भारत में घटने लगी प्रजनन दर

हिन्दू महिलाओं की कुल प्रजनन दर घटकर 1.94, मुस्लिम महिलाओं की 2.2, ईसाई महिलाओं की 1.88, सिख महिलाओं की 1.61 और जैन महिलाओं की 1.6 हो गयी है। भारत के लिए इसके क्या मायने हैं? बता रहे हैं भारत हितैषी :-

भारत ने इस मायने में इतिहास बना दिया है कि जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के सरकारी प्रयास आख़िर वांछित परिणाम दिखा रहे हैं। प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर से भी नीचे चली गयी है। प्रजनन दर में गिरावट की इस गति का भारत जैसे देश के लिए सकारात्मक अर्थ संकेत हैं, क्योंकि इससे देश की जनसंख्या अब 2030 तक चीन से अधिक नहीं हो सकती है।

प्रजनन क्षमता में यह गिरावट सभी समुदायों में देखी जा रही है। नवीनतान आँकड़ों के मुताबिक, हिन्दू महिलाओं की कुल प्रजनन दर 1.94 है और मुस्लिम महिलाओं के लिए यह 2.2 है, जबकि ईसाई समुदाय की प्रजनन दर 1.88, सिख समुदाय 1.61, जैन समुदाय 1.6 और बौद्ध और नव-बौद्ध समुदाय 1.39 है। सीधे शब्दों में कहें, तो यह एक एकल परिवार में बच्चों की औसत संख्या है।

प्रतिस्थापन स्तर की उर्वरता उस स्तर का प्रतिनिधित्व करती है, जिस पर जनसंख्या बिलकुल एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में अपने आप को बदल लेती है। इस प्रकार यदि यह स्तर पर्याप्त रूप से लम्बी अवधि तक बना रहता है, तो शून्य जनसंख्या वृद्धि होती है। अधिकांश देशों में यह दर लगभग 2.1 बच्चे प्रति महिला है। हालाँकि यह मृत्यु दर के साथ मामूली रूप से भिन्न हो सकती है। प्रतिस्थापन स्तर की उर्वरता शून्य जनसंख्या वृद्धि को तभी बढ़ावा देगी, जब मृत्यु दर स्थिर रहे और प्रवास का कोई प्रभाव न पड़े।

भारत में अधिक जनसंख्या एक बड़ी चुनौती रही है और देश में ग़रीबी, बेरोज़गारी और निरक्षरता जैसी अधिकांश समस्यायों का एक बड़ा कारण है। नमूना पंजीकरण प्रणाली डाटा 2020 के अनुसार, भारत की सामान्य प्रजनन दर (एक वर्ष में 15-49 के प्रजनन आयु वर्ग में प्रति 1,000 महिलाओं पर जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या) में पिछले एक दशक में 20 फ़ीसदी की गिरावट आयी है।

गिरावट की इस दर का मतलब है कि भारत विश्व स्तर पर सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने के लिए चीन को पछाड़ नहीं पाएगा। नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, औसत सामान्य प्रजनन दर सन् 2018 से सन् 2020 के बीच 68.7 है, जबकि सन् 2008 सन् 2010 के बीच यह 86.1 थी। गिरती प्रजनन दर को कई संरचनात्मक हस्तक्षेपों के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, जैसे कि शादी की उम्र में वृद्धि, महिलाओं में साक्षरता दर में सुधार, और आधुनिक गर्भनिरोधक विधियों की आसान और व्यापक उपलब्धता आदि।

नमूना पंजीकरण प्रणाली डाटा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुरूप है, जिसमें भारत की कुल प्रजनन दर (प्रजनन आयु की प्रति महिला जन्म दर) 2015-16 की 2.2 से गिरकर 2019-2021 में 2.0 हो गयी है।

हालाँकि कुल प्रजनन दर में गिरावट एक समान नहीं है, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह शहरी क्षेत्रों में 15.6 फ़ीसदी की तुलना में 20.2 फ़ीसदी है। एक ग्रामीण महिला का टीएफआर 2.2 है, जबकि एक शहरी महिला का 1.6 है। इसलिए यह तर्क दिया जा सकता है कि सामाजिक और आर्थिक विकास तो राष्ट्रीय स्तर पर प्रजनन दर में गिरावट को प्रेरित कर रहे हैं। वहीं साक्षरता, आर्थिक सशक्तिकरण, महिलाओं की जागरूकता में असमानता है, जिससे विसंगतियाँ बढ़ रही हैं।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कवर करते हुए) में चंडीगढ़ में कुल प्रजनन दर 1.4 से लेकर उत्तर प्रदेश में 2.4 तक देखी गयी। मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश को छोडक़र कई राज्यों ने प्रजनन क्षमता का प्रतिस्थापन स्तर (2.1) हासिल कर लिया है।

रिपोर्ट बताती हैं कि दो से ऊपर की कुल प्रजनन दर वाले पाँच राज्य बिहार, मेघालय, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड और मणिपुर थे। हरियाणा, असम, गुजरात उत्तराखण्ड और मिजोरम 1.9 पर कुल प्रजनन दर दो थी। छ: राज्य- केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा 1.8 पर थे। इसके अलावा 1.7 में महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, नागालैंड और त्रिपुरा थे, जबकि इस सर्वेक्षण में पश्चिम बंगाल में टीएफआर सबसे कम 1.6 था।

आँकड़े बताते हैं कि पिछले दो दशक में सभी धार्मिक समुदायों में मुसलमानों की प्रजनन दर में सबसे तेज़ गिरावट आयी है। आँकड़ों से यह भी पता चलता है कि मुस्लिम बहुल राज्य जम्मू और कश्मीर ने सभी राज्यों में सामान्य प्रजनन दर में सबसे ज़्यादा गिरावट दर्ज की है।

अपनी प्रजनन क्षमता में गिरावट के बावजूद भारत में अभी भी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है। हालाँकि बड़ी या तेज़ी से गिरावट, जनसंख्या वृद्धि दर अनुमानित 1.9 फ़ीसदी प्रति वर्ष है। दुनिया के केवल तीन देशों नाइजीरिया, पाकिस्तान और बांग्लादेश में  विकास की उच्च दर है।

प्रजनन क्षमता में गिरावट का श्रेय साक्षरता, शहरीकरण, औद्योगीकरण, आधुनिक संचार और परिवहन और महिलाओं की स्थिति में वृद्धि को दिया जाता है। सरकारी परिवार नियोजन सेवाओं की उपलब्धता ने भी प्रजनन क्षमता में गिरावट में योगदान दिया है। शहरी क्षेत्रों में प्रजनन क्षमता में तेज़ी से गिरावट आयी है, जो कि 1,00,000 से अधिक लोगों की आबादी वाले शहरों में केंद्रित हैं।

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार के अनुसार, समग्र गर्भनिरोधक प्रसार दर (सीपीआर) देश में 54 फ़ीसदी से बढक़र 67 फ़ीसदी हो गयी है। लगभग सभी राज्यों / संघ राज्य क्षेत्रों में गर्भ निरोधकों के आधुनिक तरीक़ों का उपयोग भी बढ़ा है। परिवार नियोजन की अधूरी ज़रूरतों में 13 फ़ीसदी से नौ फ़ीसदी की महत्त्वपूर्ण गिरावट देखी गयी है। अतीत में भारत में एक प्रमुख मुद्दा बनी रही रिक्ति की अधूरी आवश्यकता अब घटकर चार फ़ीसदी से भी कम रह गयी है। भारत में संस्थागत जन्म 79 फ़ीसदी से बढक़र 89 फ़ीसदी हो गये हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी लगभग 87 फ़ीसदी जन्म स्वास्थ्य सुविधाओं में होता है और शहरी क्षेत्रों में यह 94 फ़ीसदी है। जनसंख्या वृद्धि स्वास्थ्य और मृत्यु दर में सुधार के लिए ज़िम्मेदार है। जीवन प्रत्याशा बढक़र 60 वर्ष हो गयी है और शिशु मृत्यु दर घटकर 74 प्रति 1,000 हो गयी है।

राष्ट्रीय परिवार के पाँचवें दौर के निष्कर्षों के अनुसार, कुल प्रजनन दर, जो कि किसी भी महिला से उसके जीवनकाल में पैदा होने वाले बच्चों की औसत संख्या है; 2015-16 के 2.2 से घटकर 2019-21 में 2.0 हो गयी थी। स्वास्थ्य सर्वेक्षण या एनएफएचएस-5। भारत की दो की कुल प्रजनन दर वर्तमान में प्रति महिला 2.1 बच्चों की प्रजनन क्षमता के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है। इस बीच निम्न-प्रतिस्थापन प्रजनन क्षमता अंतत: नकारात्मक जनसंख्या वृद्धि और लम्बी अवधि में जनसंख्या के कम होने का परिणाम है। 1992-93 और 2019-21 के बीच भारत की कुल प्रजनन दर 3.4 बच्चों से घटकर 2.0 बच्चे रह गयी। कुल प्रजनन दर सिक्किम में प्रति महिला 1.1 बच्चों से लेकर बिहार में प्रति महिला तीन बच्चों तक है। एनएफएचएस-5 के अनुसार, पाँच राज्यों को प्रजनन क्षमता का प्रतिस्थापन स्तर 2.1 प्राप्त करना अभी बा$की है। ये राज्य बिहार (2.98), मेघालय (2.91), उत्तर प्रदेश (2.35), झारखण्ड (2.26) और मणिपुर (2.17) है।

ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की कुल प्रजनन दर 1992-93 में 3.7 बच्चों से घटकर 2019-21 में 2.1 बच्चे रह गयी है। शहरी क्षेत्रों में महिलाओं में यह गिरावट 1992-93 में 2.7 बच्चों से 2019-21 में 1.6 बच्चों की थी। सभी एनएफएचएस सर्वेक्षणों में कमोबेश सभी जगह (रहने वाली जगह) प्रजनन दर 20-24 वर्ष की आयु में चरम पर होती है, जिसके बाद इसमें लगातार गिरावट आती है। एक और दिलचस्प पहलू यह था कि महिलाओं के स्कूली शिक्षा के स्तर के साथ प्रति महिला बच्चों की संख्या में गिरावट आयी है। बिना स्कूली शिक्षा वाली महिलाओं में औसतन 2.8 बच्चे होते हैं, जबकि 12 या अधिक वर्षों की स्कूली शिक्षा वाली महिलाओं के बच्चों की औसत संख्या 1.8 है।