारतीय योद्धाओं ने जीता दिया था। वर्ष 1918 में हाइफा युद्ध में भारत के 900 सैनिकों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था। समुद्र तटीय शहर हाइफा की मुक्ति से ही आधुनिक इजऱायल के निर्माण की नींव पड़ी थी। 'इजऱायल में भारतीय वीरों की शौर्यगाथा: रवि कुमार’

भारत और इजऱायल के संबंध कई अर्थों में बेहद महत्वपूर्ण हैं। इजऱायल में हालात सामान्य हैं। लेकिन सीमा पर बम गिरते रहते हैं और लोग मरते रहते हैं, जैसे भारत में कश्मीर है। इजऱायल ने खतरनाक युद्धों को झेला है। युद्धों की यातनाएं झेलने के कारण इजऱायली समाज नकारात्मक हो गया है। ‘हम थक चुके हैं’। कहना है इजऱाइल के विश्व प्रसिद्ध गायक संगीतकार गिल रॉन शमा का, जिन्होंने 15 सितंबर को ऋषिकेश के परमार्थ निकेतन में गंगा तट पर अपने बैंड की प्रस्तुति दी। उन्होंने संध्या आरती के समय ‘ओम जय जगदीश हरे’ आरती को हिब्रू भाषा में गाया, जिसे वे अपने देश में समुद्र तट पर गाते हैं।

16 सितंबर की अल सुबह जब मैं गंगा की लहरों का प्रवाह देख रही थी तो पीछे से कॉफी का मग हाथ में लिए गिल मेरे पास आ बैठे। अपना परिचय देते हुए उन्होंने बताया कि 17 सितंबर को यहां गंगा तट पर उन्होंने पीस म्यूजिक फेस्टिवल: ‘फ्रॉम जॉर्डन टू गंगा’ में परफॉर्म किया। वे भारत में ‘कैफे जलाल’ प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। इसका मकसद विश्व में इन्सान, संगीत और जल के गहरे संबंध के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। गिल बताते हंै कि मिडल ईस्ट में कॉफी पवित्र जल समझी जाती है। जैसे हमारे यहां चाय पर चर्चा होती है, उसी तरह वहां लोग मिल बैठकर जब कॉफी पीते हैं तो उनके बीच किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं रहता। यही संदेश वे अपने बैंड के ज़रिए दे रहे हैं।

युद्ध बहुत बुरे होते हैं। गिल बताते हंै कि उन्होंने भी चार युद्धों में भाग लिया जैसे गल्फ वॉर, लेबनॉन और गाज़ा वॉर। ज़्यादातर इजरायली इन युद्धों के बाद अपने दुख भुलाने के लिए भारत आए। उस देश की बांहों में जिसकी संस्कृति शांति का केंद्र है।