बेरोज़गारी का अग्निपथ

केंद्र की योजना पर देश भर में मचा बवाल

नोटबंदी, जीएसटी और कृषि क़ानूनों से लेकर सेना भर्ती की अग्निपथ योजना तक सुधार (रिफॉम्र्स) की मोदी सरकार की योजनाएँ विवादों में घिरी हैं और जनता को इसमें लाभ की जगह नुक़सान और जोखिम अधिक नज़र आया है। क्या जनता सरकार को समझ नहीं पा रही या सरकार जनता और देश की स्थितियों और ज़रूरतों को समझे बिना जल्दबाज़ी में रिफॉम्र्स की योजनाएँ ला रही है? अग्निपथ योजना के विरोध में जिस तरह देश में युवाओं ने आन्दोलन किया, उससे ज़ाहिर होता है कि रोज़गार इस देश की कितनी विकराल समस्या बन चुका है। अग्निपथ योजना के तमाम पहलुओं पर मुदित माथुर की ख़ास रिपोर्ट :-

विमुद्रीकरण की अचानक घोषणा के साथ शुरू हुई मोदी सरकार की चौंकाने वाली योजना-प्रवृत्ति अभी जारी है। अतिशयोक्तिपूर्ण शैली के साथ अपने प्रमुख नीतिगत फ़ैसलों और हितधारकों के साथ किसी भी परामर्श तंत्र का पालन किये बिना सरकार की घोषणाओं पर सवाल उठे हैं। भागीदारी की इस परम्परा को लोकतंत्र और लोकाचार के ख़िलाफ़ बताते हुए जानकारों ने भी इन फ़ैसलों पर नाक-भौं सिकोड़ी है। वे बेरोज़गार युवा, जिन्होंने हर साल दो करोड़ नौकरियाँ पैदा करने के उनके चुनावी वादों के लिए मोदी सरकार पर भरोसा किया और उनका समर्थन किया; अब नयी सेना भर्ती योजना अग्निपथ की घोषणा के बाद भारतीय रक्षा बलों के ज़रिये देश सेवा करने और इसका एक गौरवशाली सिपाही बनने के अपने सपने को टूटता हुआ महसूस कर रहे हैं।

यह मोदी सरकार पर एक मज़ाक़ जैसा ठप्पा लगने जैसा है कि वह पहले तो सभी हितधारकों को विश्वास में लिये बिना बड़े नीतिगत निर्णयों की घोषणा करती है, और बाद में व्यापक प्रतिक्रिया या असन्तोष या दोनों के कारण उनमें परिवर्तन या फेरबदल की घोषणा शुरू कर देती है; जैसा कि उसने कृषि क़ानूनों के मामले में किया था। सरकार का तरीक़ा कमोबेश एक जैसा रहा है, चाहे वह विमुद्रीकरण हो, जीएसटी रोल आउट हो, भूमि अधिग्रहण विधेयक हो, कृषि क़ानून हों या सीएए और एनआरसी क़ानून हों। उसने हर बार अपनी नीति के मूल संस्करण को कई बदलावों के साथ इतना बदल दिया कि वह पहचानने लायक ही नहीं रही।

अग्निपथ, जो एक अल्पकालिक सैन्य भर्ती योजना है; स्वतंत्रता के बाद रक्षा क्षेत्र में प्रमुख नीतिगत बदलाव की शृंखला में नवीनतम योजना है। अग्निपथ योजना की अकल्पनीय और नाटकीय घोषणा के बाद देश ने युवाओं में ग़ुस्से की एक बड़ी लहर देखी, जिसमें बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। युवाओं का धैर्य टूटता दिखा, जो भारतीय सेना और अर्ध-सैन्य बलों में लम्बित भर्ती अभियान को फिर शुरू करने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। सशस्त्र बलों की नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के बीच बढ़ते असन्तोष ने केंद्र को नयी योजना शुरू करने के एक सप्ताह के भीतर इसमें फेरबदल करने को मजबूर कर दिया।

केंद्र सरकार की 14 जून को घोषित अग्निपथ योजना थल सेना, नौसेना या वायु सेना में 17.5 साल से 21 आयु वर्ग के युवाओं को केवल चार साल की अवधि के लिए रोज़गार प्रदान करती है, जिसमें उनमें से 25 फ़ीसदी को 15 और वर्षों के लिए बनाये रखने का प्रावधान है। वहीं 75 फ़ीसदी को निकाल दिये जाने की योजना है। सड़कों पर बड़े पैमाने पर अशान्ति को देखते हुए केंद्र ने अग्निवीर की भर्ती के लिए ऊपरी आयु सीमा को 21 साल से 23 साल के लिए संशोधित किया; सिर्फ वर्तमान भर्ती सत्र के लिए। इसके बाद केंद्र की योजना के ख़िलाफ़ कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन हुए और यह असन्तोष अभी भी बना हुआ है।

इस योजना की मुख्य विशेषताएँ युवाओं के लक्षित वर्गों को आकर्षित करने में विफल रहीं, जो वोटों का बड़ा हिस्सा बनाते हैं। अग्निवीर अनिवार्य रूप से युद्ध या सुरक्षा सम्बन्धी कर्तव्यों के लिए प्रशिक्षित सैनिक नहीं होंगे। योजना के बाद देश युवाओं में ग़ुस्से को देखते हुए सरकार ने नुक़सान की भरपाई का बोझ तीनों सेना प्रमुखों पर डाल दिया और सरकार चुप्पी साध गयी। वास्तव में यह योजना रहस्य में डूबी एक पहेली है। क्योंकि कोई नहीं जानता कि अग्निपथ योजना क्यों लायी गयी? इसके मकसद क्या हैं? यह योजना छोटी और लम्बी अवधि में किसकी मदद करती है?

भारतीय क्षेत्र में कथित चीनी घुसपैठ और सीमा पार आतंकवाद पर बढ़ती चिन्ताओं के मद्देनज़र भारतीय सेना को अभी सैनिकों की भर्ती की ज़रूरत है; क्योंकि सन् 2018 के बाद कोई भर्ती अभियान नहीं हुआ है और कोरोना महामारी ने प्रक्रिया में और देरी की है। यह तर्क कि सेना को युवा शक्ति की आवश्यकता है, पूरी तरह से ग़लत, भ्रामक और असंबद्ध पाया गया। क्योंकि सैनिकों की ड्यूटी चार साल की सेवा पूरी करने के बाद भी सभी अग्निवीरों को काम पर रखने की केंद्र की योजना नहीं है। जिन 25 फ़ीसदी को बनाये रखा जाएगा, वे मुख्य रूप से रसोइया, चपरासी, क्लर्क आदि जैसी नौकरियों में प्रशिक्षित होंगे। अन्य क्षेत्रों में 10 फ़ीसदी तक अवशोषण की सम्भावना नहीं है; क्योंकि अर्धसैनिक बलों, सार्वजनिक उपक्रमों आदि में 50 फ़ीसदी आरक्षण पहले से मौज़ूद है। इसलिए इसके परिणामस्वरूप समाज में क़ानूनी और सामाजिक संघर्ष हो सकते हैं।

रक्षा मंत्रालय ने 14 जून को कहा कि अग्निपथ देशभक्त और प्रेरित युवाओं को चार साल की अवधि के लिए सशस्त्र बलों में सेवा करने का अवसर देता है। इसकी अधिसूचना में कहा गया है कि एआरओ रैली कार्यक्रम के अनुसार अग्निवीर जनरल ड्यूटी, अग्निवीर तकनीकी, अग्निवीर तकनीकी (विमानन / गोला बारूद परीक्षक), अग्निवीर क्लर्क / स्टोर कीपर तकनीकी, अग्निवीर ट्रेड्समैन (10वीं पास) और अग्निवीर ट्रेड्समैन (8वीं पास) के लिए सम्बन्धित सेना भर्ती कार्यालयों (एआरओ) द्वारा जुलाई से पंजीकरण खोले जाएँगे।

अग्निपथ योजना किसी भी रेजिमेंट या ब्रिगेड का हिस्सा नहीं होगा और नियमित सेना में भर्ती होने वालों की तुलना में एक अलग पहचान चिह्न धारण करेगा। इस प्रकार वे संविदात्मक रोज़गार पर होंगे। रोज़गार की ऐसी शर्तें सशस्त्र बलों की नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के मानस पर मनोबल गिराने वाला प्रभाव डाल सकती हैं, जो मोदी सरकार से अप्रत्याशित झटके के कारण सड़कों पर हिंसक रूप से अपना ग़ुस्सा दिखा चुके हैं।

अग्निपथ देश की बोरोज़गारी की बड़ी समस्या के निवारण की कोई उम्मीद नहीं जगाती। यह बाज़ार उन्मुख कौशल के लिए अग्निवीरों को प्रशिक्षित नहीं करेगी। किसी भी निजी नियोक्ता को गोला-बारूद परीक्षक, सेना स्टोर कीपर की आवश्यकता नहीं होगी। इसलिए चार साल की सेवा के बाद उनका भविष्य अनिश्चितताओं के अँधेरे में लटका हुआ है। आगे चौथे वर्ष में एक अग्निवीर को 40,000 रुपये प्रति माह वेतन और सेवा अवधि पूरी होने पर उन्हें 11.71 लाख रुपये का कर-मुक्त सेवा निधि पैकेज प्राप्त होगा, जो कर्मचारी-नियोक्ता के समान मासिक योगदान और उस पर ब्याज के भविष्य निधि प्रकार के संचय के समान है।
योजना में प्रावधान है कि अग्निवीरों के प्रत्येक विशिष्ट बैच के 25 फ़ीसदी तक सशस्त्र बलों के नियमित संवर्ग में नामांकित किया जाएगा। वर्तमान में बाज़ार में एक सुरक्षा गार्ड की नियुक्ति 10,000 से 15,000 रुपये प्रति माह के बीच है। चार साल के बाद वेतन में इतनी भारी कटौती सामाजिक तनाव पैदा करेगी और इसके परिणामस्वरूप हिंसक उथल-पुथल हो सकती है।

नीति की 14 जून को घोषणा के बाद दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, तेलंगना, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, पंजाब, झारखण्ड और असम सहित विभिन्न राज्यों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये। जैसे ही कुछ स्थानों पर आन्दोलन तेज़ हुआ, प्रदर्शनकारियों ने रेल गाडिय़ों और वाहनों को आग लगा दी, जिससे निजी और सार्वजनिक सम्पत्ति का विकट नुक़सान हुआ। देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शनों के कारण रेल सेवाएँ बाधित हुईं। चल रहे आन्दोलन के कारण पूरे देश में लगभग 600 ट्रेन सेवाएँ प्रभावित हुई हैं।

इसलिए अग्निवीरों की भर्ती से देश में बोरोज़गारी के परिदृश्य में कोई क्रान्तिकारी सुधारात्मक परिवर्तन नहीं होने जा रहा है; क्योंकि यह समुद्र में एक बूँद भर है। संक्षेप में यह योजना युवा पीढ़ी को उत्साहित करने में विफल रही है। सत्तारूढ़ $खेमे में भी यह महसूस किया गया है कि यह योजना भाजपा को अपेक्षित राजनीतिक लाभ नहीं देगी। अग्निपथ पर विरोध का ज़िक्र किये बिना, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक समारोह में इसका बचाव किया और कहा कि सरकार की कई अच्छी योजनाओं का राजनीतिकरण किया गया है। इसके तुरन्त बाद इंडिया इंक (औपचारिक क्षेत्र) ने बढ़ते असन्तोष को शान्त करने के उद्देश्य से भविष्य के अग्निपथ सेवानिवृत्त लोगों के लिए अपने दरवाज़े खोलने की पेशकश की। अंबानी, टाटा और महिंद्रा जैसे उद्योगपतियों को यह आश्वासन देने के लिए लाया गया कि इन अग्निवीरों को कॉर्पोरेट जगत में सेवानिवृत्ति के बाद उचित प्लेसमेंट मिलेगा। एक वरिष्ठ भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय ने तो इन अग्निवीरों को पार्टी कार्यालयों में सुरक्षा गार्ड की नौकरी देने की बात कह दी, जिसके बाद उन्हें लोगों की जबरदस्त आलोचना झेलनी पड़ी। वहीं हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि अग्निवीरों को चार साल की सेवा के बाद राज्य सरकार में गारंटीकृत नौकरी प्रदान की जाएगी।

विपक्षी भी विरोध मेंअग्निपथ योजना पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को अग्निपथ योजना वापस लेनी होगी। सरकार सशस्त्र बलों को कमज़ोर कर रही है। राहुल गाँधी ने कहा कि सरकार चाहे कुछ भी करे, वह नौकरी नहीं दे पाएगी। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को दो-तीन उद्योगपतियों को सौंप दिया है, जो युवाओं को रोज़गार सुनिश्चित नहीं कर सकते हैं।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार कार्यक्रम की मदद से अपना सशस्त्र कैडर बनाने की कोशिश कर रही है। वे (अग्निवीर) चार साल बाद क्या करेंगे? जनता दल सेक्युलर के नेता एच.डी. कुमारस्वामी ने कहा कि यह सेना को आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के नियंत्रण में लाने और अपने एजेंडे को लागू करने की एक चाल है। ख़ास पंचायत के नेताओं और कुछ किसान संघ के प्रतिनिधियों ने रोहतक ज़िले के सांपला क़स्बे में एक बैठक की, जिसमें हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और पंजाब के विभिन्न ख़ासों और अन्य सामुदायिक समूहों ने भाग लिया। बैठक में छात्र संगठनों के सदस्य भी शामिल हुए। बैठक में सत्तारूढ़ भाजपा-जजपा गठबंधन के राजनेताओं और इस योजना का समर्थन करने वाले कॉरपोरेट घरानों के बहिष्कार की भी घोषणा की गयी।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि अग्निपथ योजना न तो देश के हित में है और न ही युवाओं के हित में है। यह भर्ती होने वाले 75 फ़ीसदी युवाओं के भविष्य से जुड़ा सवाल है। इंडियन नेशनल लोकदल के नेता अभय सिंह चौटाला ने कहा कि सरकार को सांसदों और विधायकों के भारी भत्तों, सुविधाओं और पेंशन पर अंकुश लगाने के साथ बचत की शुरुआत करनी चाहिए, न कि सेना की भर्ती से।

“भाजपा सरकार ख़ुद को राष्ट्रवादी कहती है। लेकिन अग्निपथ योजना के माध्यम से सशस्त्र बलों को कमज़ोर कर रही है। अग्निवीर के ज़रिये इस सरकार ने युवाओं के लिए सशस्त्र बलों में जाने के लिए अन्तिम उपाय को भी बन्द कर दिया है।“
राहुल गाँधी
कांग्रेस नेता