बिखरे सपनों की दास्तां हैं एनआरआई से शादियां

यदि दिल्ली हवाई अड्डे पर पुलिस पूरी तरह सतर्क नहीं होती तो एक अप्रवासी भारतीय (एनआरआई) गुरमीत सिंह यहां भारत में अपनी पत्नी और बेटे को छोड़ कर भाग गया होता और जर्मनी में अपनी जि़ंदगी के मज़े ले रहा होता। लेकिन अब वह पंजाब की जेल में पड़ा है। यह उन हज़ारों में शामिल है जो यहां लड़की के मां-बाप को विदेशों के सपने दिखा कर उनकी बेटियों से शादी कर लेते हैं और फिर विदेश भाग जाते हैं, कभी न आने के लिए।

अधिकारियों के अनुसार गुरमीत सिंह अपना पासपोर्ट निलंबित किए जाने के बावजूद भारत से भागने की फिराक में था। उसकी पत्नी पृतपाल कौर जो कि पंजाब के समाना की रहने वाली है ने बताया कि उनकी शादी 2011 में हुई थी। उस समय गुरमीत सिंह जर्मनी में ‘शेफ’(रसोइया) के तौर पर काम कर रहा था। शादी के एक महीने के बाद गुरमीत जर्मनी लौट गया। इसके बाद वह कभी-कभी आ जाता। एक साल के बाद उनके घर में बेटे ने जन्म लिया। बेटे के पैदा होने के बाद ही पृतपाल को पता चला कि गुरमीत ने जर्मनी में शादी की हुई है और उसके बच्चे हैं।

इसके बाद पृतपाल पर अत्याचारों की झड़ी लग गई। उसके ससुराल वालों ने उसे घर से निकाला उसे  मानसिक और शारीरिक तौर पर प्रताडि़त किया और उस पर समझौता कर लेने का दवाब डाला। उसके बाद 2015 में गुरमीत ने किसी प्रकार पुलिस के साथ सांठगांठ कर के देश से भागने में सफलता प्राप्त कर ली। उसके बाद उसने कभी पृतपाल कौर के साथ बात नहीं की।

पिछले दिनों प्रीतपाल कौर को पता चला कि गुरमीत  नेपाल के रास्ते अपने देश आया है।  इस पर पुलिस ने उसे पकडऩे के लिए ‘लुक आऊट’ नोटिस जारी कर दिया। अच्छा हुआ कि क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय ने गुरमीत का पासपोर्ट निलंबित कर दिया और इसकी सूचना तुरंत हर स्थान पर पहुंचा दी गई। इस प्रकार गुरमीत दिल्ली हवाई अड्डे पर धरा गया।

क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय ने किया बचाव

इस बात को पक्का करने के लिए कि ये अप्रवासी दुल्हे और नुकसान न कर सकें क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय ने इन भगौड़ों को पहचानने और पकड़वाने की मुहीम छेड़ दी है। इस तरह की हज़ारों शिकायतें मिलने के बाद  चंड़ीगढ़ के क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय ने यह मामला अपने हाथ में लिया और अब तक 75 पासपोर्ट निलंबित कर दिए। यह प्रयास इस साल मई-जून के महीनों से शुरू हुआ और कार्यालय ने इसके लिए एक विशेष ‘हेल्प लाईन’ शुरू की है यह केवल उन पत्नियों  के लिए है जिनके पति उन्हें छोड़ कर चले गए या जो केवल ‘हनीमून पत्नियां’ ही बन पाई।  पंजाब के लिए यह कोई नई बात नहीं है। बहुत से पंजाबी किसी भी तरह विदेशों में बसने की कोशिश में लगे रहते हैं। हालांकि इस प्रकार के मामलों के बाद पैदा होने वाली समस्याएं निराली होती हैं।

एक अनुमान के अनुसार क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय चंडीगढ़ के पास इस प्रकार के 12,000 से अधिक मामले हैं। यहां कार्यालय में पंजाब के 24 जि़लों के अलावा हरियाणा और चंडीगढ़ के पासपोर्ट बनते हैं। पर पासपोर्ट का निलंबन एक लंबी प्रक्रिया है।

पासपोर्ट का निलंबन कैसे कार्य करता है, इस पर क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी सिवाश कबिराज ने बताया,’ पासपोर्ट का निलंबन बारीकी से की गई जांच और छानबीन के बाद 1967 में बने पासपोर्ट कानून के तहत किया जाता है और इसमें काफी कागज़ी प्रक्रिया और दस्तावेज़ लगते हैं। 1967 के कानून में निलंबन खत्म करने की प्रक्रिया भी बतलाई गई है , इसके तहत ही अप्रवासी भारतीयों और उन लोगों के पासपोर्ट निलंबित किए जाते हैं जो भगौड़े घोषित कर दिए गए हों।

कबिराज ने बताया कि कई बार जब पासपोर्ट निलंबन सही भी होता है, तब भी उसमें कई रुकावटें आ जाती हैं। जैसे कई मामलों में पीडि़त के पास वे असली दस्तावेज ही नहीं होते जिनकी ज़रूरत होती है। कई बार स्थानीय पुलिस की भागीदारी ज़रूरी होती है। हमारे स्टाफ के लोग ज़रूरी दस्तावेज़ लेने पुलिस तक पहुंचते हैं तब भी कई बार मामले खास धाराओं में पंजीकृत नहीं किए जाते। उन धाराओं के ‘वारंट’ जारी नहीं किए जाते।

इस प्रक्रिया के तहत अब क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय ने उन कंपनियों और फर्मों को सूचित करना शुरू कर दिया है, जिनमें धोखाधड़ी करने वाले लोग ‘कर्मचारी ‘ होते हैं। इसके साथ उन संबंधित देशों के दूतावासों को भी साथ जोड़ा जाता है जिन देशों में धोखाधड़ी करने वाला रह रहा होता है। अभी ऐसे  लोगों की एक विस्तृत सूची तैयार की जा रही हें ताकि उन्हें ‘काली सूची’ में डाल दिया जाए, और भारत लाया जाए। ऐसे लोग एक से ज़्यादा शादियां करने वाले होते हैं।

एक जुट हो कर हम कर सकते हैं। पीडि़त बने स्वंय सेवक:

लगभग 13 महीने पहले रूपाली अपने जीवन के सबसे खुशी वाले दिन यानी शादी के लिए तैयार हो रही थी। उसकी आंखों में अपनी खुशहाल जि़ंदगी को लेकर बेशुमार सपने थे। वह इस बात को लेकर काफी उत्सुक थी कि शादी के बाद उसका जीवन कैसे चलेगा। लेकिन अगले एक महीने में जो कुछ हुआ उसकी कल्पना कंप्यूटर में ‘एम टेक’ रूपाली और उसके माता-पिता ने सपने से भी नहीं की थी। उसे उसके अप्रवासी भारतीय पति और उसके मां-बाप के हाथों प्रताडि़त होना पड़ा और दो महीने में उसका पति त्रिलोचन गोयल कनाडा चला गया और फिर कभी नहीं लौटा। वह पहले से ही शादीशुदा था।

इसके पश्चात  रूपाली ने फेसबुक मीडिया और ट्वीटर वगैरा की सहायता ली तब उसे पता चला कि उस जैसी तो हज़ारों महिलाएं है जो इस तरह के धोखे का शिकार हो कर बैठी हैं। जो अभियान रूपाली ने एक छोटे से ग्रुप की शक्ल में चलाया था देखते-देखते वह एक बड़ा आंदोलन बन गया। इस तरह से एक सहायक ग्रुप- ”टू गैदर वी कैन’’ (एक जुट हो कर कर सकते हैं) बन गया। इसके बनाने वालों में रूपाली गुप्ता, (बठिंडा,पंजाब), अमृतपाल कौर (बुडलाडा पंजाब) और रीना चौहान (कैथल, हरियाणा) शामिल थी। पर धीरे-धीरे इस ग्रुप में और महिलाएं जुड़ती गई और यह एक शक्तिशाली संस्था बन गई।

रूपाली ने ‘तहलका’ के साथ बातचीत में बताया ”हम लोगों ने शुरूआत तो 10-12 की गिनती में की थी। ये सभी ऐसी महिलाएं थी जिनकी कहानी लगभग मिलती जुलती थी। किसी को उसके पति ने एक हफ्ते में छोड़ दिया था तो किसी को दो-तीन साल के बाद, कइयों के बच्चे थे। हम सभी एक ही धागे से आपस में बंधे थे। वह धागा था -दुख, तकलीफ, निराशा और उदासी का। हम सभी व्यक्तिगत तौर पर तो अपनी लड़ाई लड़ ही रहे थे, पर फिर हमने एक जुट हो कर इसे लडऩे का फैसला किया। आज हम 350 से ज़्यादा महिलाएं है, और हमने अपना एक ‘सेटअप’ क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय चंडीगढ़ में स्थापित कर लिया है। हम वहां अप्रवासी भारतीय हैल्पलाईन चला रही हैं और

हमें हर रोज़ लगभग 50 कॉलस आती हैं और अब अधिक से अधिक महिलाएं खुल कर सामने आ रही हैं। असल में ये सभी महिलाएं अब लगातार अपने गांवों से चंडीगढ़ आती-जाती रहती हैं। इनमें से कोई  न कोई ‘कॉलस’ लेने के लिए वहां मौजूद रहती है। इसके अलावा जो लोग वहां आकर बात भी करते हैं उनके सवालों के जवाब भी वहां दिए जाते हैं।

रूपाली ने बताया कि जब से हैल्पलाईन की शुरूआत की गई है तब से उसके फोन की घंटी बजने से नहीं रुकती। सभी महिलाएं एक दूसरे से पूछती रहती हैं कि इन मामलों को आगे कैसे बढ़ाया जाए? न्याय कैसे लिया जाए? कई बार वे एक-दूसरे के केस को मजबूती देने के लिए सूचनाओं का आदान-प्रदान करती हैं। पुलिस  से किस प्रकार निपटा जाए या उनसे कैसे काम लिया जाए जैसे मुद्दों पर भी बातचीत चलती है।

यह पूछे जाने पर कि यह सब करने के लिए वे लोग पैसा कहां से लाती हैं? रूपाली ने बताया कि इसके लिए वे अपने परिवारों पर निर्भर रहती हंै। हम में से कई चंडीगढ़ में नही रहती। हमें अपने ‘केसों’ के मामले में पुलिस थानों के चक्कर काटने पड़ते हैं। पर मैं यहां चडीगढ़ में कोई नौकरी तलाश कर रही हूं। इस समय वह इस स्वंय सेवी काम को चलाने के लिए ‘पेंइग गेस्ट’ के तौर पर रह रही है।

रूपाली दावे के साथ बताती है,” इस प्रकार का पहला मामला 1996 में सामने आया। फिर कुछ सौ मामले आए और अब यह गिनती हज़ारों में है। यदि कानून का पालन सख्ती से किया गया होता और कसूरवार पकड़े गए होते तो हालात आज जितने खराब नहीं होते। पर, मुझे उम्मीद है कि हमारे संयुक्त प्रयासों से हम कुछ परिवारों के दर्द तो कम कर पाएंगे ही’’।

जिन परिवारों का जि़क्र आया वे सभी पीडि़त एक सा ही उदगार जाहिर  कर रहे हैं। 30 साल की दर्शना जिसकी शादी दो साल पहले हुई थी उसका कहना है,” यह सब केवल लड़की ही नहीं भोगती है बल्कि उसका पूरा परिवार दुख उठाता है। कई सामाजिक टिप्पणियां लड़की पर की जाती हैं और कुछ लोगों के लिए लड़की पर इल्ज़ाम लगाना आसान हो जाता है बजाए उसके पति के। हमारा समाज ऐसा ही है। यही वजह है कि कुछ लड़कियों ने अपने मां-बाप के पास वापिस जाने की बजाए अपने दर्द को छुपा कर अकेले सहने का मन बना लिया। उन्हें पता है कि उन्हीं पर सारी उंगलियां उठेंगी उन्हीं का कसूर निकाला जाएगा और उसके परिवार को भी बहुत कुछ सहना होगा’’।

आगे की राह

बहुत सी पीडि़तों का कहना है कि आगे की राह बहुत कठिन है । हालांकि सरकार का दावा है कि वह अपना काम बखूबी कर रही है। इन मामलों को सुलझाने के लिए इससे जुड़े सभी को जिनमें राज्य सरकारें, अप्रवासी भारतीय आयोग, महिला आयोग, अदालतें और पुलिस वगैरा शामिल हैं को एकजुट हो कर लगना पड़ेगा। ”केवल सख्त कानून नहीं बल्कि हमें उन्हें लागू करने वाली प्रभावशाली मशीनरी भी चाहिए। इसके साथ ही इन मामलों का निपटारा शीध्र होना भी ज़रूरी है। एक और पीडि़ता दीपिका गहलोत ने बताया,” बहुत से मामलों को पुलिस लटकाए रहती है और इस बीच आरोपी किसी और को भी अपना शिकार बना लेते हैं’’।

उसने कहा,” यह सही है कि इस तरह के ज़्यादातर मामले पंजाब से हैं पर पड़ोसी राज्यों हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली में भी कई पीडि़त परिवार हंै, इसलिए इन मामलों को देखने के लिए एक सांझा प्राधिकरण तैयार किया जाए’’।

दिल्ली की पीडि़ता शिखा का कहना है कि जब अप्रवासी भारतीयों के लिए विवाह को पंजीकृत करवाना अनिवार्य बना दिया जाएगा तो इस तरह के मामलों में कमी आएगी। अभी बहुत से लोग अपने विवाह को अप्रवासी भारतीय आयोग में पंजीकृत करने के लिए आगे नहीं आते, इसी का फायदा ये अप्रवासी भारतीय उठाते हैं।