बाइडन के आने से बदलेंगे भारत-अमेरिकी सम्बन्ध!

कश्मीर पर नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन के नज़रिये से शंका, लेकिन अमेरिका के भारत के साथ रिश्ते प्रगाढ़ बने रहने की उम्मीद

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को मिले 214 मतों की तुलना में 290 मत हासिल करके जो बाइडन अमेरिका के नये ‘बॉस’ यानी राष्ट्रपति चुने गये। जो बाइडन 20 जनवरी, 2021 को संयुक्त राज्य अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण करेंगे। हालाँकि निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सत्ता हस्तातंरण में रुकावट डालने के हथकंडे अपनाने के प्रयास की जुगत में हैं। निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन ने चुनाव जीतने के बाद के अपने भाषण में अपनी प्राथमिकताओं का ज़िक्र किया।

अपने संक्षिप्त सम्बोधन में बाइडन ने कहा कि हमें आंतरिक और बाहरी दोनों तरह की चुनौतियों से जूझना होगा। उन्होंने कोविड-19 महामारी के अलावा चुनाव में विभाजित अमेरिकी समाज को एकजुट करने पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि बीमार अर्थ-व्यवस्था को पटरी पर लाना बड़ी चुनौती होगी। स्वास्थ्य के प्रति लोगों का भरोसा फिर से कायम करना होगा। इतना ही नहीं, उन्होंने कहा कि वह सबके राष्ट्रपति होंगे; चाहे उन्होंने उनके लिए वोट दिया हो या नहीं। अमेरिका के सहयोगियों का भरोसा जीतना ज़रूरी है, भले ही वे ट्रंप प्रशासन के दौरान असहमत रहे हों। संयुक्त राष्ट्र, डब्ल्यूएचओ आदि की गतिविधियों में अमेरिका की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी, विशेषकर जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते को फिर से अमल में लाया जाएगा।

भारत के लिए बड़ी उम्मीदें

हाल के कुछ दशकों में देखा गया है कि नई दिल्ली या वाशिंगटन में शासन के परिवर्तन का भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच चल रहे मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों के साथ खास फर्क नहीं पड़ा है। इसके पीछे दोनों देशों के बीच दोस्ताना सम्बन्ध महज़ कुछ आशंकाओं या यूँ ही नहीं हैं, बल्कि ठोस राजनीतिक आर्थिक पहलुओं पर आधारित हैं; जिनसे राष्ट्रीय हित सधते हैं। क्लिंटन प्रशासन से ट्रम्प प्रशासन तक नई दिल्ली और वाशिंगटन के बीच सम्बन्ध संतोषजनक तरीके से आगे बढ़े हैं और कभी-कभी बीच में पैदा हुई बाधाओं को समय-समय पर विभिन्न द्विपक्षीय चैनलों के ज़रिये सुलझा लिया गया है।

ओबामा प्रशासन के दौरान उप राष्ट्रपति के रूप में कार्य करने वाले नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन ने हाल के दिनों में भारत के साथ अमेरिकी सम्बन्धों को बेहतर बनाने की दिशा में अपने झुकाव का उल्लेख किया था। अमेरिका और भारत के बीच ऐतिहासिक परमाणु समझौते के सौदे की मंज़ूरी के समय सीनेट की विदेश सम्बन्ध समिति के प्रमुख जो बाइडन ने कहा था कि अगर वाशिंगटन और नई दिल्ली करीबी दोस्त बन गये, तो दुनिया एक सुरक्षित जगह होगी। सन् 2013 में फिर से जब वह उप राष्ट्रपति के रूप में भारत के दौरे पर आये, तो उन्होंने संयुक्त राष्ट्र-भारत के रिश्तों को 21वीं सदी के साझेदार के तौर पर परिभाषित किया।

कमला हैरिस अमेरिका की पहली महिला उप राष्ट्रपति निर्वाचित हुई हैं। अच्छी बात यह है कि वह भारतीय मूल की हैं। जो बाइडन-कमला हैरिस प्रशासन से अमेरिकी-भारत की मित्रता प्रगाढ़ होने और दोनों देशों द्वारा एक समृद्ध विरासत का निर्माण करने की उम्मीदें जगी हैं। अपने पूरे चुनाव अभियान के दौरान बाइडन-हैरिस की जोड़ी ने भारत के साथ सम्बन्धों को और मज़बूत करने पर ज़ोर दिया। राष्ट्रपति पद के लिए फाइनल बहस में वायु प्रदूषण के संदर्भ में राष्ट्रपति ट्रंप के भारत को गन्दा कहने पर प्रतिक्रिया देते हुए बाइडन ने कहा कि यह आप दोस्तों के बारे में कैसे बात करते हैं? और इस पर नहीं बोलते कि आप जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौतियों को कैसे हल करते हैं? 7 नवंबर को प्रकाशित आलेख में बाइडन ने लिखा- ‘हैरिस और मैं गहराई से अपनी साझेदारी को महत्त्व देते हैं और अपनी विदेश नीति के केंद्र में सम्मान वापस करते हैं। निस्संदेह ऐसी ही बेहतर उम्मीदें जतायी जा रही हैं। इसके बावजूद विभिन्न क्षेत्रों में फिलहाल ज़मीनी वास्तविकताओं के उतरने का अभी मूल्यांकन किया जाना है।’

अहम मुद्दे

मानवाधिकारों पर भारत का रिकॉर्ड, उच्च तकनीक का हस्तांतरण, चीन और एच1बी वीजा जैसे अहम मुद्दे हैं। इन पर विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले महीनों में नई दिल्ली और वाशिंगटन के बीच सम्बन्धों के भविष्य की भूमिका को तय करने वाले प्रमुख कारक होंगे। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बाइडन और उप राष्ट्रपति हैरिस मानवाधिकारों पर भारत के रिकॉर्ड के बारे में मुखर रहे हैं। कश्मीर में बदलाव को लेकर विषेष रूप से कह चुके हैं, साथ ही देश के असंतोष का दमन और नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शनों पर खुलकर अपनी राय रखते रहे हैं। मुस्लिम-अमेरिकी समुदाय के लिए अपने एजेंडे में बाइडन ने चुनाव अभियान में एनआरसी के साथ-साथ देश की धर्मनिरपेक्षता की लम्बी परम्परा और बहु-जातीय धार्मिक लोकतंत्र बनाये रखने के लिए भारत सरकार के लाये नये कानून सीएए की आलोचना भी की थी।

इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत लम्बे समय से यह साबित करता आ रहा है कि कश्मीर के हालात देश का आंतरिक मामला है, इसमें बाहरी शक्तियों के लिए मध्यस्थता की कोई जगह नहीं है। कई अवसरों पर निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मध्यस्थता के प्रस्तावों दे चुके हैं; लेकिन हर बार उसे अस्वीकार कर दिया गया। फिर भी कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सार्वजनिक बयानों और नीतिगत बयानों के आधार पर बाइडन और हैरिस दोनों ने स्पष्ट कहा है कि उनका प्रशासन कश्मीर जैसे मामलों को फिलहाल होल्ड कर सकता है।

कुछ विशेषज्ञों ने बाइडन के इस एजेंडे को मुस्लिम-अमेरिकियों के लिए ध्यान आकर्षित करने वाला कहा है; जिसे बाइडन ने अपने चुनावी अभियान में बोला और यह वेबसाइट पर उपलब्ध है। इसमें बाइडन कहते हैं- ‘कश्मीर में कश्मीरियों के अधिकारों को बहाल करने और असंतोष पर लगाये गये प्रतिबन्धों के खात्मे के लिए भारत सरकार को सभी आवश्यक कदम उठाने चाहिए। इनमें बताया गया है कि शान्तिपूर्ण विरोध को रोकना या इंटरनेट पर पाबन्दी लगा देना या गति धीमी कर देना आदि कदम लोकतंत्र को कमज़ोर करते हैं। कमला हैरिस ने अक्टूबर, 2019 में कहा था कि हमें कश्मीरियों को याद दिलाना होगा कि वे दुनिया में अकेले नहीं हैं। यदि हालात नहीं बदले जाते, तो हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है। कोई यह कैसे उम्मीद कर सकता है कि भारत में मानवाधिकारों के सम्बन्ध में बाइडन-हैरिस प्रशासन द्वारा इस तरह के आक्रामक दृष्टिकोण को नहीं अपनाया जा सकता है। फिर भी अमेरिका में मानवाधिकार कार्यकर्ता इस सम्बन्ध में नये प्रशासन पर दबाव बना सकते हैं।

बाइडन प्रशासन के तहत भारत और अमेरिका के बीच सम्बन्धों के पैटर्न को आकार देने में चीन एक अहम िकरदार बनने जा रहा है। लगभग हर अमेरिकी प्रशासन भारत को उच्च तकनीक वाली रक्षा तकनीक हस्तांतरित करने से हिचक रहा है; जैसा कि अतीत में चीन के मामले में हुआ था। ट्रंप प्रशासन के दौरान बीजिंग और वाशिंगटन के बीच तनावपूर्ण सम्बन्ध रहे, जिससे चीन को प्रतिबन्धों का भी सामना करना पड़ा था। भारत और चीन के बीच फिलहाल सैन्य गतिरोध के बीच विशेष रूप से हाल ही में लद्दाख के भारतीय क्षेत्र में चीनी घुसपैठ के मद्देनज़र ट्रंप प्रशासन ने भारत के साथ कुछ रक्षा सम्बन्धी समझौतों पर हस्ताक्षर किये थे। इस तथ्य को देखते हुए कि चीन के साथ सम्बन्धों को सामान्य करने के लिए बाइडन प्रशासन प्रतिबन्धों में ढील देगा। इसके परिणामस्वरूप वाशिंगटन से भारत को उच्च तकनीकी रक्षा प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण की सम्भावना धीमी हो जाएगी। हालाँकि इस सम्भावना को कुछ विशेषज्ञ खारिज भी करते हैं। वे तर्क देते हैं कि नया प्रशासन चीन में मानवाधिकार की स्थिति पर भी ध्यान केंद्रित करेगा और नीतिगत उपायों के अधीन होगा। हालाँकि भारत को अपनी ज़रूरतों के लिए रक्षा उपकरणों और सम्बन्धित प्रौद्योगिकी की खरीद के लिए अपनी वास्तविक रणनीतिक आवश्यकताओं के बारे में बाइडन प्रशासन को भरोसे में लेने की ज़रूरत है।

एच1बी वीजा का मुद्दा खासकर तकनीकी रूप से कुशल कर्मचारियों के लिए अत्यधिक महत्त्व का है। एच1बी वीजा परमिट विशिष्ट विदेशी श्रमिकों को तकनीकी कौशल के साथ अमेरिका में प्रवेश और अमेरिकी कम्पनियों में रोज़गार प्राप्त करने में सक्षम बनाता है। आमतौर पर अमेरिकी सरकार द्वारा सालाना 85 हज़ार एच1बी वीजा जारी किये जाते हैं, और संयुक्त राज्य अमेरिका में ऐसे सभी वीजा धारकों में से लगभग तीन-चौथाई भारतीय हैं। भारत-अमेरिका सम्बन्धों के कई पर्यवेक्षकों का कहना है कि वर्क वीजा पर बातचीत बड़े पैमाने पर भारत-अमेरिका सम्बन्धों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा रही है और जब इस साल जून में ट्रंप प्रशासन ने एच-1 बी वीजा को शेष वर्ष के लिए निलंबित कर दिया और बाद में फिर से इस साल अक्टूबर में ट्रंप प्रशासन ने एच1बी वीजा प्राप्त करने के लिए लॉटरी सिस्टम को समाप्त करने की घोषणा की। इसको एक ऐसे तंत्र के साथ प्रतिस्थापित किया जाना था, जो सबसे ज़्यादा वेतन देने वाली नौकरियाँ प्रदान करता है। भारतीय आईटी क्षेत्र की कम्पनियों ने इस तरह के कदमों पर चिन्ता जतायी थी। नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति ने न केवल ट्रंप के फ्रीज किये गये वीजा को हटाने का वादा किया है, बल्कि अस्थायी वीजा प्रणाली को सुधारने में एक कदम और आगे बढऩे की घोषणा की है। अमेरिका में करीब पाँच लाख भारतीयों को नागरिकता देने का बाइडन का वादा एक स्वागत योग्य कदम है।

अमेरिका और भारत के रिश्ते रणनीति और भू-आर्थिक सम्बन्धों के साथ राष्ट्रीय हितों के आधार पर निर्धारित होते हैं। वैश्विक स्तर पर क्षेत्रीय हालात व राजनीति के अलावा आर्थिक हितों को देखते हुए दोनों देशों का साथ होना आवश्यक है। अंतर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा को गति प्रदान करने में दोनों देश लोकतंत्र के मूल्यों को मज़बूती प्रदान करने में अहम भूमिका अदा कर सकते हैं। इससे विश्व को शान्ति, स्थिरता और समृद्धि की ओर ले जाने में मदद मिलेगी।

(वाशिंगटन से विशेष रिपोर्ट)