भयंकर सूखे की चपेट में महाराष्ट्र

महाराष्ट्र इस बार बुरी तरह सूखे की चपेट में है। गांव के गांव खाली होने के कगार पर हैं। ऐसे में जब लोग बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं तो जानवरों की हालात उससे भी बदतर है। पानी की कमी से जूझ रहे हैं उन सूखाग्रस्त इलाकों का दौरा किया महाराष्ट्र के एनसीपी नेता शरद पवार ने । उनसे बातचीत की मनमोहन सिंह नौला ने। बातचीत के चुनिंदा अंश।

सुना है कि आप को राज्य सरकार में किसी मंत्री ने चुनौती देते हुए कहा था कि आप उनके साथ इस मामले में चर्चा करें…

हां सुना है लेकिन मैं ऐसे लोगों से चर्चा नहीं करना चाहता जिनकी इस बारे में समझ सीमित है अगर चर्चा करनी है तो उन सूखाग्रस्त इलाकों में जाएं  जहां पर लोगपरेशान हैं और पानी के लिए तरस रहे हैैं। उन किसानों से मिलें जिनकी फसलें खत्म हो गई हैं। चारा छावनियों में जाकर देखें जहां पर चारे की कमी है, पानी कीकमी है, जिन लोगों के फलों के बाग जल गए हैं उन लोगों से चर्चा करना सार्थक है। मैं महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त इलाकों में घूम आया हूं। मैंने जो कुछ देखा वाकई वहबहुत ही गंभीर है। मुझे लगता है कि 1972 के बाद यह बहुत ही गंभीर समस्या है। महाराष्ट्र में मैं उन लोगों से मिला जो चारा छावनियां चला रहे हैं। उन्हें प्रतिदिन 90 रुपए मिलते हैं । रुपए 90 प्रति दिन में प्रति जानवर चारा पानी आदि कैसे संभव है? यह बढ़ा कर 115-120 तक कर देना चाहिए। कुछ लोगों ने यहां तक कह दियाकि कम पैसों में वह चारा छावनी नहीं चला सकते और बंद कर देंगे …अगर वह चारा छावनियों बंद कर देंगे तो स्थिति बहुत ही खराब हो जाएगी।

सरकार का दावा है कि टैंकरों से पानी सप्लाई की जा रही है…

 हां सरकार ने टैंकरों की व्यवस्था की है लेकिन टैंकर से पानी की आपूर्ति काफी कम है और स्थिति बदतर है। कभी कभी कहीं कहीं दो-तीन दिन में एक बार पहुंचताहै टैंकर। अब जिन दिनों टैंकर्स नहीं पहुंचते उन दिनों के लिए लोग क्या करें? कहां से पानी लाएं? कहीं कहीं सरकारी टैंकर दिन में सिर्फ एक दफा ही आता है …एकबार में एक टैंकर से कितनी जलापूर्ति होगी? गांव के कितने लोगों को पानी मिलेगा ? कितने परिवारों की प्यास बुझेगी… जानवरों की भी तकरीबन यही दशा है ।लोगों की अपेक्षा है कि टैंकर रोज़ आए और ज़्यादा से ज़्यादा चक्कर मारे ताकि लोगों को नियमित पानी मिले प्यास बुझाने के लिए।

सब से अधिक परेशान महिलाएं हैं जिनके कंधों पर घर परिवार की जिम्मेदारी है। पीने के लिए तो पानी चाहिए ही लेकिन घर के अन्य कामों जैसे खाना बनाने केलिए, बर्तन धोने , कपड़े धोने के लिए भी पानी चाहिए चाहिए। महिलाओं की शिकायत है कि टैंकर से जो पानी आता है वह स्वच्छ नहीं है… पीने लायक नहीं है। इसमामले में विशेष ध्यान देना चाहिए। यह ज़रूरी भी है कि कम से कम पीने का पानी साफ स्वच्छ हो ताकि लोग बीमार न पड़े। सूखे की मार झेल रहे लोग इलाज कैसेकरा पाएंगे? कहां से पैसे लाएंगे?

सूखाग्रस्त इलाकों में जल संकट के साथ साथ और भी परेशानियां हैं…

खेत, बगीचे खत्म हो गए, पानी की समस्या, चारे की समस्या, और रोजग़ार की समस्या मुंह बाए खड़ी है। गांव से 50 फीसदी से अधिक लोग रोजग़ार के लिए गांवछोड़कर जा कर चुके हैं । रोजग़ार की कोई व्यवस्था नहीं है। हताश निराश लोग पुणे, मुंबई जा रहे हैं । रोजी रोटी के लाले पड़ गए हैं। परेशान गांव वाले छोटे-मोटेशहरों की तरफ नहीं जाएंगे तो क्या करेंगे ? सब लोग रोजग़ार की मांग कर रहे हैं और रोजग़ार देना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है। रोजग़ार के साथ ही पानी कीव्यवस्था हो ,जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था हो तो शायद कुछ दिशा दशा बदल सकती है इस संकट से । पशुधन को भी बचाना जरूरी है मैं कोई राजनीति नहींकर रहा हूं। इस  तकलीफ की घड़ी मे कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करना हम सब की जिम्मेदारीनहीं है?

फसलों के साथ-साथ फल बागानों खत्म हो जाने से लोगों की मुश्किलें बढ गई हैं । हालांकि  फसलों का खत्म होना भी तकलीफदेह हैं लेकिन फल बागानों की स्थितिज़्यादा गंभीर हो जाती है। क्योंकि लगभग पांच वर्ष लग जाते हैं बागानों को फलदार बनने में। आने वाले 20 साल तक उत्पादन का जो संसाधन होता है वह बागानों केखत्म होने से खत्म हो जाता है। हमारी सरकार ने जिस तरह से बागान वालों को पानी के टैंकरों के पैसे दिए थे इस सरकार को भी इसी तरह कुछ उपाय योजनाकरनी चाहिए। सरकार का सहयोग नहीं मिल रहा है लोगों को । एक बात अच्छी है कि कुछ लोग निजी रूप से व निजी संस्थाए , एनजीओ दिल खोलकर सहयोगकरने की कोशिश कर रहे हैं सूखे की मार झेल रहे लोगों की। लेकिन इन लोगों के भरोसे छोड़ कर सरकार अपने हाथ खड़े नहीं कर सकती। यह सरकार की नैतिकजिम्मेदारी है जिसे सरकार को पूरी तरह से निभाना ही होगा।

फिलहाल मुख्यमंत्री टेली कांफ्रेंस के जरिए स्थिति पर नजर रखे हुए हैं…

मुख्यमंत्री टेलीकॉम टेली कांफ्रेंस के जरिए स्थिति पर नजऱ रखे हुए हैं। मैं जानता हूं। वह ठीक कर रहे हैं अपने संसाधनों का प्रयोग कर रहे हैं और डिस्ट्रिक्ट के सभीअधिकारियों से चर्चा कर रहे हैं लेकिन बेहतर यह है कि मुख्यमंत्री वहां जाकर चारा छावनियों की जानकारी लें। जानवरों की क्या दशा है वह देखें। चारा छावनीचलाने चलाने वालों की क्या हालत है उसे देखें। जल शिविरों की क्या स्थिति है उसका पता लगाएं । जानवरों के मालिकों से बातचीत करें और फल बगानों की स्थितिपता लगाएं। लोगों तक पानी पहुंचाएं।