भारत आते ही छलका देश छूटने का दर्द

मेरी पूरी दुनिया से अपील है कि वो अफ़ग़ानिस्तान को अकेला न छोड़े। मदद के लिए आगे आये और वहाँ अमन बहाल करवाने में मदद करे। यदि अब दुनिया ने अफ़ग़ानिस्तान को छोड़ दिया, तो वह अगले 20 साल तक फिर एक ऐसी दुनिया में चला जाएगा, जहाँ से तरक़्क़ी के रास्ते पर वापसी मुश्किल होगी। अफ़ग़ानिस्तान से अपनी जान बचाकर भारतीय वायु सेना के विमान से दिल्ली पहुँचीं सांसद अनारकली कौर होनरयार ने अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी से भारतीय मीडिया के माध्यम से यह गुहार लगायी।

‘तहलका’ से विशेष बातचीत में उन्होंने बताया कि अफ़ग़ानिस्तान के हालात बहुत ख़राब हैं। अगर हमारी फ़ौजें काबुल की रक्षा नहीं कर पायीं, तो आप सोचिए बाक़ी शहरों, क़स्बों और गाँवों में इन्होंने क्या हाल किया होगा?

दिल्ली के एक होटल में अपने माता-पिता के साथ ठहरी अनारकली भारतीय मूल की सिख हैं। 22 अगस्त को वह भारत सरकार के बचाव अभियान के तहत सुरक्षित लायी गयीं। अनारकली पेशे से दन्त चिकित्सक हैं और 10 साल से अफ़ग़ानिस्तानी संसद के उच्च सदन में सांसद हैं। घबरायी-सहमी अनारकली की आँखों में आँसू बार-बार आ रहे थे। वह कहती हैं कि अपना घर कौन छोडऩा चाहता है? मैं अपने देश और देश के लोगों से बहुत प्यार करती हूँ। मैं अपने देश वापस जाना चाहती हूँ। आज मुझे महसूस हुआ कि देश माँ होता है और अपनी माँ की गोद से दूर होने का दर्द महसूस कर रही हूँ। मैं सौभाग्यशाली हूँ कि भारत हमें सुरक्षित ले आया है। मैं भारत सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सिख नेता एवं इंडियन वल्र्ड फोरम के पुनीत सिंह चंडोक की बहुत शुक्रगुज़ार हूँ। हालाँकि भारत में रहकर मुझे नहीं लगेगा कि मैं अपने देश से दूर हूँ।

अनारकली बताती हैं कि आप लोग जो टीवी पर देख रहे हैं, हालात उससे बहुत ख़राब हैं। 20 साल में अफ़ग़ानिस्तान में विदेशों की मदद से जो तरक़्क़ी हुई, अब हम 100 साल पीछे चले गये हैं। दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच जो समझौता हुआ था, उसमें सारी बातें तालिबान की मानी गयीं और अफ़ग़ानिस्तान का ध्यान नहीं रखा गया। चीन और अमेरिका ने तालिबान के साथ क्या गुपचुप समझौता किया? वो तो अभी पता नहीं चल रहा है। लेकिन कुछ तो ऐसा हुआ है कि अफ़ग़ानिस्तान को इसके हालात पर छोड़ दिया गया। यह तो मैं सोच ही नहीं सकती थी कि काबुल इतनी जल्दी तालिबान के सामने घुटने टेक देगा।

अफ़ग़ानिस्तान की संसद में पहुँचने वाली अनारकली होनरयार पहली ग़ैर-मुस्लिम महिला हैं। वह कहती हैं- ‘सांसद होने के कारण मुझे लगता था कि मैं सुरक्षित हूँ और हमें यहाँ से निकलने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी; क्योंकि मुझे पूरा भरोसा था कि इंटरनेशनल कम्युनिटी हमारी मदद के लिए ज़रूर आगे आएगी। लेकिन जब हमारे राष्ट्रपति अशरफ़ गनी देश छोडक़र भाग गये, तो हमारी सारी उम्मीदें टूट गयीं। हौसला टूट गया। मैं अन्तिम दिन तक अपने दफ़्तर में काम कर रही थी। मुझे लगा था कि हम शान्ति बहाली के लिए विरोध करेंगे। लेकिन उस दिन दफ़्तर में फोन पर कॉल आने लगीं कि तालिबान ने काबुल को घेर लिया है। जब हालात ख़राब हुए तो मैं भी अपनी कार से निकली। रास्ते में अफ़रा-तफ़री थी। लोग सडक़ों पर बदहवास भाग रहे थे। कारों के हॉर्न बज रहे थे। मैं कार रास्ते पर ही छोडक़र पैदल घर पहुँची, तो माता-पिता घबराये हुए थे। उन्होंने कहा कि जितनी जल्दी हो सके काबुल छोड़ दो।

अनारकली को शक है कि तालिबान को जो खुला हाथ दिया गया है, उसके पीछे कोई गहरी अंतर्राष्ट्रीय साज़िश है। वरना अभी तो कम-से-कम छ: महीने का समय था अफ़ग़ानिस्तान सरकार के पास सँभलने के लिए। फ़ौजों का चुपचाप तालिबान को रास्ता देना राष्ट्रपति भाग जाना बहुत कुछ शक पैदा करता है। उन्होंने कहा तालिबानी न कभी बदले थे, न बदलेंगे। वे क्या बदले हैं, यह पूरी दुनिया चुपचाप देख रही है। अनारकली की आँखों में फिर आँसू बहने लगते हैं। वह आह भरकर कहती हैं कि इंटरनेशनल बिरादरी ने हमें अकेला छोड़ दिया; तालिबान के हवाले कर दिया। पता नहीं अब कभी हम अपने वतन लौट पाएँगे या नहीं! फ़िलहाल तो ख़ाली हाथ जान बचाकर आ गये हैं। अभी न आने वाले कल के बारे में सोचा है; न कोई प्लान है। देखते हैं क़िस्मत में क्या लिखा है? कल तक अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं का जीवन बेहतर बनाने की योजनाएँ लागू करने वाली अनारकली कौर होनरयार आज ख़ुद लाचार और बेबस हैं। घर से बेघर हैं; और बस दुआ कर रही हैं कि उनके देश में फिर अमन हो ख़ुशहाली हो।