बुंदेलखण्ड की सियासी बयार

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक़ आते जा रहे हैं, शहरों से लेकर गाँवों तक के मतदाताओं में सियासी दल गुणा-भाग कर अपना-अपना जनाधार मज़बूत करने की जुगत में लगे हैं।

उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखण्ड में सियासी हलचल जानने के लिए तहलका संवाददाता ने बुंदेलखण्ड के हिस्से वाले उत्तर प्रदेश के छ: ज़िलों- झाँसी, जालौन, बांदा, महोबा, हमीरपुर और ललितपुर की 19 विधानसभा सीटों के सियासी लोगों से बातचीत की। यहाँ के लोगों का कहना है कि बुंदेलखण्ड के लोगों की उपेक्षा और अनदेखी पहले की सरकारों ने भी की और वर्तमान सरकार भी कर रही है। बुंदेलखण्ड के लोगों को सियासी दलों ने वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया है, जिसके कारण बुंदेलखण्ड दिन-ब-दिन पिछड़ता ही गया है। यहाँ बेरोज़गार लोग बड़ी संख्या में हैं। आज भी लोग बिजली-पानी और अन्य बुनियादी ज़रूरतों के लिए जूझ रहे हैं। कुछ लोगों ने बताया इस बार यहाँ के चुनाव परिणाम चौंकाने वाले साबित होंगे। क्योंकि किसान आन्दोलन से लेकर बढ़ती महँगाई के अलावा किसानों को खाद के लिए जूझना पड़ रहा है, जिसके चलते वे समय पर बुवाई नहीं कर पा रहे हैं।

बताते चलें इस बार का विधानसभा चुनाव भाजपा और सपा के बीच सीधी चुनावी टक्कर तो है; लेकिन कांग्रेस के बढ़ते जनाधार और बसपा की चुनावी चुप्पी से चुनावी समीकरण बदल सकते हैं। इसके अलावा इस बार उत्तर प्रदेश की सियासत में दो नयी सियासी पार्टियाँ- आम आदमी पार्टी और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ज़रूर सेंध लगाएँगी। लोगों का मानना है कि बुंदेलखण्ड में दो दशक से बसपा, सपा और भाजपा को एक तरफ़ा शासन का मौक़ा मिला है। लेकिन इस बार अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के साथ औवेसी की पार्टी अगर दमख़म से चुनाव लड़ती है, तो बुंदेलखण्ड में काफ़ी कुछ बदलाव की राजनीति हो सकती है।

बुंदेलखण्ड के लोगों का कहना है कि आज भी यहाँ के लोग बिजली की क़िल्लत से जूझ रहे हैं। अगर आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल दिल्ली की तर्ज पर मुफ़्त बिजली-पानी की सुविधा देते हैं, तो केजरीवाल को जिताने में क्या हर्ज है? अब तक जिस तरह पूरे देश में जाति-धर्म की सियासत होती रही है, उससे कहीं बढक़र बुंदेलखण्ड में जाति-धर्म को लेकर सियासत होती है। लेकिन इस बार बुंदेलखण्ड के लोग जाति-धर्म से हटकर विकास के लिए चुनाव में मतदान करने का मन बना रहे हैं। लोगों का कहना है कि जब पूर्वांचल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विकास हो सकता है, तो बुंदेलखण्ड का विकास क्यों नहीं हो सकता? जबकि बुंदेलखण्ड में 19 विधानसभा सीटों में भाजपा का परचम लहराया था।

बुंदेलखण्ड के लोगों का कहना है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने बुंदेलखण्ड के लोगों के बीच आकर साफ़ कहा है कि सपा, बसपा और भाजपा ने यहाँ की जनता को गुमराह किया है, जिसके चलते आज भी यहाँ के किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं। उन्होंने कहा कि इस बार के विधानसभा चुनाव में पूरे प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार बढ़ेगा।

बुंदेलखण्ड की राजनीति के जानकार संजीव कुमार का कहना है कि इस बार अगर कोई भी सियासी दल सही प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारता है, तो वह चुनाव जीत सकता है। क्योंकि अभी जो चुनाव जीते हैं, वे रातोंरात भाजपा में शामिल होकर भाजपा लहर में जीतकर तो आ गये हैं; लेकिन उन्होंने बुंदेलखण्ड का विकास न करके, ख़ुद का विकास किया है। यहाँ के लोगों का कहना है कि जब 2017 में बुंदेलखण्ड की चुनावी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि बुंदेलखण्ड के विकास के लिए बुंदेलखण्ड विकास बोर्ड का गठन किया जाएगा।

विकास बोर्ड का गठन तो हुआ; लेकिन विकास नहीं हुआ। भाजपा के प्रति लोगों के बढ़ते आक्रोश के चलते जीते हुए विधायकों का टिकट कटने कयास लगाये जा रहे हैं, जिसके चलते यहाँ की सियासतदानों में उथल-पुथल सी मची हुई है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अब भी कह रहे हैं कि बुंदेलखण्ड के विकास में कोई बाधा नहीं आने देंगे। जबकि यहाँ के लोगों ने बताया कि योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही प्रदेश की सडक़ों को गड्ढामुक्त करने का वादा किया था; लेकिन सडक़ों की हालत और जर्जर हो गयी।

समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता आशाराम सिंह का कहना है कि अगर सपा का संवर्ग मत (काडर वोट) मुस्लिम-यादव तथा अन्य जातियों के मतदाता मज़बूती के साथ रहे, तो कोई भी राजनीति दल सपा को सरकार बनाने से नहीं रोक सकेगा। आने वाले समय में चौंकाने वाली बात यह हो सकती है कि अगर भाजपा, सपा और बसपा के विधायकों को उनकी पार्टियों ने टिकट नहीं दिये, तो वे किसी दूसरे दल के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं। इससे यह बात तो साफ़ है कि भाजपा ही नहीं, दूसरे क्षेत्रीय दलों की भी स्थिति बुंदेलखण्ड में बहुत मज़बूत नहीं है।