बाज़ार में बिकने के लिए तैयार एयर इंडिया

एयर इंडिया को बेचने के लिए सरकार फिर से अपनी कमर कस चुकी है। पूर्व में इसे बेचने के प्रयास विफल हो चुके थे। इसलिए इस बार सरकार ने पूर्व में की गयी गलतियों से सबक लेते हुए एयर इंडिया के बेचने की शर्तों को आसान बनाया है। सरकार ने निविदाकर्ताओं से बोली मँगायी है, जिसकी अंतिम तारीख 17 मार्च, 2020 है। इस बार बोलीकर्ताओं के लिए न्यूनतम नेट वर्थ की शर्त को कम करके 3500 करोड़ कर दिये गये हैं, जो वर्ष 2018 में 5000 करोड़ रुपये थे। भले ही एयर इंडिया बिक जाये, लेकिन इसके ब्रांड में बदलाव नहीं किया जाएगा।

बेची जाएगी 100 फीसदी हिस्सेदारी

इस बार सरकार एयर इंडिया की 100 फीसदी हिस्सेदारी बेचना चाहती है। िफलहाल एयर इंडिया के ऊपर लगभग 62000 करोड़ रुपये का कर्ज़ है, जिसमें से 39000 करोड़ रुपये का वहन सरकार करेगी और 23,286 करोड़ रुपये का कर्ज़ वह नये मालिक को हस्तांतरित करेगी। अप्रैल, 2012 में एयर इंडिया को सरकार द्वारा 26,000 करोड़ रुपये की पूँजी दी गयी थी। सरकार ने बाद में एक अलग कम्पनी बनाकर एयर इंडिया के 27,500 करोड़ रुपये के कर्ज़ को फिर से कम किया था।  खरीददार को कंसोर्टियम बनाने की भी छुट दी जाएगी। इसकी सहायक इकाई एयर इंडिया एक्सप्रेस और एयर इंडिया एसएटीएस एयरपोर्ट सर्विसेज का भी विनिवेश किया जाएगा।

कर्मचारियों की संख्या

एयर इंडिया में कुल 16077 कर्मचारी हैं। इसके लिए 3 फीसदी शेयर रिजर्व रखे जाएँगे, जो उन्हें रियायती कीमत पर दिए जाएँगे। एयर इंडिया में 12 कर्मचारी यूनियन हैं, जो एयर इंडिया को बेचने का विरोध कर सकते हैं। वैसे भाजपा नेता एवं राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी भी एयर इंडिया को बेचने के िखलाफ हैं।

राहत का प्रस्ताव

एयर इंडिया की स्थिर परिसम्पत्तियाँ बढक़र 30,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गयी हैं, जो 2018 में 27,000 करोड़ रुपये थी। नये प्रस्ताव में नया मालिक कर्ज़ कम करने के लिए परिसम्पत्ति को बेचने, विमानों की बिक्री करने और पट्टा वापस करने के लिए स्वतंत्र होगा। नये शर्तों में कर्ज़ और ब्याज लागत में लगभग 61 फीसदी कम की गयी है, जिसे मार्च, 2018 में 35 फीसदी कम किया गया था। सरकार ने एयर इंडिया के कर्मचारियों को आश्वस्त किया है कि उनकी नौकरी बची रहेगी। एयर इंडिया के पास हर विमान पर 133 कर्मचारी हैं, जबकि सिंगापुर एयरलाइंस के पास प्रति विमान 136 कर्मचारी हैं। एयर इंडिया के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक अश्विनी लोहानी का कहना है कि कर्मचारियों की संख्या पर्याप्त है और एयरलाइन के सुचारू परिचालन के लिए यह संख्या ज़रूरी है।

क्या फायदा होगा खरीदार को? 

एयरलाइंस बाज़ार में एयर इंडिया की 17 फीसदी की भागीदारी है। जेट एयरवेज़ के बन्द होने के बाद अमेरिका और उत्तरी अमेरिका के बाज़ार में एयर इंडिया का िफलहाल दबदबा है। ज़्यादातर अन्य भारतीय विमानन कम्पनियाँ सस्ती एयरलाइन हैं और इंडिगो को छोडक़र इन सभी का वैश्विक परिचालन सीमित है। घरेलू बाज़ार में भी एयर इंडिया ने हाल ही में अपनी हिस्सेदारी में इज़ाफा किया है। एयर इंडिया के नये खरीदार को दिल्ली, मुम्बई, लंदन, न्यूयार्क, शिकागो, पेरिस आदि विमान तलों पर स्लॉट और लैंडिंग के अधिकार मिलेंगे। इससे उन्हें अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों और वैश्विक स्तर पर परिचालन के विस्तार में मदद मिलेगी। एयर इंडिया अभी 56 भारतीय शहरों और 42 अंतर्राष्ट्रीय शहरों में उड़ान भरती है। एयर इंडिया के अनेक अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू रूट लाभप्रद हैं। एयर इंडिया के पास िफलवक्त 121 विमान हैं, लेकिन इनमें 18 का अभी परिचालन नहीं हो रहा है। नये खरीदार को ग्राउंड हैंडलिंग फार्म एआई-एसएटीएस की सेवाएँ भी मिलेगी, जो कार्गो व बैगेज हैंडलिंग, ट्रांस शिपमेंट जैसी सेवाएँ देती हैं।

पूर्व में भी किये गये बेचने के प्रयास  

वर्ष 2018 में सरकार एयर इंडिया में 76 फीसदी हिस्सेदारी बेचना चाह रही थी, लेकिन अल्पांश हिस्सेदारी बेचे जाने के कारण एयर इंडिया को खरीदने के लिए कोई कम्पनी तैयार नहीं हुई। मार्च, 2018 तक एयर इंडिया 48000 करोड़ रुपये कर्ज़ के बोझ से दबी थी। पूर्व में एअर इंडिया के नहीं बिकने के कुछ प्रमुख कारण जैसे, सरकार द्वारा 100 फीसदी हिस्सेदारी नहीं बेचना, एक साल तक कर्मचारियों को कम्पनी के साथ बनाये रखने का प्रावधान, 3 साल तक विमानन कम्पनी का परिचालन बिना किसी दखल के करने पर ज़ोर और कम्पनी के विस्तार के लिए इच्छुक नहीं होना आदि थे।

विमानन उद्योग की खस्ताहाल स्थिति 

एयर इंडिया की वित्तीय स्थिति एक लम्बे समय से खस्ताहाल है। जेट एयरवेज़ भी ज़मीन पर आ चुका है। पूर्व में एयर सहारा, किंग फिशर, ईस्ट-वेस्ट एयरलाइन, स्काइलाइन एनईपीसी, मोदीलुफ्त आदि एयरलाइंस बन्द हो चुके हैं। बन्द होने के समय एयर सहारा की बाज़ार में 17 फीसदी की हिस्सेदारी थी। ऐसे में सवाल का उठना लाज़िमी है कि क्या चमक-दमक वाले विमानन क्षेत्र की हालात उतनी अच्छी नहीं है, जितनी बाहर से दिखती है। हालाँकि, मामले में बाज़ार हिस्सेदारी के लिहाज़ से देश की सबसे बड़ी विमानन कम्पनी इंडिगो इंडिगो का प्रदर्शन अपवाद है। इसका दिसंबर, 2019 तिमाही में शुद्ध लाभ 496 करोड़ रुपये था।

क्यों आयी घाटे की स्थिति?

एयर इंडिया और इंडियन एयर लाइंस के विलय के वक्त एयर इंडिया 100 करोड़ रुपये के मुनाफे में थी; लेकिन अनियमितता, गलत प्रबंधन और अंदरूनी गड़बडिय़ों के कारण इसकी स्थिति खस्ताहाल हो गयी। अदालत में दायर एक जनहित याचिका के मुताबिक वर्ष 2004 से वर्ष 2008 के दौरान विदेशी विनिर्माताओं को फायदा पहुँचाने के लिए 67000 करोड़ रुपये में 111 विमान खरीदे गये, करोड़ों-अरबों रुपये खर्च करके विमानों को पट्टे पर लिया गया एवं निजी विमानन कम्पनियों को फायदा पहुँचाने के लिए फायदे वाले हवाई मार्गों पर एयर इंडिया के उड़ानों को जानबूझकर बन्द किया गया, जिसकी पुष्टि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने भी अपनी रिपोर्ट में की है।

एयर इंडिया का आगाज़

एयर इंडिया की स्थापना टाटा संस लिमिटेड की एक इकाई के रूप में हुई थी। 1946 तक इसका संचालन टाटा एयरलाइंस कर रही थी, जो बाद में सार्वजनिक क्षेत्र की लिमिटेड कम्पनी में तब्दील हो गयी। 15 अक्टूबर, 1932 को देश के पहले लाइसेंसधारक जेआरडी टाटा ने पहली बार कराची से मुम्बई तक मेल लेकर विमान उड़ाया था। बाद में इसका नाम बदलकर एयर इंडिया किया गया। वर्ष 1953 में इसका राष्ट्रीयकरण किया गया। सरकार ने इसे दो कम्पनियों में बाँटा। घरेलू उड़ान के लिए इंडियन एयरलाइंस और अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के लिए एयर इंडिया बनायी गयी। एयर इंडिया का प्रतीक चिह्न महाराजा है। यह चिह्न 1946 में उमेश राव नामक चित्रकार ने बनाया था। वर्ष 2015 में महाराजा को नया स्वरूप दिया गया। परिचालन के पहले साल एयर इंडिया के विमानों से 4400 लोगों ने यात्रा की थी, जो आज बढक़र लाखों हो गयी है।

बेड़े में हर तरह के एयरक्राफ्ट

के-787 ड्रीमलाइनर को सितंबर, 2012 में एयर इंडिया के बेड़े में शामिल किया गया था। 256 सीटों वाला ड्रीमलाइनर 10 से 13 घंटे बिना किसी परेशानी के उड़ान भर सकता है। सीटों की डिजाइनिंग और ईंधन क्षमता के मामले में यह बोइंग 777-200 एलआर से बेहतर है। बड़े विमानों में एयर इंडिया के पास 777-200 एलआर के 8 विमान, 777-300 ईआर के 12 विमान और बी 747-400 के 3 विमान हैं। छोटे विमानों में एयर इंडिया के पास ए-320 के 12 विमान, ए-319 के 19 विमान और ए-321 के 20 विमान हैं।

कुप्रबंधन भी ज़िम्मेदार

विमानों के बुद्धिमतापूर्ण इस्तेमाल से राजस्व में इज़ाफा किया जा सकता है। जैसे, जिस मार्ग पर यात्रियों का आवागमन अधिक हैं, वहाँ विमानों के फेरे बढ़ाये जा सकते हैं। वैसे विमानों का ज़्यादा उपयोग किया जा सकता है, जिनमें कम ईंधन की खपत होती है। लेकिन एयर इंडिया के मामले में लम्बी दूरी वाले विमानों का उपयोग मध्यम तथा छोटी दूरी वाले मार्गों में उड़ान भरने के लिए किया जा रहा है। बोइंग 777-200 एलआर लम्बी दूरी तय करने वाला विमान है। ये लगातार 15 से 16 घंटों तक उड़ान भर सकते हैं; लेकिन इनका इस्तेमाल मध्यम दूरी वाले स्थानों, जहाँ पहुँचने में केवल 9 से 10 घंटे का समय लगता है; के लिए किया जा रहा है। विमानों के गलत इस्तेमाल से ईंधन की ज़्यादा खपत हो रही है। फ्रैंकफर्ट, पेरिस, हांगकांग, शंघाई जैसे शहरों, जहाँ पहुँचने में 10 घंटे का समय लगता है; की उड़ान में अगर ड्रीमलाइनर का प्रयोग किया जाता है, तो यात्रा की लागत प्रति किलोमीटर 25 फीसदी तक कम हो सकती है।

निष्कर्ष 

एयर इंडिया के चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक अश्विनी लोहानी की अगुआई में एयर इंडिया को घाटे से उबारने की कोशिश की गयी; लेकिन वे अपने लक्ष्य को हासिल करने सफल नहीं रहे। बावजूद इसके, किसी भी संस्थान या एयरलाइंस को कुशल प्रबंधन के ज़रिये मुनाफे में लाया जा सकता है; लेकिन इसके लिए सफल रणनीति बनाने और उसे अमल में लाने की ज़रूरत है। भारतीय रेल, यूको बैंक, पंजाब नेशनल बैंक आदि पूर्व में ऐसा करिश्मा कर चुके हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की अनेक कम्पनियाँ आज मुनाफे में चल रही हैं। बीमा और सरकारी तेल कम्पनियाँ भी मुनाफे में हैं। लाभ कमाने वाली सरकारी कम्पनियों की एक लम्बी फेहरिस्त है। ऐसे में एयर इंडिया को लाभ में लाना नामुमकिन नहीं है। हालाँकि, नये मालिक के लिए परिचालन राजस्व से 23 हज़ार करोड़ रुपये के ऋण के ब्याज का भुगतान करना आसान नहीं होगा। है। इसके लिए कम्पनी के प्रदर्शन में उल्लेखनीय सुधार करना होगा और उसे घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय एयरलाइंसों से मुकाबला करने के लिए भी तैयार रहना होगा।