भारत में खोजी पत्रकारिता को फिर एक पहचान

मैंने अपने जीवन के चार सबसे असामान्य सप्ताह के दौरान जो सबसे असामान्य खबर सुनी, वह एक भारतीय कैमरामैन से आयी थी; जिन्होंने मार्च 2001 में एक अमेरिकी पत्रकारिता दल के साथ हमारे कार्यालय का दौरा किया और हमारे रक्षा खुलासे ‘ऑपरेशन वेस्ट एंड’ के बारे में बात की। आखरी सवाल पूछ लिया गया था और उसका जवाब दे दिया था, और साक्षात्कारकर्ता आराम वाले मूड में गपशप करते हुए अपनी तारें और अन्य सामान समेट रहा था; तब उसने अचानक कहा- ‘यहाँ से जाने से पहले मैं आपको एक खबर बताना चाहता हूँ। इसमें केवल कुछ मिनट लगेंगे।’

कैमरामैन पूर्वी उत्तर प्रदेश के अपने गाँव जौनपुर की मेड़ों से कुछ दिन पहले ही लौटा था। शहरों की तरह वहाँ भी तहलका के खुलासे ने इसे गाँव की चौपाल की चर्चा में वैसे ही ला दिया था, जैसे इसने देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा था। लेकिन इसमें एक दिलचस्प अन्तर था। ग्रामीणों को खुलासे के ज़रिये के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।

उन्होंने इसे टेलीविजन पर देखा था। उन्होंने इसे अखबारों में पढ़ा था। लेकिन उन्हें यह भी पता चल गया था कि एक नयी तरह संस्था (तहलका) है, जो इस खबर को सामने लायी थी। और वे इसके बारे में अनभिज्ञ थे; वे डॉट कॉम और विश्वव्यापी वेब के बारे में जानकारी को लेकर अनभिज्ञ थे। उनके अनुभव या उनकी कल्पना में कुछ भी नहीं था, जो उन्हें किसी वेबसाइट या इंटरनेट की समझ बनाने में मदद कर सके। इसलिए उन्होंने एक अनुमान-सा लगाया था। उनके लिए तहलका एक तरह की एक्स-रे मशीन थी, जो किसी के भी भ्रष्टाचार को उजागर करती थी; जिस क्षण वे (भ्रष्टाचारी) उसके सामने आते थे। जौनपुर के कैमरामैन ने बताया कि वहाँ चर्चा भ्रष्टाचार को उजागर करने वाली मशीन के खतरे की थी। यही कारण था कि घोटाला सामने आने के बाद पहले कुछ दिन तक प्रधानमंत्री जनता के सामने नहीं आये थे।

ऑपरेशन वेस्ट एंड से पैदा होने वाले धमाके के लिए वास्तव में हम भी तैयार नहीं थे। महीनों से हम यही जानते थे कि हमने सबका ध्यान खींचने और प्रभाव वाली खबर की है। महीनों तक हमारा खौफ लगातार बढ़ता गया; क्योंकि यह तेज़ी से स्पष्ट हो गया कि यह एक खबर मात्र नहीं है, जो किसी दिये गये एक बिन्दु पर रुकेगी और जो विश्लेषण, आलोचना और पुलिस जाँच से जुड़ी है। यह एक कहानी थी, जिसने सीधे शीर्ष स्तर पर ज़बरदस्त प्रतिक्रिया पैदा करनी है और कुछ लोगों को अपने चेहरे बचाने के लिए कोई गुंजाइश नहीं रहेगी।

इस खोजी खबर के जनक अनिरुद्ध बहल से मैंने कहा कि हम भ्रष्टाचार का खुलासा तो कर देंगे; लेकिन इसकी जाँच कौन कराएगा? इसके बाद हमने अपनी आँखें ज़मीन पर होनी वाली घटनाओं पर टिका दीं। शुद्ध रूप से पत्रकारिता के रूप में; बिना इस बात का ज़िक्र किये कि इसके नतीजे क्या होंगे? हम कहानी पर दृढ़ रहेंगे। जैसे यह होती है; हम इसे जारी कर देंगे। इसलिए दो कारण थे, जिससे कि हम नतीजे के पैमाने को लेकर तैयार नहीं थे। एक, हमने जान-बूझकर खुद को इसके बारे में सोचने से रोक रखा था। और दो, जौनपुर के निवासियों की तरह हमारे अनुभव में ऐसा कुछ भी नहीं था, जो हमें इसका अनुमान लगाने में मदद कर सकता था।

ऑपरेशन वेस्ट एंड एक शान्त और विनम्र तरीके से शुरू हुआ। जब भारतीय पत्रकार हमारे क्रिकेटरों के चमत्कारिक कामों का लेखा-जोखा लिख रहे थे, तब यह अनिरुद्ध बहल ही थे, जिन्होंने पहले मैच फिक्सिंग की सड़ाँध को स्टिंग के ज़रिये खत्म किया था। कारगिल युद्ध के दौरान बहल और मैं, दोनों ‘आउटलुक’ में थे, और पत्रिका के प्रबन्ध सम्पादक के रूप में संघर्ष पर सम्पादकीय नीति में भूमिका हमारे हिस्से भी रहती थी। हमारी स्थिति बहुत स्पष्ट थी। कारगिल युद्ध के दौरान हमने अपने राष्ट्रवाद को पत्रकारिता के दायरे में रखा। हम उन खबरों और तस्वीरों से बचने के प्रति सावधान थे, जो हमारे सैनिकों को युद्ध मोर्चे पर नुकसान कर सकती थीं। लेकिन जिस क्षण संघर्ष समाप्त हुआ, हमने पत्रकारिता के उच्च सिद्धांतों को स्थापित करते हुए वह सभी असहज सवाल उठाये, जो उस समय सामने आ रहे थे। हमारे सवालों ने बहुत-से लोगों के सामने यह सवाल पैदा किया कि हमारे रक्षा प्रतिष्ठान के साथ सब ठीक नहीं है।

वेस्ट एंड खबर का विषय देने वाला एक और मज़बूत कारक था। एक 15 साल पुराना रक्षा सौदा- बोफोर्स, जिसने वर्षों तक भारतीय सार्वजनिक जीवन में उथल-पुथल मचाये रखी। इसके बाद ही बाद के रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस ने ऐलान किया था कि भविष्य में रक्षा सौदों में कोई भी विचौलिया नहीं होगा। हमारे वेस्ट एंड ऑपरेशन के मुख्य स्तम्भ थे- मैथ्यू सैमुअल; जो असाधारण धैर्य और संसाधनशीलता वाले खोजी पत्रकार थे। उन्होंने बैकग्राउंड तैयारी के समय एक रक्षा उत्पाद को खोजा, जो खरीद के लिए कतार में था, जिसे हाथ में रखा थर्मल कैमरा कहा जाता था। किसी को भी उत्पाद के बारे में कुछ नहीं पता था। नेट से इस पर जानकारी डाउनलोड की गयी और तहलका के डिजाइन विभाग की मदद से इसके लिए एक विवरणिका बनायी गयी। उन्होंने एक डमी कम्पनी भी बनायी और इसे वेस्ट एंड इंटरनेशनल नाम दिया। बहल और मैथ्यू ने सावधानीपूर्वक देखभाल के साथ प्रत्येक स्टिंग की योजना बनायी और छ: महीने के लिए एक दिन की छुट्टी नहीं ली। बहल ने मैथ्यू को पूरी तरह से जानकारी दी; जिन्होंने अधिकांश स्टिंग किये थे।

आपको केवल यह कल्पना करनी होगी कि रक्षा मंत्री के घर पर मैथ्यू को पकड़ लिया गया होता, तो क्या हुआ होता? लोग मुझसे उन कैमरों के बारे में पूछते रहते हैं, जो तहलका की टीम इस्तेमाल करती थी। ऑपरेशन के महीने गुज़र रहे थे। हर गुज़रते महीने के साथ कहानी के अंतिम परिणाम स्वयं प्रकट होने लगे थे। तब तक बहल और मैथ्यू ने बंगारू लक्ष्मण को बेनकाब कर दिया था। आगे बढऩे के लिए हमें दो चीज़ों की आवश्यकता थी- एक, अधिक पैसा और दूसरा, वास्तविक उत्पाद; अर्थात् थर्मल हैंड कैमरा। पर्दे को जनवरी के मध्य तक फील्ड वर्क (धरातल) पर खींच लिया गया था, और सबूतों को ट्रांसक्रिप्ट, स्क्रिप्टिंग और सम्पादित करने का थकाऊ काम शुरू हुआ।

अंतिम टेप 12 मार्च की दोपहर तक तैयार हो गया था और 13 मार्च की दोपहर को 24 घंटे से भी कम समय में, हमने खबर को ब्रेक कर दिया। इसकी स्क्रीनिंग में करीब 300 लोग थे; जिनमें सेवानिवृत्त जनरल, नौकरशाह, मीडिया के लोग शामिल हैं। और फिर इसके प्रसार के रूप में राजनेताओं को स्क्रीनिंग के लिए दिखाया। यह निश्चित नहीं था कि क्या उम्मीद की जाए? और फिर जैसे-जैसे टेपों का चलन शुरू हुआ, वैसे-वैसे ऑपरेशन वेस्ट एंड की खबर सार्वजनिक क्षेत्र में फैलने लगी। हमारे भीतर बैठा तनाव, बाहर निकलने लगा। बेहतर या बदतर के लिए, एकमात्र हम ज़िम्मेदार थे।

खबर बाहर निकलते ही तूफान पैदा कर चुकी थी। दु:ख की बात है कि यह हमसे उतनी अलग नहीं हुई, जितनी हमने कल्पना की थी। लेकिन हमने पूरी नैतिकता का पालन करते हुए एक खबर तैयार की थी; जो एक अच्छी खबर बन गयी थी। और अब हमने इसे ब्रेक कर दिया था। खबर ने हमें बंगारू लक्ष्मण और जया जेटली के पास पहुँचाया था; जिनका कहानी शुरू होने पर हमें पता नहीं था। हमने यह भी कहा कि हमारे पास भाजपा या समता पार्टी के खिलाफ कुछ भी नहीं था। हमें यकीन था कि यदि यह जाँच किसी अन्य शासन (कांग्रेस या तीसरे मोर्चे की सरकार) में की गयी होती, तब भी इसके परिणाम यही होते। हमने अगले कई हफ्तों में अपने स्वतंत्र रुख को दोहराया। लेकिन किसी ने नहीं सुनी। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इससे किसी भी तरह का लाभ लेने की कोशिश में थे। लेकिन भाजपा की लगभग अनैतिक प्रतिक्रिया थी; जो सबसे निराशाजनक थी।

हमने केवल सार्वजनिक धन और सार्वजनिक कार्यालय के दुरुपयोग को उजागर किया। सडक़ पर रोका जाना, रेस्तरां, हवाई अड्डों पर और अज्ञात लोगों की तरफ से धन्यवाद किया जाना; किसी भी पत्रकार के लिए उस किसी भी अपेक्षा से अधिक है, जो वह करता है। वेस्ट एंड के खुलासे के सबसे बड़े प्रभाव के रूप में जो हुआ, मेरी नज़र वह यह है कि इसने भ्रष्टाचार को एक बार फिर भारत में एक मुद्दा बना दिया। एक दशक पहले, जब वी.पी. सिंह ने बोफोर्स विवाद पर 1989 का चुनाव लड़ा था; तबसे भ्रष्टाचार एक गैर-सा मुद्दा रहा था। अचानक यह मुद्दा निजी और सार्वजनिक भाषणों में हावी हो गया। वेस्ट एंड भारतीय सार्वजनिक संस्थानों से भ्रष्टाचार की सड़ाँध कम करने का एक ईमानदार प्रयास था…।

(यह स्टिंग के बाद प्रकाशित तरुण जे. तेजपाल की खबर का सार है।)