भारत की ताक़त बन रहा रक्षा निर्यात

पिछले वित्त वर्ष में 85 देशों को बेचे 15,920 करोड़ रुपये के हथियार

दशकों से जब भी हमारे देश में अमीर देशों की बात होती है, तो यही बात सामने आती है कि यह देश हथियार बनाते-बेचते हैं, इसलिए अमीर हैं। दुनिया में हथियारों का बाज़ार बहुत बड़ा है और जिस तरह से देशों में तनाव बने हैं, उससे रक्षा उत्पादों का महत्त्व काफ़ी बढ़ गया है। हाल ही में सरकार ने यह बताया है कि देश का रक्षा उत्पादन वित्त वर्ष 2023 में 1,06,800 करोड़ रुपये पहुँच गया है, जिसमें निजी रक्षा उद्योग का आँकड़ा शामिल नहीं है।

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की एक रिपोर्ट से ज़ाहिर होता है कि 2013 से 2022 के बीच भारत के रक्षा आयात में 11 फ़ीसदी की बड़ी कमी आने के बावजूद भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक है और पिछले पाँच साल में दुनिया में जितने हथियार ख़रीदे गये, उनमें से 11 फ़ीसदी अकेले भारत ने ख़रीदे। लेकिन यहाँ एक और दिलचस्प तथ्य है, वह यह कि भारत आज 85 देशों को हथियार निर्यात भी कर रहा है और वित्त वर्ष 2016-17 में भारत का जो रक्षा निर्यात 1,521 करोड़ रुपये था, वह वित्त वर्ष 2022-23 में बढक़र 15,920 करोड़ रुपये हो गया है।

‘मेक इन इंडिया’ पर ज़ोर देने से देश में रक्षा उत्पादन के मामले में चीज़ें बदली हैं। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, 2023 के माली साल में रक्षा उत्पादन की वर्तमान वैल्यू 2022 के माली साल (94,846 करोड़ रुपये) के मुक़ाबले 12 फ़ीसदी अधिक है। वित्त वर्ष 2020-21 में भारतीय रक्षा उत्पादन 84,643 करोड़ रुपये था।

‘तहलका’ की जुटायी जानकारी के मुताबिक, दुनिया में पिछले पाँच साल में बिके हथियारों में जहाँ भारत ने 11 फ़ीसदी ख़रीदे, वहीं उसके बाद सऊदी अरब का नंबर है, जिसने 9.6 फ़ीसदी हथियार ख़रीदे। जबकि क़तर ने 6.4 फ़ीसदी, ऑस्ट्रेलिया ने 4.7 फ़ीसदी और चीन ने 4.7 फ़ीसदी हथियार ख़रीदे। सिपरी की रिपोर्ट के अनुसार, हथियार निर्यात करने के मामले में सबसे पहला नंबर अमेरिका का है, जो दुनिया के कुल हथियारों के 40 फ़ीसदी का निर्यात करता है। रूस दूसरे नंबर पर है, जो 16 फ़ीसदी हथियारों का निर्यात करता है, जबकि इसके बाद क्रमश: फ्रांस 11 फ़ीसदी, चीन 5.2 फ़ीसदी और जर्मनी 4.2 फ़ीसदी हथियारों के निर्यातक हैं। यहाँ दिलचस्प बात यह है कि जहाँ अमेरिका के हथियार निर्यात में 2013 के बाद 14 फ़ीसदी की उछाल आया है, वहीं रूस ने हथियार निर्यात के मामले में अपना 31 फ़ीसदी बाज़ार खो दिया है।

क्या निर्यात के मुश्किल लक्ष्यों को हासिल कर भारत दुनिया के अग्रणी हथियार निर्यातकों की कतार में खड़ा हो पाएगा? यह एक मुश्किल सवाल है; लेकिन सच यह भी है कि भारत उस दिशा की तरफ़ बढ़ रहा है। मोदी सरकार ने 2020 में पाँच साल के लिए एयरोस्पेस के अलावा डिफेंस गूड्स और सर्विस में 35,000 करोड़ रुपये के निर्यात का चुनौतीपूर्ण लक्ष्य निर्धारित किया था। सरकार ने तब कहा था कि यह रक्षा उत्पादन में पौने दो लाख करोड़ रुपये (25 बिलियन डॉलर) के टर्नओवर का हिस्सा है। भारत 85 देशों को जो रक्षा उत्पाद निर्यात करता है, उसमें अधिकांश एयरोस्पेस क्षेत्र से जुड़े हैं।

भारत वर्तमान में डोर्नियर-228, 155 एमएम एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन्स (एटीएजी), ब्रह्मोस मिसाइल, आकाश मिसाइल सिस्टम्स, रडार, सिमुलेटर, माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल्स, आर्मर्ड व्हीकल्स, पिनाका रॉकेट और लॉन्चर, एम्युनिशन, थर्मल इमेजर, बॉडी आर्मर, सिस्टम, लाइन रिप्लेसेबल यूनिट्स और एवियॉनिक्स और स्मॉल आम्र्स जैसे बड़े प्लेटफॉम्र्स का निर्यात करता है। दुनिया में भारत के एलसीए तेजस, लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर और एयरक्राफ्ट करियर की माँग भी बढ़ रही है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट बताती है कि 2018-22 के दौरान पाँच सबसे बड़े हथियार निर्यातक देश अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और जर्मनी हैं।

पिछले सात साल में भारत के रक्षा निर्यात में 10 गुना बढ़ोतरी हुई है। रक्षा उत्पादन बढऩे से इसमें मदद मिली है। मेक इन इंडिया के तहत देश में दो रक्षा औद्योगिक गलियारे स्थापित किये गये हैं, जो उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में हैं। उत्तर प्रदेश डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर विकसित करने के लिए आगरा, अलीगढ़, चित्रकूट, झांसी, कानपुर और लखनऊ, जबकि तमिलनाडु डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के विकास के लिए चेन्नई, कोयंबटूर, होसुर, सलेम और तिरुचिरापल्ली की पहचान सरकार ने की है। रक्षा निर्माण की गति तेज़ करने की कोशिशों के बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल में एक सूची जारी की है, जिसके मुताबिक 928 रक्षा उत्पादों का निर्माण भारत में ही होगा।

ज़ाहिर है निर्भरता हासिल करते ही भारत इनका आयात बंद कर देगा। इनमें रिप्लेसमेंट यूनिट्स, सब-सिस्टम्स, स्पेयर और कंपोनेंट्स, हाई एंड मटीरियल्स और स्पेयर शामिल हैं। भारत ने वित्त वर्ष 2022-23 में रक्षा निर्यात में 16,000 करोड़ रुपये के अब तक के उच्चतम स्तर को छुआ है। यह 2016-17 की तुलना में 10 गुना से ज़्यादा की छलांग है। निश्चित ही सरकार की नीतिगत पहल और रक्षा उद्योग के सहयोग को इसका श्रेय जाता है। पिछले वित्त वर्ष की तुलना में यह निर्यात क़रीब 3,000 करोड़ रुपये ज़्यादा है, जिसे निश्चित ही बेहतर उपलब्धि कहा जाएगा। भारतीय उद्योग ने रक्षा उत्पादों का निर्यात करने वाली 100 कम्पनियों के साथ डिजाइन और विकास की अपनी क्षमता दुनिया के सामने साबित की है और बढ़ता रक्षा निर्यात और एयरो इंडिया-2023 में 104 देशों की भागीदारी देश की बढ़ती रक्षा निर्माण क्षमताओं का प्रमाण है। $खुद प्रधानमंत्री मोदी इसके लिए देश की प्रतिभाओं की तारीफ़ कर चुके हैं।

चीन के साथ लगातार जारी टकराव और क्षेत्र में अस्थिरता के चलते भारत के लिए रक्षा उत्पादन अपनी ज़मीन मज़बूत करने जैसा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, सुरक्षा की इन बढ़ती चिन्ताओं के साथ माँग वृद्धि में तेज़ी की संभावना है। आँकड़ों के मुताबिक, पिछले साल अक्टूबर तक रक्षा क्षेत्र में 366 कम्पनियों को कुल 595 औद्योगिक लाइसेंस जारी किये जा चुके हैं। सरकार के मुताबिक, पिछले पाँच साल में रक्षा निर्यात में 334 फ़ीसदी की वृद्धि हुई। भारत को 2026 तक 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के उपकरण निर्यात करने की उम्मीद है। इसे देखते हुए ही सरकार ने रक्षा उद्योग के दरवाज़े निजी क्षेत्र के लिए भी खोल दिये हैं।

रक्षा उत्पादन बढ़ाने और उनकी चुनौतियाँ कम करने के लिए रक्षा-उद्योग और उनके संघों के साथ सरकार काम कर रही है। पिछले क़रीब आठ साल में उद्योगों को जारी किये रक्षा उत्पादन लाइसेंस में क़रीब 200 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इससे रक्षा-उत्पादन उद्योग ईको सिस्टम को तो बढ़ावा मिला ही है, रोज़गार के मौक़े भी पैदा किये हैं। सरकार की कोशिश रक्षा उत्पादन में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के अलावा स्टार्टअप की भूमिका को विस्तार देने की है। रक्षा क्षेत्र में घरेलू कारोबार में सुगमता के लिए सरकार ने नीतिगत बदलाव किये हैं। स्कॉर्पीन श्रेणी में कलावरी क्लास प्रोजेक्ट-75 के तहत छ: पनडुब्बी का फ्रांस की मदद से देश में ही निर्माण किया गया है, जिसमें पाँच- आईएनएस वागीर, आईएनएस कलवरी, आईएनएस खंडेरी, आईएनएस करंज और आईएनएस वेला; को तो नौसेना के बेड़े में शामिल किया जा चुका है।

छठी पनडुब्बी आईएनएस वागशीर का समुद्री परीक्षण 18 मई को शुरू हो गया। सन् 2024 में इसे भी भारतीय नौसेना को सौंपने की उम्मीद है। हिन्द महासागर में चीन के बढ़ते दख़ल को देखते हुए नौसेना का पूरा ध्यान क्षमता को धार देने पर है। युद्धक क्षमता के नज़रिये से देखें, तो भारत रक्षा ज़रूरतों के लिए रूस पर काफ़ी निर्भर रहा है। लेकिन यूक्रेन के साथ रूस के युद्ध के बाद भारत आत्मनिर्भरता के प्रति संजीदा हुआ है। एक रिपोर्ट से ज़ाहिर होता है कि युद्ध के चलते भारत को रूस से टैंक और जंगी जहाज़ों को अपडेट रखने के लिए ज़रूरी कलपुर्जे नहीं मिल पा रहे या काफ़ी देरी हो रही है। यही हाल एयर डिफेंस सिस्टम मिलने का है।