भारत में हर 15वाँ व्यक्ति है तन्हा

तन्हाई से होने वाला तनाव एक घातक बीमारी बनकर कर देता है जीवन बर्बाद। भारत में हर छठा व्यक्ति है तनाव का शिकार।

आजकल परिवारों का टूटना आम बात हो चली है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें या तो परिवार के होते हुए भी तन्हा यानी अकेले रहना पड़ता है या फिर उनका कोई है ही नहीं। भारत की बात करें, तो यहाँ हर 15वाँ व्यक्ति तन्हाई का शिकार है। ज़रूरी नहीं कि ये तन्हाई इसलिए हो कि उसका कोई नहीं, बल्कि यह तन्हाई (अकेलापन) उसका भरा-पूरा परिवार होने पर भी मुमकिन है।

एक सर्वे के मुताबिक, हर 15वें व्यक्ति को नौकरी के चलते या बाहर कमाने के लिए या अपनों को न होने के चलते या परिजनों से मनमुटाव के चलते अकेले रहना पड़ता है। वहीं 15 फीसदी लोग तन्हा ही रहते हैं, जिनमें युवाओं का फीसद 10 है। बाक़ी पाँच फीसदी बुजुर्ग तन्हाई का शिकार हैं। इस तन्हाई से तनाव जैसी घातक बीमारी इंसान को घेर लेती है और फिर धीरे-धीरे उस इंसान को कैंसर की तरह अपनी गिरफ्त में ले लेती है, जिससे निकल पाना बाद में मुश्किल ही नहीं, कभी-कभी नामुमकिन हो जाता है। अमेरिका में हुए एक सर्वे के बाद तन्हा लोगों की बढ़ती संख्या और इससे बढ़ते तनाव जैसे कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। इस सर्वे के आधार पर विशेषज्ञों ने कहा है कि यह काफी घातक है और इसे रोके जाने के प्रयास करने चाहिए। विशेषज्ञों का मानना है कि सबसे ज़्यादा युवा तन्हाई महसूस करते हैं और वह इसलिए क्योंकि 16 से 24 साल के युवा नये रिश्तों की तलाश कर रहे होते हैं, लेकिन जब उन्हें नये रिश्ते उनके मन मुताबिक नहीं मिलते या मिलते ही नहीं हैं, तो वे तन्हाई के चलते तनाव के शिकार हो जाते हैं। सर्वे में एक और बात सामने आयी हैं कि तन्हाई का शिकार लोगों में तकरीबन 83 फीसदी लोग अपनी तरह से ज़िन्दगी गुज़ारना पसंद करने लगते हैं।

18-26 साल की उम्र वाले तन्हाई के शिकार ज़्यादा

अक्सर माना जाता है कि अधिकतर वे लोग तन्हाई का शिकार होते हैं, जिनका जीवनसाथी गुज़र चुका होता है या जो अनाथ होते हैं। आम धारणा है कि ऐसा बहुत कम होता है। लेकिन इसके अलावा एक सच यह भी है कि 18 से 26 साल के युवा तन्हाई के सबसे ज़्यादा शिकार होते हैं। इसके कई कारण हैं। पहला तो यह कि करियर के चक्कर में 26 साल तक के 60 फीसदी युवक-युवतियाँ अविवाहित रहते हैं और यह उनकी तन्हाई का बड़ा कारण होता है। दूसरा कारण यह है कि उन्हें उनकी मनचाही मंज़िल या मनचाहा व्यक्ति नहीं मिल पाता, जिसके चलते वे तन्हाई में रहने के आदी होने लगते हैं या तनाव के शिकार होकर तन्हाई में रहना पसन्द करते हैं। हाल ही में हुए एक सर्वे में यह बात सामने आयी है कि 18 से 22 साल के 30 फीसदी युवाओं ने खुद स्वीकारा है कि वे तन्हाई को बहुत अधिक महसूस करते हैं। वहीं 23 से 26 साल के 18 फीसदी युवाओं ने माना है कि उन्हें तन्हाई ने घेर रखा है। वहीं 16 फीसदी बुजुर्ग पुरुष तन्हाई का शिकार हैं। इतना ही नहीं 58 फीसदी महिलाएँ तन्हाई का शिकार हैं। इनमें 9 फीसदी बच्चियाँ, 33 फीसदी युवतियाँ, 35 फीसदी विवाहिताएँ और 23 फीसदी बुजुर्ग महिलाएँ शामिल हैं। इसी तरह 64 फीसदी पुरुष भी तमाम सुविधाओं के बावजूद तन्हाई का शिकार हैं। इनमें 12 फीसदी बच्चे, 41 फीसदी युवा, 23 फीसदी प्रौढ़ और 24 फीसदी बुजुर्ग हैं।

तन्हाई के चलते बढ़ रहा तनाव

हाल ही में अकेलेपन के शिकार लोगों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी एक रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट के अनुसार तन्हाई के चलते भारतीयों में तनाव बढ़ रहा है और तनाव के शिकार लोगों की बढ़ती संख्या के मामले में भारत अग्रणी देशों में शामिल हो चुका है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में भी तनाव के शिकार लोग अब चीन और अमेरिका जैसे देशों की तरह काफी हो चुके हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बताती है कि भारत का हर छठा व्यक्ति तनाव का शिकार हो चुका है।

तनाव कम करने के लिए ग़लत रास्ते अपना रहे युवा

मनोचिकित्सक डॉक्टर मीनाक्षी शर्मा कहती हैं कि तनाव कम करने के लिए 25 फीसदी भारत के युवा गलत रास्तों पर चलने लगते हैं। इन रास्तों पर चलने की जब उन्हें लत पड़ जाती है, तो फिर उनकी ज़िन्दगी इतनी खोखली हो जाती है कि उन्हें गलत आदतों की दलदल में ही पड़े रहने की आदत हो जाती है। डॉक्टर मीनाक्षी शर्मा बताती हैं कि हर तीसरा तन्हा व्यक्ति इन गलत आदतों में से किसी न किसी आदत का शिकार हो ही जाता है। डॉक्टर मीनाक्षी इस तरह की अनेक गलत आदतों के बारे में विस्तार से बताती हैं।

नशे में घुलने लगते हैं युवा

डॉक्टर मीनाक्षी शर्मा कहती हैं कि युवावस्था में तन्हाई से पैदा हुआ तनाव सबसे ज़्यादा घातक प्रभाव डालता है। युवावस्था में जिस पर तन्हाई के चलते तनाव हावी हो गया, फिर वह मरते दम तक पीछा नहीं छोड़ता। डॉक्टर मीनाक्षी कहती हैं कि इस उम्र में व्यक्ति तनाव से बचने के लिए नशे का सहारा लेने लगता है और फिर उसकी गिरफ्त में हमेशा के लिए आ जाता है। इतना ही नहीं कभी-कभी युवा इस कदर नशा करने लगते हैं कि यह नशा उनकी जान लेकर ही छूटता है।

हस्तमैथुन या छेड़छाड़ में हो जाते हैं लिप्त

डॉक्टर मीनाक्षी शर्मा बताती हैं कि उनके पास 50 फीसदी मामले ऐसे आते हैं, जिनमें लोग खासतौर से युवक-युवतियाँ हस्तमैथुन या अपोजिट सेक्स से छेड़छाड़ करने की कोशिश करते हैं। ये लोग खुद इसका मुख्य कारण तन्हाई बताते हैं। उनके पास इस तरह के मामलों में संलिप्त न केवल युवा होते हैं, बल्कि कई तो बुजुर्ग भी होते हैं। डॉक्टर शर्मा कहती हैं कि ऐसे बुजुर्गों की संख्या काफी कम है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से बढ़ती दिख रही है और ये वही बुजुर्ग होते हैं, जो युवावस्था में किसी-न-किसी कारण तन्हाई का शिकार हो जाते हैं, जिसके चलते तनाव उन पर इस कदर हावी हो जाता है कि वे इस तरह के गंदे या आपराधिक काम करने लग जाते हैं।

सम्बन्धों के लिए रहते हैं उतावले

डॉक्टर मीनाक्षी शर्मा बताती हैं कि उन्होंने तन्हाई के कारण तनाव से घिरे अधिकतर लोगों में पाया है कि वे किसी के साथ भी शारीरिक सम्बन्ध बनाने को उतावले रहते हैं। क्योंकि उन्हें कोई जीवनसाथी नहीं मिलता या कई लोग अपने जीवनसाथी या पार्टनर से संतुष्ट नहीं रहते और किसी दूसरे व्यक्ति से शारीरिक सम्बन्धों के लिए उतावले रहते हैं। डॉक्टर मीनाक्षी शर्मा बताती हैं कि तनाव का एकमात्र कारण तन्हाई ही नहीं है, बल्कि जीवनसाथी से असंतुष्टि भी तनाव का बड़ा कारण है। यही कारण है कि 40 फीसदी लोग बाहर ऐसे सम्बन्धों की तलाश करते हैं, जहाँ उन्हें शारीरिक सम्बन्धों में संतुष्टि मिल सके या उनकी सेक्सुअल भूख या कहें लिप्सा शान्त हो सके।

ऐसे लोग हो जाते हैं गुस्सैल

डॉक्टर मीनाक्षी शर्मा बताती हैं कि तन्हाई से पैदा तनाव के चलते अधिकतर लोग गुस्सैल हो जाते हैं। इसके चलते वे अकारण ही दूसरे या सामने वाले इंसान से चिढऩे या बात-बात पर लडऩे लग जाते हैं। कई बार ऐसे लोग गुस्से में आपराधिक कदम भी उठा लेते हैं। इन कदमों में या तो वे दूसरे को मारते हैं या उसकी जान ले लेते हैं या फिर खुद ही मौत को गले लगा लेते हैं। ऐसा सिर्फ तन्हा लोग ही नहीं करते, बल्कि पारिवारिक जीवन जी रहे तनाव के शिकार लोग भी कर बैठते हैं।

आकांक्षाहीन या ज़िद्दी हो जाते हैं

डॉक्टर मीनाक्षी शर्मा कहती हैं कि तन्हाई के शिकार लोग या तो जीवन में किसी चीज़ की चाहत छोड़ देते हैं यानी आकांक्षाओं से हीन हो जाते हैं या फिर ज़िद्दी हो जाते हैं। जिस प्रकार अति किसी भी चीज़ की खतरनाक होती है, उसी प्रकार ये दोनों ही स्थितियाँ घातक होती हैं।

बेरोज़गारी से भी होता है तनाव

डॉक्टर मीनाक्षी शर्मा कहती हैं कि उनके पास आने वाले तनाव के शिकार लोगों में 30 फीसदी ऐसे युवा होते हैं, जो बेरोज़गारी के चलते तनाव की गिरफ्त में आ जाते हैं। डॉक्टर मीनाक्षी के अनुसार, यह स्थिति भी कई बार इतनी घातक हो जाती है कि ऐसे लोग अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए या तो अपराध की दुनिया में कदम रख देते हैं या फिर झूठ बोलकर हेराफेरी करने लगते हैं या फिर कई बार ठगी करने लगते हैं या फिर कभी-कभी आत्महत्या भी कर लेते हैं।

भारत में हर उम्र के लोग हैं तनाव के शिकार

एक सर्वे में यह बात सामने आयी है कि भारत में हर उम्र के लोग तनाव के शिकार हैं और पिछले कुछ वर्षों से ऐसे लोगों की संख्या में तेज़ी से इज़ाफा हो रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट की मानें, तो भारत में सबसे ज़्यादा युवा ही तनाव के शिकार हो रहे हैं। आँकड़े बताते हैं कि 40 फीसदी ऐसे युवा तन्हाई की वजह से तनाव का शिकार हुए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह आँकड़ा केवल 16 से 24 वर्ष के युवाओं का है। रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि युवा ही नहीं 75 वर्ष से अधिक उम्र के भी 27 फीसदी लोग तनाव के शिकार हैं, जिनमें अधिकतर लोग तन्हाई का शिकार हैं।

लगभग 52 लाख युवा तनाव की गिरफ्त में

यह चिन्ताजनक है कि भारत में बहुत बड़ी संख्या में युवा तन्हाई के चलते तनाव के शिकार हो रहे हैं। अगर हम कुल तनाव से ग्रस्त युवाओं की बात करें, तो 2017 के आँकड़े चौंकाने वाले हैं। इन आँकड़ों के अनुसार, 12 फीसदी युवा यानी करीब 52 लाख युवा तनाव के शिकार हैं, जिनमें एक बड़ी संख्या में तन्हाई के शिकार युवाओं की ही है। वहीं 2004 में जारी आँकड़ों के अनुसार उस समय भारत में लगभग 10 फीसदी युवा तनाव का शिकार थे। बताया जाता है कि इस तन्हाई से बचने के लिए भारतीय युवा डेटिंग और पोर्न साइट्स की मदद ले रहे हैं। आँकड़े बताते हैं कि तन्हाई के चलते तनाव के शिकार लोगों में अच्छी-खासी संख्या महिलाओं की भी है। इसके अलावा यह भी तथ्य सामने आया है कि अवसाद ग्रस्त महिलाओं की संख्या तो पुरुषों से भी अधिक है। हालाँकि इस अवसाद के अलग-अलग कारण हैं, लेकिन तन्हाई या शारीरिक सम्बन्धों से असंतुष्टि भी इसका एक बड़ा कारण है।

डॉक्टर मीनाक्षी शर्मा बताती हैं कि तन्हाई से तनाव बढऩे लगता है, जिसके कारण अनेक बीमारियाँ भी इंसान को घेर लेती हैं। इसलिए तन्हाई में किसी-न-किसी का जीवन में साथ ज़रूर स्वीकार कर लेना चाहिए, चाहे वह किसी भी रूप में हो। वरना तन्हाई से पैदा हुए तनाव से निम्न बीमारियाँ होने का खतरा रहता है-

डिमेंशिया

डॉक्टर मीनाक्षी शर्मा ने बताया कि डिमेंशिया एक प्रकार का मनोरोग है, जो मन में भ्रांतियाँ पैदा करता है। इस बीमारी में इंसान भ्रम बहुत करने लगता है और अधिकतर मामलों में देखा गया है कि ऐसे लोगों की याददाश्त कमज़ोर हो जाती है। ऐसे लोग किसी चीज़ या बात को याद नहीं पाते। हालाँकि डिमेंशिया अधिक उम्र के लोगों में अधिक होती है।

मानसिक रोग

डॉक्टर मीनाक्षी शर्मा बताती हैं कि तन्हाई के चलते लोगों में सबसे ज़्यादा मानसिक रोग होने का खतरा रहता है। इन रोगों में पागलपन से लेकर ब्रेन हेमरेज जैसे खतरनाक रोग तक शामिल हैं। डॉक्टर मीनाक्षी कहती हैं कि कई बार तो लोग बहुत ज़्यादा अकेले रहने के चलते तनाव या अवसाद से इतने ग्रस्त हो जाते हैं कि वे सायकोसिस जैसी गम्भीर बीमारियों के शिकार हो जाते हैं, जिसके चलते अनेक तो गलत कदम तक उठा बैठते हैं।

अनिद्रा

डॉक्टर मीनाक्षी कहती हैं कि तन्हा रहने वाले अधिकतर लोग अनिद्रा के शिकार पाये जाते हैं। और जब इंसान की नींद पूरी नहीं होती है, तब उसे कई शारीरिक बीमारियाँ अपनी चपेट में ले लेती हैं।

तन्हाई और उससे पैदा तनाव से बचने के उपाय

डॉक्टर मीनाक्षी शर्मा बताती हैं कि पहले तो जो लोग तन्हाई का शिकार हैं, उनके करीबी उन्हें समझने की कोशिश करें और उनकी तन्हाई को दूर करने में उनकी मदद करें। यदि कोई ऐसा व्यक्ति है, जिसका कोई अपना उसकी तन्हाई दूर करने वाला नहीं है, तो ऐसे तन्हा लोगों को किसी-न-किसी से कोई-न-कोई रिश्ता जोड़ लेना चाहिए। इसके अलावा तन्हा लोग घूमने-फिरने या मनोरंजन में अपना खाली समय ज़रूर गुज़ारें। अगर यह सम्भव न हो, तो उन्हें खाली समय का उपयोग अपने किसी शौक या करियर के लिए किये जा रहे प्रयासों में करना चाहिए। डॉक्टर मीनाक्षी कहती हैं कि कुछ लोग तन्हाई से बचने के लिए प्रकृति या पशु-पक्षियों से प्रेम करके उनके साथ अपना खाली समय साझा कर सकते हैं। यदि तन्हा लोग किसी का साथ पसन्द नहीं करते तो अपने मनपसन्द का खान-पान करके या अपनी पसन्द की फैन्सी ड्रेसेज पहनकर अपने मन को हल्का और तन्हाई से मुक्त कर सकते हैं। इसके अलावा वे जिस कला में रुचि रखते हैं, उसमें हाथ आजमा सकते हैं। डॉक्टर मीनाक्षी कहती हैं कि यदि कोई मनुष्य तन्हाई से तनाव की स्थिति में आ गया है और उससे उसे छुटकारा नहीं मिल पा रहा है, तो वह मनोचिकित्सक की सलाह ज़रूर ले या फिर अच्छे लोगों में बैठना-उठना शुरू कर दे।

अमेरिका में भी 61 फीसदी लोग तन्हाई के शिकार

तन्हाई के शिकार लोग अकेले भारत में नहीं हैं, बल्कि दुनिया भर में हैं। लेकिन अगर यह कहा जाए कि विकसित देशों में भी तन्हाई के शिकार लोग बहुतायत संख्या में हैं, तो यह बात और सोच में डाल देती है। क्योंकि विकसित देशों में अधिकतर लोग सम्पन्न होते हैं। अमेरिका भी इन्हीं देशों में से एक है। यहाँ की आबादी भारत के मुकाबले काफी कम होने के बावजूद 61 फीसदी लोग तन्हाई के शिकार हैं। यानी आँकड़ों की मानें तो 10 में से कम से कम छ: लोग तन्हा ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं। आश्चर्य की बात यह है कि अमेरिका में भी तन्हा ज़िन्दगी गुज़ारने वाले लोगों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। आँकड़े यह भी बताते हैं कि 2019 में तन्हा लोगों की संख्या में 13 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गयी। इस मामले में एक सर्वे रिपोर्ट बताती है कि तन्हाई से जूझ रहे लोगों में सबसे ज़्यादातर युवा ऐसे हैं, जो अधिकतर समय सोशल साइट्स पर सक्रिय रहते हैं। बताया जाता है कि अमेरिका में तन्हाई के शिकार इन युवाओं में सबसे ज़्यादा 30 साल से कम उम्र के हैं। इस मामले में ब्रिटेन में एक सर्वे भी किया गया था, जिसमें पाया गया कि 16 से 24 साल की उम्र के 40 फीसदी लोग तन्हाई का शिकार हैं, जबकि  65 से 74 साल की उम्र के 29 फीसदी लोग तन्हाई का शिकार हैं। पिछले दिनों ब्रूनेल यूनिवर्सिटी लंदन तथा यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर ने तन्हाई में डूबे लोगों का सही आँकड़ा जानने के लिए 16 से अधिक उम्र के 55 हज़ार से अधिक लोगों पर एक सर्वे किया था।

तन्हाई से होने वाली दिक्कतें

तन्हाई के शिकार लोगों में अनेक दिक्कतें पैदा होने लगती हैं, जिनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं-

ऐसे लोग दूसरे लोगों से जल्दी दिल से नहीं जुड़ पाते।

बहुत कम लोगों से बना पाते हैं अपना करीबी रिश्ता।

उन्हें अक्सर गलतफहमी रहती है कि लोग उन पर ध्यान नहीं देते या उन्हें समझते नहीं हैं।

अकेला रहना करने लगते हैं पसन्द।

नकारात्मक सोच से हो जाते हैं ग्रसित।

अपनी बात ही लगती है अच्छी।

बहुत जल्द महसूस करने लगते हैं बोरियत।

अपने मन की बातें और तकलीफें दूसरों से छिपाते हैं।